Published on Mar 27, 2021 Updated 0 Hours ago

मलेशिया के पास वैक्सीन की मैन्युफैक्चरिंग का बहुत तजुर्बा नहीं है. वह इसके लिए रूस, भारत और चीन की कई कंपनियों से अपने यहां कोविड-19 वैक्सीन की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाने की ख़ातिर बात कर रहा है.

मलेशिया के लिए वैक्सीन का साल साबित हो सकता है 2021 का साल

कोविड-19 महामारी को संभालने में मलेशिया का रिकॉर्ड मिला-जुला रहा है. बाहरी लोग इसे देखकर समझ सकते हैं कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए. असल में 2020 की पहली छमाही में मलेशिया ने पूरी तरह लॉकडाउन नहीं लगाया था, उसने आधी बंदी की, जिसे मूवमेंट कंट्रोल ऑर्डर (MCO) कहा गया. यह प्रयोग बहुत सफल रहा. इससे कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या इतनी कम हो गई कि स्थिति को संभालना संभव हुआ. इसी वजह से धीरे-धीरे इकॉनमी को खोला गया और तीसरी तिमाही में तो ट्रैवल भी शुरू हो गया.

अफसोस कि वह इस शानदार उपलब्धि को बनाए न रख सका, जैसा कि कोरोना की बाद की आई लहरों से साबित होता है. और तो और इनका प्रकोप पहली लहर से लंबे समय तक बना रहा. कोरोना के मरीजों की संख्या चार अंकों में पहुंच गई और इसके नए रिकॉर्ड बनने लगे. इससे स्थिति इसकी पहली लहर के मुकाबले गंभीर हो गई, जिसके कारण MCO लगाना पड़ा था. इनमें सुपर-स्प्रेडर इवेंट्स (ऐसे आयोजन जहां भारी भीड़ इकट्ठा होने से वायरस का संक्रमण और तेजी से होता है) की भी बड़ी भूमिका रही. इनमें सबा में स्थानीय चुनाव जैसी घटनाएं भी शामिल हैं. वहीं, लॉकडाउन से ऊब, बगैर लक्षण वाले कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ने और प्रवासी मज़दूरों की ख़ातिर ख़राबआवासीय इंतज़ाम से हालात और बिगड़े. मलेशिया आज कोरोना संकट के उस मोड़ पर है, जहां इंडोनेशिया उससे काफी पहले पहुंच गया था. आज जिस तरह से वहां वायरस ने कोहराम मचा रखा है, उसे क़ाबूमें करने के लिए मलेशिया के पास वैक्सीन के अलावा कोई उपाय नहीं.

आज जिस तरह से वहां वायरस ने कोहराम मचा रखा है, उसे क़ाबूमें करने के लिए मलेशिया के पास वैक्सीन के अलावा कोई उपाय नहीं.

वैक्सीन अपडेट

मलेशिया ने 26 फरवरी 2021 को राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान शुरू किया. वैक्सीन का पहला डोज प्रधानमंत्री मुहिद्दीन यासीन ने लगवाया. टीकाकरण अभियान की शुरुआत और इसके बारे में ब्यौरा हाल ही में आए राष्ट्रीय कोविड-19 टीकाकरण योजना हैंडबुक में दिया गया है. इसमें बताया गया है कि टीकाकरण तीन चरणों में होगा और फरवरी से शुरू होकर 12-18 महीने तक चलेगा. इसकी शुरुआत स्वास्थ्यकर्मियों और पुलिस, सेना और अर्धसैनिक बलों जैसे फ्रंटलाइन वर्कर्स के साथ होगी. इसके बाद बुजुर्गों, गंभीर बीमारियों से पीड़ित और विकलांगों को टीका लगाया जाएगा. इसके बाद 18 साल और उससे अधिक उम्र वाले लोगों को इस साल मई से वैक्सीन लगाई जाएगी. हैंडबुक में यह भी बताया गया है कि टीका लगाने में कोविड रेड जोन में आने वालों को भी प्राथमिकता दी जाएगी.

मलेशिया ने सीधे या विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) पहल के जरिये कोविड-19 की कई वैक्सीन खरीदी हैं. विज्ञान, तकनीक और नवोन्मेष (साइंस, टेक्नोल़ॉजी और इनोवेशन) मंत्री वाई बी खैरी जमालुद्दीन के मुताबिक, वैक्सीन खरीदने का समझौता इस आधार पर किया गया है कि ‘उसकी कितनी जल्दी आपूर्ति हो सकती है. उसकी लागत क्या है. और वह कितनी सुरक्षित और असरदार है.’ मलेशिया का यह भी मानना  है कि अलग-अलग वैक्सीन के जरिये तेजी से टीकाकरण करने पर हर्ड इम्यूनिटी हासिल की जा सकती है.

हो सकता है कि मलेशिया अपने सभी नागरिकों के लिए वैक्सीन का इंतज़ाम कर ले क्योंकि वह जॉनसन एंड जॉनसन से भी टीका खरीदने की बात कर रहा है और इसके साथ स्पूतनिक V की देश में मैन्युफैक्चरिंग की संभावना भी तलाशी जा रही है.

अभी तक मलेशिया ने 80 फीसदी नागरिकों के लिए वैक्सीन का इंतजाम कर लिया है. देश के करीब आधे लोगों का टीकाकरण फाइजर-बायोनटेक की वैक्सीन से किया जाएगा. करीब 20 फीसदी को एस्ट्राजेनेका और सिनोवैक की वैक्सीन दी जाएगी. इसके बाद जो लोग बचेंगे, उनमें से आधे को कैनसिनोबायो और आधे को स्पूतनिक V वैक्सीन लगेगी. हो सकता है कि मलेशिया अपने सभी नागरिकों के लिए वैक्सीन का इंतज़ाम कर ले क्योंकि वह जॉनसन एंड जॉनसन से भी टीका खरीदने की बात कर रहा है और इसके साथ स्पूतनिक V की देश में मैन्युफैक्चरिंग की संभावना भी तलाशी जा रही है.

 

मुद्दे और चुनौतियां

टीकाकरण के मोर्चे पर मलेशिया के लिए ये अच्छी खबरें हैं, लेकिन इसके बावजूद कुछ चुनौतियां और मौके भी सामने आए हैं, जिन्हें समझने की ज़रुरत है. पहली चिंता वहां रहने वाले विदेशियों और प्रवासी वर्कर्स को लेकर सामने आई है. 2020 में महामारी के कारण इन लोगों में नकारात्मकता बढ़ी. इसी वजह से मीडिया ने उनमें और दिलचस्पी दिखाई. उदाहरण के लिए, कोविड-19 का संक्रमण कुछ ऐसी जगहों पर भी तेजी से फैला, जहां का जीवनस्तर ख़राब था और उन जगहों पर विदेश से आए मज़दूर रह रहे थे. जहां ये लोग काम कर रहे थे, वहां भी ऐसी समस्या दिखी. मीडिया में यह खबर भी आई कि पिछले साल मार्च से अक्टूबर के बीच 49 विदेशियों ने महामारी से जुड़े तनाव के कारण ख़ूदकुशी कर ली. इसे देखकर लगता है कि मलेशिया को टीकाकरण योजना में इन लोगों को भी शामिल करना चाहिए.

अच्छी बात यह है कि मलेशिया की सरकार ने यह घोषणा भी की है कि विदेशी नागरिकों को भी मुफ्त में वैक्सीन वितरित की जाएगी. इससे यहां रह रहे दूसरे देशों के नागरिकों का सरकार पर भरोसा बढ़ेगा और कूटनीतिक लिहाज से भी इसका फ़ायदा मिलेगा. इससे मलेशिया के रिश्ते उन देशों के साथ और मज़बूत होंगे, जहां से ये मज़दूर आए हैं. माना जा रहा है कि दूसरे चरण के आखिरी दौर या तीसरे चरण में इन लोगों का टीकाकरण किया जा सकता है. मलेशिया के नागरिकों के टीकाकरण के बाद जो खुराक बचेगी, उनका इस्तेमाल इन लोगों के लिए किया जा सकता है. इस तरह की सकारात्मक पहल आगे चलकर प्रवासी मज़दूरों की बेहतरी के लिए दूसरी नीतियों की बुनियाद भी बन सकती है. जैसे, उनके जीवनस्तर या आवासीय स्थितियों में सुधार लाना या अभी मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जो अभियान चल रहा है, उन्हें इसका हिस्सा बनाना.

पहले तो उसे इंडोनेशिया की धार्मिक संस्थाओं से बात करनी होगी ताकि वैक्सीन के हलाल दर्जे से जुड़े सवालों का एक जवाब दिया जा सके. 

एक और मसला वैक्सीन को लेकर नागरिकों में हिचक से जुड़ा है. स्वास्थ्य मंत्रालय के एक हालिया सर्वे के मुताबिक, सिर्फ़ दो तिहाई लोग ही वैक्सीन को लेकर सकारात्मक रवैया रखते हैं. इससे पता चलता है कि बाकी लोगों को वैक्सीन लेने की ख़ातिर मनाने के लिए सरकार को अतिरिक्त कदम उठाने होंगे. जिस तरह से कोविड-19 वायरस के नए वेरिएंट सामने आ रहे हैं, उसे देखते हुए हर्ड इम्यूनिटी हासिल करने को यह बहुत ज़रुरी है. मलेशिया में एक वर्ग वैक्सीन के हलाल न होने, साइड इफेक्ट की आशंका और साफ-सफाई बरतने से रोग न होने जैसी वजहों से टीकाकरण नहीं करवाना चाहता. यह भी हो सकता है कि कुछ लोग दुष्प्रचार का शिकार हो गए हों. एक अफवाह तो यही है कि हर्ड इम्यूनिटी हासिल करने के लिए वैक्सीन गैर-ज़रुरी है. इन आशंकाओं को दूर करने के लिए मलेशिया को कुछ रणनीतिक कदम उठाने होंगे.

पहले तो उसे इंडोनेशिया की धार्मिक संस्थाओं से बात करनी होगी ताकि वैक्सीन के हलाल दर्जे से जुड़े सवालों का एक जवाब दिया जा सके. तीसरी चुनौती वैक्सीन को रखने, इंफ्रास्ट्रक्चर, उसे एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने और फिर लोगों के टीकाकरण की है. फाइजर की वैक्सीन 95 फीसदी तक असर करती है और मलेशिया के पास आधी वैक्सीन इसी कपंनी की है. इस टीके के साथ मसला यह है कि इसे -75 डिग्री सेल्सियस तापमान पर स्टोर करना पड़ता है. इसे स्टोर करने की अलग से व्यवस्था करनी होगी ताकि ये ख़राब न हों. मलेशिया के शहरी इलाकों में भले इसमें दिक्कत न आए, लेकिन इस वजह से दूरदराज के इलाकों और गांवों तक पहुंचाने में ज़रुर परेशानी होगी. असल में ऐसी जगहों पर बिजली और दूसरे इंफ्रास्ट्रक्चर अपर्याप्त हो सकते हैं. और तो और इन्हें गांवों और दूरदराज के इलाकों तक पहुंचाने की भी अलग से व्यवस्था करनी होगी. इसके लिए इन इलाकों की ख़ातिर सावधानी से योजना बनानी होगी ताकि वैक्सीन की गुणवत्ता बेहतर बनी रहे. साथ ही, यह भी ख्याल रखना होगा कि इसे लगवाने के लिए इन इलाकों में लोग वैक्सीन सेंटर तक आएं. अगर ऐसा नहीं हुआ तो वैक्सीन के बर्बाद होने का डर बना रहेगा.

क्या हैं अवसर

मलेशिया के पास वैक्सीन की मैन्युफैक्चरिंग का बहुत तजुर्बा नहीं है. वह इसके लिए रूस, भारत और चीन की कई कंपनियों से अपने यहां कोविड-19 वैक्सीन की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाने की ख़ातिर बात कर रहा है. वह खासतौर पर मलेशिया को दक्षिण-पूर्व एशिया और अन्य मुस्लिम देशों के लिए हलाल वैक्सीन का केंद्र बनाना चाहता है. असल में हलाल वैक्सीन की सप्लाई को लेकर बहुत पहल नहीं हुई है, जिसका मलेशिया फ़ायदा उठाने की फिराक में है. उसकी पहचान हलाल सर्टिफिकेशन के ब्रांड के तौर पर भी है. इन हालात में अगर वैक्सीन मैन्युफैक्चरिंग में निवेश होता है तो इससे वहां की दवा और बायोटेक्नोलॉजी इंडस्ट्री को लाभ होगा.

कोविड-19 महामारी के कुछ सकारात्मक नतीजे भी सामने आए हैं. इनमें से एक महामारी से जुड़ी जानकारियों का बढ़ना है. शुरुआती दौर में इसके असरदार इलाज से लेकर क्या करना है और क्या नहीं, इसकी समझ बनी. इसके बाद महामारी की वैक्सीन को लेकर सूचनाएं और जानकारियां बढ़ीं. अब इतने बड़े टीकाकरण अभियान का तजुर्बा हासिल हो रहा है. इससे न सिर्फ़ मलेशिया की मेडिकल और साइंटिफिक कम्युनिटी को फ़ायदा हुआ है बल्कि इससे वहां के समाज की भी इस बारे में समझ बेहतर हुई है.

हाल के वर्षों में मलेशिया को मेडिकल अधिकारियों की कमी का सामना नहीं करना पड़ा. उदाहरण के लिए, दिसंबर 2018 तक 54.3 फीसदी मेडिकल ग्रेजुएट और 23.9 फीसदी फार्मेसी ग्रेजुएट अस्पतालों में प्लेसमेंट का इंतजार कर रहे थे. 2019 में भी ऐसे ही हालत रहे क्योंकि वहां सालाना आधार पर 5,000 नए डॉक्टर तैयार हो रहे हैं. यह मलेशिया के लिए वरदान साबित हुआ. महामारी पर काबू पाने के अलग-अलग दौर में उसे मेडिकल अधिकारियों की कमी नहीं हुई. वहां की सरकार मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर और स्वास्थ्यकर्मियों के लिए लगातार निवेश कर रही है, इससे इस क्षेत्र में देश की क्षमता में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है.

यह भी सच है कि आगे मलेशिया को आर्थिक, सामाजिक, वित्तीय और राजनीतिक स्तर पर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, लेकिन टीकाकरण जल्द शुरू होने की उम्मीद से वहां के नागरिकों को जल्द जीवन सामान्य होने की रोशनी भी दिख रही है.

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