चीन के राष्ट्रीय विकास और सुधार आयोग ने हाल में 56 आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस एवं रोबोटिक्स कंपनियों को सब्सिडी प्रदान करने की घोषणा की जो 2020 तक एक ‘इनोवेशन नेशन’ बनने के उसके लक्ष्य के अनुरूप है। पिछले तीन दशकों के दौरान चीन ने आक्रामक तरीके से दुनिया भर में प्रौद्योगिकी आधारित वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश की है।
अगर 1997 में चीन के उच्च प्रभाव वाले शैक्षणिक प्रकाशनों का योगदान शीर्ष स्कोपस साइटेशंस के मामले में 1 प्रतिशत था तो आज वे 20 प्रतिशत तक पहुंच चुके है। कभी नकली (नौक ऑफ) वस्तुओं का पर्याय बन चुका चीन आज अपनी ऑन-डिमांड बाइक रेंटल सेवाओं की नकल करने के लिए भी सिलिकॉन घाटी को प्रेरित करता है। लेकिन उसकी डिजिटल अर्थव्यवस्था 20वीं सदी की क्लांत और पुरानी पड़ चुकी राजनीति की साक्षी है।
संरक्षणवाद का अर्थ यह है कि टेनपे एवं अलीपे जैसी चीनी भुगतान सेवाओं के 800 मिलियन से अधिक यूजर हैं और उनका संयुक्त बाजार हिस्सा लगभग 90 प्रतिशत है। माइक्रोब्लॉगिंग साइट सिना वेबू के 500 मिलियन चीनी यूजर हैं जो ट्विटर के वैश्विक यूजर आधार से अधिक है। सर्च (बैदू), लोकल ई कॉमर्स (अलीबाबा, जेडीडॉटकॉम), लोकल कम्युट्स (दीदी डैच, काउंडी डैच) एवं ट्रैवेल तथा एकोमोडेशन (सीट्रिप, टुजिया) में भी यही स्थिति है। नुकसान वाली कंपनियों में गूगल, ट्विटर, वॉलमार्ट, अमेजन, विकी, फेसबुक, नेटफिक्स, यूट्यूब, उबेर एवं एयरबलीएनबी शामिल है।
डाटा नया तेल है; लेकिन हमारा लक्ष्य इस ‘तेल’, जैसे कि किफायती कनेक्टिविटी, के महज सहायक लाभों से आगे बढ़ कर संपदा सृजन होना चाहिए।
1803 में, फ्रांस के अर्थशास्त्री ज्यां-बापटिस्टे ने कहा था कि आपूर्ति अपनी खुद की मांग पैदा करती है। चीन ने उनके सिद्धांतों को सच साबित किया है। अपने विशाल इंटरनेट यूजर आधार का दोहन करते हुए, चीन ने अपने नागरिकों की आवश्यकताओं की पूर्ति की है, साथ-साथ नवोन्मेषण यानी इनोवेशन को बढ़ावा देने के लिए भारी मात्रा में डाटा का भी सृजन किया है।
भविष्य के अगले इनोवेशन का लाभ उठाने के लिए, भारत को अपनी खुद की रणनीति बनाने की आवश्यकता है। 2018 के भारत का एजेंडा हाल के वर्षों में हुए लाखों ऑनलाइन और 1,500 मिलियन जीबी के मासिक डाटा उपभोग, जो अब डिजिटल इंडिया को शक्ति देता है, का लाभ उठाने की होनी चाहिए।
डाटा नया तेल है; लेकिन हमारा लक्ष्य इस ‘तेल’, जैसे कि किफायती कनेक्टिविटी, के महज सहायक लाभों से आगे संपदा सृजन होना चाहिए। हमें निश्चित रूप से भारत से डाटा निष्कर्षण की प्रणाली पर फिर से विचार करना चाहिए, केवल यही हिसाब नहीं लगाते रहना चाहिए कि किस प्रकार इसके लाभ धीरे धीरे नागरिकों तक पहुंच सके।
भारत चौथी औद्योगिक क्रांति (4आईआर) के दौरान परिपक्व होने वाली पहली अर्थव्यवस्था के रूप में 10 ट्रिलियन डॉलर वाले क्लब में शामिल होगा। पहली तीनों क्रांतियों -जिनका नेतृत्व ब्रिटेन, अमेरिका एवं आखिर में चीन द्वारा किया गया था-के दौरान नेतृत्व वाले प्रत्येक देश के भीतर ही संपदा सृजन हुआ, जिसे वैश्विक संसाधनों एवं श्रम से सहायता प्राप्त हुई। स्थानीय समृद्धि एवं क्षमता पर इस फोकस में कोई बदलाव नहीं होगा। बहरहाल, भारतीय कहानी में विशिष्ट बात 4आईआर के कच्चे माल- डाटा के इर्द गिर्द की इसकी अपनी नियामकीय प्रणाली होगी।
वैश्विक व्यापार नियमों, जिनसे चीन 21वीं सदी तक अलग रहा है, के लिए भारत को अपने डिजिटल एकीकरण एवं पारंपरिक ऑफलाइन व्यापार में व्यापक बनने की आवश्यकता होगी। लेकिन जैसे वाशिंगटन कंसेंशस (वाशिंगटन स्थित वैश्विक एजेंसियों द्वारा संकटग्रस्त विकासशील देशों के लिए आर्थिक सुधार संबंधी नीतिगत अनुशंसा) में थकावट दिखने लगी है, भारत को नई भूमंडलीकरण परियोजना में एक नई ऊर्जा का समावेश करना चाहिए। भारत को विकास का अपना खुद का एक मॉडल विकसित करना चाहिए जो सीमा पार डाटा हस्तांतरण से जुड़ी प्रमुख चिंताओं पर गौर करे-एक ऐसा मॉडल जो वैश्विक रूप से सूचनाओं के मुक्त प्रवाह को बढ़ावा देता है, साथ ही डाटा से स्थानीय मूल्य सृजन भी सुनिश्चित करता है।
सूचना के दुनिया की सबसे बड़े सार्वजनिक संग्रहों के बीच आधार डाटाबेस स्टार्ट अप एवं सेवाओं की एक नई धारा की शुरुआत कर सकती है जो सत्यापन पर निर्भर करती है। असली चुनौती भारतीय नवोन्मेषण (इनोवेशन) को बाहरी दुनिया में लांच करने की होगी। इस वर्ष यूनिफायड पेमेंट्स इंटरफेस के साथ व्हाट्सअप के एकीकरण से संकेत मिलता है कि दुनिया वास्तव में प्रथम श्रेणी के भारतीय उत्पादों का स्वागत करने के लिए तैयार है। व्हाट्सअप के साथ एकीकरण यूपीआई आधारित ऐप्लीकेशंस एवं आधार सक्षम सिस्टम्स के इर्दगिर्द आधारित ऐसे ही उत्पादों के सृजन एवं अंगीकरण को प्रेरित करेगा। अभी भी, यह कहानी अधूरी ही है। यूपीआई पेमेंट इनोवेशन की रीढ़ की हड्डी बन सकती है, लेकिन वास्तविक सफलता तभी आएगी जब व्हाट्सअप या सिना वैबो के स्तर पर कोई भारतीय प्लेटफॉर्म उभर कर सामने आए।
हम किस प्रकार वैश्विक भारतीय प्रौद्योगिकी कंपनियों का सृजन कर सकते हैं? यह केवल डाटा की सुविधा या जहां यह स्थित है, उसे लेकर जुनूनी होने का मसला नहीं है। हमें डाटा रिफाइनरियों की जरुरत है, डाटा कुओं की नहीं। हमें ऐसी भारतीय टेक इकोसिस्टम की जरुरत है जो न केवल डाटा को बनाता और निकालता है बल्कि इसे वैश्विक मूल्य के उच्च स्तरीय उत्पादों में रूपांतरित करता है। अगर हम ऐसा नहीं करते हैं तो दूसरे ऐसा करेंगे।
चीन ने वैश्विक प्रौद्योगिकी कंपनियों को अपने नियम मानने को या उसके बाजार से दूर रहने को मजबूर किया। भारत ऐसी बड़ी मनमानी की नकल नहीं कर सकता, लेकिन उसका लक्ष्य भी ऐसा ही होना चाहिए: भारतीयों द्वारा सृजित मूल्य मुख्य रूप से भारतीयों के लिए सृजित होना चाहिए और इनसे अधिकतर भारत समृद्ध ही होता है।
चीन के प्रांतों ने टेक्नोलॉजी कंपनियों के सृजन में अग्रणी भूमिका निभाई ; अलीबाबा एवं अन्य कंपनियां दुनिया को चुनौती देने के लिए हांगझोउ जैसी प्रांतीय राजधानियों से निकल कर आईं। हमारी अर्थव्यवस्था महाद्वीप के आकार की अर्थव्यवस्था है और हमें अपने 29 राज्यों के लिए 29 विभिन्न प्रकार की आर्थिक प्रणालियों जो अब जीएसटी जैसे दूरगामी सुधारों द्वारा एक साथ बंधे हुए हैं, की आवश्यकता है-और प्रत्येक आर्थिक प्रणाली की निश्चित रूप से ऐसी विशिष्ट रणनीति होनी चाहिए जो विश्व को पछाड़ने वाली इनोवेशन को विकास के लिए बढ़ावा (इनक्यूबेट) दे सके।
इसे आगामी बजटीय आवंटनों एवं डाटा सुरक्षा विधेयक जिसे तैयार किया जा रहा है, दोनों का केंद्र बिंदु बनना चाहिए। यह विधेयक न केवल गोपनीयता को बढ़ावा देने वाला होना चाहिए बल्कि इसे ऐसे विश्व में भारत की व्यापार भंगिमाओं को पुनर्भाषित करनी चाहिए जहां डाटा अर्थव्यवस्थाओं को प्रेरित करता और बढ़ावा देता है। अगर सही तरीके से किया जाए तो यह स्थानीय नवोन्मेषण या इनोवेशन को प्रोत्साहित कर सकता है-नई स्थानीय भाषा प्रौद्योगिकियों को जन्म देता है जो रूपांतरकारी हैं। अगर गलत तरीके से किया जाए तो यह इनोवेशन और विदेशी निवेशों को निरुत्साहित भी कर सकता है।
अब अवसर आ चुका है, और हमें 2018 में इसे अवश्य लपक लेना चाहिए: चीन का डिजिटल संरक्षणवाद और अमेरिकी निर्णय में फेरबदल भूमंडलीकरण 4.0 यानी चौथी पीढ़ी की भारतीय जीत के अनुरूप हो सकता है-और अगर ऐसा होता है कि हम उस सर्वश्रेष्ठ नियामकीय पल या स्थान की खोज कर लेंगे जो भारत के लिए सबसे बड़ी मात्रा में ऑनलाइन मूल्य सृजन करेगा और एक परिपक्व भारतीय प्लेटफॉर्म अर्थव्यवस्था का निर्माण करेगा।
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