Author : Shoba Suri

Published on Jun 06, 2022 Updated 0 Hours ago

भारत को अपने यहां कुपोषण की चुनौती से उबरने के लिए अधिक समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है.

भारत में कुपोषण की समस्या: #Zero Hunger का टारगेट पूरा कर पाना एक कठिन और असाध्य लक्ष्य!

कुपोषण इंसानी पूंजी को प्रतिकूल प्रभावित करता है लिहाज़ा इस पर तुरंत ध्यान देने की ज़रूरत है. साल 2021 की सस्टेनेबल डेवेलपमेंट रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत 193 देशों की सूची में 117 वें स्थान से फिसल कर 120 वें पायदान पर चल गया है और भुखमरी को शून्य के स्तर तक ले जाने, स्वास्थ्य और कल्याण, साफ पीने का पानी और लैंगिंक समानता जैसी चुनौतियों से निपटने में काफी पीछे नज़र आता है. इतना ही नहीं कोरोना महामारी ने एसडीजी के कार्यान्वयन को और लंबित कर दिया है. यहां तक कि सस्टेनेबल डेवेलपमेंट गोल 2021 रिपोर्ट के निष्कर्ष भी, गरीबी में सात प्रतिशत की वृद्धि, बाल कुपोषण की बढ़ती समस्या, रुकी हुई या बाधित स्वास्थ्य सेवाओं के साथ जीवन प्रत्याशा में कमी की ओर इशारा कर रहे हैं. 2021 वैश्विक पोषण रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत तीन वैश्विक पैमानों – मातृ, शिशु और छोटे बच्चों के पोषण (एमआईवायसीएन) के प्रस्तावित लक्ष्य से काफी दूर है जो स्टंटिंग, वेस्टिंग, एनीमिया, जन्म के समय कम वज़न, स्तनपान और बचपन में मोटापे जैसी समस्याओं की ओर इशारा करता है.

2021 ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत 116 देशों की सूची में 101 वें पायदान पर है और भुखमरी की गंभीर श्रेणी के तहत यह आता है. भारत में भुखमरी की तीव्रता 27.9 प्रतिशत है तो यहां 45.9 प्रतिशत बहुआयामी ग़रीबी की स्थिति है

2021 ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत 116 देशों की सूची में 101 वें पायदान पर है और भुखमरी की गंभीर श्रेणी के तहत यह आता है. भारत में भुखमरी की तीव्रता 27.9 प्रतिशत है तो यहां 45.9 प्रतिशत बहुआयामी ग़रीबी की स्थिति है, जिसमें नागरिकों को बड़ी संख्या में स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा और जीवन स्तर में कमी का सामना करना पड़ रहा है. कुपोषण की समस्या दशकों से भारत को जकड़े हुए है और ग़रीबी और आर्थिक पतन की यह प्राथमिक वज़ह है.

नीचे दिए गए आंकड़े बेहद चिंताजनक हैं जिसमें बच्चों में कुपोषण के उच्च स्तर को दिखाया गया है, जिसमें भारत में 35.5 प्रतिशत बच्चे अविकसित हैं जबकि 32.1 प्रतिशत कम वज़न वाले बच्चे हैं. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 (एनएफएचएस -5) के आंकड़ों के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में ख़राब सामाजिक-आर्थिक स्थिति की वज़ह से शहरी केंद्रों (30.1 प्रतिशत) के मुक़ाबले ग्रामीण इलाकों में (37.3 प्रतिशत) में ज़्यादा स्टंटिंग की समस्याएं हैं. यह बेहद ज़रूरी है कि गर्भधारण से लेकर जीवन के पहले 1,000 दिनों तक स्टंटिंग की समस्या को सुधारा जाए. स्टंटिंग पर उपलब्ध आंकड़े इस ओर इशारा करते हैं कि भविष्य में इसे लेकर जो नीतियां बनाई जाए उन्हें कहां केंद्रित किया जाना चाहिए.


भौगोलिक क्षेत्रों के संदर्भ में, मेघालय (46.5 प्रतिशत), बिहार (42.9 प्रतिशत), उत्तर प्रदेश (39.7 प्रतिशत) और झारखंड (39.6 प्रतिशत) में स्टंटिंग की दर बहुत अधिक है, जबकि सबसे कम दर वाले राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में सिक्किम और पुडुचेरी शामिल हैं, जहां क्रमशः 22.3 प्रतिशत और 20 प्रतिशत स्टंटिंग की समस्या है. एनएफएचएस -4 की एनएफएचएस-5 के निष्कर्षों से तुलना करने से पता चलता है कि कुछ राज्य जैसे (मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड) में स्टंटिंग में कम से कम 6 प्रतिशत की कमी आई है, जबकि राजस्थान में रिकॉर्ड 7.3 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज़ की गई है. हालांकि, सभी राज्यों में पोषण की स्थिति में सुधार तो हुआ है लेकिन अंतर-राज्यीय परिवर्तनशीलता अभी भी काफी है. जिन दो राज्यों में साल 2015 – 16 (एनएफएचएस-4) में बच्चों में स्टंटिंग दर सबसे कम थी लेकिन वहां एनएफएचएस -5 सर्वेक्षण के अनुसार स्टंटिंग दर में काफी बढ़ोतरी देखी गई और ये राज्य हैं गोवा (20.1 प्रतिशत से 25.8 प्रतिशत) और केरल (19.7 प्रतिशत से 23.4 प्रतिशत).

बच्चे के अस्तित्व, स्टंटिंग और उससे होने वाले नुक़सान को रोका जा सकता है. समय पर स्तनपान, उम्र के अनुकूल आहार, पूर्ण टीकाकरण और विटामिन ए की ख़ुराक़ बच्चों के स्वास्थ्य में बेहतर नतीजे दे सकते हैं.

नवजात बच्चों में स्टंटिंग की समस्या

भारत में एक घंटे के भीतर शिशु को स्तनपान कराने की दर 41.8 प्रतिशत है, यानी जन्म के एक घंटे के भीतर पांच में से केवल दो महिलाएं ही शिशु को स्तनपान शुरू करा पाती हैं. इतना ही नहीं केवल 63.7 प्रतिशत महिलाएं अपने शिशुओं को छह महीने तक विशेष रूप से स्तनपान करा पाती हैं और छह महीने के बाद पूरक आहार दर 45.9 प्रतिशत हो जाता है और इसके साथ जो बेहद चिंताजनक है वह यह कि महज़ 11.3 फ़ीसदी (10 में से एक) बच्चों को ही न्यूनतम स्वीकार्य आहार मिल पाता है. भारत में दशकों से शिशु और छोटे बच्चे को खिलाने को लेकर चलाए जा रहे जागरुकता अभियान के बावज़ूद हालात बहुत ज़्यादा नहीं बदले हैं. हालांकि, 1000 दिनों का समय एक तरह से अवसर प्रदान करता है जिसमें स्तनपान की प्रक्रिया का प्रयोग कुपोषण की चुनौतियों से लड़ने के लिए एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है. उचित पूरक आहार व्यवस्था जैसे कि छह महीने में भोजन की समय पर शुरूआत और पर्याप्त आहार देने की ज़रूरतों के प्रति जागरूकता बढ़ाई जानी चाहिए और यह बताना चाहिए कि ऐसा नहीं करने पर बच्चे का विकास प्रभावित होता है, क्योंकि एक मात्र यही तरीक़ा है कि बच्चे के अस्तित्व, स्टंटिंग और उससे होने वाले नुक़सान को रोका जा सकता है. समय पर स्तनपान, उम्र के अनुकूल आहार, पूर्ण टीकाकरण और विटामिन ए की ख़ुराक़ बच्चों के स्वास्थ्य में बेहतर नतीजे दे सकते हैं.

साक्ष्यों से पता चलता है कि अगर पोषण-विशिष्ट कार्यक्रमों को पोषण-संवेदनशील अभियानों के साथ 90 फ़ीसदी तक बढ़ाया जाए तो स्टंटिंग में 20 फ़ीसदी तक की कमी हासिल की जा सकती है. दरअसल, सामाजिक सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा जाल परिवारों को स्वास्थ्य और पोषण प्राप्त करने के लिए बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने योग्य बनाते हैं. “सामाजिक सुरक्षा जाल महिलाओं को संपत्ति पर नियंत्रण रखने और घरेलू निर्णय लेने और सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने योग्य बनाकर उन्हें सशक्त बना सकते हैं”. भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली और मातृ नकद हस्तांतरण (मैटर्नल कैश ट्रांसफर) कार्यक्रम ने उन तमाम लोगों को जो ग़रीबी रेखा के नीचे गुजर बसर करते हैं उन्हें सब्सिडी आधारित भोजन और पोषण संबंधी ज़रूरतों को प्राप्त करने में मदद किया है.

चार दशक पुराने एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) कार्यक्रम, साल 1995 से मध्याह्न भोजन योजना और 2018 में शुरू किए गए पोषण अभियान के बावज़ूद भारत में कुपोषण की समस्या तेज़ी से बढ़ रही है. कुपोषण जैसी समस्या से निपटने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण और अंतर-क्षेत्रीय रणनीति की आवश्यकता है. जब तक बच्चा पांच वर्ष का नहीं हो जाता है तब तक स्वास्थ्य और पोषण कार्यक्रमों के अभिसरण पर ज़ोर देना बेहद ज़रूरी है. यहां तक कि कुपोषण को दूर करने के लिए कार्यक्रमों की निगरानी और कार्यान्वयन भी ज़रूरी है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.