प्रधानमंत्री काशिदा फुमियो की नई सरकार के सामने रक्षा संबंधी दो महत्वपूर्ण मुद्दे हैं. पहला तो यह है कि नई सरकार 2022 तक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (एनएसएस) बनाएगी. यह शिंजो आबे सरकार की 2013 की रणनीति की जगह लेगी.
इससे पिछले चुनाव में, एलडीपी ने जापान की रक्षा बज़ट में जीडीपी का 2 फ़ीसदी बढ़ाने के प्रस्ताव को समर्थन दिया था. यह जापान की रक्षा बज़ट को 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ा सकता है. मौजूदा समय में यह जीडीपी का 1.3 फ़ीसदी है जो 48 बिलियन अमेरिकी डॉलर है.
यह जापान के लिए बेहद अहम नीतियां हैं जो मुल्क को आर्थिक शक्ति से इस क्षेत्र में रणनीतिक ज़िम्मेदारी की तरफ अग्रसर होने का संकेत है. हालांकि संविधान के अनुच्छेद 9 में संशोधन करने की मांग जो सेल्फ डिफेन्स फ़ोर्सेज़ (एसडीएफ) को सीमित करना है. वह किशिदा सरकार के तहत सफल हो सकता है क्योंकि उन्हें उनके गठबंधन के सहयोगी कोमितो और निप्पॉन इशिन नो काई का समर्थन प्राप्त है लेकिन रूढ़िवादी किशिदा दरअसल शिंजो आबे के तेज, प्रगतिशील रक्षा दृष्टिकोण को अमल करने की दिशा में लगातार प्रयत्नशील हैं. 1947 के संविधान को संशोधित किया जा सकता है ; जिसके लिए दोनों डायट चैंबर्स की दो तिहाई बहुमत की ज़रूरत होती है और जिसे जनादेश के रूप में जारी किया जाता है.
सुरक्षा और एनएसएस को लेकर जापान के दृष्टिकोण में क्या बदलाव हुआ है ?
1980 और 1990 के दशक में सोवियत संघ गणराज्य के ख़िलाफ़ ज़बर्दस्त प्रदर्शन हुआ, जिसकी वजह उत्तरी हिस्से पर कब्ज़ा जमाना था; लेकिन इस तरह के उकसावे की कार्रवाई अपने आप में ज़्यादा नहीं थी कि जापान अपने रक्षा ख़र्च को जीडीपी का एक फ़ीसदी तक बढ़ाए, या फिर संविधान के अनुच्छेद 9 में कोई संशोधन करे. 21वीं शताब्दी में भी रूस का उत्तरी इलाके से संबंधित समस्याओं का पूरी तरह निदान नहीं हुआ है. हालांकि जापान को चीन और उत्तर कोरिया के मुकाबले रूस से बेहद कम ख़तरे की चुनौतियां हैं. हाल के वर्षों में सुरक्षा को लेकर श्वेत पत्र में साफ तौर पर जापान को किन शत्रुओं से परेशानी हो सकती है उसकी पहचान की गई है.
फरवरी 2021में चीन के कोस्ट गार्ड कानून (सीसीजी) को संशोधित किया गया जिससे ज़्यादा गंभीर असर की अनुमति संभव हो सकी. यहां तक कि नए कानून से पहले ही सीसीजी ने साल 2020 में 333 बार घुसपैठ की जिसमें ईस्ट एशियन सी में 1161 जहाज दाखिल हुए थे. और तो और नए कानूनों के तहत हथियारों के इस्तेमाल को लेकर भी इतनी भ्रम की स्थिति है जो जापान को चीन से होने वाले ख़तरे के प्रति आशंकित करता है.
रूस और चीन से जापान को होने वाले ख़तरे को लेकर जो अंतर है वह यह है कि जापान के कुछ इलाकों पर भले रूस का कब्ज़ा है लेकिन टोक्यो इसे ख़तरा नहीं मानता है. रूस के साथ जापान के ज़्यादा आर्थिक हित नहीं जुड़े हुए हैं जबकि चीन के साथ जापान के कई आर्थिक हित साझा होते हैं. जापान और चीन के बीच कारोबार 280 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है जबकि जापान और रूस के बीच कारोबार मात्र 18 बिलियन डॉलर का ही है.
यह सेनकाकू द्वीपों को लेकर चीन की प्रतिक्रिया है, जिसने टोक्यो में ख़तरे का भाव पैदा किया है. चीन के इस ख़तरे की वजह से ही जापान को अपनी रक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया है. रूस के साथ समस्याओं के पहले से ही चीन से ख़तरे की चुनौतियों ने ही जापान को उसकी रक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर तैयारियां करने पर मज़बूर किया. फरवरी 2021में चीन के कोस्ट गार्ड कानून (सीसीजी) को संशोधित किया गया जिससे ज़्यादा गंभीर असर की अनुमति संभव हो सकी. यहां तक कि नए कानून से पहले ही सीसीजी ने साल 2020 में 333 बार घुसपैठ की जिसमें ईस्ट एशियन सी में 1161 जहाज दाखिल हुए थे. और तो और नए कानूनों के तहत हथियारों के इस्तेमाल को लेकर भी इतनी भ्रम की स्थिति है जो जापान को चीन से होने वाले ख़तरे के प्रति आशंकित करता है.
जापान आख़िर क्या करने की कोशिश कर रहा है ?
सबसे पहले नए एनएसएस को आगे बढ़ाकर जापान अपने रक्षा और विदेश मामलों के लिए मंत्रालय के लिए फ्रेमवर्क तैयार करेगा. जापान की सुरक्षा के दृष्टिकोण को लेकर एनएसएस अपनी रणनीतिक हितों के लिए कूटनीति को पांच या छह एजेंडों में सबसे प्राथमिक मानता है. यह नया फ्रेमवर्क उभरते ख़तरों के लिए रक्षा सहयोग को बढ़ावा देगा. दूसरा यह अपने रक्षा बज़ट को ज़्यादा तेजी से बढ़ा सकता है. यह एसडीएफ को बेहतर क्षमता प्रदान कर सकता है.
सबसे बड़ी ज़रूरत संविधान की अनुच्छेद 9 को संशोधित करना है. जुलाई 2022 में उच्च सदन के चुनाव के नतीजों पर बहुत कुछ आधारित होगा. अगर एलडीपी चुनाव जीत जाती है तो उनके पास डायट के दोनों सदनों में आवश्यक बहुमत हो पाएगा.
तीसरी सबसे बड़ी ज़रूरत संविधान की अनुच्छेद 9 को संशोधित करना है. जुलाई 2022 में उच्च सदन के चुनाव के नतीजों पर बहुत कुछ आधारित होगा. अगर एलडीपी चुनाव जीत जाती है तो उनके पास डायट के दोनों सदनों में आवश्यक बहुमत हो पाएगा. एनएसएस की शुरुआत या रक्षा बज़ट को दोगुना करना संविधान के अनुच्छेद 9 के संशोधन के साथ शामिल होना है.
जापान अपनी साझेदारी अमेरिका के साथ मज़बूत करेगा. रक्षा श्वेत पत्र यह दर्शाता है कि जापान अपने विपन सिस्टम के विकास को कम करेगा जब कभी भी अमेरिका हथियारों की मदद जापान को मुहैया कराएगा. अमेरिकी हथियारों की ख़रीद को जापान ने बढ़ाया है ख़ास कर इस चिंता को ख़ारिज करते हुए कि सामान्य हालात में जापान को हथियारों का आयात कम करेगा. जापान साल 2021 तक एफ-35, यूएस – 2, सी-2, पीएसी – 3 एमएसईएस और टाइप-16 मोबाइल कॉम्बैट व्हीकल ख़रीदने की योजना बना रहा है.
एक साल में 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर के साथ जापान अमेरिका से ज़्यादा हथियारों को प्राप्त कर सकता है, जिसमें स्टील्थ फाइटर विमान, टिल्ट रोटर युटिलिटी एयरक्राफ्ट और सर्विलांस ड्रोन्स भी शामिल हैं. देसी एंफिबियस लैंडिंग क्राफ्ट, कॉम्पैक्ट वॉरशिप्स, हेलीकॉप्टर कैरियर, सबमरीन, सैटेलाइट और संचार उपकरण लंबे समय तक जंग लड़ने के लिए शामिल हैं. जापान इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम डोमेन में निवेश कर रहा है. यहां तक कि बेहद अहम तकनीक जो कि गेमचेंजर साबित हो सकते हैं जिनमें व्हीकल्स भी शामिल हैं उस पर भी जापान काम कर रहा है.
अमेरिका-जापान सहयोग को बढ़ाने के साथ दोनों देशों के साथ समझ बढ़ाने पर भी जोर दिया जा रहा है जिसमें जापान की ज़िम्मेदारी अहम होगी. 2022 से जापान अमेरिका में मौजूद अमेरिकी सैन्य ठिकानों को मेंटेन करने के लिए और ख़र्च करेगा. 2021 में यह 1.79 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़ कर यह अगले पांच साल तक के लिए वार्षिक 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो सकता है. इस तरह सेन्काकु, अमेरिका के साथ समझौता और ताइवान फैक्टर एक तरह से जापान के रक्षा बज़ट में बढ़ोतरी और एनएसएस की शुरुआत के लिए सही वजह साबित हो रही हैं. जापान और अमेरिका ताइवान के इलाकों को मिलाना नहीं चाहते जिस तरह चीन साउथ चाइना सी में कुछ इलाकों पर अपना कब्ज़ा जमाकर जताना चाहता है और आसियान देश इसका विरोध भी नहीं कर रहे हैं. जापान इस बात को समझता है कि ताइवान में जापानी नागरिकों और कंपनियों की मौजूदगी इसकी सुरक्षा परिदृश्य के लिए ख़तरनाक साबित हो सकते हैं.
मौजूदा स्थिति में जापान ईस्ट चाइना सी में चीनी कब्ज़े को हटाने के लिए बहुत प्रयासरत नहीं है, जो पिछले दो सालों से और भयावह होती जा रही है लेकिन इसे लेकर विरोध करने में इच्छाशक्ति और क्षमता दोनों की ज़रूरत है.
जापान को भरोसा है कि ताइवान को लेकर उसका दृष्टिकोण सेन्काकु जो इसी द्वीपमाला का हिस्सा है, उसकी सुरक्षा के लिए बेहतर है. मौजूदा स्थिति में जापान ईस्ट चाइना सी में चीनी कब्ज़े को हटाने के लिए बहुत प्रयासरत नहीं है, जो पिछले दो सालों से और भयावह होती जा रही है लेकिन इसे लेकर विरोध करने में इच्छाशक्ति और क्षमता दोनों की ज़रूरत है.
जापान शिंजो आबे की सरकार की नीतियों के तहत इस क्षेत्र में बड़ी भूमिका अदा करने को तैयार है. इंडो-पैसिफ़िक रणनीति और मुक्त इंडो-पैसिफ़िक(एफओआईपी) दोनों ही जापान के लिए ज़िम्मेदारी पैदा करते हैं और सहयोगात्मक रवैये के लिए जापान को बाध्य करते हैं. बाइडेन सरकार आने के बाद अेरिका के साथ जापान के सहयोग में तेजी आई है और क्वाड देशों के रक्षा और विदेश मंत्रियों की टू प्लस टू बैठक भी फिलहाल अस्तित्व में हैं.जापान-अमेरिका की टू प्लस टू बैठक 2021 में हो चुकी है और अगली बैठक 2022 में होनी है.
जापान अपने पड़ोसी आसियान देशों जैसे फिलिपींस और वियतनाम को रक्षा हथियार सप्लाई करने पर जोर दे रहा है. यह उसके द्वीप की सुरक्षा रणनीति का हिस्सा है. क्वाड के साथ इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र में मिलिट्री एक्सरसाइज़ में मैरिटाइम सेल्फ डिफेंस फ़ोर्स(एमएसडीएफ) एक बड़ी भूमिका अदा कर रहा है.
संशोधित एनएसएस से चीन की आक्रामकता की चुनौतियों से निपटने की तैयारी है. इसके साथ ही रक्षा क्षमता को प्राप्त करना भी जापान की योजना का हिस्सा है लेकिन सवाल यही है कि क्या उत्तर कोरिया और चीन के बेस पर पहले हमला करने की क्षमताओं को भी बढ़ाया जाएगा? जापान अब तक इसे सही साबित करता रहा है क्योंकि चीन और उत्तर कोरिया दोनों के पास जापान पर मिसाइल से हमला करने की क्षमता है. चीन और उत्तर कोरिया द्वारा हाइपरसोनिक मिसाइल के परीक्षण ने ख़तरे की आशंका बढ़ा दी है.
ताइवान में किसी तरह की आपात स्थिति होने पर जापान कैसे प्रतिक्रिया देगा ?
जापान सरकार की संस्थाओं ने चीन के नेतृत्व में ताइवान में हो रही हलचलों को लेकर तैयारियां शुरू कर दी हैं. इसमें जापानी नागरिकों की सुरक्षा, ख़ुफ़िया, लॉजिस्टिक और अमेरिका के साथ बेस साझा करना है. यह संदेहास्पद है कि ताइवान की आपात स्थिति में जापान उसे सैन्य और जहाजों से मदद करेगा. 2 दिसंबर को ताइवान-अमेरिका-जापान ट्राइलैटरल इंडो-पैसिफ़िक सिक्योरिटी डायलॉग में पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने कहा था “ताइवान पर सैन्य आक्रमण जापान के लिए बेहद गंभीर ख़तरा होगा. ताइवान की आपात स्थिति जापान के लिए आपात स्थिति है, इसलिए यह जापान-अमेरिका गठजोड़ के लिए भी आपात स्थिति होगी.” ताइवान ने अमेरिका के इस रुख़ का स्वागत किया था.
ताइवान के लिए किसी भी तरह की चुनौती जापान के लिए ऊर्जा सप्लाई को लेकर बाधा पैदा करेगी. इससे जापान के समंदर में हमला करने की क्षमता पर असर होगा. चीन के पर्यवेक्षकों का मानना है कि नए परिदृश्य के लिए जापान अपने एनएसएस में संशोधन करेगा और ऐसे दृष्टिकोण को अपने संविधान में शामिल करेगा. चीन मानता है कि जापान ताइवान और चीन के मुद्दे को अपनी सैन्य क्षमता बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करेगा जो ठीक नहीं है.
उधर चीन जापान के बदलते रूख़ को लेकर आसियान देशों को हैरत में डालेगा, जो पड़ोस में इस तरह की दुश्मनी से बचना चाहते हैं. हाल ही में चीन ने आसियान देशों के साथ अपनी 30 वीं सालगिरह सम्मेलन का आयोजन किया जिसमें अमेरिकी विदेश मंत्री एंथनी ब्लिंकन ने इंडोनेशिया और मलेशिया दोनों जगहों का दौरा किया. दोनों ने ही आसियान देशों को बेहतर मंशा का भरोसा दिलाया. जापान के पूर्व प्रधानमंत्री सुगा ने अपने कार्यकाल की शुरुआत वियतनाम की यात्रा से की थी और उनके रक्षा मंत्री ने भी तब वियतनाम का दौरा किया था.बदले में वियतनाम के प्रधानमंत्री फाम मिन्ह चिन्ह टोकयो में आयोजित सम्मेलन में शामिल हुए थे जो किशिदा के लिए पहला विदेशी सम्मेलन था. आसियान देशों के सामने नहीं झुकना क्वाड की रणनीति थी. जापान एफओआईपी के तहत आसियान देशों के साथ अपने एनएसएस को शामिल करने की योजना पर काम कर रहा है.
इसके साथ ही जापान का फोकस यूरोपीय देशों के साथ सहयोग को बढ़ाने पर भी होगा. यूरोपियन यूनियन के लिए जापान एक उदाहरण के तौर पर होगा जो यह संकेत देता है कि वो अपने रक्षा बज़ट को बढ़ाएं, अपनी सुरक्षा गाइडलाइन्स पर फिर से विचार करें और मज़बूत रणनीतिक साझेदार बनें. रूस का रूख़ इसमें एक सामान्य भूमिका के तौर पर देखा जाएगा. क्योंकि यूरोपीय देशों को रूस के रूख़ से चिंता है, जबकि जापान यह महसूस कर रहा है कि रूस की नीतियां अब सख़्त हो रही हैं.
रूस और चीन का गठजोड़ एक अलग दिशा में बढ़ रहा है. अमेरिका और जापान द्वारा कुरील द्वीप के आसपास संयुक्त एयर एक्सरसाइज़ से रूस को यह चिंता है कि एक मज़बूत जापान-अमेरिका का गठजोड़ उसके पूर्वी हिस्से में कुरील मिसाइल की तैनाती को अंजाम देगा.
हालांकि यह भी सत्य है कि एनएसएस और रक्षा बज़ट में बढ़ोतरी इंडो-पैसिफिक जापान को तेजी से एक नई पहचान प्रदान करेगा. भारत के साथ करीबी संबंध इसी विस्तार का एक हिस्सा है. जापान कूटनीति आधारित अहम मुल्क होने की अपनी छवि को अब ऐसे मुल्क की पहचान में बदलने को बेताब है जिसकी सैन्य कूटनीति और सर्वोच्च तैयारी इस क्षेत्र में उसे अहम भूमिका निभाने के लिए तैयार करे. और पड़ोसी मुल्क की अनिश्चितता उसे ऐसे बदलाव के लिए तैयार करते हैं.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.