Published on Dec 21, 2020 Updated 0 Hours ago

अंतरिक्ष की संपत्तियां सहज रूप से ‘दोहरे इस्तेमाल’ की हैं जिसकी वजह से अंतरिक्ष की तकनीक के असैनिक इस्तेमाल को इसके संभावित सैन्य इस्तेमाल से अलग करना मुश्किल है.

स्पेस गवर्नेंस की ज़रूरत अभी क्यों ?

ज़मीनी, समुद्री और हवाई युद्ध की चर्चा तो बहुत होती है लेकिन अब प्रतिस्पर्धा और दुश्मनी का नया अखाड़ा अंतरिक्ष बन गया है. स्पुतनिक I से लेकर स्पेस X फाल्कन तक मोर्चे के रूप में अंतरिक्ष ने एक लंबा सफ़र तय किया है.

कुछ समय पहले तक अंतरिक्ष को महाशक्तियों के खेल का ख़ास मैदान माना जाता था. लेकिन अंतरिक्ष तक पहुंचने वाले देशों की संख्या में बढ़ोतरी, तकनीकी और कामकाजी क्षमता में लगातार इज़ाफ़े, राष्ट्रीय सुरक्षा में अंतरिक्ष की बड़ी भूमिका, रिमोट सेंसिंग के लिए बढ़ते मौक़े और अंतरिक्ष में खनन के लिए संभावना के साथ अंतरिक्ष का कार्य क्षेत्र तेज़ी से जटिल, भीड़ भरा, प्रतिस्पर्धी और संघर्ष से भरा बनता जा रहा है.

जितने ज़्यादा खिलाड़ी इस मैदान में रहेंगे, संसाधनों के लिए उतनी प्रतिस्पर्धा होगी. यही वजह है कि अंतरिक्ष के लिए उचित नियम और साझा निर्णय लेने की प्रक्रिया ज़रूरी है ताकि अंतरिक्ष तक पहुंचने वाले सभी देश अकेले के मुक़ाबले ज़्यादा कामयाबी हासिल कर सकें.

लेफ्टिनेंट कर्नल जॉन ई. हाइटेन, जो अमेरिकी एयरफोर्स जनरल हैं, (फिलहाल ज्वाइंट चीफ़ ऑफ स्टाफ के 11वें उपाध्यक्ष के तौर पर काम कर रहे) ने साल 2000 में ही अंतरिक्ष में संघर्ष को अपरिहार्य बताया था.

जितने ज़्यादा खिलाड़ी इस मैदान में रहेंगे, संसाधनों के लिए उतनी प्रतिस्पर्धा होगी. यही वजह है कि अंतरिक्ष के लिए उचित नियम और साझा निर्णय लेने की प्रक्रिया ज़रूरी है ताकि अंतरिक्ष तक पहुंचने वाले सभी देश अकेले के मुक़ाबले ज़्यादा कामयाबी हासिल कर सकें. इसलिए ये वांछनीय है कि प्रतिस्पर्धी अंतरिक्ष का माहौल ज़्यादा सहयोगपूर्ण हो सके. इस तरह की इच्छा अंतरिक्ष की खोज को लेकर एलेन स्टोफैन (नासा की पूर्व मुख्य वैज्ञानिक) के बयान से मिलती-जुलती है. स्टोफैन ने कहा था, “जब हम खोज-बीन के लिए जाते हैं तो हम ये काम पूरे विश्व की तरफ़ से करते हैं. लोग अंतरिक्ष को ऐसी जगह के तौर पर देखते हैं जहां जाकर आप सहयोग करते हैं.”

अंतरिक्ष के मौजूदा ‘नियमों’ पर किसी और समय में सहमति बनी. ये नियम 60 के दशक में तब तय हुए जब शीत युद्ध चरम पर था और आपस में उलझे देशों के बीच संबंध बेहद ख़राब थे. साथ ही अंतरिक्ष को लेकर समझ और क्षमता बेहद सीमित थी. स्पुतनिक के लॉन्च के एक साल के बाद 1958 में अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण इस्तेमाल पर संयुक्त राष्ट्र की कमेटी (UNCOPUOS) की स्थापना हुई. ये संयुक्त राष्ट्र की अस्थायी कमेटी थी (1959 में इसे स्थायी बना दिया गया) और अंतरिक्ष मामलों के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UN00SA) इसका सचिवालय था. UNCOPUOS अंतरिक्ष की गतिविधियों को लेकर संयुक्त राष्ट्र की पांच संधियों को लागू करने पर नज़र रखती है. इन संधियों के नाम हैं- चांद और दूसरे आकाशीय तत्वों समेत अंतरिक्ष में अन्वेषण और इस्तेमाल में देशों की गतिविधियों पर नियंत्रण के सिद्धांत पर समझौता 1967 (अंतरिक्ष समझौता), अंतरिक्ष यात्री को बचाने, अंतरिक्ष यात्री की वापसी और अंतरिक्ष में भेजी गई वस्तु की वापसी पर समझौता 1968 (बचाव समझौता), अंतरिक्ष की वस्तु के द्वारा नुक़सान के लिए अंतर्राष्ट्रीय दायित्व पर समझौता 1972 (दायित्व समझौता), अंतरिक्ष में भेजी गई वस्तु के रजिस्ट्रेशन पर समझौता 1976 (रजिस्ट्रेशन समझौता) और चांद और दूसरे आकाशीय तत्वों पर देशों की गतिविधियों पर नियंत्रण पर समझौता 1979 (चांद समझौता). इसके साथ UNCOPUOS दूसरे संबंधित अंतर्राष्ट्रीय समझौतों जैसे वायुमंडल, अंतरिक्ष और जल में परमाणु हथियार परीक्षण पर प्रतिबंध का समझौता (एनटीबी) 1963 और सैटेलाइट के द्वारा ट्रांसमिट होने वाले सिग्नल के वितरण संबंधी ब्रसेल्स समझौता 1979 पर भी नज़र रखती है.

1967 का अंतरिक्ष समझौता अंतरिक्ष को पूरी “मानवजाति का कार्यक्षेत्र” बताता है. इसमें ये भी कहा गया है कि अंतरिक्ष की खोज-बीन और इसका इस्तेमाल “किसी भी देश के आर्थिक और वैज्ञानिक विकास से परे सभी देशों के विकास के लिए होना चाहिए.” लेकिन इसमें किसी अधिकारपूर्ण तौर-तरीक़े के बारे में नहीं बताया गया है जो ये तय करेगा कि कौन सी गतिविधियां इन सिद्धांतों से मेल नहीं खातीं और अंतरिक्ष में हथियारों की होड़ जैसे मुद्दे कैसे ख़त्म होंगे. समझौते का अनुच्छेद IV अंतरिक्ष में जनसंहार के हथियारों की तैनाती  और “सैन्य अड्डों, प्रतिष्ठानों और क़िलेबंदी” पर पाबंदी लगाता है लेकिन हथियार की परिभाषा नहीं तय की गई है. इसकी वजह से आधुनिक समय की तकनीक जैसे संचार के लिए लेज़र को लेकर असमंजस पैदा होता है. इस समझौते में “किसी भी तरह के हथियार के परीक्षण और आकाशीय तत्वों पर सैन्य अभ्यास की मनाही की गई है.”

दायित्व समझौते में ये आशंका है कि प्राइवेट सेक्टर के निवेश में अवरोध पैदा हो सकता है. इसकी वजह है अंतरिक्ष में संपत्ति का अधिकार नहीं होना और आम लोगों और प्राइवेट संस्थानों के द्वारा चल रही गतिविधियों के लिए भी किसी देश पर दायित्व लागू करना. इसकी वजह से कोई देश मजबूर होकर ऐसे संस्थानों के लिए लाइसेंस और इंश्योरेंस की शर्त लागू करेगा.

अंतरिक्ष की संपत्तियों पर बढ़ता साइबर ख़तरा (हैकिंग और दूसरे सैटेलाइट दखल के ज़रिए), भीड़भाड़ की वजह से टक्कर की बढ़ती आशंका, अंतरिक्ष में मलबे का फैलाव, सिर्फ़ दूसरे देश को जवाब देने के लिए नये देशों का आना, अंतरिक्ष में हथियारों के प्रसार का शुरुआती रुझान और बड़े सैटेलाइट समूहों के द्वारा ज़बरदस्त रेडियो फ्रीक्वेंसी तरंगे- ये ख़तरे मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और संधियों की कमज़ोरी और अपर्याप्त होने के गवाह हैं.

रजिस्ट्रेशन समझौते का मुख्य उद्देश्य अंतरिक्ष में किसी भी लॉन्च को लेकर जानकारी (आंकड़े, सामान्य कामकाज आदि) जुटाने के लिए रूप-रेखा तैयार करना है. माना जाता है कि इससे अंतर्राष्ट्रीय रजिस्ट्रेशन सिस्टम के विकास में मदद मिली है. अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण और तर्कसंगत इस्तेमाल का वहां मौजूद वस्तुओं की पूरी जानकारी के साथ मज़बूत संबंध है. फिलहाल किसी देश को अंतरिक्ष में कोई चीज़ लॉन्च करने पर “जहां तक और जितनी जल्दी संभव हो सके” की जानकारी देनी होती है. इसको बदलकर अगर देशों को ये कहा जाए कि पहले से तय और सबको स्वीकार्य समयावधि में निश्चित काम की जानकारी दें तो ये ज़्यादा असरदार होगा. डाटा संग्रह, सत्यापन के तौर-तरीक़े और बेहतर अनुपालन के संबंध में ज़्यादा सख़्त प्रावधान होने से पारदर्शिता बढ़ने और अंतरिक्ष के कार्य क्षेत्र में सक्रिय देशों के बीच विश्वास में बढ़ोतरी की संभावना है.

क्या अंतरिक्ष की सुरक्षा पर ख़तरा बढ़ रहा है?

अंतरिक्ष की सुरक्षा पर ख़तरा बढ़ रहा है. अंतरिक्ष की संपत्तियों पर बढ़ता साइबर ख़तरा (हैकिंग और दूसरे सैटेलाइट दखल के ज़रिए), भीड़भाड़ की वजह से टक्कर की बढ़ती आशंका, अंतरिक्ष में मलबे का फैलाव, सिर्फ़ दूसरे देश को जवाब देने के लिए नये देशों का आना, अंतरिक्ष में हथियारों के प्रसार का शुरुआती रुझान और बड़े सैटेलाइट समूहों के द्वारा ज़बरदस्त रेडियो फ्रीक्वेंसी तरंगे- ये ख़तरे मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और संधियों की कमज़ोरी और अपर्याप्त होने के गवाह हैं. इसके अलावा संपत्ति अधिकारों, ट्रैफिक नियमों, आपराधिक संहिता और लागू करने वाली एजेंसियों को लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क़ानूनी ख़ालीपन है. मौजूदा संधियां और व्यवस्थाओं में अलग-अलग कमियां हैं जिनका समाधान समन्वित तरीक़े से होना चाहिए.

वक़्त की ज़रूरत है रचनात्मक और व्यावहारिक दृष्टिकोण, सर्वमान्य और सबको साथ लेकर चलने वाला मंच और पारदर्शी प्रक्रिया ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि अंतरिक्ष का इस्तेमाल करने वाले फ़ायदा उठा सकें, ज़िम्मेदारी ले सकें और अंतरिक्ष की निरंतरता को सुनिश्चित कर सकें. पूरे विश्व के दृष्टिकोण से अंतरिक्ष के कार्यक्षेत्र पर नज़र डालने से अलग-अलग देशों पर ज़िम्मेदारी आती है कि वो दूसरे देश के हितों का सम्मान करें. 60 के दशक में दो महाशक्तियों, जिनकी सैन्य क्षमता तुलना के लायक थी, ने शक्ति का संतुलन बरकरार रखने की कोशिश में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष समझौते किए लेकिन अब अलग-अलग देश, उद्योग और व्यक्ति फ़ायदा उठाने की कोशिश में हैं. ऐसे में नियम तय करना एक चुनौती है.

पहला उद्देश्य निश्चित रूप से गवर्नेंस के बुनियादी तौर-तरीक़ों पर सामान्य सहमति बनाना है जैसे अच्छे व्यवहार के सामान्य सिद्धांत, सुरक्षा बढ़ाने के असरदार उपाय, अंतरिक्ष की गतिविधियों की निरंतरता और पारदर्शिता और विश्वास बहाली के उपायों को लागू करना.

80 से ज़्यादा देशों ने स्वतंत्र रूप से या साझेदारी में अंतरिक्ष में चीज़ें भेजी हैं और 336 अरब अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा व्यावसायिक निवेश हुआ है. इस तरह ये अंतरिक्ष में लोकतंत्रीकरण और निजीकरण का युग है. 

अंतरिक्ष की संपत्तियां सहज रूप से ‘दोहरे इस्तेमाल’ की हैं जिसकी वजह से अंतरिक्ष की तकनीक के असैनिक इस्तेमाल को इसके संभावित सैन्य इस्तेमाल से अलग करना मुश्किल है. इस वजह से अंतरिक्ष की गतिविधियां गुप्त बन जाती हैं. इससे ये समस्या होती है कि किसी देश पर ये आरोप लग सकता है कि वो दूसरे देशों की संपत्तियों का नुक़सान कर रहा है. इसकी वजह से दूसरे देशों को बहाना मिलता है कि वो अंतरिक्ष के क्षेत्र में आएं. अंतरिक्ष की ये विशेषता उसे असुरक्षित और आक्रमण के ख़तरे वाला कार्यक्षेत्र बनाता है और विरोधी अंतरिक्ष कार्यक्रम को लाभदायक.

80 से ज़्यादा देशों ने स्वतंत्र रूप से या साझेदारी में अंतरिक्ष में चीज़ें भेजी हैं और 336 अरब अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा व्यावसायिक निवेश हुआ है. इस तरह ये अंतरिक्ष में लोकतंत्रीकरण और निजीकरण का युग है. इसलिए अंतरिक्ष को वैश्विक सहयोग और गवर्नेंस की जरूरत है ताकि यहां तक पहुंचने वाले नये देशों को समान सौदेबाज़ी की ताक़त मिल सके. इसके साथ-साथ निरंतरता और भविष्य में पहुंच को सुनिश्चित किया जा सके.

अंतरिक्ष के नियमों से ज़्यादा तेज़ी से अंतरिक्ष बदल रहा है. इसलिए ये इसके बाद नहीं, कब का सवाल है.

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