Published on Feb 01, 2018 Updated 0 Hours ago

मुंबई में नाइटलाईफ लौटाने की योजनाओं में क्या प्रशासन ने इससे बढ़ने वाले संभावित ध्वनि प्रदूषण की ओर ध्यान दिया है।

क्या मुंबई देश की पहली रात की नगरी बनने को तैयार?

मुंबई के लोअर परेल स्थित कमला मिल परिसर के हाई-स्केल पब में पिछले दिनों हुई अग्निकांड की घटना ने पहले से लचर नागरिक प्रशासन को और हांफने को मजबूर कर दिया है।

जिम्मेवार एजेंसियों की लापरवाही की वजह से हुआ यह भयावह अग्निकांड 14 लोगों की जान ले गया और साथ ही देश की पहली रात की नगरी बनने के मुंबई के ख्वाब को भी ध्वस्त कर गया और अब यह दुबारा नए सिरे से तैयारी करने को मजबूर हो गया है।

16 दिसंबर, 2017 को महाराष्ट्र दुकान और प्रतिष्ठान कानून 2017 के तौर पर जारी की गई सरकारी अधिसूचना के जरिए रेस्टोरेंट (अभी पब और बार इसमें शामिल नहीं) और दुकान, सिनेमा हॉल, सैलून, हाइपर मॉल और बैंक, मेडिकल प्रतिष्ठान जैसे कारोबार और कर सलाहकारों आदि को पूरी रात खुले रहने की इजाजत दे दी गई है।

राज्य के अधिकारियों ने जो अनुमान लगाए हैं उनके मुताबिक मॉल, होटल, रेस्टोरेंट, पब आदि में रात के दौरान आने वाले अतिरिक्त लोगों की वजह से सालाना राज्य के खजाने में कम से कम 64.90 करोड़ डॉलर अतिरिक्त आएंगे। लगभग 30 लाख विदेशी पर्यटक और 4 करोड़ घरेलू पर्यटक सालाना मुंबई आते हैं। अगर यह कदम कामयाब रहा तो यह संख्या भी बढ़ेगी। राज्य ने प्रक्रिया शुरू कर दी है, जिसके तहत सभी एजेंसियों को साथ मिल कर मुंबई के लिए योजना तैयार करनी है, लेकिन इस ताजा घटना ने इस तैयारी को बाधित कर दिया है।

कमला मिल परिसर में हुई मौत एक तरह से सिस्टमेटिक मर्डर है, जिसको देखते हुए कुछ गंभीर आत्मचिंतन जरूरी है और राज्य सरकार को जल्दी ही शहर में नाइटलाइफ जोन स्थापित करने के लिए दी गई अपनी मंजूरी पर दुबारा विचार करने को मजबूर होना पड़ा है। वीकएंड के लिए तीन पायलट जोन की पहचान की गई थी- लोअर परेल (कभी मिल का इलाका था), बांद्रा कुर्ला कांप्लेक्स (बीकेसी) और मरीन ड्राइव (समुद्र के सामने का व्यावसायिक-आवासी इलाका)।

जहां नागरिक प्रशासन पहले से काम के दबाव में चल रहा है, पुलिस बल क्षमता से कम संख्या में मौजूद हैं (15% कमी) और फायर स्टेशन व फायर कर्मी जरूरत से कम हैं, ऐसी स्थिति में इस फैसले को बिना किसी ठोस योजना के शुरू करना कमला मिल जैसे हादसों को खुला न्यौता देने की तरह होगा। मौजूदा क्षमता और संख्या के साथ ये एजेंसियां शहरीकरण के जटिल आयामों को संभाल पाएंगी, इस बात में संदेह है। इससे अग्निकांड, सुरक्षा और संरक्षा के मामले, पहुंचने, सफर करने और सार्वजनिक जगहों पर उपद्रव करने के मामले और बढ़ेंगे।

नाइटलाइफ से जुड़ी अर्थव्यवस्था हाल के शहरीकरण के साथ हुआ एक बदलाव है, जो शहर की जिंदादिली को कायम रखने के लिए काफी अहम हो गया है। यह सिर्फ आर्थिक पहलू से ही अहम नहीं है, बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने के लिए भी महत्वपूर्ण है। नाइटलाइफ की योजना के प्रबंधन से जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिहाज से जो सबसे सफल शहर हैं, उन्होंने विभिन्न सरकारी और निजी एजेंसियों को साथ ले कर व्यापक रणनीति बनाई हैं। लंदन, टोक्यो, बार्सिलोना, हांगकांग, शंघाई, साओ पोलो और न्यूयार्क इसके कुछ उदाहरण हैं।

मुंबई के लिए जैसी योजना बनाई जा रही है, ऐसे मामलों में कुछ खास बिंदुओं का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। इस रणनीति में लोगों के वापस लौटने, परिवहन के साधन उपलब्ध करवाने, नाइट जोन की एकीकृत प्लानिंग, इन प्रतिष्ठानों की लाइसेंसिंग, इलाके की सफाई और निगरानी कुछ अहम बातें हैं। इस लिस्ट में सबसे ऊपर रहने वाला लंदन, जो सिर्फ नाइट इकनॉमी से ही 2,630 करोड़ डॉलर हासिल करता है और हर आठवें में से एक लंदनवासी को इस काम में शामिल करता है, उसने नाइट टाइम कमीशन खड़ा किया है, जो इस संबंध में सभी आयामों का ध्यान रखता है।

लंदन, पेरिस, बेल्जियम और एम्सटर्डम जैसे बहुत से शहरों ने एंबेस्डर जैसे सिंगल प्वाइंट प्राधिकरण नियुक्त किए हैं, जो इस संबंध में होने वाली सभी प्लानिंग का नेतृत्व करते हैं और ऐसी योजना को सुचारू रूप से चलाने के लिए जिम्मेवार होते हैं। लंदन ने 2016 में नाइट जार नियुक्त किया, जिसका काम था इस योजना को लागू करने के लिए विस्तृत खाका तैयार करना। उन्हें नाइट ट्यूब जैसे दूसरे मैके भी उपलब्ध करवाने थे ताकि लंदन की रात्रि कालीन अर्थव्यवस्था समृद्ध हो सके और तेजी से बढ़े।

मुंबई में नाइट लाइफ के लिए जिन तीन जोन की पहचान की गई है, उनमें से दो लोअर परेल (जहां पहले मिलें चलती थीं) और बीकेसी ज्यादातर गैर-आवासीय हैं। इनमें आने-जाने और परिवहन की समस्या होगी। मुंबई की म्युनिसिपल बस सहित सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था रात को नहीं चलती। जहां रात 12.15 से शाम चार बजे के बीच बसें आठ घंटे के लिए बंद होती हैं, ट्रेनें भी 12.30 से 3.30 बजे तक तीन घंटे के ले बंद हो जाती हैं।

लंदन में सेफ ट्रैवल ऐट नाइट अभियान के तहत 16 नई बसें शुरू हुईं और डॉकलैंड्स लाइट रेलवेज़ ने मिनी कैब सेवाओं से समझौता किया ताकि परिवहन की समस्या कम हो सके और रात में सफर करने वाले लोगों को अपने मुकाम तक का साधन मिल सके।

ज्यादा संख्या में लोगों के जुटने से ध्वनि प्रदूषण का स्तर भी बढ़ेगा। रेस्टोरेंट, मॉल, थियेटर और सड़कों आदि के अंदर और बाहर पैदा होने वाला कूड़ा भी दोगुना हो जाएगा और इसका प्रबंधन करने के लिए दोगुनी संख्या में लोगों की जरूरत होगी। इस मामले में कोपनगेहन निवेन और हार्बर इलाके डबलिन कल्चर क्वार्टर बहुत अच्छे उदाहरण हैं, जो पहले रात भर चलने वाली गतिविधियों के बाद गंदगी से भरे होते थे। सांस्कृतिक इलाके में साफ-सफाई के लिए स्थानीय नागरिकों ने कारोबारी घरानों के साथ हाथ मिलाया।

ध्वनि प्रदूषण और सार्वजनिक क्षेत्रों में उपद्रव पर काबू पाने के लिए प्रशासन को सख्त नियम बनाने होंगे। उदाहरण के तौर पर न्यूयॉर्क और बर्लिन में आवासीय इलाकों में बड़े क्लब या बार (कानून के तहत इनका आकार तय किया गया है) को इजाजत नहीं मिलती। नाइट लाइफ के मामले में ध्वनि प्रदूषण सिर्फ लाइव या रिकार्डेड कार्यक्रमों के प्रसारण से ही नहीं होता, बल्कि लोग जब वहां से गलियों में लौटते हैं उस दौरान भी होता है। 2015 में बांद्रा और खार के उपनगरीय इलाके में रहने वाले लोगों ने यहां तेजी से खुल रहे पब और बार को ले कर विरोध प्रदर्शन किया था। इनका कहना था कि इनके पड़ोस में खुले इन पब और बार को गैर-आवासीय इलाकों में भेज दिया जाना चाहिए।

पहले से ही भारी बोझ का शिकार पुलिस बल जिसके पास हर रोज 55,000 कॉल आती हैं, उसे अपने लोगों की संख्या में काफी बढ़ोतरी करनी होगी। साथ ही पुलिसिंग और लाइसेंसिंग की नई व्यवस्था भी विकसित करनी होगी। नए नियमों में लाइसेंस में ही प्रावधान करने होंगे ताकि तोड़-फोड़ करने वाले और हंगामा करने वालों पर अंकुश लग सके।

मैनचेस्टर जैसे शहरों में खुफिया जानकारी हासिल करने के लिए जिस तरह की व्यवस्था की गई है, उसी तरह नई सोच के साथ यह शुरूआत करनी होगी। मैनचेस्टर सिटी सेंटर सेफ परियोजना में एक खास नाइटनेट रेडियो सिस्टम शामिल है जो सभी पब, डिस्को और बार को सीसीटीवी के जरिए पुलिस से जोड़ता है। रात को कोई भी समस्या होने पर यह उसका सीधा प्रसारण देख सकती है। इसी तरह से लेस्टरशायर में नाइट वार्डन की शुरुआत की गई है, जहां पुलिस की ओर से नियुक्त किए गए लोग किसी अप्रिय घटना पर नजर रखते हैं।

मुंबई में नाइट लाइफ शुरू किए जाने से निश्चित तौर पर अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा और साथ ही इस मेगा शहर में अपने दिन का लगभग आधा समय काम की जगह तक जाने और लौटने में ही बिता देने वाले लोगों को मनोरंजन के विकल्प भी बढ़ेंगे। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि नाइट लाइफ का मतलब सिर्फ शराब पीना और मस्ती करना ही नहीं है। इसमें संस्कृति और परंपरा, संगीत और नृत्य से दो-चार होना भी शामिल है। संग्रहालयों को पूरी रात खुला रखना, संगीत और नृत्य उत्सव आयोजित करवाना और साथ ही स्थानीय समुदाय में अपने घरों को लोगों के स्वागत के लिए उपलब्ध करवाने का भाव पैदा करना शहर और यहां के लोगों को नई खुशी मुहैया करवाने का जरिया बन सकता है। लेकिन यह सब तभी हो सकता है, जब पुलिस, स्थानीय प्राधिकरण, आपात सेवाएं देने वाली एजेंसियां और कारोबारी घराने आदि मिल कर नाइट लाइफ योजना तैयार करें। जवाबदेह नागरिकों के साथ ही मुंबई को एक पुख्ता व्यवस्था की भी जरूरत होगी जो यह सुनिश्चित कर सके कि इस योजना को जमीन पर कैसे उतारा जाए। दूसरी तरफ, इसे सफलता से अमल में लाया गया तो भारत में दूसरे शहरों को अपनाने के लिए एक पुख्ता उदाहरण मिल सकेगा।

24X7 (चौबीस घंटे सातों दिन) चलने वाले शहर में 24X7 सक्रिय और प्रभावी रहने वाला प्रशासन भी चाहिए होगा। क्या हम इसके लिए तैयार हैं?


सायली उदास मंकिकर ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, मुंबई में सीनियर रिसर्च फेलो हैं।

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.