Published on Jul 13, 2018 Updated 0 Hours ago

सवाल यह है कि अब नवाज शरीफ के सामने विकल्प क्या हैं? दो रास्ते नजर आते हैं, लेकिन दोनों के अपने-अपने खतरे हैं।

नवाज के सामने कुआं और खाई

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के लिए ‘सजा’ तो पिछले साल जनवरी में ही तय हो गई थी, जब सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ खारिज किए गए ‘रेफरेन्स’ यानी मामले को फिर से खोलने का निर्देश दिया। ये ‘रेफरेन्स’पनामा पेपर लीक से जुडे़ हुए थे। विडंबना है कि जिस पनामा कांड में नवाज शरीफ का नाम ही नहीं है, उसमें उन्हें यह सजा दी गई है। इस मामले में तो उनके बच्चों के नाम सीधे तौर आए हैं। दिलचस्प यह भी है कि भ्रष्टाचार-निरोधक अदालत में जिस जज मुहम्मद बशीर ने मियां शरीफ को यह सजा सुनाई है, उन्हीं की अदालत में पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ भी ऐसे ही भ्रष्टाचार के ‘रेफरेन्स’ दाखिल किए गए थे। मगर जरदारी को उन तमाम मामलों से यह कहकर बरी कर दिया गया कि उनके खिलाफ कोई दस्तावेजी सुबूत नहीं है। नवाज शरीफ के वकीलों ने यह तर्क भी अदालत में दिए, मगर उन्हें मायूसी हाथ लगी। और नवाज शरीफ 10 वर्षों के लिए सलाखों के पीछे धकेल दिए गए हैं।

एक ही जज, एक ही अदालत, एक जैसे मामले, फिर भी फैसला अलग-अलग। आखिर ऐसा क्यों हुआ? इसकी वजह साफ-साफ यह है कि नवाज शरीफ अब सेना की आंखों की किरकिरी बन चुके हैं। पाकिस्तान भले ही अपनी न्यापालिका के निष्पक्ष होने का दावा करे, मगर असलियत में वहां की कानूनी प्रणालियों में कई छेद हैं। वहां ‘डीप स्टेट’ के करीबी होने का पूरा फायदा मिलता है। ‘डीप स्टेट’ फौज और खुफिया एजेंसी आईएसआई के शीर्ष अधिकारियों का एक अनधिकृत ढांचा है, जो सियासत में पर्याप्त दखल रखता है। अगर यह साथ खड़ा हो, तो तमाम सुबूत खिलाफ होने पर भी अपराधी को सजा नहीं मिलती। लेकिन यदि ‘डीप स्टेट’ की नजर टेढ़ी हो जाए, तो सुबूतों का हक में होना भी आपको सजा से नहीं बचा सकता। यही पाकिस्तान की ‘निष्पक्ष और स्वतंत्र न्यायपालिका’ का पैमाना है। नवाज शरीफ इसी के शिकार बने हैं। उनके ऊपर भ्रष्टाचार के तमाम मामले उस वक्त अदालत में खारिज हो रहे थे, जब वह ‘डीप स्टेट’ के करीब थे, मगर इस रक्षा कवच के टूटते ही पहले वह दोषी साबित हुए और अब सजायाफ्ता।

यदि ‘डीप स्टेट’ की नजर टेढ़ी हो जाए, तो सुबूतों का हक में होना भी आपको सजा से नहीं बचा सकता। यही पाकिस्तान की ‘निष्पक्ष और स्वतंत्र न्यायपालिका’ का पैमाना है। नवाज शरीफ इसी के शिकार बने हैं।

उनकी नई रणनीति ने भी मुश्किलें बढ़ाई हैं। जब से नवाज शरीफ को बर्खास्त किया गया था, वह देश भर में घूम-घूमकर चुनावी जलसों (सभाओं) को संबोधित कर रहे थे। वह लोगों को यह समझाने में सफल हो रहे थे कि उनके साथ गलत हुआ है। उन्हें साजिशन सत्ता से हटाया गया है। लिहाजा वोट की इज्जत के लिए उन्हें ही वोट मिलना चाहिए। मगर यह माहौल चरम पर पहुंच पाता कि बीमार पत्नी कुलसुम नवाज को देखने उन्हें अचानक लंदन जाना पड़ा। कुलसुम की हालत इस समय काफी नाजुक है। इधर, नवाज के भाई शहबाज शरीफ चुनाव प्रचार की उस लय को नहीं पकड़ पाए। एक सच यह भी है कि वह ऐसा करना ही नहीं चाहते। लगता है, वह फौज व अदालतों के सामने घुटने टेककर अपने लिए ‘रहम’ की फिराक में हैं। वह सुलह के लिए ‘डीप स्टेट’ के करीब जाने की कोशिश करते दिखे। इस दौरान उनकी पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज को भी तोड़ा गया। पार्टी के कई उम्मीदवारों ने ठीक उसी वक्त अपनी उम्मीदवारी छोड़ दी, जब चुनाव के लिए नामांकन वापस लेने का आखिरी दिन था। इन सबने नवाज शरीफ के पक्ष में बने माहौल को कमजोर कर दिया है। हालांकि पिछले महीने आए एक सर्वे का नतीजा बताता है कि अब भी वह एक बड़ी ताकत बने हुए हैं। पंजाब प्रांत में उन्हें बहुमत मिलने की बात कही गई है, जबकि कई अन्य सीटों पर कांटे की टक्कर दिखाई गई है। मगर यह सर्वे पिछले महीने का है, जबकि चुनावी माहौल में एक हफ्ते में ही ‘हवा’ बदल जाया करती है।

सवाल यह है कि अब नवाज शरीफ के सामने विकल्प क्या हैं? दो रास्ते नजर आते हैं, लेकिन दोनों के अपने-अपने खतरे हैं। एक रास्ता तो यह हो सकता है कि वह अपने मुल्क वापस लौटे ही नहीं। लंदन में ही रुके रहें और वहीं से पाकिस्तान में यह पैगाम देने की कोशिश करें कि उनके साथ ज्यादती हुई है। मगर इस स्थिति में सत्ता छिटकने की आशंका ज्यादा है। दरअसल, 1999 में जब उनकी कुरसी को पलटा गया था, तब वह करीब डेढ़ साल के लिए मुल्क से भाग गए थे। इसका खामियाजा उन्हें उठाना पड़ा। अगर इस बार भी वह ऐसा कुछ करते हैं, तो लोगों की नजर में ‘भगोड़ा’ साबित हो जाएंगे। इसका उन्हें सियासी नुकसान होगा।

इसमें वह एक उम्मीद की किरण भी देख रहे होंगे, जिसकी वजह खुद इमरान खान हैं। इमरान अस्थिर मिजाज के इंसान माने जाते हैं। अभी उन्हें ‘डीप स्टेट’ का साथ मिला हुआ है, मगर संभव है कि सत्ता संभालने के एकाध वर्षों में सेना के साथ उनकी तनातनी बढ़े। तब नवाज शरीफ अपने लिए कुछ संभावना देख पाएंगे। संभव है कि उनके पक्ष में फिर से माहौल बने और वह पाकिस्तान वापस लौट सकें। मगर ऐसा नहीं हो पाया और यथास्थिति बनी रही या घरेलू सियासत में तब्दीलियों की वजह से नए खिलाड़ी मैदान में आ गए, तो फिर नवाज के लिए जगह हमेशा के लिए खत्म हो सकती है।

दूसरा रास्ता यह है कि वह हीरो बनकर वापस लौट आएं। चूंकि कुलसुम नाजुक स्थिति में हैं, इसका नवाज को भावनात्मक फायदा मिल सकता है। तब उनकी पार्टी के चुनाव जीतने की संभावना काफी बढ़ जाएगी। इस स्थिति में उनका जेल में भी रहना कोई घाटे का सौदा नहीं होगा। मगर इसमें जोखिम यह है कि यदि जनता ने सहानुभूति नहीं दिखाई, तो वह सत्ता से भी दूर होंगे और जेल की हवा भी खाएंगे। ऐसा पहले भी हो चुका है, जब परवेज मुशर्रफ तानाशाह के रूप में देश के मुखिया थे। तब नवाज शरीफ पूरे जोर-शोर से देश लौटे जरूर, पर उन्हें जनता का भरपूर साथ नहीं मिला। जाहिर है, नवाज शरीफ के सामने एक असमंजस सी स्थिति होगी। वह तमाम सियासी गुणा-भाग कर रहे होंगे। ऐसे में, उनका फैसला क्या होगा, यह तो भविष्य के गर्भ में है। मगर पाकिस्तानी सियासत में उथल-पुथल लाने वाली बिसात बिछ चुकी है।


ये लेख मूल रूप से LIVE हिंदुस्तान में पब्लिश हुई थी।

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