आयुष्मान भारत कार्यक्रम के अंतर्गत राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के शीर्ष नेतृत्व द्वारा राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (एनएचपीएस) का संचालन किए जाने साथ ही भारत स्वास्थ्य क्षेत्र में तथाकथित पूर्ति पक्ष बनाम मांग पक्ष (यानी सप्लाई साइड वर्सेज डिमांड साइड) के दोहरेपन की दिशा में सफलतापूर्वक आगे बढ़ गया है।
अब तक यह साफ हो चुका है कि भारत सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा (यूएचसी)का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए द्वि-आयामी दृष्टिकोण अपनाएगा, जिसमें एनएचएम और एनएचपीएस को समान रूप से महत्वपूर्ण परस्पर-सम्बद्ध भूमिकाएं निभानी होंगी। ऐसे में यह भारत के लिए यह एक ऐतिहासिक अवसर है कि वह वंचित भौगोलिक क्षेत्रों और जनसंख्या समूहों को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराए और साथ ही देश की विविधता को देखते हुए विभिन्न हितधारकों को इस कार्य के साथ जोड़ा जाना भी महत्वपूर्ण है।
इसी वजह से यह बहुत परेशान करने वाली बात है कि दस साल से ज्यादा अर्से में ऐसा पहली बार हुआ है, जब राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम — जो पहले एनआरएचएम था) के मिशन संचालन समूह (एमएसजी) की बैठक का आयोजन तकनीकी विशेषज्ञों की भागीदारी के बिना ही किया गया। पिछले तकनीकी विशेषज्ञों का कार्यकाल समाप्त होने के एक साल बाद भी नए सदस्यों की नियुक्ति अब तक नहीं की गई है। एनएचएम की वेबसाइट पर एमएसजी की संरचना में बदलाव के बारे में कोई जानकारी अब तक नहीं दी गई है और दस तकनीकी सदस्यों के नाम अब तक हटाए नहीं गए हैं।
इसी वजह से यह बहुत परेशान करने वाली बात है कि दस साल से ज्यादा अर्से में ऐसा पहली बार हुआ है, जब राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम — जो पहले एनआरएचएम था) के मिशन संचालन समूह (एमएसजी) की बैठक का आयोजन तकनीकी विशेषज्ञों की भागीदारी के बिना ही किया गया।
मिशन संचालन समूह (एमएसजी), राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम)के अंतर्गत गठित शीर्ष नीति निर्धारक और संचालक इकाई है। एमएसजी, मोटे तौर पर एनएचएम को नीतिगत दिशानिर्देश देता है, स्वास्थ्य क्षेत्र के मुख्य कार्यक्रम का मार्गदर्शन करता है और उसके संचालन का निरीक्षण करता है। नीतियों और ऑपरेशन में एनएचएम की अधिकारप्राप्त कार्यक्रम समिति की तुलना में इसकी भूमिका सलाहकार की भी है। एनएचएम के तहत उठाए जाने वाले नए कदमों के लिए एमएसजी की मंजूरी आवश्यक है। एनएचएम के शीर्ष अधिकारी भी इसके सदस्यों में शुमार हैं जिनका उत्तरादायित्व समकक्ष राज्य और निचले जिला स्वास्थ्य मिशनों के साथ योजना बनाना और निधियों का वितरण करना है।
स्वास्थ्य और सम्बद्ध मंत्रालयों के 11 मंत्रियों के साथ-साथ नीति आयोग के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) इसके सदस्य हैं। इसके अन्य सदस्यों में स्वास्थ्य नीति के कार्यान्वयन से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े सभी प्रमुख मंत्रालयों के सचिव, अत्याधिक ध्यान देने की आवश्यकता वाले राज्यों से चार सचिव, साथ ही साथ देश भर के 10 प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य पेशेवर भी अपनी विशेषज्ञता के आधार पर गैर सरकारी सदस्यों के तौर पर शामिल हैं।
सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्यों (एमडीजी) से सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी)में परिवर्तन के बारे में राष्ट्रीय स्तर पर विचार विमर्श का दायित्व एनएचएम के मिशन संचालन समूह को सौंपा गया है ताकि वह:
- एसडीजी-3 एजेंडे की योजना, कार्यान्वयन और निगरानी एवं मूल्यांकन करने के लिए विज़न, प्राथमिकताओं और उपलब्धियों का निर्धारण कर सके;
- एसडीजी के कार्यान्वयन का निरीक्षण एवं समय-समय पर समीक्षा कर सके; और
- स्वास्थ्य निर्धारकों के बारे में अंतर-क्षेत्रीय सम्मिलन कार्रवाई (इंटर-सैक्टरल कन्वर्जेंट एक्शन) के लिए अन्य संबद्ध मंत्रालयों के साथ सम्पर्क साध सके।
परामर्श के दौरान एसडीजी-3 के संबंध में एक राष्ट्रीय कार्यबल की स्थापना करने की भी सिफारिश की गई है, जो एमएसजी के मार्गदर्शन में राज्यों को एसडीजी स्वास्थ्य एजेंडा घोषित करने तथा समय-समय पर उसके आकलन की व्यवस्था तैयार करने में सहायता देगा। भारत की स्वास्थ्य प्रणाली की क्षेत्रीय वास्तविकताओं की व्यापक जानकारी रखने वाले तकनीकी विशेषज्ञों के सम्मिलित होने और अपने व्यापक अधिकारों के मद्देनजर एमएसजी बेहद महत्वपूर्ण है।
भारत सरकार द्वारा अत्याधिक ध्यान देने की आवश्यकता वाले राज्यों के सचिवों (स्वास्थ्य और परिवार कल्याण) को एक साल की अवधि के लिए एमएसजी में बारी-बारी से सदस्यों के रूप में नामित किया जाना अनिवार्य है। नामित सार्वजनिक स्वास्थ्य पेशवर दो साल की अवधि के लिए कार्यकाल संभालेंगे और सरकार द्वारा दोबारा नामित किए जाने के पात्र होंगे। एनएचएम (पहले एनआरएचएम) के अंतर्गत संचालन समूह की पहली बैठक 6 दिसम्बर 2013 को हुई थी।
भारत सरकार द्वारा अत्याधिक ध्यान देने की आवश्यकता वाले राज्यों के सचिवों (स्वास्थ्य और परिवार कल्याण) को एक साल की अवधि के लिए एमएसजी में बारी-बारी से सदस्यों के रूप में नामित किया जाना अनिवार्य है।
एनआरएचएम से एमएचएम के रूप में परिवर्तन के दौरान 10 ऐसे बाहरी सदस्यों को दोबारा साथ जोड़ा गया, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवसायी थे और सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्रों में विभिन्न ओहदों पर थे। नए सदस्यों के नाम सरकार द्वारा नामित कर दिए गए हैं। यह सभी को मंजूर है कि एनआरएचएम और एनएचएम दोनों की एमएसजी बैठकों के जरिए इन सदस्यों ने विचार-विमर्श में सक्रिय रूप से भाग लिया है और उनकी तकनीकी जानकारी ने निर्णय लेने में बहुत मदद की है।
इस साल फरवरी में आयोजित एमएसजी की बैठक वैसे अपने किस्म की पहली ऐसी बैठक थी, जिसमें किसी भी बाहरी विशेषज्ञ ने हिस्सा नहीं लिया। पता चला है कि जनवरी 2017 में एमएसजी की बैठक के बाद, कम से कम कुछ गैरसरकारी सदस्यों को जानकारी दी गई कि उनका कार्यकाल समाप्त हो चुका है। एक साल बीतने पर भी, नए सदस्यों की नियुक्ति अब तक नहीं की गई है और एमएसजी की हाल की बैठक में — कुछ मंत्रियों के अलावा केवल कुछ नौकरशाहों के भाग लिया और किसी भी बाहरी विशेषज्ञ को गैर सरकारी के तौर पर शामिल नहीं किया गया।
यह बहुत विचित्र है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति और कार्यक्रम प्रबंधन स्तर पर एमएसजी द्वारा हासिल किए गए संचालन के एकीकरण और सुदृढ़ तकनीकी नेतृत्व के लिए जानकार टीकाकारों द्वारा उसकी सराहना की जाती रही है। वर्षों से हो रही एमएसजी की बैठकों का लिखित ब्यौरा देखने से पता चलता है कि काफी हद तक तो यह तकनीकी विशेषज्ञों को सीधे साथ जोड़ने के परिणाम है।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में हो रही उत्साहजनक प्रगति के इस दौर में, जब राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम), राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (एनएचपीएस) जैसे कदम के माध्यम से आयुष्मान भारत कार्यक्रम का मुख्य आधार बनने जा रहा हो, जो भारत को आदर्श सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा (यूएचसी) के निकट ले जाने में समर्थ है, तो ऐसे में स्वास्थ्य नीति जैसा महत्वपूर्ण क्षेत्र अकेले नौकरशाहों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। लोकतांत्रिक ढंग से नीति निर्धारण की गौरवशाली परम्परा तथा विविध हितधारकों की भागीदारी वाला देश होने के नाते, एमएसजी के नए गैर—सरकारी सदस्यों को जल्द से जल्द नियुक्त करने की आवश्यकता है।
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