Published on Nov 19, 2016 Updated 3 Days ago
अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनाव: डौनल्‍ड ट्रम्‍प एवं भारत

धन्‍यवाद महामहिम राष्‍ट्रपति ट्रम्‍प। हिन्‍दुओं के प्रति सम्‍मानभाव प्रकट करने के लिए हिन्‍दुओं के प्रशंसक होने के लिए — परन्‍तु क्षमा कीजियेगा, हम केवल हिन्‍दू नहीं हैं। हम एक करोड, पच्‍चीस लाख से भी अधिक भारतीय हैं। यह सही है कि लाखों भारतवंशियों ने लम्‍बे समय तक अमेरिकी नागरिक होकर अमेरिका को विश्‍व शक्ति बनाने में महत्‍वपूर्ण योगदान दिया है। विज्ञान एवं टेक्‍नालॉजी के किसी भी क्षेत्र में भारतवंशियों का योगदान अप्रतिम है। अपने वतन से दूर जाकर भारतवंशियों ने अमेरिका को अपना घर समझा। वे भारतीय अमेरिकी कहलाये परन्‍तु उन्‍होंने एक निष्‍ठावान नागरिक की तरह अमेरिका के सर्वांगीण विकास में सब कुछ लगा दिया। शायद इन्‍हीं भारतवंशियों की मेहनत एवं लगन से प्रभावित होकर आप हिन्‍दुओं एवं भारत के प्रशंसक हुए हैं।

महामहिम जी, सर्वप्रथम विश्‍व के सबसे ताकतवर मुल्‍क का राष्‍ट्रपति चुने जाने पर आपको बधाई। बधाई इसलिए भी कि आपकी जीत अप्रत्‍याशित एवं अकल्‍पनीय रही है। विश्‍व के सबसे बडे लोकतंत्र के चुनाव प्रचार में आप अपनी बेवाकी, बेतुके बयानों विशेषकर मुस्लिम समुदाय के विरूद्ध, के कारण खासी प्रतिकूल चर्चा में भी रहे। कमजोर क्षणों में महिलाओं के विरूद्ध की गयी टिप्‍पणियों ने आपके चुनाव जीतने की सम्‍भावनाओं को सिरे से खारिज कर दिया था। राष्‍ट्रपति पद पर आपकी योग्‍यता को लेकर सवाल उठते रहे। कुछ ने आपको एक राजनैतिक विदूषक समझा। राष्‍ट्रीय-अन्‍तर्राष्‍ट्रीय मामलों पर आपकी समझ को लेकर विचारकों ने माथा ही पीट लिया। आपकी राजनैतिक समझ एवं अनुभव लगभग ना के ही बराबर थी। आपने अपने इस अनुभवहीनता को ही अपनी ताकत बना डाली। अमेरिका में बढती बेरोजगारी एवं घटते रोजगार के अवसरों के लिए आपने अपने कारपोरेट अनुभव का नुस्‍खा साझा किया।

आपके नुस्‍खे बडे सरल थे। एक असुरक्षित अमेरिकी मानस के लिए आपके पास अचूक नुस्‍खा था। आतंकवाद की जड में इस्‍लाम है। अत: मुस्‍लमानों का अमेरिका में घुसना बन्‍द। अपराध एवं काले कारोबार की जड में अवैध आव्रजन है। अत: मैम्सिकों के बार्डर पर दीवार का निर्माण। निर्माण कार्य में तो वैसे भी आपको महारत है। साथ ही दो से तीन मिलियन अवैध घुसपैठियों को देश निकाला, अमेरिकी लोगों के लिए रोजगार मुहैया कराने के बाबत आऊट-सोर्सिंग पर पूर्ण विराम लगाना। चुनाव प्रचार के दौरान हिन्‍दुओं की प्रसंशा एक ऐसा ही सुविचारित कदम था। भारत में भी हम “मनसे” जैसे क्षेत्रीय दलों से इसी तरह के जुमले सुनते रहते हैं।

म‍हामहिम, आपका ईस्‍लाम विरोध शायद “सभ्‍यताओं के संघर्ष” (सैमुअल पी0 हंटिंगटन-1996) से प्रभावित है। “सभ्‍यताओं के संघर्ष” की अवधारणा प्रकाशन के समय भले ही सन-सनी खेज रही हो किन्‍तु अन्‍तर्राष्‍ट्रीय अध्‍ययन के विभिन्‍न स्‍कूलों में शायद ही किसी ने इसे गम्‍भीरता से लिया। इसके प्रकाशन के बाद 20 वर्षो की वैश्विक घटनाएं उक्‍त अवधारणा को झुठलाने के लिए पर्याप्‍त हैं। सभ्‍यताओं में युद्ध नहीं हो रहा है। युद्ध हो भी रहा है तो एक ही धर्म के विभिन्‍न मतावलम्बियों के मध्‍य हो रहा है। पाकिस्‍तान, अफगानिस्‍तान, ईराक, सीरिया या नाईजीरिया हो, युद्ध से झुलस रहा है।

महामहिम, यह सम्‍भव है कि मुस्‍लमानों को अमेरिका आने से रोक कर आप अपना एक चुनावी वायदा पूरा कर सके। परन्‍तु सूचना क्रान्ति, वैश्विक व्‍यापार तथा अन्‍तर-महाद्विपीय प्रक्षेपास्‍त्रों, आणविक हथियारों के इस युग में महज दरवाजा बन्‍द करने मात्र से खतरा नहीं टल सकता है। इस वैश्विक एवं ऑणविक युग में “शुतुरमुर्ग” की तरह बालू में सिर गडा लेने से खतरा नहीं टल सकता है। वैश्‍वीकरण, विश्‍व व्‍यापार, मुक्‍त व्‍यापार एवं पश्चिमी विचारों के प्रचार-प्रसार में यूरोप के साथ ही अमेरिका का भी महत्‍वपूर्ण योगदान रहा है। अत: अमेरिकी हितों की रक्षा एवं अमेरिकी नागरिकों को सुरक्षा एवं रोजगार देने के नाम पर वैश्‍वीकरण की सुई उल्‍टी घुमाना नादानी होगी।

महामहिम, हम आप द्वारा केवल हिन्‍दूओं की प्रशंसा से असहमत है। “हिन्‍दू” कोई धार्मिक शब्‍द नहीं है। हिन्‍दू एक सांस्‍कृतिक शब्‍द है, जो एक भूभाग पर रहने वाले लोगों के लिए प्रयुक्‍त होता है। विभाजन के बाद भी उस भूभाग पर एक सौ पच्‍चीस करोड भारतीय रहते हैं। उनमें मुस्लिम, इसाई, सिख, जैन पारसी तथा अनेक धर्मो एवं मतों के करोडों व्‍यक्ति भी शामिल हैं। आपकी भारत की प्रशंसा निश्चित ही सही है। भारत निश्‍चय ही प्रशंसनीय है। दुनिया की सबसे बडी गरीबों की आबादी यहॉं रहती है परन्‍तु यहॉं बोलशेविक जैसी कोई रक्‍त क्रान्ति नहीं हुई। यहां साम्‍यवादी सरकारें हैं, परन्‍तु भारतीय संविधान के दायरे में। विश्‍व की तीसरी सबसे बडी सेना तो है, किन्‍तु सैन्‍य शासन अकल्‍पनीय है। एक ही समय कई क्षेत्रीय दलों एवं विचारधारा की सरकारें राज्‍यों में है, किन्‍तु राष्‍ट्रवाद की अविरल धारा उन्‍हें जोडे रखती है। महामहिम। भारत की मूल शक्ति है विश्‍व-शान्ति एवं विश्‍व बंधुत्‍व के प्रति अगाध निष्‍ठा। कब भारत का सनातन धर्म एवं बौद्ध धर्म विश्‍व के बडे भूभाग का राज-धर्म एवं लोक धर्म बन गया, यह इ‍तिहास की पुस्‍तकों में नहीं मिलता। हमने धर्म-प्रचार के लिए तलवार नहीं उठायी। प्राचीन भारत के महान अशोक ने कलिंग-विजय के बाद तो युद्ध की संकल्‍पना ही छोड दी थी। उसने धर्म विजय का मार्ग चुना। वह भी मात्र प्रचार-प्रसार से।

महामहिम, एक अन्‍तर्राष्‍ट्रीय अध्‍ययन एवं इतिहास विषय की छात्रा होने के नाते मैं आपको कांत की “परपिचुअल पीस” के अध्‍ययन की सलाह दूँगी। कांत ने कई सौ वर्षो पूर्व यह भविष्‍यवाणी की थी कि विश्‍व में स्‍थायी शान्ति तभी सम्‍भव है जब सभी राज्‍य प्रजातांत्रिक हो जायें। प्रजातंत्र ही सही मायने में विश्‍व शान्ति की गारन्‍टी ले सकता है। आपके पूर्व राष्‍ट्रपति की कुर्सी पर आसीन महानुभावगण भी प्रजातंत्र के बडे हिमायती रहे हैं। परन्‍तु यहॉं मैं आपको आगाह करना चाहॅूंगी, हिंसा या युद्ध के माध्‍यम से प्रजातंत्रीकरण प्रतिगामी परिणाम भी देता है।

आपके सामने सुनहरा अवसर है। अमेरिका अपनी शक्ति एवं सम्‍पन्‍ता के कारण विश्‍व का स्‍वाभाविक रूप से सिरमौर है। आप चुनाव के दौरान कही गयी संकीर्णतापूर्ण बातों को भूल कर अमेरिका को विश्‍व का नैतिक नेतृत्‍व देने की ओर ले जायें। यूरोपीय देशों, रूस, चीन, जापान तथा भारत के साथ मैत्रीपूर्ण संघर्ष रखे। प्रजातंत्र थोपने की विचारधारा नहीं है। प्रजातंत्र में वैसे ही इतना आकर्षण है कि उसे लोग स्‍वयं आत्‍मसात् करना चाहेंगे। परन्‍तु अन्‍य शासन व्‍यवस्‍थाओं में भी कुछ अच्‍छाइयां हैं। हम समझते हैं कि पश्चिम एवं अमेरिका के लिए “मानवाधिकार” एक संवेदनशील बिन्‍दु है, किन्‍तु करोडों असहाय भूख से पीडित होकर मर रहे लोगों तक अन्‍न एवं दवा पहुंचाना शायद कही अधिक महत्‍वपूर्ण मानवाधिकारों की रक्षा का कदम हो सकता है।

महामहिम, अपने चुनाव प्रचार में आपने प्रधानमंत्री मोदी का नारा इस्‍तेमाल किया है। भारत के दो पडोसी देश चीन एवं पाकिस्‍तान प्रजातंत्र में लगभग नहीं के बराबर विश्‍वास रखते हैं। भारत, अमेरिका का स्‍वाभाविक मित्र देश है। भारत अमेरिकी सम्‍बन्‍धों को पाकिस्‍तान से जोड कर देखने की नीति त्‍यागने का समय आ गया है। भारत विश्‍व का सबसे बडा लोकतंत्र है। भारत की विश्‍व दृष्टि, विश्‍व बन्‍धुत्‍व एवं विश्‍व शान्ति के सपनों को संजोए है। अमेरिका के तनिक दबाव से पाकिस्‍तान के नापाक मंसूबे ध्‍वस्‍त हो सकते हैं। अब समय आ गया है कि अमेरिका अपने मित्रों का सही ढंग से चुनाव करे। आपको राजनैतिक अनुभवहीनता एवं लीक से हटकर चलने का लाभ है। एक बार प्रयोग के तौर पर खुले दिल से भारत से मित्रता करें। आपको एक ही झटके में एक सौ पच्‍चीस करोड लोकतंत्र के पहरूओं का साथ मिल जायेगा। धन्‍यवाद।

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