Author : Sarral Sharma

Expert Speak Raisina Debates
Published on Jul 06, 2023 Updated 0 Hours ago

निकटतम पड़ोसी होने के बावजूद भारत ने पाकिस्तान की आंतरिक समस्याओं पर कोई भी प्रतिक्रिया न देने की नीति का चुनाव किया है.

पाकिस्तान में राजनीतिक संकट पर भारत की चुप्पी के मायने क्या हैं?

पाकिस्तान में जारी राजनीतिक उथल-पुथल पर भारत ने पूरी तरह चुप्पी साध रखी है. भारतीय उपमहाद्वीप में एक ताकतवर देश होने के साथ-साथ भारतपाकिस्तान का निकटतम पड़ोसी देश है, इस लिहाज़ से नई दिल्ली पाकिस्तान में मौजूदा संकट की स्थिति पर कोई बयान जारी करने का फैसला लेसकती थी. हालांकि, भारत ने इस मसले पर कोई प्रतिक्रिया देने की नीति को अपनाया है, जिसकी मिसाल अतीत में ढूंढी जा सकती है. इसकेअलावा, अगस्त 2019 में जम्मू और कश्मीर के "विशेष दर्जे" को समाप्त करने के बाद से भारत पाकिस्तान के प्रति काफ़ी उदासीन रहा है और अबइस्लामाबाद के साथ सीमित संबंध रखना चाहता है. पाकिस्तान में बढ़ती अस्थिरता के बीच, भारत सीमा पार आतंकवाद, सीमा पर शांति औरपाकिस्तान के परमाणु हथियारों की सुरक्षा जैसे संवेदनशील मुद्दों पर दखलंदाजी किए बिना अपनी चिंताओं को दूर कर सकता है.

चुप रहने के कारण

पाकिस्तान के हालातों पर भारत की ख़ामोशी की चार प्रमुख वजहें हैं. पहली वजह: नई दिल्ली द्वारा आधिकारिक बयान जारी करने की स्थिति मेंपाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान और राजनीतिक नेतृत्व इसे अपने प्रतिद्वंदी [भारत] का "बाहरी हस्तक्षेप" कहेंगे और मौके का फ़ायदा उठाते हुए अपनीगलतियों को छुपा लेंगे. दूसरी: भारत ने पाकिस्तान की घरेलू राजनीतिक समस्याओं पर कोई भी आधिकारिक बयान देने से हमेशा परहेज किया है जबतक कि मामला सैन्य तख्तापलट या प्रमुख राजनीतिक हस्तियों की हत्या का हो. तीसरी: पाकिस्तान के वर्तमान संकट से भारत को कोई तात्कालिकख़तरा नहीं है. पाकिस्तानी सेना 'इमरान खान प्रोजेक्ट' को पूरी तरह ख़त्म करने के लिए ही इतने दांव पेंच लड़ा रही है. कुछ साल पहले सेना ही इमरानखान के राजनीतिक उभार की वजह थी, और अब अगले आम चुनावों के लिए वह एक नए राजनीतिक विकल्प को खड़ा करने की कोशिश कर रही है. चौथी और आखिरी मुख्य वजह ये है कि नई दिल्ली के नीति-निर्माताओं को भारत के प्रति इस्लामाबाद के दुश्मनी भरे रवैए में किसी बड़े बदलाव कीउम्मीद नहीं है.

भारत आम तौर पर पाकिस्तान के आंतरिक राजनीतिक हालातों पर तब तक कोई प्रतिक्रिया देने से बचता है जब तक उसे इसके लिए उकसाया न जाए. वहीं पाकिस्तानी नेता और सेना लगातार भारत-विरोधी भावनाओं को भड़काने और भारत के घरेलू मुद्दों पर टिप्पणियां करते रहते हैं. 


यह नोट करने लायक है कि भारत आम तौर पर पाकिस्तान के आंतरिक राजनीतिक हालातों पर तब तक कोई प्रतिक्रिया देने से बचता है जब तक उसेइसके लिए उकसाया जाए. वहीं पाकिस्तानी नेता और सेना लगातार भारत-विरोधी भावनाओं को भड़काने और भारत के घरेलू मुद्दों पर टिप्पणियां करतेरहते हैं. उदाहरण के लिए, पाकिस्तानी विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो-जरदारी ने पिछले साल दिसंबर में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में प्रधानमंत्रीनरेंद्र मोदी को "गुजरात का कसाई" कहकर बेहद "अभद्र" टिप्पणी की और भारत में धार्मिक तनाव फैलाने की कोशिश की. इसी तरह, इमरान खान, उनके मंत्री और सलाहकार नियमित रूप से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और मोदी पर निशाना साधते और भारत में सांप्रदायिक भावनाएं भड़काने कीकोशिशें कर रहे हैं. ख़ासकर कश्मीर पर 5 अगस्त के फैसले के बाद से इन कोशिशों में और ज्यादा इजाफा हुआ है.

पाकिस्तान के पूरे इतिहास में, इस्लामाबाद के निर्वाचित नेता भारत-पाकिस्तान संबंधों को सुधारने में पूरी तरह से विफल रहे हैं. पाकिस्तान में विदेश औरसुरक्षा नीतियों से जुड़े मामलों को मुख्य रूप से पाकिस्तानी सेना नियंत्रित करती है. पाकिस्तान की नागरिक सरकार भारत के मसले पर अकेले कोईफैसला नहीं ले सकती. दिसंबर 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिना किसी भूतपूर्व योजना के "अचानक" पाकिस्तान के दौरे पर पहुंचे थे, तोउसके बाद पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को देश के "ताकतवर" हलकों से भारी दबाव का सामना करना पड़ा.दिसंबर 2015 में भारतीयप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पाकिस्तान की "अचानक" यात्रा के बाद, पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को देश में "शक्तिशाली" हलकों से भारी दबाव कासामना करना पड़ा. प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के एक हफ़्ते के भीतर, जैश--मोहम्मद (पाकिस्तानी उग्रवादी संगठन) के आतंकवादियों ने 2 जनवरी2016 को पठानकोट एयरफोर्स बेस पर हमला कर दिया, जिससे द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर बनाने की कोशिशों पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ा. यह कथितरूप से सेना द्वारा शरीफ़ को दी गई नसीहत थी कि वह भारत के मसले पर उनकी रणनीति के मुताबिक चलें.

परिणामस्वरूप, नई दिल्ली में इस बात को लेकर आम सहमति है कि इस्लामाबाद में चाहे किसी भी राजनीतिक पार्टी या गठबंधन की सरकार हो, इसबात का कोई विशेष मतलब नहीं है. आखिरकार, भारत के मसले पर सेना ही कोई आखिरी निर्णय लेती है. उदाहरण के लिए, पाकिस्तान के पूर्व सेनाप्रमुख, जनरल कमर जावेद बाजवा भारत के साथ अनाधिकारिक वार्ताओं में शामिल रहे हैं और उन्होंने कथित रूप से नियंत्रण रेखा (LoC) और अन्यक्षेत्रों में 2003 के युद्ध विराम समझौते को फिर से लागू करने में मुख्य भूमिका निभाई है. कुछेक छिटपुट वारदातों को छोड़ दें तो फरवरी 2021 के बाद सेदोनों देशों ने काफ़ी हद तक युद्ध विराम समझौते का पालन किया है.

प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के एक हफ़्ते के भीतर, जैश-ए-मोहम्मद (पाकिस्तानी उग्रवादी संगठन) के आतंकवादियों ने 2 जनवरी 2016 को पठानकोट एयरफोर्स बेस पर हमला कर दिया, जिससे द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर बनाने की कोशिशों पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ा.


पाकिस्तान के निवर्तमान सेना प्रमुख जनरल सैयद असीम मुनीर ने अपने कार्यकाल के शुरुआती छह महीनों में भारत के प्रति सख़्त रुख अपनाया है. पाकिस्तान में भारत के पूर्व उच्चायुक्त सतिंदर लांबा के मुताबिक, "इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख पहले अपनी स्थिति मज़बूत करते हैं, उसके बाद ही भारत के साथ संबंधों को बेहतर बनाने पर विचार करते हैं." इमरान खान की पार्टी को तहस-नहस करने और सेना के भीतर विरोध की मुखरआवाज़ों को दबाने के बाद संभावना है कि मुनीर और भी ज्यादा ताकतवर हो जाएंगे. इससे भारत के प्रति पाकिस्तान की नीतियां प्रभावित हो सकती हैं.

बढ़ता असंतुलन

पाकिस्तान पर नरेंद्र मोदी सरकार की नीति स्पष्ट है, "आतंकवाद और कूटनीतिक वार्ता, दोनों को एक साथ लेकर नहीं चला जा सकता." जम्मू औरकश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म हुए तीन साल से ज्यादा गुजर चुके हैं, लेकिन इस्लामाबाद ने वास्तविकता को स्वीकार   करने और आगे बढ़ने से इनकारकर दिया है. जनवरी में यूनाइटेड अरब अमीरात के एक मीडिया चैनल से बात करते हुए, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री, शहबाज़ शरीफ़ ने दावा किया कि"भारत के साथ बातचीत तब तक संभव नहीं है जब तक वह इस फैसले (अगस्त 2019 का फैसला) को वापिस नहीं लेता." मई में शंघाई सहयोग संगठनके विदेश मंत्रियों की मीटिंग में, पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो-जरदारी ने कहा, “जब तक भारत 5 अगस्त, 2019 (अनुच्छेद 370 को रद्दकरने) के फैसले पर पुनर्विचार नहीं करता, तब तक पाकिस्तान भारत के साथ द्विपक्षीय संबंध स्थापित नहीं करना चाहता."

भुट्टो-जरदारी के बयान के विपरीत, पाकिस्तान भारत के साथ वार्ता की शर्तें तय नहीं कर सकता, विशेष रूप से कश्मीर के मुद्दे पर. देश  इस समय कईमुश्किलों का सामना कर रहा है, जहां उसकी अर्थव्यवस्था घुटनों के बल गई है और भू-राजनीतिक मोर्चे पर उसकी प्रासंगिकता ख़तरे में पड़ गई है. इस्लामाबाद पर आर्थिक दिवालियापन का ख़तरा मंडरा रहा है, जहां मुद्रास्फीति की सालाना दर 38 प्रतिशत तक पहुंच गई है और विदेशी मुद्रा भंडारतेजी से ख़त्म हो रहा है, जबकि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से मिलने वाले बेलआउट पैकेज पर बातचीत का अभी कोई नतीजा नहीं निकला है. दिलचस्प बात यह है कि भारत ने पिछले तीन सालों में कम से कम दो मौकों (अप्रैल 2021 और अगस्त 2022 में) पर पाकिस्तान की मदद के लिए सीमापार व्यापार को फिर से शुरू करने पर सहमत हुआ है. हालांकि, इन दोनों मौकों पर, इस्लामाबाद ने मामले को राजनीतिक रंग देकर और कश्मीर-मुद्दे कोउठाकर अपनी ही पहल को ख़तरे में डाल दिया. जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को रद्द करने के नई दिल्ली के फैसले के बाद भारत के साथ व्यापार बंदकरने से पहले के आंकड़ों को देखें तो भारत ने कथित रूप से अगस्त 2019 में पाकिस्तान को 5.2 करोड़ अमेरिकी डॉलर (लगभग 370 करोड़ रुपये) कासामान निर्यात किया था. उसके ठीक विपरीत, पाकिस्तान  भारत को हर महीने लगभग 25 लाख अमेरिकी डॉलर (लगभग 18 करोड़ रुपये) का समाननिर्यात कर रहा था. जिस तरह से वर्तमान में पाकिस्तान भारी आर्थिक संकट और खाद्यान्न की कमी का सामना कर रहा है, ऐसे में सीमा पार व्यापार कीअनुमति से पाकिस्तान को ही ज्यादा फ़ायदा होता.

इसके अलावा, पाकिस्तानी सेना अफगानिस्तान के साथ लगने वाली पश्चिमी सीमा पर तहरीक--तालिबान पाकिस्तान (TTP) और दूसरे आतंकीसंगठनों के खिलाफ़ आतंक-विरोधी कार्रवाईयों में व्यस्त है. मई महीने में, TTP ने 76 आतंकी हमलों की ज़िम्मेदारी ली, जिनमें से ज्यादातर घटनाएंकबायली इलाकों (जो पहले संघ-शासित कबायली क्षेत्र, FATA के अंतर्गत शामिल थे) में हुईं और इनमें पाकिस्तानी  सुरक्षा बल को निशाना बनायागया. इसके अलावा, अगस्त 2021 के बाद से पाकिस्तान और तालिबान-शासित अफगानिस्तान के सीमा सुरक्षा बलों के बीच को हिंसक झड़पें हुई हैं, जिससे इन दोनों देशों के बीच तनाव और ज्यादा बढ़ गया है. इन हालातों को देखते हुए, पाकिस्तानी सेना नहीं चाहेगी कि भारत के साथ लगी पूर्वी सीमापर तनाव की स्थिति पैदा हो. क्योंकि ऐसा होने उसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भी समर्थन नहीं मिलेगा.

मौजूदा चिंताएं

अगस्त 2021 में, अमेरिका-नेतृत्व वाली नाटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन) की सैन्य टुकड़ियों के अफगानिस्तान से लौटने और तालिबान केसत्ता में वापस आने के बाद से, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की प्रासंगिकता घटती जा रही है. गिरती अर्थव्यवस्था, महंगाई के रिकॉर्ड स्तर औरलगातार राजनीतिक अस्थिरता से पाकिस्तान जूझ रहा है, और साफ़ तौर पर देखा जा सकता है कि "बाहरी" हस्तक्षेप के बिना ही वह बर्बादी के कगार परपहुंच गया है. पाकिस्तान तहरीक--इंसाफ़ (PTI) के समर्थकों को मनमाने ढंग से जेल में डालकर, उन्हें यातनाएं देकर पाकिस्तानी सेना इमरान खान कीपार्टी को ख़त्म करने के लिए अपना पूरा ज़ोर लगा रही है, और ऐसा करके उसने एक बार फिर से यह साबित किया है कि देश को "चुनी हुई नागरिकसरकारें" नहीं बल्कि पाकिस्तानी सेना चला रही है. कई विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान की वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था "अर्ध-सैन्य तानाशाही" का उदाहरण है, जहां ऊपरी तौर पर बहुदलीय पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (PDM) गठबंधन की नागरिक सरकार के हाथों में सत्ता है.

भारत को पाकिस्तान के मौजूदा राजनीतिक संकट के कारण क्षेत्र पर पड़ने वाले प्रभावों का सावधानीपूर्वक आकलन करना चाहिए. भारत के एकदम पड़ोस में आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा संकट की स्थिति काफ़ी गंभीर होती जा रही है.

यह देखते हुए कि नई दिल्ली का ज्यादा से ज्यादा ध्यान चीन और हिंद महासागर क्षेत्र पर है, संभवतः भारत पाकिस्तान के मसले पर यथास्थिति (यानीसीमा पर शांति और पाकिस्तान के साथ कोई औपचारिक बातचीत नहीं) को बनाए रखना चाहता है. हालांकि अगर जनरल मुनीर अपना फैसला बदललेते हैं और पाकिस्तान में सेना की स्थिति को और मज़बूत करने के लिए भारत के साथ तनाव को बढ़ावा देते हैं तो भारत के रुख में बदलाव सकता है. यह देखते हुए कि भारत का ज्यादा से ज्यादा ध्यान वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर सुरक्षा की स्थिति को बनाए रखने पर है, ऐसे में भारत के लिएयही व्यावहारिक होगा कि वह पश्चिमी मोर्चे पर शांति को बनाए रखे और "दो मोर्चों" पर एक साथ सुरक्षा संघर्ष की स्थिति पैदा होने से रोके. हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि भारत पाकिस्तान के उकसावे वाली हरकतों या प्रायोजित आतंकी हमलों के ज़रिए जम्मू और कश्मीर में शांति भंग करने केप्रयासों का कोई जवाब नहीं देगा.

भारत को पाकिस्तान के मौजूदा राजनीतिक संकट के कारण क्षेत्र पर पड़ने वाले प्रभावों का सावधानीपूर्वक आकलन करना चाहिए. भारत के एकदमपड़ोस में आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा संकट की स्थिति काफ़ी गंभीर होती जा रही है. इसके अलावा, PTI के नेतृत्व में महत्त्वपूर्ण सैन्य प्रतिष्ठानों(GHQ सहित) पर कथित हमले और सेना के भीतर आंतरिक तनाव से जुड़ी ख़बरें पाकिस्तान के परमाणु जखीरे की सुरक्षा पर सवाल खड़ा कर सकती हैं. इसके अलावा, पाकिस्तान के नेशनल कमांड अथॉरिटी के सलाहकार, लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) खालिद किदवई ने हाल ही में संकेत दिया है किपाकिस्तान 2750 किमी दूरी तक की मारक क्षमता रखने वाले हथियारों का विकास कर रहा है, जिससे देश के परमाणु कार्यक्रम की मंशा पर सवाल खड़ेहोते हैं.

आखिर में, देश के भीतर अपने नियंत्रण को और मज़बूत करने के लिए, पाकिस्तानी सेना देश के आंतरिक संकट में भारत को घसीटते हुए इसे "बाहरी" हस्तक्षेप का मामला बता सकती है. पाकिस्तानी सरकार के अधिकारियों और सैन्य नेताओं के हालिया बयानों से पता चलता है कि इस्लामाबाद भारत केसाथ दुश्मनी जारी रख सकता है. हालांकि, भारत सरकार का पाकिस्तान में मौजूदा संकट की स्थिति पर चुप्पी साधे रखना अपेक्षित और तार्किक दोनों है, लेकिन उपरोक्त चिंताओं पर सावधानी बरतने के साथ-साथ उसे मुखर तरीके से व्यक्त किया जाना चाहिए.

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