Author : Seema Sirohi

Published on Jul 05, 2018 Updated 0 Hours ago

रिपब्लिकन पार्टी का जो पारंपरिक नेतृत्व था वो अब पीछे हट रहा है।

ट्रम्प की पार्टी

डॉनल्ड ट्रम्प के चुनावी कैम्पेन के दौर से ही रिपब्लिकन पार्टी एक कट्टर रुढ़िवादी सोंच की तरफ झुकने लगी थी, उनके राष्टपति चुने जाने के बाद ये सोंच और हावी हुई और मजबूती से जड़ कर गयी और अब ट्रम्प के शासनकाल के आधे समय के बाद ऐसा लगता है कि पार्टी की सोंच, पार्टी की विचारधारा पर पूरी तरह ट्रम्प का क़ब्ज़ा है, जहाँ कोई उनसे सवाल नहीं कर सकता, विरोध तो दूर की बात है।

अब पार्टी सिर्फ ट्रम्प की ही पार्टी है, ये एक ऐसी सच्चाई है जिसे सब मानते हैं, पुराने दिग्गज रिपब्लिकन नेता, पार्टी के संचालक, पार्टी में नए विचारों को आवाज़ देने वाले और साथ ही पार्टी के संकट मोचक से लेकर विरोधी तक सब इस सच्चाई को स्वीकार कर चुके हैं। अब तो चुनाव में किस उम्मीदवार को मौक़ा मिलेगा और किसके के लिए अब कोई जगह नहीं है ये भी ट्रम्प के ट्विट तय करते हैं।

G7 शिखर सम्मलेन में जिस तरह ट्रम्प ने सदस्य देशों को झाड लगायी और सहयोगियों को बुरा भला कहा, उनकी व्यापर नीतियों को अनुचित बताया और फिर G7 से समर्थन वापस ले लिया, वो दिखाता है कि रिपब्लिकन पार्टी और अपने वोटरों पर ट्रम्प का सम्पूर्ण वर्चस्व है। वो अपने अजेंडा पर ही काम कर रहे थे।

पार्टी के अन्दर ट्रम्प को ८७ फीसदी लोगों का समर्थन है, उनकी अप्रूवल रेटिंग यानी जितने लोग उन्हें पसंद करते हैं वो 87 फीसदी है जो दुसरे विश्व युध्ह के बाद से किसी भी राष्ट्रपति को मिली स्वीकृति से ज्यादा है सिवाय 9/11 के बाद बुश के मुकाबले ये दुसरे नंबर पर है।

ट्रम्प की चाल में जो अकड़ और जोश है, वो शायद इसी समर्थन से आता है। धार्मिक कट्टरपंथी इस बात से बेहद खुश हैं की उनके उप राष्ट्रपति माइक पेन्स हैं जो खुद इसाई चर्च से जुड़े हुए हैं, ट्रम्प ने इजराइल में अमेरिका का दूतावास को जेरूसलम ला दिया,ये एक ऐसा मुद्दा है जो धार्मिक ईसाईयों के दिल के बहुत करीब है। ये वादा पहले अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने किया था लेकिन किसी ने भी इसे पूरा नहीं किया।

ट्रम्प को G7 को भंडोल करने की आजादी तो हाई ही साथ ही वो ये भी सुझाव दे सकते हैं की रूस को G7 में शामिल हो जाना चाहिए, जैसा ही कि हाल के शिखर सम्मलेन में ट्रम्प ने किया और विदेश नीति के तमाम जानकार भौचक्के रह गए।

“बेल्टवे” यानी वाशिंगटन के प्रभाव क्षेत्र की तय की हुई विदेश नीति की परंपरा को ट्रम्प ने जैसा ध्वस्त किया वैसा अब तक किसी ने नहीं किया था। चाहे वो ईरान परमाणु डील से अपने शक्तिशाली कारोबारियों और दुसरे डोनरों की वजह से बाहर आना हो, या दूतावास को जेरूसलेम ले जाना हो या फिर वो ट्रम्प की उत्तर कोरिया के साथ अपनी डील हो जिसे कर के वो एक नया इतिहास रचना चाहते हों। महत्वपूर्ण ये नहीं कि वो क्या कर रहे हैं, अहम है उनका रवैय्या।

अमेरिका में नवम्बर में मध्यवर्ती चुनाव होने वाले हैं,उस से पहले पांच राज्यों में हुए प्राइमरी चुनाव ने ट्रम्प की ताक़त फिर से साफ़ कर दी। खेल में कौन रहेगा ये ट्रम्प ने ही तय किया।

जिन रिपब्लिकन नेताओं ने ट्रम्प की आलोचना की थी वो हारे, जिन उम्मीदवारों ने कभी हार नहीं देखि थी वो बुरी तरह पछाड़े गए और जो लोग ट्रम्प का साथ कभी नहीं देने की बात करते हैं यानी “नेवर ट्रम्पएर्स” उनकी तो कोई उम्मीद ही नहीं बची थी। उम्मीदवारों में इस बात की होड़ थी की कौन ट्रम्प का ज्यादा बड़ा समर्थक है क्यूंकि रिपब्लिकन पार्टी का पूरा संगठन ट्रम्प के साथ है।

मध्यावर्ती चुनाव ट्रम्प के लिए वोट होंगे और संसद के दोनों सदनों में रिपब्लिकन बहुमत के लिए भी लेकिन उसके पहले हजारों रिपब्लिकन और डेमोक्रेट नवम्बर में होने वाले चुनाव में अपनी अपनी पार्टी के लिए लड़ेंगे।

संसद मार्क सैनफोर्ड, जो ट्रम्प की खुल कर आलोचना करते रहे हैं, अपनी दक्षिण कैरोलीना सीट सिर्फ इस लिए हार गए क्यूंकि आखिरी लम्हे में ट्रम्प ने दखल दे कर वोटरों को ये याद दिलाया की किस तरह स्टैनफोर्ड का एक अर्गेंतिब्ना की महिला के साथ शादी शुदा होने के बावजूद सम्बन्ध था। वोटिंग ख़त्म होने के सिर्फ ३ घंटे पहले ट्रम्प ने कहा “ये तो अर्जेंटीना में ही बेहतर हैं।”

ये घटना अपने आप में एक बड़ी त्रासदी है। एक ऐसा राष्ट्रपत जो खुद ३ बार शादी कर चुका है, जिस पर आरोप है कि उसने अपने वकीलों को कई पोर्न स्टार ब्यूटी क्वीन को खामोश करने के लिए पैसे भिजवाए और जिन के खिलाफ टेप पर रिकॉर्ड किया हुआ सबूत है कि वो महिलाओं पर अभद्र और अश्लील टिपण्णी कर रहे थे वो एक ऐसे उम्मीदवार के खिलाफ सिर्फ इस आरोप पर चुनाव का रुख मोड़ सकते हैं कि उस व्यक्ति का किसी दूसरी महिला के साथ सम्बन्ध है।

ट्रम्प ने केटी एर्रिंगटन को अपना समर्थन दिया चूँकि केटी ने सैनफोर्ड द्वारा की गयी ट्रम्प आलोचना को अपने चुनाव कैम्पेन का मुद्दा बनाया था। हालाँकि राष्ट्रपति ट्रम्प उसके समर्थन में आखिरी पल में आये फिर भी ट्रम्प का साथ मिलते ही जीत केटी की हुई। ये हैं ट्रम्प की सियासी ताक़त।

ट्रम्प के पूरे वर्चस्व की एक और मिसाल, वर्जिनिया के प्राइमरी चुनाव में कोरी स्टीवर्ट की जीत। स्टुवर्ट ने खुल कर श्वेत वर्चस्व का समर्थन किया है, गुलामी के पक्ष में बोले हैं। वो हिलारी क्लिंटन के चुनावी साथी टीम केन के खिलाफ नवम्बर में चुनाव लड़ेंगे।

रिपब्लिकन पार्टी के ऐसे नेता जो पार्टी की परंपरागत सिद्धांतों को मानते हैं वो स्टीवर्ट की जीत से शर्मिंदा भी थे और ये उनके लिए एक झटका भी था। लेकिन उनके पास पार्टी को ऐसे लोगों के चंगुल से निकलने की कोई रणनीति नहीं है जो पहले हाशिये पर थे। इसलिए इनके सामने नतमस्तक होने के अलवा कोई उपाय नहीं।

सीनेट के विदेश मामलों की कमिटी के अध्यक्ष सांसद बॉब कौर्केर ने इस पर अछि टिपण्णी की है, “हम एक अजीब स्थिति में है, जहाँ एक पंथ को मानने जैसे हालत बन गए हैं। ये किसी भी पार्टी के लिए अच्छी स्थिति नहीं है जहाँ पार्टी एक व्यक्ति को ही सर्वोपरि मानने लगे और ऐसे हालात हो जाये जहाँ सब एक पंथ के अनुयायी से बन जाएँ, जैसा यहाँ रिपब्लिकन पार्टी में राष्ट्रपति ट्रम्प के मामले में हो रहा है।”

कोर्केर पहले ट्रम्प के समर्थक रहे हैं, और कैपिटल हिल में ट्रम्प की समस्याओं का समाधान करने वाले भी। लेकिन पिछले साल से वो अलग होने लगे क्युंकी कई मुद्दों पर उनका ट्रम्प से मतभेद रहा, जैसे की ट्रम्प का अपने कैबिनेट सदस्यों का बेमतलब अपमान, NATO सहयोगियों के साथ बुरा सलूक, उत्तर कोरिया के खिलाफ भड़काऊ बयान, ट्रम्प की टैक्स और व्यापर नीतियां और ट्रम्प का बर्ताव जो किसी राष्ट्रपति को शोभा नहीं देता।

धीरे धीरे कोर्कर ट्रम्प के आलोचक बन गए। उन्हों ने ट्रम्प पर देश को बदनाम करने का आरोप लगाया और कहा की वाइट हाउस अब एडल्ट डे केयर सेंटर बन गया है, यानी ऐसी जगह जहाँ ऐसे वयस्कों को रखा जाता है जिनकी देख भाल की ज़रूरत हो, इशारा ट्रम्प पर था।

नतीजा कोर्कर को अपने एक प्रस्ताव पर अपनी ही पार्टी का समर्थन नहीं मिला जिस में उन्हों ने प्रस्ताव दिया था कि कांग्रेस को इतना सशक्त किया जाए कि स्टील और अलमुनियम के आयात पर लगाये शुल्क को राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर मंज़ूर या नामंज़ूर कर सकें। इस शुल्क की वजह से अब अमेरिका अपने सबसे पुराने सहयोगियों के खिलाफ खड़ा है।

कोर्कर ने कहा कि मैं शर्त लगा सकता हूँ कि गलियारे के इस तरफ बैठे लोग यानी रिपब्लिकन में से 95 फीसदी लोग बौद्धिक तौर पर इस अमेंडमेंट का समर्थन करते होंगे लेकिन वो खुल ऐसा नहीं कर सकते हैं, उन्हें भालू को छेड़ देने का खौफ है, कहने का मतलब कि वो ऐसा करेंगे तो राष्ट्रपति खफा हो सकते हैं और वो राष्ट्रपति को नाराज़ नहीं कर सकते।

लेकिन इस बात पर ध्यान देना भी दिलचस्प है कि कोर्कर के रुख की वजह क्या है, कोर्कर रिटायर हो रहे हैं और वो अब अपने मन की बात खुल कर कर सकते हैं। पॉल रायन जो एक दौर में एक युवा स्टार थे और जो हाउस ऑफ़ रिप्रेजेन्टेटिव यानी निचले सदन के स्पीकर हैं वो भी ऐलान कर चुके हैं अब दुबारा चुनाव नहीं लड़ेंगे। लेकिन इसके पीछे दरअसल वजह ये है कि वो अपनी ही पार्टी में हुए दो खेमों को साथ नहीं ला पा रहे तो फिर डेमोक्रेट्स यानि विपक्ष तो दूर की बात है।

सीनेटर मैक केन जिन्होंने ने ट्रम्प की कड़ी आलोचना की थी वो अब ब्रेन कैंसर से जूझ रहे हैं और कैपिटल हिल वापस तो नहीं आने वाले।

यानी रिपब्लिकन पार्टी का जो पारंपरिक नेतृत्व था वो अब पीछे हट रहा है। सिर्फ 500 दिनों में ट्रम्प ने उनकी ये दुर्गति कर दी है, अभी 900 दिन बाक़ी हैं।

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