Author : Samir Saran

Published on Jun 15, 2017 Updated 0 Hours ago

चीन के फूजौ में 9वें ब्रिक्स अकादमिक फोरम के उद्घाटन के अवसर पर ORF के उपाध्यक्ष समीर सरन द्वारा दिए गए भाषण का मूल पाठ।

ब्रिक्स के सिद्धांतों पर डटे रहने का वक्‍त

भारत के अकादमिक प्रतिनिधिमंडल की ओर से आप सभी को गर्मजोशी भरी बधाइयां। आप सभी के बीच यहां आकर हमें अत्‍यंत प्रसन्नता हो रही है। हम दो दिनों तक चलने वाले विचार-विमर्श एवं परिचर्चाओं के साथ-साथ पुरानी मित्रता में नई जान फूंकने और नई मित्रता का आगाज करने के अवसर को लेकर पूरी तरह आशान्वित हैं। यहां पर अद्भुत नजारा पेश करने एवं उत्‍कृष्‍ट व्यवस्था करने के साथ-साथ इसे मूर्त रूप देने में किए गए समस्‍त अथक कार्यों हेतु अपनी टीम की ओर से मैं अपने मेजबान अर्थात ‘ब्रिक्स थिंक टैंक सहयोग के लिए चीन परिषद’ का धन्यवाद करता हूं।

हमारी अर्थात ‘ब्रिक्स थिंक काउंसिल’ की बैठक आज सुबह हुई। वर्ष 2016 में ब्रिक्स की भारतीय अध्‍यक्षता में जितने भी कदम उठाए गए एवं प्रस्‍ताव रखे गए थे, उन सभी पर मंथन करने के लिए यह बैठक आयोजित की गई। ब्रिक्स की चाइनीज अध्‍यक्षता में हमारी सरकारों को किस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए, इस पर गहन विचार-विमर्श करना भी इस बैठक का एक अहम उद्देश्‍य था। यहां दूसरे दिन की परिचर्चाएं पूरी होने पर हम परिणाम दस्तावेज (आउटकम डाक्‍यूमेंट) पेश करेंगे जिसमें हमारी उन सभी आकांक्षाओं का जिक्र होगा जो विचार-विमर्श के दौरान उभर कर सामने आएंगी। चूंकि आप में से प्रत्येक अपनी प्रस्तुतियों और अहम कदमों के जरिए इस दस्तावेज के सह-लेखक होंगे, इसलिए मैं सभी को इस दौरान होने वाली परिचर्चाओं में पूरी सक्रियता के साथ भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करता हूं।

यह एक विशेष वर्ष है। दरअसल, हम 9वें अकादमिक फोरम की बैठक में भाग ले रहे हैं। अत: इस वर्ष के आखिर में हम अपने गहन सहयोग के 10 साल पूरे कर लेंगे।

ब्रिक्स अगले साल एक संस्थान के रूप में अपने 10वें साल में प्रवेश कर जाएगा।

जैसा कि आप सभी जानते हैं, हम इस साझेदारी का पहला दशक पूरा करने जा रहे हैं, अत: यह अतीत के साथ-साथ भावी योजनाओं पर भी गौर करने के लिहाज से एकदम सही क्षण है। यह संभवत: ब्रिक्स के एजेंडे की फि‍र से घोषणा करने और आज की तेजी से बदलती दुनिया में ब्रिक्स की भूमिका को नए सिरे से तय करने और हमें एकजुट करने वाले मार्गदर्शक सिद्धांतों की फि‍र से पुष्टि करने का सही वक्‍त है।

ब्रिक्स के एजेंडे एवं उसकी भूमिका को इन दो शब्दों के अनुसार नया स्‍वरूप प्रदान करने का सिलसिला निरंतर जारी रखना चाहिए: ‘बदलाव’ और ‘विकल्‍प’।

हम अपने देशों के साथ-साथ अपने आसपास के देशों में रहने वाले उन लाखों लोगों के जीवन में व्‍यापक बदलाव लाने के लिए एकजुट हुए हैं जो आर्थिक मुख्यधारा से बाहर रह गए हैं और विकास का लाभ पाने से वंचित रह गए हैं। इन लोगों की जिंदगी में बदलाव निश्चित तौर पर जरूरी है और इसके साथ ही उनकी आकांक्षाओं को पूरा किया जाना चाहिए। हमें उनके भविष्‍य को अपना भविष्‍य मानते हुए विचार करना चाहिए। इस महत्वाकांक्षा को अब एसडीजी यानी सतत विकास लक्ष्यों और अन्य विकास चुनौतियों में समाहित कर लिया गया है जिसे विश्‍व भर के लोगों ने अत्‍यंत महत्वपूर्ण मान लिया है। ब्रिक्स को अपनी ऊर्जा एवं नेतृत्व, अपने अनुभवों, संसाधनों और करुणा के साथ इस प्रक्रिया की अवश्‍य ही अगुवाई करनी चाहिए। यही परिवर्ति‍त विकास प्रतिमान अगले 10 वर्षों तक ब्रिक्स के एजेंडे के मूल में होना चाहिए।

जिस दूसरे शब्द पर हमें हमेशा अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए वह है ‘विकल्‍प’। हमें वैकल्पिक मार्गों पर चलते हुए यह बदलाव सुनिश्चित करना चाहिए, जो समावेशी, लोकतांत्रिक, सहभागितापूर्ण और टिकाऊ हो। ब्रिक्‍स के अंतर्गत ही लीक से अलग हटकर विकल्‍प को अकादमिक समुदाय के बीच अवश्‍य ही तैयार किया जाना चाहिए। यदि हम उसी रास्ते का अनुसरण करते रहे जिसे विकसित दुनिया ने खोजा है, तो हम संभवत: दुनिया में बदलाव नहीं ला पाएंगे। चाहे स्‍वास्‍थ्‍य सेवा हो या वेलनेस, चाहे ये माइग्रेशन नीतियां हों या अपने शहरों को संगठित करने और उनमें नई ऊर्जा भरने अथवा अपने लोगों को शिक्षित करने एवं उनकी रचनात्मक ऊर्जा को उभारने का हमारा तरीका हो, हमें ऐसे ब्रिक्स समाधान ढूंढ़ने ही होंगे जो कल की दुनिया को परिभाषित करने वाली ज्ञान व्‍यवस्‍थाओं के उपयुक्‍त एवं कारगर विकल्‍प साबित हों। इतना ही नहीं, यह ब्रिक्स के अकादमिक समुदाय की एक केंद्रीय खोज होनी चाहिए।

चूंकि हम सकारात्मक बदलाव की ताकत बनने की ओर अग्रसर हैं, अत: इसे सुनिश्चित करने के लिए कुछ और संस्थाएं और फ्रेमवर्क बनाने की आवश्यकता होगी। नव विकास बैंक और आकस्मिक रिजर्व व्यवस्था तो इस दिशा में महज शुरुआत भर हैं। ब्रिक्स को संस्थागत रूप देना इसकी सफलता की पहली आवश्यकता है। वर्ष 2016 में, भारतीय अध्‍यक्षता में इसे ब्रिक्स के विकास का सबसे महत्वपूर्ण एकल पहलू माना गया था। इसने अनुसंधान संस्थानों एवं रेटिंग एजेंसियों के साथ-साथ ऐसे निकाय प्रस्‍तावित किए थे जो व्यापार एवं वाणिज्य और संबंधित फ्रेमवर्क को मजबूती प्रदान करेंगे और जो आगे चलकर ब्रिक्स देशों के बीच आपसी सहयोग का दायरा बढ़ाएंगे। ब्रिक्‍स की चीनी अध्‍यक्षता में भी इस प्रोजेक्‍ट पर अवश्‍य ही अमल किया जाना चाहिए, क्योंकि वर्ष 2018 में इसकी कमान दक्षिण अफ्रीका संभालेगा।

मैंने इस बात का उल्लेख किया है कि हमें ब्रिक्स को नई दुनिया में नए सिरे से स्‍थापित करना होगा। वास्तव में यह एक ‘नई दुनिया’ है क्‍योंकि नई दिल्ली में पिछली बैठक के बाद से ही अमेरिका एवं यूरोप में बदलाव की बयार बह रही है। यही नहीं, इसके साथ ही कुछ और परिवर्तनों की तैयारी की जा रही है। व्यापार और वैश्वीकरण को लेकर पिछले दशक की जो कुछ मान्यताएं थीं वे अब मान्य नजर नहीं आ रही हैं क्‍योंकि राष्ट्रवाद और क्षुद्र राजनीति हावी होती जा रही हैं।

इस समय ब्रिक्स की अगुवाई की आवश्यकता है।

ऐसा प्रतीत होता है कि ब्रिक्स को ही बहुपक्षवाद के नए प्रारूप और बेशक इसके साथ ही वैश्वीकरण 2.0 का भी निर्माता (आर्किटेक्ट) एवं नया चैंपियन बनना होगा।

चूंकि हम इन दोनों प्रक्रियाओं में नई ऊर्जा भरने एवं अगुवाई करने और इसके साथ ही वैश्विक व्यापार, वैश्विक वित्तीय प्रवाह, लोगों एवं विचारों की आवाजाही में नई जान फूंकने तथा वैश्विक एकीकरण की प्रक्रिया में आए व्‍यवधान को वाकई चुनौती देने में जुटे हुए हैं, अत: हम सभी के लिए इस पर नए सिरे से ध्‍यान केंद्रित करना और एक ऐसा नया ब्‍लू प्रिंट तैयार करना आवश्‍यक है जिसके तहत हमारी व्यक्तिगत भूमिकाओं एवं सामूहिक जिम्मेदारियों की फि‍र से पुष्टि करनी होगी। हमें अपनी राजनीतिक व्यवस्थाओं के जरिए ही इस प्रक्रिया से गुजरना होगा, जो स्पष्ट रूप से हममें से कुछ लोगों के लिए आसान नहीं है।

हालांकि, इसके साथ ही यह बात अवश्‍य ध्‍यान में रखनी चाहिए कि फि‍लहाल भले ही इस दिशा में समुचित नेतृत्‍व का अभाव देखा जा रहा हो, लेकिन हमें कमोबेश यही रास्‍ता अख्तियार करते हुए  इस रिक्‍त स्थान को भरने के प्रलोभन से बचना चाहिए। इसके तहत प्रधानता या आधिपत्‍य का जो भी स्‍वरूप रहा है और जिसके हाथ में कमान रही है उसे किसी नए आधिपत्‍य द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया जाना चाहिए। अनुचित रूप से हस्‍तक्षेप करने वाली राजनीतिक संरचनाओं को अब किसी अलग देश या देशों के समूह के स्वामित्व में नहीं सौंपा जाना चाहिए, अन्यथा हम बदलाव के कारक और लीक से अलग हटकर कुछ करने वाले रचनाकार नहीं बन पाएंगे। हम यथास्थिति और सत्ता लोलुप ही बने रहेंगे।

जैसा कि मुझे प्रतीत होता है, अब समय आ गया है कि ब्रिक्स के मार्गदर्शन सिद्धांतों या नियमों को नए सिरे से तय किया जाए। किसी भी अन्य बात की तुलना में दो ऐसे अहम कारक (फैक्‍टर) हैं जिन्‍होंने हमें पिछले 10 वर्षों में एकजुट किया है और एक साथ काम करने के लिए प्रेरित किया है।

  • एक-दूसरे के साथ-साथ हमारे आसपास मौजूद अन्‍य राष्‍ट्रों की भी संप्रभुता का सम्मान करना,
  • अंतर्राष्ट्रीय मामलों को सुलझाते वक्‍त बहुलवाद और लोकतंत्र की समान मांग पर विशेष जोर देना।

ब्रिक्स ने सदा ही संप्रभुता और सार्वभौम समानता का सम्मान किया है। यह केवल ब्रिक्स में ही है कि हमारी जीडीपी और सैन्य शक्ति भले ही एक जैसी नहीं हों, ले‍किन हममें से प्रत्येक के पास समान अभिव्‍यक्ति, समान मतदान अधिकार और एकाधिक बातें सामने रखने की पर्याप्‍त गुंजाइश है। हमने खुले दिल से एक-दूसरे की संप्रभुता संबंधी चिंताओं का सम्मान किया है और इसके साथ ही हमने अंतरराष्ट्रीय संबंधों की दिशा में कदम उठाते वक्‍त लोकतंत्र के अभिप्राय का भरपूर ख्‍याल रखा है। हमें इन मार्गदर्शन सिद्धांतों को अक्षुण्‍ण बनाए रखने के साथ-साथ फि‍र से सही अर्थों में इनका पालन करना होगा।

भले ही हम सभी अपने-अपने तरीके से विकसित हो रहे हों, लेकिन इन्‍हें आगे भी ब्रिक्स के मुख्य सिद्धांतों के रूप में अक्षुण्‍ण रखना चाहिए। दरअसल, हाल ही में कुछ विपरीत परिस्थितियां देखने को मिली हैं, यही कारण है कि इन पहलुओं ने मेरा ध्यान बरबस अपनी ओर आकर्षित किया है। चूंकि हम अपने दोस्तों के बीच हैं, इसलिए मुझे बेहिचक आपका ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहिए। दरअसल, यदि हम इस लोकाचार और सदाचार को ही खो देंगे तो हम ब्रिक्स को खो देंगे।

मैं एक बार फिर अपने मेजबानों का धन्यवाद करता हूं और आपके साथ दो दिनों तक गहन विचार-विमर्श करने को लेकर तत्‍पर हूं। नमस्ते।

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