Published on Sep 30, 2020 Updated 0 Hours ago

इस बात की संभावना अधिक है कि चीन, भारत की ज़मीन को धीरे धीरे कुतरने वाले अंदाज़ में हथियाने की कोशिश करता रहेगा. क्योंकि, चीन के लिए सीमा में घुसपैठ का ये तरीक़ा सबसे असरदार है.

ये वास्तविक नियंत्रण रेखा पर ‘न्यू नॉर्मल’ है!

29/30 अगस्त की रात को वास्तविक नियंत्रण रेखा के पैंगॉन्ग लेक इलाक़े में एक बार फिर भारतीय सेना और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सैनिकों में भिड़ंत हुई थी. चीन और भारत के बीच सीमा को लेकर मौजूदा तनाव के बीच, पैंगॉन्ग झील के दक्षिणी छोर वाले इलाक़े को लेकर पहले विवाद नहीं उठा था. लेकिन, उस रात हुई झड़प से ये साफ़ है कि इस वक़्त भारत और चीन की सीमा पर कितना भयंकर तनाव है. भारतीय सेना ने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की भारतीय सीमा में घुसपैठ की कोशिशों को नाकाम कर दिया. रात ही रात में भारतीय जवानों ने इस इलाक़े की ऊंची चोटियों पर अपना परचम फहरा दिया. इससे पूरे इलाक़े में भारत अब चीन के मुक़ाबले ज़्यादा मज़बूत स्थिति में पहुंच गया है. जब वास्तविक नियंत्रण रेखा और तनाव को लेकर दोनों तरफ़ से अलग अलग दावे किए जा रहे हैं, उस समय इस घटना से स्पष्ट है कि आने वाले समय में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर कैसे हालात होने जा रहे हैं. भविष्य की LAC अब निर्जन इलाक़ा नहीं होगी. बल्कि, दोनों ही तरफ़ भारी मात्रा में हथियारबंद सैनिक तैनात होंगे. और भारत व चीन के सैनिकों के बीच ऐसी झड़पें अब आम होने जा रही हैं. 29/30 अगस्त की रात को हुए टकराव से पहले से ही भारत और चीन के सुरक्षा बल 15 जून को हुए हिंसक संघर्ष के बाद से ही तनातनी की स्थिति में तैनात हैं. 15 जून को गलवान घाटी में पीएलए और इंडियन आर्मी के बीच हुए हिंसक संघर्ष में 20 भारतीय जवान शहीद हो गए थे. ये घटना मई महीने में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी द्वारा मई महीने में भारत के कुछ हिस्सों पर क़ब्ज़ा कर लेने के बाद हुई थी. इसका नतीजा ये होगा कि आने वाले समय में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर ऐसे ही गर्मा-गर्मी के हालात बने रहने की संभावना है. और कभी-कभार देशों के सैनिकों के बीच हिंसक संघर्ष की ख़बरों के लिए भी हमको तैयार रहना चाहिए. अब चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भी ठीक वैसे ही हालात बने रहने की आशंका है, जैसे हम पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा (Line of Control) पर देखते रहे हैं, जो कि कश्मीर को भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजित करने वाली वास्तविक सीमा है. सीमा पर तनातनी और सैन्य गतिविधियों के ये हालात, वास्तविक नियंत्रण रेखा का ‘न्यू नॉर्मल’ है, जिसके लिए भारत और चीन को अब तैयार रहना चाहिए. पैंगॉन्ग झील के दक्षिणी छोर पर हिंसक संघर्ष के बाद भारत और चीन के बीच ब्रिगेड कमांड स्तर पर फ्लैग मीटिंग हुई थी. लेकिन, ब्रिगेडियर स्तर की ये वार्ता बिना किसी नतीजे के ख़त्म हो गई. इसी से ज़ाहिर है कि सीमा पर इस समय किस हद तक अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है. और अप्रैल मई महीने में शुरू हुए हालिया सीमा विवाद के बाद से दोनों पक्ष किस तरह अपने अपने रुख़ पर अड़े हुए हैं. दोनों देशों के कोर कमांडर्स के बीच छह राउंड की बातचीत हो चुकी है. लेकिन, अभी भारत और चीन के बीच ये सीमा विवाद सुलझने का कोई संकेत नहीं मिल रहा है.

जैसे हम पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा (Line of Control) पर देखते रहे हैं, जो कि कश्मीर को भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजित करने वाली वास्तविक सीमा है. सीमा पर तनातनी और सैन्य गतिविधियों के ये हालात, वास्तविक नियंत्रण रेखा का ‘न्यू नॉर्मल’ है, जिसके लिए भारत और चीन को अब तैयार रहना चाहिए.

इन बातों से ये संभावना बहुत बढ़ गई है कि अब वास्तविक नियंत्रण रेखा पर हिंसक संघर्ष, चुपके से गोलीबारी और अचानक धोखे से दूसरे पर हमला कर देने की घटनाएं बार बार होने वाली हैं. भारत और चीन के सैनिकों बीच भी अब उसी तरह की तनातनी रहने वाली है, जैसी हम कश्मीर में भारत और पाकिस्तान की सीमा पर देखते आए हैं. ऐसे हालात से निपटने के लिए अब भारतीय सेना को भी नए सिरे से तैयारी करनी होगी. जिससे कि वो किसी भी आपात स्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहे. और, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी द्वारा भारतीय सीमा में घुसपैठ या हमले की किसी भी कोशिश का पुरज़ोर तरीक़े से मुक़ाबला करके जवाब दे सके. इन उपायों से इतर, भारत के रक्षा प्रतिष्ठान को भी इस बात के लिए ख़ुद को तैयार करना होगा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर ऐसे तनाव के हालात लंबे समय तक बने रहेंगे. और किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए भारी मात्रा में सैनिकों को LAC पर उसी तरह तैनात रखना होगा, जैसा PLA ने अभी कर रखा है.

मई महीने से ही चीन ने अपने सैनिकों को भारी संख्या में वास्तविक नियंत्रण रेखा के बेहद क़रीब, और ख़ासतौर से लद्दाख में तैनात कर रखा है. उसका मक़सद उन इलाक़ों पर अपनी पकड़ मज़बूत बनाना है, जहां पारंपरिक रूप से भारतीय सेना गश्त लगाती रही थी. मई के बाद से लेकर अब तक चीन ने भारी गोलाबारी करने में सक्षम तोपें, टैंक, भारी मशीन गन और लड़ाकू हवाई जहाज़ भी तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (TAR) में तैनात कर दिए हैं. 29/30 अगस्त की रात को भारत और चीन के सैनिकों की भिड़ंत के साथ ही चीन ने एक और धमकाने वाला सामरिक क़दम उठाते हुए माउंट कैलाश और मानसरोवर झील के पास ज़मीन से हवा में मार करने वाली मिसाइलें (Surface to Air-SAM) उस इलाक़े में तैनात कर दी हैं, जिसे भारत में कैलाश-मानसरोवर के नाम से जाना जाता है. इसके अलावा चीन ने इस मिसाइल बेस पर अपनी लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल डोंग-फेंग 21 (DF-21) भी तैनात कर दी है, जिसकी रेंज 2200 किलोमीटर है. चीन ने ये मिसाइल उस जगह पर तैनात कर रखी है, जहां से ब्रह्मपुत्र, सतलुज, सिंध और करनाली नदियों का उद्गम है. करनाली नदी, गंगा की महत्वपूर्ण सहायक नदी है. चीन द्वारा मिसाइलों की इस तैनाती से भारत के लिए विशेष तौर पर ख़तरा पैदा हो गया है. इससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि DF-21 मिसाइलों से चीन, उत्तर भारत के महत्वपूर्ण शहरों कों को निशाना बना सकता है. चीन ने ये मिसाइल इसलिए तिब्बत में तैनात की है, ताकि वो भारत पर अपने पारंपरिक हमले की सूरत में उसे मिसाइल की धमकी से बैक अब दे सके. इसका नतीजा ये हुआ कि भारत को भी सीमा पर चीन के ख़िलाफ़ बराबरी का नुक़सान करने वाले हथियारों की तैनाती करने को मजबूर होना पड़ा.

आज भारत की सामरिक रणनीति का सबसे अहम हिस्सा ये होना चाहिए कि वो अपनी तैयारी ऐसी करे कि चीन की हर साज़िश को नाकाम कर सके. और ख़ास तौर से सीमित समय के युद्ध के दौरान भारत को ऐसा करने की पूरी तैयारी कर लेनी चाहिए. शुरुआत में भले ही भारत को कुछ नुक़सान हो जाए, लेकिन भारत को सीमा पर किसी तरह से संघर्ष का सामना लंबे समय तक करने के लिए तैयार होना चाहिए.

हालांकि, चीन की किसी तरह की घुसपैठ के ख़िलाफ़ भारत द्वारा उसे दंड देने की क्षमता पूरी तरह से भरोसेमंद नहीं कही जा सकती. लेकिन, भारत को चीन की किसी भी आक्रामकता से निपटने के लिए अपनी तैयारी और बेहतर करनी पड़ेगी. भारत भले ही पहले आक्रामक न हो, लेकिन, उसे अपनी रक्षा के लिए भी अन्य आवश्यक क़दम उठाने पड़ेंगे.   ये सच है कि वर्ष 2013 में भारत के सैनिकों ने चीन के ख़िलाफ़ दंडात्मक क़दम उठाए थे, जब भारत के सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन की सीमा में दाख़िल हो गए थे. आज भारत की सामरिक रणनीति का सबसे अहम हिस्सा ये होना चाहिए कि वो अपनी तैयारी ऐसी करे कि चीन की हर साज़िश को नाकाम कर सके. और ख़ास तौर से सीमित समय के युद्ध के दौरान भारत को ऐसा करने की पूरी तैयारी कर लेनी चाहिए. शुरुआत में भले ही भारत को कुछ नुक़सान हो जाए, लेकिन भारत को सीमा पर किसी तरह से संघर्ष का सामना लंबे समय तक करने के लिए तैयार होना चाहिए. ये युद्ध ऐसा होगा जो स्थानीय स्तर पर लड़ा जाएगा. और इसके लिए भारतीय सेना को अपनी तैयारी और बेहतर करनी हगी. मिसाल के तौर पर भारतीय सेना और वायुसेना को नागरिक हवाई पट्टियों का बेहतर इस्तेमाल करना चाहिए. गुप चुप तरीक़े से, दुश्मन को धोखे में रख कर तेज़ गति से सीमा पर दुश्मन के लिए हालात और मुश्किल बनाए जा सकते हैं. अगर चीन, भारत पर आक्रमण करता है, तो भारत इन चालों से उसे मुश्किल में डाले रख सकता है. हमले के बाद फिर से ख़ुद को तैयार करना और दुश्मन पर पलटवार करना भी बेहद महत्वपूर्ण है. और इसके लिए भारत की वायु शक्ति का वितरण अलग अलग क्षेत्रों में इस तरह होना चाहिए, ताकि अगर हवाई पट्टियों जैसे स्थिर सामरिक संपत्तियों को दुश्मन के हमले से नुक़सान पहुंचे, तो भी भारत पलटवार के लिए ख़ुद को तुरंत तैयार कर ले.

इस बात की संभावना अधिक है कि चीन, भारत की ज़मीन को धीरे धीरे कुतरने वाले अंदाज़ में हथियाने की कोशिश करता रहेगा. क्योंकि, चीन के लिए सीमा में घुसपैठ का ये तरीक़ा सबसे असरदार है. लद्दाख में उसे इसका अंदाज़ा हो चुका है. ऐसे में भारतीय सैनिकों को भी चीन पर ऐसा ही पलटवार करने के लिए तैयार रहना चाहिए. ख़ास तौर से जहां पर वो चीन के मुक़ाबले मज़बूत स्थिति में हों. वहीं, भारत को चीन की इस सैनिक आक्रामकता का और अधिक मज़बूती से जवाब देने के लिए भी ख़ुद को तैयार करना चाहिए. अगर वास्तविक नियंत्रण रेखा की स्थिति भी वैसी ही तनावपूर्ण होने जा रही है, जैसे हालात भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा पर रहते हैं, तो जल्द ही भारत को अपने परमाणु हथियारों को भी चीन से लगने वाली सीमा पर तैनात करना होगा. जिससे कि वो चीन को कोई गुस्ताखी करने से रोक सके. सामरिक क्षेत्र में ऐसी असमान रणनीति अपनाकर दुश्मन को उसकी हिमाकत के लिए भारी दंड देने की व्यवस्था की जाती है. इस रणनीति में आक्रामकता ही प्रमुख अस्त्र होती है. भारत को चाहिए कि वो लद्दाख में परमाणु हथियारों की तैनाती के बारे मे गंभीरता से सोचे. जिससे कि वो चीन को ये संदेश साफ़ तौर पर दे सके कि अगर चीन ने आक्रामक रुख़ अपनाया तो भारत उसका न सिर्फ़ मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार है. बल्कि, युद्ध का दायरा बढ़ाने के लिए भी पूरी तरह से स्वतंत्र है. ऐसा करना भारत के लिए न तो आसान विकल्प है और न ही कोई सस्ता उपाय है. लेकिन, चीन से मिल रही पारंपरिक चुनौती की बरसों बरस तक अनदेखी करने और उससे मुक़ाबले के लिए बराबर की सैन्य शक्ति विकसित न करने के कारण, भारत के विकल्प सीमित होते जा रहे हैं.

भारत के नीति निर्माताओं को चाहिए कि वो चीन को साफ शब्दों में बता दें कि भारत से प्रति आक्रामकता दिखाने पर वो युद्ध के सिर्फ़ पहले चरण नहीं, बल्कि चौथे और पांचवें चरण के संघर्ष में भी जाने के लिए तैयार हैं. ये संतुलन बनाने का बहुत नाज़ुक फ़ॉर्मूला है. लेकिन, भारत के लिए ऐसा करना बेहद आवश्यक है.

अब जबकि भारत, वास्तविक नियंत्रण रेखा पर ‘न्यू नॉर्मल’ या नए हालात के लिए ख़ुद को तैयार कर रहा है, तो वो पुराने सामरिक आयामों पर ही निर्भर नहीं रह सकता है. भारत के नीति निर्माताओं ने चीन को ये संदेश साफ़ दे दिया है कि अगर वो अपनी हरकतें नहीं सुधारता है, तो भारत ने भी अपने सभी विकल्प खुले रखे हैं. भारत के नीति निर्माताओं को चाहिए कि वो चीन को साफ शब्दों में बता दें कि भारत से प्रति आक्रामकता दिखाने पर वो युद्ध के सिर्फ़ पहले चरण नहीं, बल्कि चौथे और पांचवें चरण के संघर्ष में भी जाने के लिए तैयार हैं. ये संतुलन बनाने का बहुत नाज़ुक फ़ॉर्मूला है. लेकिन, भारत के लिए ऐसा करना बेहद आवश्यक है. विशेष तौर से तब और जब चीन की सैन्य शक्ति के मुक़ाबले भारत के पास बहुत अच्छे पारंपरिक सामरिक विकल्प मौजूद नहीं हैं. लेकिन, भारत के पास कई ऐसे विकल्प ज़रूर हैं, जिनकी अब से पहले कभी चर्चा नहीं की गई.

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