“कृपया ध्यान रहे कि ये बातें किसी के नाम से नहीं दें, सिर्फ व्हाईट हाउस के वरिष्ठ अधिकारी का ही उल्लेख करें,” संवाददाताओं से खचा-खच भरे जेम्स ब्रैडी प्रेस ब्रीफिंग रूम में यह सख्त हिदायत दी गई। यह मौका था मोद और ट्रंप की शिखर वार्ता से ठीक पहले शुक्रवार को हुई बैकग्राउंड ब्रीफिंग का, जिसके लिए बेहद जम कर तैयारी की गई थी।
लगभग 40 मिनट तक बोलने वाले व्हाईट हाउस के उस वरिष्ठ अधिकारी ने बीबीसी, वाशिंगटन पोस्ट और भारतीय मीडिया के सवालों के लिखित जवाब तैयार किए थे। ऐसा एक भी सवाल नहीं था, जिसके लिए पहले से लिखित रूप से संक्षिप्त नोट तैयार नहीं हो। ऐसी गहन तैयारी आम तौर पर देखने को नहीं मिलती।
बैकग्राउंड ब्रीफिंग के शुक्रवार से ले कर बैठक के सोमवार तक ऐसी बहुत से आंके जा सकने वाले सबूत हैं जिनके आधार पर देखा जा सकता है कि ट्रंप की शीर्ष टीम में एशियाई व्यक्ति का प्रभाव काफी है।
यह बैकग्राउंड ब्रीफिंग, राष्ट्रपति ट्रंप का रोज गार्डन में दिया गया बयान और फिर भारत-अमेरिका का साझा बयान, ये तीनों कोई अलग-अलग चीजें नहीं थीं।
ये सभी एक ही सलाहकार दल से आई थीं और वह था “व्हाईट हाउस के वरिष्ठ अधिकारी।” जो लोग वहां पहुंच नहीं सके और जिन्होंने बाद में इसे सुना वे इसकी स्पष्टता और गहराई से प्रभावित तो थे ही, उस व्यक्ति का चेहरा नहीं देख पाने की वजह से और ज्यादा अचंभित थे।
सोमवार की बैठक से पहले के सप्ताहांत में यही चर्चा थी कि “अगर यह व्यक्ति व्यवस्था में इतना अहम हुआ और ट्रंप उसकी पटकथा पर चले तो यह भारत के लिए एक बड़ी जीत होगी। अगर वे इस लाइन पर गए तो पता नहीं क्या हो।”
अब दौरा हो चुका है और हम जान चुके हैं कि ट्रंप वास्तव में उस पटकथा पर ही चले और वह भी शब्दशः। इससे यह भी पता चलता है कि व्हाईट हाउस में भारत का कीतना प्रभाव है और ट्रंप के शीर्ष सलाहकारों में दक्षिण एशिया काफी प्रभावी है।
वाशिंगटन डीसी के नीति निर्माताओं के बीच एक बात जोर-शोर से चल रही है कि अगर ट्रंप को निर्णायक सलाह देने वाला व्यक्ति अपेक्षाकृत समझदार हो तो ट्रंप की बैठक के नतीजे बेहतर हो सकते हैं। खास तौर पर मोदी-ट्रंप मुलाकात के संदर्भ में देखें तो रोज गार्डन में ट्रंप ने जो कहा, वह उनका परिष्कृत स्वरूप था। उन्होंने सार्वजनिक तौर पर कोई ऐसी बात नहीं कही, सिवाय भारत को निर्यात होने वाली एलएनजी के लिए मोल-जोल की कोशिश की बात के। इसी तरह उन्होंने मोदी के पहुंचने से पहले या उनके जाने के बाद ऐसा कोई तुनकमिजाजी भरा ट्वीट भी नहीं किया। उनकी भाषा नपी-तुली थी, रोज गार्डन का उनका संबोधन बहुत गर्मजोशी भरा था और उस शाम को अपेक्षाकृत ज्यादा समय तक चले उनके कार्यक्रम भारतीय पक्ष की उम्मीद से बेहतर ही चले।
इन अलग-अलग हिस्सों को एक साथ रख कर देखा जाए तो स्पष्ट हो जाएगा कि 23 जून की बैकग्राउंड ब्रीफिंग और मोदी-ट्रंप मुलाकात के दिन के बयान कैसे शब्दशः मेल खाते हैं।
23 जून की बैकग्राउंड ब्रीफिंग
हालांकि भारत अमेरिका का औपचारिक मित्र-राष्ट्र नहीं है, लेकिन वाशिंगटन रक्षा सहयोग के मामले में भारत को “मित्र-राष्ट्रों के समान” ही रखता है। पिछले साल भारत को दिया गया रक्षा सहयोगी का दर्जा बहुत अहम है और इस दौरे के दौरान इसकी स्पष्ट अभिव्यक्ति देखी जा सकती है।
26 जून का साझा बयान
संयुक्त राज्य अमेरिका की ओर से भारत को प्रमुख रक्षा साझेदार का दर्जा दिए जाने के बाद इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए राष्ट्रपति ट्रंप और प्रधानमंत्री मोदी ने रक्षा और सुरक्षा सहयोग को और मजबूत करने का वादा किया है। संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत आधुनिक रक्षा उपकरण और तकनीक को ले कर साथ मिल कर काम करने को ले कर आशान्वित हैं। सहयोग का यह स्तर वैसा ही होगा जैसा कि अमेरिका अपने सबसे नजदीकी सहयोगियों के साथ रखता है।
23 जून की बैकग्राउंड ब्रीफिंग
दौरे के दौरान ऊर्जा साझेदारी पर जोर रहेगा। भारतीय ऊर्जा कंपनियों ने अमेरिका में लुइजियाना और मैरीलैंड से उत्पादित लिक्विफाइड नेचुरल गैस के निर्यात के लिए 32 अरब डॉलर के दीर्घकालिक समझौते किए हैं।
26 जून का व्हाईट हाउस का बयान
लिक्वीफाइड नेचुरल गैस निर्यात और निवेश- भारतीय ऊर्जा कंपनियों ने अमेरिका में उत्पादित लिक्विफाइड नेचुरल गैस (एलएनजी) के 30 अरब डॉलर से ज्यादा के दीर्घकालिक समझौते किए हैं, जिनमें लुइजियाना और मैरीलैंड में पैदा हुई एलएनजी शामिल है। उद्योग क्षेत्र का अनुमान है कि भारतीय कंपनियों ने अमेरिका के एलएनजी और शेल सेक्टर में लगभग 10 अरब डॉलर का निवेश किया है।
23 जून की बैकग्राउंड ब्रीफिंग
इन दोनों नेताओं में काफी समानता हैं, वे सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा फॉलो किए जाने वाले नेता हैं। मुझे लगता है कि राष्ट्रपति ट्रंप मोदी से हल्के से आगे हैं (मुस्कुराते हुए), लेकिन इससे जाहिर होता है कि वे किस तरह के नेता हैं- वे नया सोचने वाले हैं, वे अपने लोगों की समृद्धि के लिए कृत संकल्प हैं और इसके लिए नए-नए रास्ते तलाशते हैं।
26 जून को ट्रंप का रोज गार्डन का बयान
मुझे मीडिया, अमेरिका के लोगों और भारतीय लोगों को यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी और मैं सोशल मीडिया पर दुनिया भर में सबसे आगे हैं- (हंसते हैं)- हम यकीन रखने वालों में से हैं- अपने देश के नागरिकों को अपने चुने हुए प्रतिनिधियों से सीधे सुनने का मौका दे रहे हैं और साथ ही हमें खुद भी उनसे प्रत्यक्ष प्रतिक्रिया हासिल करने का मौका मिलता है। मुझे लगता है कि दोनों ही मामलों में यह बहुत सही तरीके से काम आया है।
23 जून की बैकग्राउंड ब्रीफिंग
इस समय उत्पाद और सेवाओं का दोतरफा कारोबार लगभग 114 अरब डॉलर का है। दोनों ही पक्ष बाजार में अपनी हिस्सेदारी को बढ़ाने के लिए इच्छुक हैं। अमेरिका बौद्धिक संपदा सुरक्षा और दरों को कम करने को ले कर ज्यादा ध्यान देना चाहता है। व्यापार के क्षेत्र में चुनौतियां हैं। अमेरिका दरों के कम होने को ले कर काफी आशान्वित है।
ट्रंप का रोज गार्डेन का बयान
श्रीमान प्रधानमंत्री जी, मैं आपके साथ काम करने को ले कर बेहद आशान्वित हूं, ताकि देशों में रोजगार पैदा किए जा सकें, हमारी अर्थव्यवस्था आगे बढ़े और ऐसी व्यापार साझेदारी पैदा हो जो साफ-सुथरी और दोतरफा हो।
अमेरिकी सामान के आपके बाजार में पहुंचने की राह में आने वाले अवरोध को दूर किया जाना महत्वपूर्ण है। साथ ही हमें आपके देश के साथ व्यापार अभाव भी दूर करना है।
इस बयान में ऐसे बहुत से पैराग्राफ देखे जा सकते हैं जो बैकग्राउंड ब्रीफिंग के मसौदे में बहुत मामूली बदलाव के साथ यहां रखे गए थे।
“आप लोग उन्हें प्रधानमंत्री मोदी के दौरे के लिए किस तरह तैयार कर रहे हैं.. और क्या वे उस देश की सामाजिक मान्यताओं से वाकिफ करवाए जा रहे हैं?” वा पो के डेविड नाकामूरा ने अधिकारी से पूछा।
“उन्हें ब्रीफिंग दी जा रही है। हम खुद भी सहयोगी सामग्री तैयार कर रहे हैं। इस काम में सभी का साथ लिया जा रहा है। वे भारत के बारे में अपनी जानकारी को काफी बढ़ाने वाले हैं। प्रचार के दौरान ही उन्होंने कहा था कि वे राष्ट्रपति बने तो भारत को व्हाईट हाउस में एक सच्चा दोस्त मिलेगा,” अधिकारी ने जवाब दिया था।
यहां तक कि “सच्चे दोस्त” भी ट्रंप के बयान में शामिल था- ट्रंप के कार्यकाल के दौरान व्हाईट हाउस में इतनी आसानी से कोई बात शामिल नहीं होती।
किसी ने पूछा कि इससे पहले ट्रंप मोदी से मिलने क्यों नहीं आए।
अधिकारी ने जो जवाब दिया वह तारीखों और उत्तर प्रदेश चुनाव को ले कर था।
लेकिन आप इसे देखिएः “व्हाईट हाउस के वरिष्ठ अधिकारी” 2017 के बसंत में हुई मोदी-ट्रंप मुलाकात के लिहाज से सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति साबित हुए लेकिन अगर यह दौरा अप्रैल में हुआ होता तो “सभी मिल कर” जो प्रयास कर रहे थे, उसकी कमान किसी और के हाथ में होती और हो सकता है कि वह इतना सफल नहीं होता। साउथ ब्लॉक के रणनीतिकारों की भी तारीफ करनी होगी कि उन्होंने भी तुरंत खुद को इसमें शामिल कर लिया।
“दौरे की तैयारी में हमें दो महीने का समय लगा। इसमें काफी मेहनत लगी है।”
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