Published on May 17, 2017 Updated 0 Hours ago

यह सवाल अब तक बरकरार है कि मालदीव में विपक्षी दलों और उनके नेताओं के बीच अमन पसंद कौन है और गड़बड़ी फैलाने वाला कौन है।

मालदीव में जारी है राजनीतिक संघर्ष

मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने अपने नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ पीपीएम गुट की एक जनसभा में पेशकश की है कि अगर विपक्ष उनसे लिखित अनुरोध करे, तो वे अपने प्रतिद्वंद्वी मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) के पूर्ववर्ती मोहम्मद ‘अन्नी’ नशीद के लिए आजादी और निर्वाचन अधिकारों का मामला संसद में उठाएंगे। अगर यामीन की इस पेशकश से उनके सुलह की दिशा में पहला कदम उठाने का आभास हो रहा है, तो संभवत: ऐसा नहीं है, क्योंकि वे पहले भी कई बार ऐसी ही पेशकश कर चुके हैं और इस बार भी उन्होंने यह पेशकश विपक्ष के एक अन्य नेता जम्हूरी पार्टी (जेपी) के गासिम इब्राहिम की गिरफ्तारी से पहले की।

यामीन द्वारा नशीद की आजादी और नवम्बर 2018 में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में भाग लेने के उनके अधिकार की पेशकश किए जाने का पहला मौका नहीं है। पिछली बार उन्होंने यह पेशकश नशीद की मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) के समक्ष की थी। वर्ष 2012 में, नशीद के जेल जाने के कुछ ही समय बाद, यामीन ने अपनी पेशकश आगे बढ़ाते हुए यहां तक कि देश की नई दंड संहिता के अंतर्गत उनकी जेल की सजा को ‘आइलैंड प्रिजन — ‘(प्रिजन—आइलैंड से अलग रूप में) की तरह ‘नजरबंदी’, पेरोल जैसी लगभग — आजादी की स्थिति में बदलने में सहायता करने की बात कही थी।

एमडीपी ने हालांकि जरूरत के मुताबिक लिखित अनुरोध किया और सरकार के साथ राजनीतिक वार्ता शुरू की, जो एक बार फिर महज पेशकश ही रही, उससे कुछ भी हासिल नहीं हो सका। बातचीत शुरू होने से पहले ही टूट गई। जेल अधिकारियों ने आधिकारिक रिकॉर्ड में जालसाज़ी का आरोप लगाते हुए ‘नजरबंदी’रद्द कर दी। इसके फौरन बाद नशीद इलाज के लिए देश से बाहर चले गए, केवल ब्रिटेन में राजनीतिक शरण लेने के लिए।

वैधता और वास्तविकता

 वास्तव में, पहले की ही तरह, यामीन केवल विपक्ष और उसके माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को बता रहे थे कि वे इस मामले में अब भी बेबस हैं और पूरा अख्तियार सिर्फ संसद के पास है। वे अब तक मानने को राजी नहीं हैं कि केवल उनकी ही पार्टी या गुट और अकेले उनकी ही याचिका मायने रखती है।

एक बार पहले भी, यामीन ने संवैधानिक प्रावधान का हवाला दिया, जो ज्यादा से ज्यादा उन्हें नशीद को माफी देने की इजाजत तो दे सकता है, लेकिन निर्वाचन संबंधी उनकी अयोग्यता को हटाया नहीं जा सकता। ऐसा केवल तभी हो सकता है, जब सुप्रीम कोर्ट ‘जज अब्दुल्ला के अपहरण से जुड़े मामले’ में नशीद को दोषी ठहराने और 13 साल की कैद की सजा सुनाने के अपने फैसले को बदल दे। पीपुल्स मजलिस या संसद के पास विकल्प संबंधित कानूनों को संशोधित करने का है, जिन्हें देश की न्यायपालिका में चुनौती दी जा सकती है।

हालांकि, अगर आज नशीद को बिना आवश्यक कानूनी और/या संसदीय माफी के देश लौटना पड़े, तो उन्हें अपनी 13 साल की कैद की ‘अधूरी अवधि’ पूरी करने के लिए जेल जाना ही होगा। यह स्थिति बिल्कुल वही होगी, जैसी जेल में बिताए पहले साल के दौरान उनके देश छोड़ कर जाने के समय थी।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्हें अदालत में इस बात पर घेरा भी जा सकता है कि वे ब्रिटेन में इलाज पूरा करने के बाद जेल क्यों नहीं लौटे, क्योंकि तकनीकी रूप से उन्हें केवल ‘जेल से छुट्टी’ दी गई थी। उनके के खिलाफ न्यायालय की अवमानना का एक अन्य मामला भी है, क्योंकि उन्होंने जेल अधिकारियों के सामने समर्पण करने और खुद को दोषी ठहराने संबंधी फैसले के खिलाफ अपनी अपील को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष ले जाने के न्यायिक आदेशों की अनदेखी की थी।

राजनीतिक मोर्चे पर, यामीन ने भले ही विपक्षी नेताओं से उन्हें लिखित अनुरोध करने को कहा हो, लेकिन उनका मकसद सिर्फ किसी ने किसी तरीके उनकी ‘कलई खोलना’ ही है। यामीन, न्यायपालिका और संसद दोनों द्वारा मिलकर या अलग-अलग नशीद के लिए आजादी और निर्वाचन अधिकार सुगम बनाए जाने की संभावनाओं की बात जाने दीजिए, यहां तो असली मामला विपक्षी नेताओं द्वारा राष्ट्रपति से लिखित अनुरोध करने का है।

गड़बड़ी फैलाने वाले और अमन पसंद

नशीद अपनी कैद और विदेश में प्रवास के समय से ही बार बार दोहराते रहे हैं कि वे स्वदेश लौटेंगे और 2013 का राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ेंगे। वैसे तो यह आज भी दूर की कौड़ी बना हुआ है, ऐसे में यामीन अन्य विपक्षी दलों से उन्हें लिखित अनुरोध करने को कहकर शायद गड़बड़ी फैलाना चाहते हैं।

यह सवाल अब तक बरकरार है कि विपक्षी दलों और उनके नेताओं के बीच अमन पसंद कौन है और गड़बड़ी फैलाने वाला कौन है। ऐसा लगता है कि यामीन गुट को उम्मीद थी कि अगर वे नशीद के मामले पर राष्ट्रपति से लिखित अनुरोध करेंगे, तो नशीद और देश की सबसे बड़ी पार्टी एमडीपी, जेपी के गासिम तथा पीपीएम गुट के नेता और पूर्व राष्ट्रपति मॉमून गय्यूम के वापस लौटने और 2013 के चुनाव, कम से कम पहले दौर के चुनाव लड़ने की दिशा में पहल करेंगे।

यामीन इस तरीके इन नेताओं को यह भी याद दिलाना चाहते हैं कि उन्हें राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की अधिकतम आयु सीमा 65 साल करने के लिए चुनाव कानून और संविधान में संशोधन कराने के लिए एमडीपी और नशीद का समर्थन हासिल है। गय्यूम और यामीन दोनों की आयु 65 साल से पार हो चुकी है और नशीद को चुनाव लड़ने के लिए वापस लौटने में सहायता करने की एवज में शायद उनकी पार्टियां चाहती हैं कि एमडीपी राष्ट्रपति चुनावों के लिए आयु सीमा कानून की मांग करे।

ऐसा लगता है कि यामीन का इरादा अधालथ पार्टी (एपी)सहित चार दलीय गठबंधन में फूट डालने और उसे तोड़ने की कोशिश करना है और उसके बाद ‘लगातार राजनीतिक अस्थिरता की संभावनाओं के बने रहने’ पर चर्चा करना है, यदि किसी दिन वे सभी एकजुट होने का दावा करें और अगले ही दिन एक दूसरे का विरोध करने लगें। उनके गुट को आशा है कि वे मालदीव के मतदाताओं को यह बात समझाने में कामयाब हो जाएंगे कि चारों पार्टियां और उनके नेता केवल उन्हें सत्ता से बाहर रखने के लिए ही एकजुट हुए हैं और वे लोकतंत्र के बाद एक बार फिर से देश को राजनीतिक अस्थिरता के गर्त में धकेलना चाहते हैं, जिसके बिना काम चल सकता है।

साथ ही साथ, सरकार ने स्पीकर अब्दुल्ला मसीह के खिलाफ विपक्षी गठबंधन की ओर से लाए गए विफल अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोट देने के लिए सांसदों को रिश्वत देने की कोशिश करने के आरोप में गासिम को एक पखवाड़े से भी कम समय में दूसरी बार गिरफ्तार कर लिया। माले हाइ कोर्ट बेंच द्वारा पहली गिरफ्तारी के दौरान तकनीकी खामियों के आधार पर उन्हें रिहा किए जाने के बाद यह कार्रवाई की गई।

इसके साथ ही,एटॉर्नी जनरल के कार्यालय ने तभी से ही गय्यूम के बड़े बेटे और राजनीतिक उत्तराधिकारी फारिस मामून पर लगाए गए आरोपों में कार्रवाई बंद कर दी है। उन पर अपने पिता के राष्ट्रपति पद के कार्यकाल के दौरान कथित तौर पर खर्च की गई बड़ी रकम सरकार को लौटाने में नाकाम रहने का आरोप है। एटॉनी जनरल के कार्यालय ने आरोप वापस लेने के लिए समय-सीमा से संबंधित कानून का हवाला देते हुए कहा कि इस कथित अपराध आठ साल से ज्यादा समय हुआ था, इसलिए फारिस के खिलाफ कार्रवाई करने की अधिकतम समय अवधि खत्म हो चुकी है।

एटॉर्नी जनरल का फैसला भी विपक्षी गठबंधन के गैर-मामून गुट के दिमाग में इस बारे में शक के बीज बो सकता है कि वे कानूनी और संवैधानिक तरीकों से यामीन को सत्ता से बाहर करने के उनके साझा मकसद के लिए प्रतिबद्ध हैं भी या नहीं। यामीन के लिए, इसका आशय है कि वे 2018 के चुनावों से पहले परम्परागत ‘ममून मतदाताओं’ को और ज्यादा नाराज नहीं करना चाहते ।

ब्लॉगर की हत्या

हालांकि राष्ट्रपति के गुट को ब्लॉगर और राजनीतिक कार्यकर्ता यामीन रशीद की आधी रात के समय हत्या होने और हत्या की जांच में अंतर्राष्ट्रीय जांचकर्ताओं को शामिल करने संबंधी उनके परिवार की मांग पर गौर करना चाहिए। स्मरण रहे कि सरकार ने राष्ट्रपति यामीन और प्रथम महिला फातमा इब्राहिम को निशाना बनाकर किए गए बोट विस्फोट की जांच में पांच देशों से सहायता मांगी और प्राप्त की है। इसकी परिणति उपराष्ट्रपति की गिरफ्तारी और उनके महाभियोग में हुई थी।

दोनों घटनाओं के बीच तुलना करना भले ही मुनासिब न लगता हो, लेकिन रशीद के परिवार की मांग को सरकार अनुचित रूप से नजरंदाज नहीं कर सकती। इस समय उठी इस मांग का राजनीतिक अर्थ भी हो सकता है, क्योंकि ब्लॉगर की हत्या लोकप्रिय वैब जर्नल द मालदीव इंडीपेंडेंट के लिए काम करने वाले पत्रकार अहमद रिल्वान के 2014 में अचानक गायब होने के एक साल से भी ज्यादा अर्से बाद हुई है। मालदीव पुलिस सर्विस (एमपीएस)को अब तक जांच में कामयाबी नहीं मिल सकी है। उस समय और बाद में भी रिल्वान का परिवार भी ‘अंतर्राष्ट्रीय जांच’ की मांग करता आया है, लेकिन कुछ हासिल न हो सका।

सरसरी तौर पर देखने से, माले में अपने अपार्टमेंट की बिल्डिंग के स्टेयरवेल में हुई ब्लॉगर रशीद की हत्या को अंजाम देने का तरीका पीपीएम सांसद और धार्मिक विद्वान डॉ. अफराशिम अली की आधी रात को हुई हत्या की याद दिलाता है, जब पूर्ववर्ती राष्ट्रपति मोहम्मद वहीद हसन मानिक का शासन (2012-13) था। जांच में कथित तौर पर देरी करने के बाद पुलिस ने किसी एमडीपी नेता की ओर इशारा किया है। हालांकि जांच में एक सीमा से ज्यादा कुछ भी सामने नहीं आया।

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