Author : Ashok Sajjanhar

Published on Jun 01, 2017 Updated 0 Hours ago

दो जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सेंट पीटर्सबर्ग में अंतराष्ट्रीय आर्थिक फोरम में मुख्य अतिथि के तौर पर मौजूद रहेंगे। इस फोरम की लोकप्रियता पिछले कुछ समय से बढ़ी है और कुछ लोग इसे 'रूसी दावोस' भी कहते हैं।

भारत-रूस संबंधों में गरमाहट के लिए प्रयासों की जरूरत

माननीय प्रधानमंत्री का सेंट पीटर्सबर्ग में स्वागत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस समय रूस की यात्रा पर हैं। वह 31 मई से दो जून तक रूस में हैं। एक जून को रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन के साथ उनका 18वें वार्षिक भारत-रूस शिखर सम्मेलन में भाग लेना तय था।

दो जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सेंट पीटर्सबर्ग में अंतराष्ट्रीय आर्थिक फोरम में मुख्य अतिथि के तौर पर मौजूद रहेंगे। इस फोरम की लोकप्रियता पिछले कुछ समय से बढ़ी है और कुछ लोग इसे ‘रूसी दावोस’ भी कहते हैं।

भारत और रूस के नेतृत्व की प्रशंसा करनी होगी कि 18 साल से इस सालाना आयोजन की निरंतरता को उन्होंने बनाए रखा है। इस सम्मेलन की शुरूआत पुतिन के भारत आगमन पर साल 2000 में हुई थी। दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत करने में पुतिन की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वर्ष 2000 से 2008 के बीच बतौर राष्ट्रपति अपने दो कार्यकालों में तथा इसके उपरांत 2012 के बाद से पुतिन भारत-रूस संबंधों को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाते रहे हैं।

एक महीना पहले ही भारत तथा रूस के आपसी कूटनीतिक संबंधों की 70वीं सालगिरह थी। इस अवसर को यादगार बनाने के लिए संगोष्ठियों, सम्मेलनों, प्रवास तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। साल भर ये कार्यक्रम चलेंगे। गौरतलब है कि दोनो देशों के बीच आपसी संबंध भारत के आजादी हासिल करने से पहले ही स्थापित हो गए थे।

पहले सोवियत संघ और अब रूस के साथ मजबूत संबंध भारत की विदेश नीति का एक प्रमुख स्तंभ रहा है। सोवियत संघ ने भारत के औद्योगिक विकास में भी उसकी मदद की और संयुक्त राष्ट्र संघ में उसने हमेशा भारत को समर्थन दिया। दूसरी ओर भारत ने भी चेकोस्लोवाकिया तथा हंगरी में मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगने पर रूस के प्रति नरम रूख अपनाया। दोनों देशों के बीच 1971 में संबंध एक नए ही स्तर पर पहुंच गए जब दोनों ने शांति, मित्रता व सहयोग की संधि पर हस्ताक्षर किए।

सोवियत संघ के 1991 में विघटन के बाद भारत-रूस संबंधों को झटका लगा। मित्रता से जुड़ी संधि को दोनो देशों ने खारिज कर नए सहयोगी तलाशने के लिए पश्चिम का रूख किया। ये वही समय था जब भारत ने इजरायल के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए, ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ लॉन्च की और अमेरिका के करीब आने के लिए कुछ कदम उठाए।उन दिनों पश्चिम के देश रूस को हिकारत भरी नगर से ऐसे देश की तरहं देखते थे जिसका कोई भविष्य नहीं हैं। पश्चिम से मोहभंग होते ही रूस ने दोबारा भारत की ओर रुख किया। मई 1998 में भारत द्वारा परमाणु परीक्षण के बाद पश्चिम के कई देशों ने भारत पर प्रतिबंध लगा दिए पर रूस ने ऐसा नहीं किया। उस कठिन घड़ी में भारत के लिए यह अत्यंत मूल्यवान समर्थन था।

दोनो देशों के बीच रणनीतिक भागीदारी की घेषणा साल 2000 में हुई पिछले 17 सालों में कई क्षेत्रों में दोनो देशों के बीच व्यापक सहयोग हुआ है और आपसी संबंधों का तेजी से विस्तार हो रहा है।

सहयोग के क्षेत्रों में हथि्यारों की आपूर्ति तथा भारत में इनके उत्पादन की चरणबद्ध सुविधा शामिल है। इससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आरंभ किए गए ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम को बहुत बल मिला है। दोनो देशों के बीच सहयोग का शानदार उदाहरण ब्रम्होस मिसाइल का निर्माण है। गोवा में पिछले साल अक्टूबर में अयोजित 17वें शिखर सम्मेलन में कई महत्वपूर्ण फैसले लिए गए थे जिनमें एस-400 बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा प्रणाली, 200 कामोव 226-टी हेलीकॅप्टरों तथा कई अन्य रक्षा प्रणालियों की आपूर्ति शामिल है। अमेरिका, इजरायल और फ्रांस से हाल ही के सालों में भारत ने हथियारों की खरीद तो की है लेकिन अभी भी भारत की रक्षा संबंधी जरूरतों को पूरा करने में मुख्य भूमिका रूस ही निभा रहा है। भारत ने रक्षा संबंधी आयात के जितने भी सौदे पिछले पांच सालों में किए हैं उनमें से 70 प्रतिशत खरीद रूस से है।

परमाणु उर्जा एक अन्य क्षेत्र है जिसमें बड़ी तेजी से दोनो देशों के संबंधों का तेजी से विकास हुआ है। एक हजार मेगावाट के कुडनकुलम परमाणु उर्जा संयंत्र की द इकाईयां पहले से ही काम कर रही हैं। दो अन्य इकाईयों के अनुबंध पर हस्ताक्षर हो चुके हैं। दो अन्य इकाईयों के लिए अनुबंधों को अंतिम रूप अभी नहीं दिया गया है।इस संबंध में बातचीत चल रही है। कहा जा सकता है कि भारत नए अनुबंधों को करने में अभी तेजी नहीं दिखा रहा है क्योंकि परमाणु आपूर्ति समूह में अभी उसकी सदस्यता को लेकर विलंब हो रहा है। भारत और रूस के शिखर नेतृत्व के बीच एक जून को हो रही बैठक में यह एजेंडा भी होगा कि कैसे चीन को भारत की सदस्यता को स्वीकार करने के लिए राजी किया जाए।

हाइड्रोकार्बन एक और क्षेत्र है जिसमें दोनों देश प्रभावी ढंग से सहयोग कर रहे हैं। पिछले कुछ सालों में 10 अरब डॉलर से ज्यादा मूल्यों के समझौतों पर दोनों देशों ने हसताक्षर किए हैं, इनमें से कई समझौते पिछले शिखर सम्मेलन में हुए थे।

भारत और रूस के बीच व्यापार ही एक ऐसा क्षेत्र है जहां दोनों के बीच चल रहे गहरे सहयोग की झलक नहीं मिल रही है। कुछ साल पहले तक द्विपक्षीय व्यापार 11 अरब डॉर था जो कम होकर अब 8 अरब डॉलर रह गया है। साल 2025 तक इसे 30 अरब डॉलर करने का लक्ष्य है। मौजूदा अनुमानों के हिसाब से तो इसके करीब भी पहुंचना संभव नहीं लग रहा है। भारत के निजी क्षेत्र को इस संदर्भ में ज्यादा प्रयास करने होंगे। रूस को भी चाहिए कि वह अपना बाजार खोले तथा भारत से निर्यात होने वाले फार्मास्युटिकल, सेवाओं, कृषि उत्पाद, रसायनों तथा हल्​के इंजीनयरिंग उत्पादों पर से गैर-शुल्क बाधाएं (नॉन टेरिफ बैरियर) हटाए। भारत और यूरेशियन आर्थिक फोरम के बीच मुक्त व्यापार समझौते को लेकर चर्चा की संभवना है। इस विषय पर एक अध्ययन दो साल पहले आरंभ किया गया था जिसकी सिफारिशें सकारात्मक हैं। व्यापार को बढ़ाने में इस समझौते की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है क्योंकि इससे भारत को रूस, कजाखस्तान, बेलारूस, आर्मीनिया और किर्गीजस्तान के बाजारों तक पूर्वाधिकार युक्त पहुंच(प्रेफरेंशियल एक्सेस) मिल जाएगी।

सेंट पीटर्सबर्ग में मोदी 60 देशों के व्यवसायियों को संबोधित करेंगे और भारत में उन्हें निवेश तथा भारत के साथ व्यपापार बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करेंगे। जर्मनी की तर्ज पर ही मोदी रूस में भी भारत में व्यापार व अर्थव्यवस्था से जुड़े सकारात्मक कारकों को गिनाएंगे जिन पर सरकार आर्थिक सुधारों की दृष्टि से काम कर रही है मसलन जल्द आरंभ होने जा रही जीएसटी व्यवस्था, दीवालियापन से जुड़ा बैंकरप्सी कोड, बेंकों के खराब हो गए ऋणों से निपटने की गंभीरता, उच्च विकास दर, बेहतर मानूस का अनुमान आर्दि ये सब भारत को निवेश का एक आकर्षक केंद्र बनाते हैं।

सेंट पीटर्सबर्ग में मोदी 60 देशों के व्यवसायियों को संबोधित करेंगे और भारत में उन्हें निवेश तथा भारत के साथ व्यपापार बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करेंगे।

भारत और रूस जिन क्षेत्रों में सहयोग कर रहे हें उसे मजबूत करने की बात तो करेंगे ही लेकिन साथ दुनिया में तेजी से बदलती भूराजनीतिक स्थितियों का आकलन भी द्विपक्षीय वार्ता में होगा। विश्व व्यवस्था में भारी उलटफेर हुआ है जिसके अलग अलग देशों के लिए अलग अलग मायने हैं। सबसे पहला उलटफेर ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने सु हुआ है। रूस के साथ वह संबंधों को सुधारने पर जोर तो दे रहे हैं लेकिन घरेलू स्तर पर उनके प्रयास सिरे नहीं चढ़ पा रहे हैं। हाल में जी-7 और नॉटो की बैठकों में ट्रंप के रूख से यूरोपियन बैचेन और मोहभंग की स्थिति में हैं। सउदी अरब और इजरायल में उन्होंने जिस तरहं इरान की नकेल कसने की घोषणा की उससे रूस तथा उसके दोस्त देश ईरान व सीरिया चिंतित होंगे। भारत और रूस दोनों को ही इन बदलती स्थितियों में अपना रूख स्पष्ट करना होगा। चार देशों के दौरे में जर्मन चांसलर और स्पेनिश प्रधानमंत्री से प्रधानमंत्री मोदी की ताजा मुलाकात के बाद वह रूस के साथ होने जा रही बैठक में कुछ और अधिक सामयिक व अधिकृत जानकारी जोड़ने की स्थिति में होंगे।

चीन भी चर्चा का विषय होगा। पिछले कुछ सालों में रूस की निकटता चीन के साथ काफी बढ़ गई है। जैसी कि उम्मीद थी पुतिन ने बड़े उत्साह से मई 2017 के मध्य में बीजिंग में आयोजित वन बेल्ट रोड फोरम में भाग लिया था। मोदी रूस को बताएंगे कि भारत क्यों इस फोरम से दूर रहा, वह चीन के आक्रामक रूख के बारे में भी अपना दृष्टिकोण साझा करेंगे। पह इस बात पर जोर देंगे कि चीन का उभार शांतिपूर्ण एंग से होना चाहिए और इससे मौजूदा शक्ति संतुलन बदलना नहीं चाहिए। मध्य एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव की भी इस संदर्भ में चर्चा हो सकती है।

द्विपक्षीय बातचीत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रूस के पाकिस्तान तथा तालिबान के साथ गहरे होते संबंधों पर केंद्रित होगा। 31 मई को काबुल में हुए जघन्य हमले में हमलावर तालिबान से थे, इस की संभावना प्रबल है। जब तक पाकिस्तानी सेना तथा आइएसआइ द्वारा तालिबान, हक्कानी नेटवर्क तथा अन्य आतंकी समूहों को दी जरही सहायता पर पूरी तरहं रोक नहीं लगती, तब तक अफगानिस्तान व मध्य एशिया सुरक्षित नहीं रह सकता है। हम उम्मीद कर सकते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी रूसी राष्ट्रपति से कहेंगे कि पाकिस्तान के साथ रूस बी बढ़ती नजदीकियां पाकिस्तान को इस बात के लिए आश्वस्त करेंगी कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की ओर से उसकी हरकतों पर कोई कड़ी प्रतिक्रिया नहीं होगी। वैसे भी रूस व पाकिस्तान के बीच रक्षा सहयोग का इस्तेमाल पाकिस्तान भारत के खिलाफ करेगा चाहे व हथियारों या उपकरणों की खरीद हो यां संयुक्त सैन्य अभ्यास।

पिछले किुछ समय में भारत व रूस के संबंधों में कुछ अवरोध खड़े हुए हैं। इन्हें दूर कर दोबारा आपसी विश्वास कायम करने की जरूरत है ताकि दोनों के बीच तेजी से व्यापक हो रही भागीदारी को नुकसान न पहुंचे।

सेंट पीटर्सबर्ग में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति पुतिन के बीच होने जा रही बैठक आपसी समझ को मजबूत करने का आदर्श अवसर है जिससे दुनिया भर में शांति, स्थायित्व व संपन्नता स्थापित करने के लिए दोनों देश मिलकर भूराजनीति के घुमावादार रासते पर एक साथ चल पाएंगे।

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