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Published on Mar 09, 2023 Updated 0 Hours ago

महामारी संधि की वार्ताओं में ग़ैर G-7 देशों की ज़रूरतों का कितना ख़याल रखा जा रहा है?

महामारी संधि: सबके लिए एक जैसे नियम

ये लेख हमारी श्रृंखला रायसीना एडिट 2023 का हिस्सा है.


हो सकता है कि हमें इस बात के लिए माफ़ कर दिया जाए कि हमें तथाकथितमहामारी संधिकी इस वक़्त चल रही अंतरराष्ट्रीय वार्ताओं के बारे मेंजानकारी नहीं है, क्योंकि हम महामारी से सामूहिक थकान के शिकार हैं और इसके साथ साथ कोविड-19 की मौजूदा और भविष्य की महामारियों कोलेकर उठाए गए अनगिनत क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और वैश्विक क़दमों का हिसाब भी नहीं लगा सकें. भले ही अमीर देशों के बीच महामारी ख़त्म होने का एलानकरने की होड़ लगी है. लेकिन, अभी ये महामारी ख़त्म नहीं हुई है. कई देशों में ये अभी भी कहर बरपा रही है और इसके तबाही वाले सामाजिक, स्वास्थ्यसंबंधी और आर्थिक परिणाम देखने को मिल रहे हैं, ख़ास तौर से निम्न और मध्यम आमदनी वाले देशों में. इसके बाद भी भविष्य में आने वालीमहामारियों से निपटने के लिए वैश्विक और बहुपक्षीय प्रयास जारी हैं. इनमें विश्व बैंक द्वारा प्रबंधित महामारी फंड, अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य नियमों (2005) मेंसंशोधन के लिए कार्यकारी समूह, 100 दिनों का मिशन, महामारी संधि समेत कई अन्य प्रस्ताव शामिल हैं. ये जानकार शायद ही किसी को हैरानी हो किइनमें से ज़्यादातर प्रयास अमीर देशों में किए जा रहे हैं और इनके पीछे अमीर देशों के सरकारी अफ़सर, विशेषज्ञ और वकीलों का दिमाग़ लग रहा है. इससे भी बड़ी बात ये कि इस महामारी ने जिस तरह से अमीर और ग़रीब देशों की असमानताओं को उजागर किया है, उससे इस बात को लेकर चिंताहोनी चाहिए कि वैश्विक प्रशासन, स्वास्थ्य में समानता, नैतिकता और मानव अधिकारों में सुधार की मांग करने वालों की तादाद बहुत गिनी चुनी है.हालांकि उनकी मांग की चर्चा हो रही है. ये आवाज़ें भी मोटा-मोटी सात देशों के समूह (G7) और उसमें भी अमेरिका में विशेष रूप से आधारित हैं.

महामारी ने जिस तरह से अमीर और ग़रीब देशों की असमानताओं को उजागर किया है, उससे इस बात को लेकर चिंता होनी चाहिए कि वैश्विक प्रशासन, स्वास्थ्य में समानता, नैतिकता और मानव अधिकारों में सुधार की मांग करने वालों की तादाद बहुत गिनी चुनी है.

भविष्य की महामारियों से निपटने के लिए उठाए जा रहे इन क़दमों में से बहुत से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. इससे इस बात को बल मिलता है कि स्वास्थ्यके वैश्विक आपातकाल से निपटने के लिए विश्व स्तर पर तालमेल वाले उन प्रयासों की ज़रूरत होती है, जो वैज्ञानिक अनुसंधान, वित्तीय उपलब्धता, निर्माण एवं व्यापार, अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों, मानव अधिकारों/ नैतिकता जैसे क्षेत्रों से जुड़े हों. भविष्य की महामारियों से निपटने के लिए किए जा रहे विविधऔर असमान प्रयासों में से एक ऐसी संधि पर वार्ता भी शामिल है, जिसे लागू करना सभी देशों के लिए बाध्यकारी हों. इस संधि की वार्ताओं से विश्व केराजनीतिक मंच का भी पता चलता है और, किसी भी देश को प्रेरित, निर्देशित और बाध्य करने वाले क़दमों के किसी वैश्विक प्रशासनिक ढांचे की सीमितव्यवस्था की ओर भी इशारा करता है. अधिक बुनियादी तौर पर ये स्पष्ट नहीं है कि मौजूदा महामारी के सबसे ज़्यादा दिखाई दिए सबक़ों को दुनिया केतमाम देशों के द्वारा व्यापक मान्यता और स्वीकार्यता दी गई है अथवा नहीं और क्या भविष्य की महामारियों से जुड़ी परिचर्चाओं में इन परिणामों काकोई असर दिख भी रहा है. अगर हम ये मान लें कि किसी संधि से वैश्विक सहयोग और अनुपालन वाक़ई मुमकिन होगा, तो फिर सवाल ये है कि इस संधिकी वार्ताओं में ग़ैर G7 देशों और विशेष रूप से सबसे ग़रीब लोगों की ज़रूरतों की कितनी अभिव्यक्ति हो पा रही है?

महामारी संधि और इसकी उत्पत्ति

काउंसिल ऑफ़ यूरोप के दस्तावेज़ों के मुताबिक़, महामारियों के लिए एक अंतरराष्ट्रीय संधि का प्रस्ताव सबसे पहले इसके अध्यक्ष चार्ल्स माइकल नेनवंबर 2020 में पेरिस शांति मंच में रखा था. चार्ल्स माइकल के इस प्रस्ताव को 2021 की शुरुआत में G7 देशों और यूरोपीय संघ के नेताओं ने स्वीकारकरते हुए इसका समर्थन किया. इसके बाद इस संधि को लेकर गतिविधियां विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के हवाले कर दी गई. WHO ने महामारी सेजुड़े तमाम पहलुओं पर विचार के लिए अपने सदस्य देशों के एक कार्यकारी समूह का गठन किया. इसके बाद नवंबर 2021 में इस संधि पर चर्चा केलिए विश्व स्वास्थ्य महासभा (WHA) का एक विशेष सत्र भी WHO ने आयोजित किया. इस विशेष बैठक के बाद इस बात पर आम सहमति बनी किमहामारियों की रोकथाम, निपटने की तैयारियों और प्रतिक्रिया के लिए एक नई अंतरराष्ट्रीय क़ानूनी व्यवस्था की ज़रूरत है, जिससेसरकार और समाजके सभी अंग समानता की ज़रूरत को प्राथमिकतादे सकें.

कई सदस्य देश चाहते थे कि इस संधि में दूसरी तरह के स्वास्थ्य की आपात स्थितियों और उनके मध्यम और दूरगामी परिणामों का सामना करने की व्यवस्था को भी शामिल किया जाए.

दस्तावेज़ों की बारीक़ी से पड़ताल करने पर ऐसा लगता है कि कई सदस्य देश चाहते थे कि इस संधि में दूसरी तरह के स्वास्थ्य की आपात स्थितियों औरउनके मध्यम और दूरगामी परिणामों का सामना करने की व्यवस्था को भी शामिल किया जाए.

निर्देशों के अनुसार, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक अंतर सरकारी वार्ता संस्था (INB) का गठन किया, जिसमें सभी देश और सहयोगी सदस्य शामिल होसकते थे. इसका मक़सद, ‘महामारी की रोकथाम के लिए WHO की एक संधि, समझौता या कोई अन्य अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था (महामारी संधि) पर वार्ताकरके इसका मसौदा तैयार किया जाए. पूरे 2022 के दौरान विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कई सलाह मशविरे किए, सार्वजनिक सुनवाई और INB की बैठककी. ये संवाद काफ़ी पारदर्शी था और सारी जानकारी ऑनलाइन उपलब्ध कराई गई थी. जैसा कि विश्व स्वास्थ्य महासभा के विशेष सत्र में निर्देशितकिया गया था कि इस संधि का मसौदा तैयार करने और वार्ता की रफ़्तार तेज़ होगी और जब 2024 में विश्व स्वास्थ्य महासभा (WHA) की बैठक होगी, तो इस संधि का पहला ड्राफ्ट तैयार हो जाएगा. इसका मतलब ये है कि 2023 वो साल होगा जब आदर्शवादी शोर गुल और समावेशी सूचना संकलन केप्रयासों का सामना असली सियासी दांव-पेंचों और शब्दों को लेकर थका देने वाली वार्ताओं से होगा. दिसंबर 2022 में इस संधि कापरिकल्पनात्मकशून्य मसौदासार्वजनिक रूप से जारी किया गया था.

वार्ता की प्रक्रिया

तो, इस महामारी संधि की क्या संभावनाएं हैं और दांव पर क्या लगा है? पहला, विश्व स्वास्थ्य महासभा (WHA) एक नए अंतरराष्ट्रीय समझौते कोशुरुआत में समर्थन देकर इसलिए आगे बढ़ाया गया था, क्योंकि ये पाया गया था कि कोविड-19 महामारी के दौरान मौजूदा अंतरराष्ट्रीय क़ानूनी संधियां, प्रक्रियाएं और नियम, देशों और वैश्विक व्यवस्था को तेज़ी से, प्रभावी या फिर निष्पक्षता से प्रतिक्रिया देने में सहयोग के लिहाज़ से अपर्याप्त पाए गए थे. वार्ताओं का ज़ोर मुख्य रूप से अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य नियमों (IHR) की कमियों पर रहा है. इन नियमों का मक़सद उस वक़्त सरकारों को राह दिखाना है, जब संक्रामक बीमारियां सीमाओं के आर-पार फैल रही हों. ये स्वास्थ्य नियम सबसे पहले 1969 में अपनाए गए थे और उस वक़्त ये नियम, सिर्फ़ छहसंक्रामक बीमारियों से निपटने पर केंद्रित थे. हालांकि उसके बाद से अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य नियमों को कई बार संशोधित किया जा चुका है और इनकेदायरे में सीमाओं के आर-पार पैदा होने वाले जनता की सेहत के लगभग सभी जोखिमों (जैविक, रासायनिक, परमाण्विक वग़ैरह) को शामिल कर लियागया है. इन नियमों में आख़िरी बार संशोधन 2005 में किया गया था और उस वक़्त इस बदलाव का ज़ोर विशेष रूप से इस बात पर था कि अगर किसीदेश में स्वास्थ्य की कोई परिस्थिति पैदा हो तो वो देश कितने समय के भीतर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को इसकी जानकारी दे दे. अब भरमाने औरअराजकता फैलाने वाली बात ये है कि हालिया विश्व स्वास्थ्य महासभा ने दो कार्यकारी समूह बनाए हैं. एक समूह तो IHR में संसाधनों पर काम करेगाताकि कोविड-19 महामारी से पैदा हुए फ़ौरी मसलों का समाधान निकाला जा सके. वहीं, दूसरा कार्यकारी समूह, महामारी संधि का मसौदा तैयार करेगा. दोनों समूह, मई 2024 में होने वाली विश्व स्वास्थ्य महासभा में अपने अपने मसौदा दस्तावेज़ पेश करेंगे.

एक समूह तो IHR में संसाधनों पर काम करेगा ताकि कोविड-19 महामारी से पैदा हुए फ़ौरी मसलों का समाधान निकाला जा सके. वहीं, दूसरा कार्यकारी समूह, महामारी संधि का मसौदा तैयार करेगा. दोनों समूह, मई 2024 में होने वाली विश्व स्वास्थ्य महासभा में अपने अपने मसौदा दस्तावेज़ पेश करेंगे.

साफ़ है कि दोनों कार्यकारी समूहों के विषयों में काफ़ी समानता है और बहुत से देशों के पास इतने कूटनीतिक संसाधन नहीं हैं कि वो कई प्रक्रियाओं काप्रबंधन कर सकें. कुछ जानकारों ने कहा है कि स्वास्थ्य के अंतरराष्ट्रीय नियम तकनीकी और व्यावहारिक हैं, जबकि महामारी संधि अलग है क्योंकि येअधिक राजनीतिक है और इसके ज़रिए अंतरराष्ट्रीय सहायता, तकनीक की उपलब्धता और वैश्विक समानता जैसे मुद्दों से पार पाने का प्रयास किया जारहा है. इस दोहराव को समझने का एक और तरीक़ा ये है कि, चूंकि अब विश्व स्वास्थ्य महासभा और वैश्विक स्वास्थ्य, पर राजनीति बहुत हावी हो गई हैऔर राष्ट्रीय नेता ये मानते हैं कि स्वास्थ्य के कारक और आर्थिक सुरक्षा एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, तो उनके पास अपने देश के हित आगे बढ़ाने के लिए एकके बजाय दो मौक़े हों तो बेहतर होगा. हालांकि, ऐसा लगता है कि अमेरिका ने IHR के संशोधनों की संभावनाओं को 2022 की WHA में एकसमझौता करके सीमित कर दिया है कि अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य नियमों के कार्यकारी समूह को केवल कुछ तयशुदा तकनीकी संसाधनों पर ध्यान देनाचाहिए. मई 2023 में होने वाली WHA की बैठक ये देखने का अहम लम्हा होगी कि क्या कार्यकारी समूह की ज़िम्मेदारी सीमित करने का ये दांव कारगरसाबित हुआ या नहीं

अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य नियमों को किनारे करके महामारी संधि के मसौदे का दायरा, IHR और मौजूदा प्रशासनिक ढांचे की कमियों को दूर करने से लेकर, समानता पर केंद्रित संपूर्ण सरकार और संपूर्ण समाज वाले नज़रिए की आकांक्षाओं को पूरा करने तक फैला हुआ है. जैसा कि संयुक्त राष्ट्र की संधियोंऔर दस्तावेज़ों के साथ आम तौर पर होता है, उसी तरह इस मसौदे में भी आपस में टकराने वाले कई नैतिक सिद्धांतों और अन्य परिकल्पनाओं जैसे किदेश की संप्रभुता, वैश्विक सहयोग, हर इंसान का बराबरी का मूल्य, हर इंसान के पास सेहत के मानव अधिकार, सीमाओं के आर-पार फैली आपस में जुड़ीहुई कमज़ोरियां, सबूतों पर आधारित फ़ैसले, एक स्वास्थ्य को भी शामिल किया गया है. इस संधि का मुख्य बिंदु रोगाणुओं और संबंधित लाभों कोसाझा करनामहामारी से निपटने के उत्पादों की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं और लॉजिस्टिक्स; स्वास्थ्य व्यवस्था को मज़बूत बनाना; विश्व स्वास्थ्यसंगठन की भूमिका; सार्वजनिक स्वास्थ्य की व्यवस्थाएं और साक्षरता; आवश्यक संसाधनों को टिकाऊ वित्त उपलब्ध कराना; और, सबसे अहम महामारीकी रोकथाम के लिए जवाबदेही के स्तर, तैयारियों और प्रतिक्रियाएं; और व्यापक रूप से स्वास्थ्य व्यवस्थाओं और समाजों के पुनर्जीवन जैसी बातें हैं.

2023 के दौरान इस संधि का मसौदा परिवर्तित होगा. ख़ास तौर से मई में होने वाली WHA की बैठक, INB और INB के मसौदे तैयार करने वालेउप-समूह ग़ैर सरकारी किरदारों और नेटवर्कों द्वारा दिए जाने वाले अन्य दखल के दौरान बहुत से बदलाव आएंगे. यहां ये बात उल्लेखनीय है कि वैसे तोपरिकल्पना रूपी इस मसौदे ने व्यापक सिद्धांतों, परिकल्पनाओं और विषयों की पहचान की है. लेकिन अभी तक ये मसौदा देशों के विशेष अधिकारों औरकर्तव्यों को लेकर कोई ठोस राय ज़ाहिर करने में नाकाम रहा है. ड्राफ्ट में ये भी स्पष्ट नहीं है कि देशों की क्षमताओं के हिसाब से इनमें क्या अंतर होगा. महामारी किसे कहा जाएगा और इसकी शुरुआत और अंत कब से माना जाएगा, जैसे बुनियादी सवालों की अनदेखी कर दी गई है. या फिर इस सवालको भी अनदेखा कर दिया गया है कि महामारी की शुरुआत और खात्मे की घोषणा करने का अधिकार किसके पास होगा? शायद जो दिखाई पड़नेवाले सबसे अहम मुद्दे हैं वो वैश्विक समानता और मानव अधिकार हैं; महामारियों का सबसे नकारात्मक असर झेलने वाले लोग निम्न और मध्यम आमदनीवाले देशों में रहते हैं. क्या इन देशों के प्रतिनिधि इतने प्रेरित और सक्षम हैं कि वो अपने देश के नागरिकों के हितों और ज़रूरतों को इस संधि में शामिलकरा पाएंगे. ये बात स्पष्ट नहीं है. इन वार्ताओं में सकारात्मक रूप से शामिल होने के लिए आम नागरिक संगठनों को जो मामूली वक़्त दिया गया है, वैसेमें दुनिया के कमज़ोर तबक़े की चिंताएं दूर करना और भी दुश्वार हो गया है. हालांकि 2022 की विश्व स्वास्थ्य महासभा के दौरान, इनमें से कुछ देशों नेदिखाया था कि अगर वो सच में असहमत होते हैं, तो किस तरह वो वार्ता को लटका सकते हैं. WHA में ग़ैर G7 देशों ने जो ये नया नया आत्मविश्वासहासिल किया है, जिसके अन्य देशों के बीच फैलने की उम्मीद जताई जा रही है, और फिर 2023 में होने वाली महामारी संधि की वार्ताओं के दौरान भीजारी रहे.

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