Published on Nov 25, 2020 Updated 0 Hours ago

चीन के बढ़ते क्षेत्रीय दबदबे के साथ, ‘आसियान केंद्रीयता’ को लेकर होने वाली बहस ने और गति पकड़ी है.

हिंद-प्रशांत क्षेत्र: ‘आसियान केंद्रीयता’ और उभरती विश्व शक्तियों में प्रतिस्पर्धा

हिंद-प्रशांत क्षेत्र के मुहाने पर स्थित, दक्षिण पूर्व एशिया खुद को उभरती हुई महान शक्तियों की प्रतिस्पर्धा के केंद्र में पाता है. इस मायने में, इस क्षेत्र में बढ़ती परस्पर प्रतिस्पर्धा और क्षेत्रीय मानदंडों को स्थापित करने के प्रमुख चालक के रूप में, ‘एसोसिएशन ऑफ साउथईस्ट एशियन नेशंस’ (आसियान) पर इसके प्रभाव को लेकर एक बहस छिड़ी है.

समय के साथ पिछले वर्षों में, आसियान ने कई तरह के क्षेत्रीय मंच तैयार किए हैं, जैसे ‘आसियान रीजनल फोरम’ और ‘पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन’ (East Asia Summit), जो इसे प्रमुख शक्तियों के साथ काम करने और इस क्षेत्र में अपनी बातचीत का प्रबंधन करने की अनुमति देते हैं.

दक्षिण पूर्व एशियाई समूह ने लंबे समय तक, एक प्रमुख क्षेत्रीय अभिनेता के रूप में अपनी भूमिका पर गर्व किया है, और क्षेत्रीय सुरक्षा व आर्थिक प्रक्रियाओं के लिए ‘आसियान-केंद्रित दृष्टिकोण’ का निर्माण किया है

दक्षिण पूर्व एशियाई समूह ने लंबे समय तक, एक प्रमुख क्षेत्रीय अभिनेता के रूप में अपनी भूमिका पर गर्व किया है, और क्षेत्रीय सुरक्षा व आर्थिक प्रक्रियाओं के लिए ‘आसियान-केंद्रित दृष्टिकोण’ का निर्माण किया है, जिसे ‘आसियान केंद्रीयता’ के रूप में पहचान दी गई है. इसे, आसियान के सदस्य देशों के केंद्रीय, राजनीतिक व सुरक्षा ढांचे के अवयव के रूप में देखा जाता है, जिसका मकसद है क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आसियान की महत्त्वपूर्ण भूमिका को स्थापित करना.

आसियान के लिए चुनौती इस क्षेत्र में अमेरिका-चीन की रणनीतिक प्रतिस्पर्धा तेज़ होने के कारण भी बढ़ी है. हाल की कुछ घटनाओं से पता चलता है कि आने वाले महीनों और सालों में आसियान की केंद्रीयता पर बहस तेज़ होने की संभावना है. 

चीन के बढ़ते क्षेत्रीय दबदबे के साथ, ‘आसियान केंद्रीयता’ को लेकर होने वाली बहस ने और गति पकड़ी है. चीन को लेकर मतभेद, विशेष रूप से दक्षिण चीन सागर में बीजिंग का आक्रामक व्यवहार जिसके चलते आसियान के कई सदस्य-देश चीन के साथ समुद्री क्षेत्रीय विवादों में फंसे हैं, उसने आसियान में निहित मतभेदों को उजागर किया है. इसके साथ ही इस क्षेत्रीय ब्लॉक की केंद्रीयता को लेकर सवाल भी उठाए हैं.

आसियान के लिए चुनौती इस क्षेत्र में अमेरिका-चीन की रणनीतिक प्रतिस्पर्धा तेज़ होने के कारण भी बढ़ी है. हाल की कुछ घटनाओं से पता चलता है कि आने वाले महीनों और सालों में आसियान की केंद्रीयता पर बहस तेज़ होने की संभावना है. इस महीने की शुरुआत में, भारत-प्रशांत क्षेत्र के चार लोकतांत्रिक देशों के विदेश मंत्रियों- ऑस्ट्रेलिया, जापान, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका, यानी ‘क्वॉड’ (Quad) ने टोक्यो में बातचीत की, जहां उन्होंने  इस क्षेत्र में ‘आसियान केंद्रीयता’ पर ज़ोर देने की बात कही.

क्वॉड से आसियान को ख़तरा

‘क्वॉड’ द्वारा आसियान की पुन: पुष्टि के बावजूद, आसियान पर ‘क्वॉड’ देशों के दीर्घकालिक प्रभाव को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. इस संबंध में एक पर्यवेक्षक ने कहा है कि ‘क्वॉड’ का बढ़ता महत्व लंबे समय में, आसियान की “एकजुट करने और प्रभाव क़ायम करने की शक्ति” को कमज़ोर बना सकता है. भारत-प्रशांत क्षेत्र के चार ‘क्वॉड’ सदस्यों और अन्य भागीदारों को शामिल करने वाली ‘क्वॉड-प्लस’ की अवधारणा को आसियान के नेतृत्व वाले मंचों के “समानांतर तंत्र” के रूप में देखा गया है.

पिछले कुछ समय से, ‘क्वॉड’ सदस्य इस पहल में आसियान और उसके सदस्य देशों को शामिल करना चाहते हैं. इंडोनेशिया और वियतनाम अक्सर इस मंच के संभावित प्रमुख साझेदारों के रूप में उल्लिखित किए जाते रहे हैं. जापानी प्रधान मंत्री योशिहिदे सुगा ने आसियान के दो सदस्य देशों- वियतनाम और इंडोनेशिया को हाल ही में अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए चुना और अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ की इंडोनेशिया यात्रा को भी, क्षेत्र के साझेदारों को रिझाने की कोशिश के रूप में देखा जाएगा.

आसियान के संस्थापक सदस्य के रूप में जकार्ता, लगातार आसियान की केंद्रीयता के विचार का समर्थन करता रहा है, और वियतनाम इस वर्ष आसियान की अध्यक्षता करेगा. फिर भी, दक्षिण पूर्व एशियाई रणनीतिकार इन घटनाक्रमों को संयोग से अधिक मानेंगे, और आसियान-केंद्रित दृष्टिकोण पर संभावित प्रभाव को समझने की कोशिश करेंगे. इस संबंध में एक अन्य घटनाक्रम, जिसमें ‘क्वॉड’ सदस्य शामिल हैं,  और जिसे दक्षिण पूर्व एशिया में, व्यापक क्षेत्रीय प्रक्रियाओं के हिस्से के रूप में देखा जाएगा वह है, अगले महीने होने वाले मालाबार अभ्यास के लिए ऑस्ट्रेलियाई नौसेना को दिल्ली का निमंत्रण. यह टोक्यो में हुई, ‘क्वॉड’ विदेश मंत्रियों की बैठक के कुछ ही दिनों बाद फलीभूत हुआ घटनाक्रम है.

कार्यशैली पर सवाल

आसियान ने अतीत में गंभीर शक्ति प्रतियोगिता का सामना किया है, लेकिन एक परिधीय या यूं कहें कि बाहरी क्षेत्र के रूप में. आज,  दक्षिण पूर्व एशिया उभरती हुई ‘शक्ति प्रतिद्वंद्विता’ का मुख्य़ फ़लक है.

आसियान के संस्थापक सदस्य के रूप में जकार्ता, लगातार आसियान की केंद्रीयता के विचार का समर्थन करता रहा है, और वियतनाम इस वर्ष आसियान की अध्यक्षता करेगा. 

दक्षिण पूर्व एशियाई समूह ने खुद को एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय खिलाड़ी के रूप में स्थापित करने के लिए एक लंबा सफर तय किया है. हालांकि, आसियान की कार्यशैली और कई बार एक साथ काम करने की असमर्थता ने, सदस्य देशों की एकता और क्षेत्रीय भू-राजनीति में उसकी भूमिका को लेकर आलोचनाओं और चिंताओं को आमंत्रित किया है.

आसियान अगले महीने 15वां पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन आयोजित करेगा. इस दौरान प्रमुख शक्तियों की भागीदारी पर हर किसी की नज़दीकी नज़र रहेगी, क्योंकि आसियान अपने क्षेत्रीय तंत्र में इन नेताओं की उपस्थिति को, महत्वपूर्ण शक्तियों द्वारा  इस क्षेत्र को दिए जाने वाले महत्व के नज़रिए से देखता है. चार ‘क्वॉड’ राष्ट्र-राज्यों के अलावा,  चीन, रूस, दक्षिण कोरिया और न्यूजीलैंड, इसके सदस्यों में शामिल हैं.

ऐसे में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में जो होता है, वह  इस बात की झलक प्रदान कर सकता है कि, बहस की दिशा क्या होगी.

आसियान द्वारा इस बात को पहचानता कि प्रमुख शक्तियां अपने हितों को साधेंगी और आसियान की केंद्रीयता इस बात पर निर्भर करेगी कि क्षेत्रीय समूह अपने आप को बदलती भू-राजनीति के लिए कैसे अनुकूल बनाते हैं

हालांकि, आसियान द्वारा इस बात को पहचानता कि प्रमुख शक्तियां अपने हितों को साधेंगी और आसियान की केंद्रीयता इस बात पर निर्भर करेगी कि क्षेत्रीय समूह अपने आप को बदलती भू-राजनीति के लिए कैसे अनुकूल बनाते हैं,  इसकी प्रासंगिकता को तय करेगा.

अपनी किताब, द आसियान मिरेकल: ए कैटेलिस्ट फॉर पीस में किशोर महबूबानी और जेफ्रेग एसएनजी ने तर्क दिया है, कि 20वीं शताब्दी में आसियान की सफलता के पीछे एक कारक मौजूद था- ‘भू-राजनीतिक भाग्य’. ऐसी कई भू-राजनीतिक घटनाएं हुईं,  जिनसे आसियान को एक विश्वसनीय क्षेत्रीय ब्लॉक के रूप में उभरने में मदद मिली. सवाल यह है कि क्या 21वीं सदी में भी आसियान का अपना ‘भू-राजनीतिक भाग्य’ होगा.

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