Author : Harsh V. Pant

Published on Dec 03, 2018 Updated 0 Hours ago

निरंकुश सरकारें ढिठाई के साथ उदार व्यवस्था को चुनौती दे रही हैं।

निरंकुश सरकारों के लम्बे होते हाथ

हम बड़े अनोखे दौर में जी रहे हैं। जहां “वैश्विक अव्यवस्था” के बारे में होने वाली ज्यादातर चर्चाएं अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की स्थापित उदार व्यवस्था और संस्थागत प्रारूपों को चुनौती देने की इच्छा पर ही केंद्रित होती हैं। वहीं, इस सिक्के का एक अन्य पहलु निरंकुश सरकारों के तौर तरीके से जाहिर हो रहा है। ये निरंकुश सरकारें उन नियमों को चुनौती देने के लिए पहले से कहीं ज्यादा शक्तिमान हो चुकी हैं, जिन्हें अभी हाल तक विश्व बहुत हल्के में लेता आया था।

शक्तिमान सरकारें

अक्टूबर में, इंटरपोल चीफ और चीन के सार्वजनिक सुरक्षा उपमंत्री मेंग होंगवेई फ्रांस से चीन रवाना होने के बाद गायब हो गए। चीन ने बाद में खुलासा किया कि मेंग को हिरासत में ले लिया गया है और उनके खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच हो रही है। मेंग की पत्नी ने इन आरोपों का खण्डन किया और उनकी सुरक्षा के लिए सार्वजनिक अपील की। उन्होंने यहां तक कहा कि उनके स्वयं के जीवन को भी खतरा हो सकता है।

मेंग, चीन के उन शीर्ष अधिकारियों की श्रृंखला की नवीनतम कड़ी हैं, जो राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सरकार द्वारा किए जा रहे व्यापक भ्रष्टाचार-विरोधी उपायों का शिकार बने हैं। शी के राष्ट्रपति पद पर आसीन होने के बाद से 1.5 मिलियन से ज्यादा अधिकारियों को सार्वजनिक पद पर रहते हुए भ्रष्टाचार करने के जुर्म में दंडित किया जा चुका है। शी ने हरेक स्तर पर कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चायना (सीपीसी)की सर्वोच्चता को नजरंदाज करते हुए असाधारण शक्तियां अपने हाथों में केंद्रित रखी हैं। चीन के नवीन राजनीतिक सिद्धांत ‘शी जिनपिंग चिंतन,’ के केंद्र में यही विचार है कि पार्टी के प्रति निष्ठा अब इच्छा नहीं, बल्कि कर्तव्य है। माओ युग में भी काफी हद तक ऐसा ही था। शी ने इस साल राष्ट्रीय निगरानी आयोग का गठन करके अपनी शक्तियां और बढ़ा लीं। इस आयोग के पास न सिर्फ सीपीसी के सदस्यों, बल्कि सरकारी स्वामित्व वाली कम्पनियों, अस्पतालों, स्कूलों और यहां तक कि स्पोर्ट्स टीम्स की भी जांच करने के व्यापक अधिकार हैं।

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और राजनीतिक असंतुष्टों के गायब होने के मामले में चीन का रिकॉर्ड वैश्विक मानकों की दृष्टि से काफी अस्वाभाविक रहा है, लेकिन शी की कमान में यह एक नए आयाम तक पहुंच चुका है। जुलाई में, चीन की विख्यात अभि​नेत्री फेन बिंगबिंग तीन महीने तक लापता रहीं, उसके बाद वह एक लिखित बयान के साथ सामने आईं, जिसमें उन्होंने न सिर्फ कर चोरी के लिए माफी मांगी, बल्कि सीपीसी के प्रति अपनी वफादारी पर भी बल दिया था।

सऊदी अरब तो जमाल खशोगी के मामले में एक कदम और आगे बढ़ गया। विख्यात पत्रकार और सऊदी अरब सरकार के मुखर आलोचक खशोगी की पिछले महीने इस्तांबुल में सऊदी अरब के वाणिज्य दूतावास में हत्या कर दी गयी थी। सऊदी अरब के अधिकारी पहले तो कई दिन तक इसमें कुछ भी गड़बड़ी होने से इंकार करते रहे और आखिर में उन्होंने इस मौत के लिए “दुष्टतापूर्ण कार्रवाई या रोग ऑपरेशन” को दोषी ठहराया। सऊदी अरब के विदेश मंत्री अब्देल अल-जुबैर ने कहा कि इस हत्या को अंजाम देने वाले लोगों ने “उनके अधिकार के दायरे से बाहर” जाकर यह कृत्य किया। उन्होंने इस हत्या को “जबरदस्त भूल” करार दिया, “जो उसे ढंकने के प्रयास” के कारण और भी बिगड़ गई। उन्होंने जोर दिया कि इस कार्रवाई का आदेश शहजादा मोहम्मद बिन सलमान ने नहीं दिया था, इस बात पर किसी को ऐतबार नहीं हुआ।

एमबीएस के नाम से पुकारे जाने वाले मोहम्मद बिन सलमान को पश्चिम में अनेक लोगों द्वारा सऊदी अरब की महान आशा के रूप में देखा जाता रहा है। उनके द्वारा किए गए सुधारों में महिलाओं की ​ड्राइविंग पर लगा प्रतिबंध हटाना, सार्वजनिक मनोरंजन फिर से शुरु करना और अलोकप्रिय धार्मिक पुलिस की ताकत पर अंकुश लगाना शामिल है। उनका महत्वाकांक्षी कदम रेगिस्तान में 500 बिलियन डॉलर के अत्याधुनिक शहर का निर्माण करके तेल से होने वाली आमदनी पर देश की निर्भरता खत्म करना था, जिसकी अनेक लोगों ने सराहना की थी, लेकिन उनकी राजनीतिक प्रवृत्तियां अपने पूर्ववर्तियों जैसी ही निरंकुश रहीं: उन्होंने पिछले साल भ्रष्टाचार के आरोप में दर्जनों शहजादों और कारोबारियों को एक आलीशान होटल में कैद कर दिया और तो और उन्होंने लेबनान के प्रधानमंत्री साद हरीरी को ​भी हिरासत में ले लिया और कथित तौर पर उन्हें टेलीविजन पर इस्तीफे की घोषणा करने के लिए मजबूर किया।

उसके बाद रूस का नम्बर आता है, जिसने क्रेमलिन की आलोचना करने वालों की राजनीतिक हत्याओं को कलात्मक रूप से अंजाम दिया । “उग्रवाद” के आरोपियों की रूस के बाहर हत्या कराने को तो 2006 में रूसी संसद द्वारा कानूनी तौर पर मंजूरी दी गई। विविध अनुमानों के अनुसार, रूस ने पिछले दो दशकों के दौरान ही अकेले ब्रि​टेन में कम से कम 15 लोगों की हत्या को अंजाम दिया। इस साल के आरंभ में पूर्व रूसी डबल एजेंट सर्गेई स्क्रिप्ल को जहर दिया जाना, रूस सरकार द्वारा प्रायोजित हत्या का प्रयास था।

सांस फूलना

जहां एक ओर पश्चिमी उदारवादी देश अपनी घरेलू समस्याओं से घिरे हैं और उन्होंने अपनी अंदरूनी समस्याओं पर गौर करना शुरु किया है, ऐसे में इन देशों जैसी निरंकुश सरकारें न सिर्फ लम्बे समय से बरकरार वैश्विक नियमों को ढिठाई के साथ चुनौती दे रही हैं, बल्कि अपनी ताकत के बल पर नए नियम भी बना रही हैं। किसी जमाने में यह विचार दुनिया के उदार देशों को बहुत प्रिय था कि आर्थिक और तकनीकी वैश्वीकरण व्यक्तियों को सशक्त बनाते हुए निरंकुश प्रणालियों को कमजोर करेगा, अब निरंकुश सरकारों द्वारा उसी ताकत का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करते हुए उसी विचार को चुनौती दी जा रही है। सरकार के लम्बे हाथ दिनों दिन और लम्बे होते जा रहे हैं। इसमें कोई हैरत की बात नहीं कि उदार व्यवस्था की सांस फूल रही है।


ये लेख द हिन्दू में छपा था।

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