Author : Nandini Sarma

Published on Nov 17, 2020 Updated 0 Hours ago

कोयला क्षेत्र समग्र रूप से फंसी हुई परिसंपत्ति की समस्या का सामना कर रहा है, जिसका कारण है नवीकरणीय ऊर्जा से प्रतिस्पर्धा और ― विश्व स्तर पर बदलती नीतियां ― कोयला जलाकर बिजली बनाने की परियोजनाओं का त्याग. यह रुझान भारत में भी दिख रहा है

कोयला उद्योग का भविष्य और वित्तीय नतीजे

प्रोत्साहन पैकेज की चौथी किस्त में भारत में कोयला उद्योग को बढ़ावा देने वाले उपायों की घोषणा की गई है. माइन फ़्यूल (खनिज ईंधन) निकालने के लिए 50,000 करोड़ रुपये का पैकेज दिया गया है. कैप्टिव और नॉन-कैप्टिव खानों के बीच का अंतर ख़त्म कर दिया गया है, जिसका मतलब है कि निजी कंपनियों के लिए अब कोई अंतिम उपयोग का प्रतिबंध नहीं है. सरकार को उम्मीद है कि निजी क्षेत्र की भागीदारी के साथ, भारत कोयला उत्पादन में आत्मनिर्भर बन जाएगा और आयात पर अपनी निर्भरता को कम करने में क़ामयाब होगा. 2018 में निजी क्षेत्र को बाज़ार में अपने उत्पादन का 25% तक बेचने की अनुमति दी गई, जो व्यावसायीकरण की दिशा में पहला कदम था. कोयला खान की नीलामी जारी है, हालांकि, कोविड महामारी के हालात को देखते हुए निजी क्षेत्र इस सेक्टर में निवेश को लेकर सतर्क है. लेकिन और भी बड़ी बाधाएं हैं जिनसे सवाल उठते हैं कि निजी क्षेत्र कोयला परियोजनाओं में किस तरह सफलतापूर्वक निवेश करेगा और वित्तीय क्षेत्र के लिए इसके क्या नतीजे होंगे.

सरकार को उम्मीद है कि निजी क्षेत्र की भागीदारी के साथ, भारत कोयला उत्पादन में आत्मनिर्भर बन जाएगा और आयात पर अपनी निर्भरता को कम करने में क़ामयाब होगा. 2018 में निजी क्षेत्र को बाज़ार में अपने उत्पादन का 25% तक बेचने की अनुमति दी गई, जो व्यावसायीकरण की दिशा में पहला कदम था.

इस समय भारत में लगभग 62 गीगावाट की कोयला परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं. सरकारी क्षेत्र के संस्थान और बैंक कोयला परियोजनाओं के प्रमुख फाइनेंसर हैं. लोकसभा की स्थायी समिति की 2018 की रिपोर्ट बताती है कि अध्ययन के लिए चुने गए निजी क्षेत्र में परिचालन कर रहे लगभग 65,000 मेगावाट के कोयला आधारित बिजली संयंत्र वित्तीय दबाव में हैं, जो कि 85% से अधिक है. इससे वित्तीय क्षेत्र पहले ही प्रभावित है. यह ऋणदाताओं, जो मुख़्य रूप से शेड्यूल्ड बैंक हैं, के लिए लगभग 3 लाख़ करोड़ रुपये के बराबर का जोख़िम है, और इस तरह यह बैंकिंग क्षेत्र में नॉन-परफ़ॉर्मिंग एसेट्स (एनपीए) समस्या को बढ़ाता है. बैंकिंग क्षेत्र में अधिकांश एनपीए संख्या कुछ क्षेत्रों में केंद्रित है, जिनमें से एक बिजली क्षेत्र भी है.

भारत में, फंसी हुई संपत्तियों का बढ़ना या कोयला परियोजनाओं के पूरा इस्तेमाल न हो पाने की वजह भूमि की अनुपलब्धता, पावर परचेज़ एग्रीमेंट (पीपीए) की कमी, कोयले की उपलब्धता में कमी आदि हैं. लेकिन इसके अलावा, दुनिया भर में कोयला क्षेत्र समग्र रूप से नवीकरणीय या अक्षय ऊर्जा (रिन्यूएबल एनर्जी) से प्रतिस्पर्धा और कोयला जलाकर बिजली बनाने की नीतियों में बदलाव के कारण फंसी हुई संपत्ति (स्ट्रेंडेड एसेट) की समस्या का सामना कर रहा है. यह प्रवृत्ति भारत में भी दिख रही है.

फंसी हुई कोयला परिसंपत्तियों का अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ रहा है. बैंकिंग क्षेत्र में भारी एनपीए अर्थव्यवस्था की दशा को दर्शाता है. यह अर्थव्यवस्था में लिक्विडिटी को प्रभावित करता है और डिफ़ॉल्ट के जोखिम को बढ़ाता है. यह नवीकरणीय ऊर्जा से फ़ंड भी डाइवर्ट करता है. 

फंसी हुई कोयला परिसंपत्तियों का अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ रहा है. बैंकिंग क्षेत्र में भारी एनपीए अर्थव्यवस्था की दशा को दर्शाता है. यह अर्थव्यवस्था में लिक्विडिटी को प्रभावित करता है और डिफ़ॉल्ट के जोखिम को बढ़ाता है. यह नवीकरणीय ऊर्जा से फ़ंड भी डाइवर्ट करता है. सरकार और रिज़र्व बैंक ने बैंकिंग क्षेत्र में एनपीए और स्ट्रेस्ड परिसंपत्तियों की समस्या को हल करने के लिए कदम उठाए हैं. इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्टसी कोड कोयला क्षेत्र में स्ट्रेस्ड परिसंपत्तियों की समस्या को हल करने की दिशा में एक कदम है. भविष्य में, भारत को लगभग 40 अरब अमेरिकी डॉलर की फंसी हुई संपत्तियों की समस्या का सामना करना होगा. इसलिए यह ज़रूरी है कि भविष्य में और ज़्यादा स्ट्रेस्ड परिसंपत्तियों का बनना रोका जाए.

फाइनेंस का स्रोत: मौजूदा रुझान

भारत में साल 2017 से 2018 में कोयला जलाकर चलने वाले संयंत्रों का फाइनेंस 90 फ़ीसद तक कम हो गया. 2018 में ऐसी परियोजनाओं की संख्या भी 12 से घटकर 5 रह गई. 2018 में 80% से अधिक ऋण नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में चले गए, जिनमें सभी परियोजनाओं को अंतिम रूप से फाइनेंस हासिल भी हुआ. नीचे दिए गए ग्राफ़ से पता चलता है कि कोयले की परियोजनाओं के लिए फंडिंग के प्राथमिक स्रोत में भी 90% की गिरावट आई है जबकि नवीकरणीय ऊर्जा के लिए वे 10% बढ़ गए हैं. इसके अलावा, नवीकरणीय ऊर्जा का इंक्रीमेंटल कैपेसिटी निर्माण कोयले की तुलना में दोगुना है. लगातार तीसरे वर्ष नवीकरणीय ऊर्जा में बढ़ोत्तरी कोयला जैसे परंपरागत ऊर्जा क्षेत्र से अधिक थी.

कोयला परियोजनाओं के लिए अंतरराष्ट्रीय फ़ाइनेंस भी ख़त्म हो रहा है. यहां तक ​​कि जापान, चीन और कोरिया जैसे देशों को एशिया में कोयला परियोजनाओं के फ़ाइनेंस को रोकने के लिए दबाव का सामना करना पड़ रहा है. मौजूदा रुझान को देखते हुए, नए संयंत्रों को फ़ाइनेंस हासिल करना मुश्किल होगा. इससे बैंकों और वित्तीय संस्थानों की फंसी हुई संपत्ति और फाइनेंशियल स्ट्रेस की समस्या और ज़्यादा बढ़ने की संभावना है. इसके अलावा, इसका ख़ामियाज़ा सार्वजनिक क्षेत्र के नए बिजली संयंत्रों को भुगतने की उम्मीद है, क्योंकि निजी क्षेत्र को शायद कुछ रुचि लेने वाले मिल जाएं.

इस वर्ष 20 वित्तमंत्रियों के समूह ने जलवायु परिवर्तन के वित्तीय स्थिरता पर नतीजों के बारे में एक बयान जारी किया था. यहां तक ​​कि अमेरिका ने भी माना कि जलवायु परिवर्तन के गंभीर आर्थिक नतीजे हैं. हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के जलवायु शिखर सम्मेलन COP26 (कॉन्फ़्रेंस ऑफ पार्टीज़) के वित्तीय एजेंडा के लॉन्च के दौरान, क्रिस्टीन लेगार्ड ने वित्तीय संस्थानों से कहा कि वे उन जलवायु जोखिमों के बारे में पारदर्शिता बरतें जिनका वे सामना कर रहे हैं. वित्तीय संस्थानों और कॉरपोरेट्स के सामने आने वाले जलवायु संबंधी जोखिमों का विश्लेषण करने के लिए बेहतर डेटा की जरूरत है. दुनिया भर के रेगुलेटर्स ने पहले ही कदम उठाने शुरू कर दिए हैं. ब्राज़ील, चीन और हाल ही में दक्षिण अफ़्रीका के केंद्रीय बैंकों ने पर्यावरणीय कारकों का सामना करने के लिए नीतिगत उपाय किए हैं.

कोयला परियोजनाओं के लिए अंतरराष्ट्रीय फ़ाइनेंस भी ख़त्म हो रहा है. यहां तक ​​कि जापान, चीन और कोरिया जैसे देशों को एशिया में कोयला परियोजनाओं के फ़ाइनेंस को रोकने के लिए दबाव का सामना करना पड़ रहा है. मौजूदा रुझान को देखते हुए, नए संयंत्रों को फ़ाइनेंस हासिल करना मुश्किल होगा. 

भारत के लिए ऊर्जा तक अधिकाधिक पहुंच एक प्रमुख नीतिगत उद्देश्य है, इसलिए कोयले को नीतिगत समर्थन मिलता रहेगा, लेकिन― जलवायु परिवर्तन के आर्थिक परिणामों की अनदेखी करना मुमकिन नहीं है और कोई भी देरी ठीक नहीं है. हालांकि, भारत को धीरे-धीरे कोयले के निवेश को खत्म करना होगा और फंसी हुई संपत्तियों के मामले से निपटने के लिए रोडमैप तैयार करना होगा. साथ ही, भारत को बैंकों और वित्तीय संस्थानों की आर्थिक सेहत की हिफ़ाज़त के लिए ऐसे कदम उठाने चाहिए.

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