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आंतरिक सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर और भरोसे के साथ काम करने की जो प्रतिबद्धता जताई गई उससे रक्षा और सुरक्षा संबंधों को बल मिलेगा.
अमेरिकी राष्ट्रपति का 36 घंटे का भारत दौरा सक्रियता से भरा रहा. वह अपने परिवार के साथ अहमदाबाद से आगरा होते हुए नई दिल्ली पहुंचे. उन्होंने शानदार स्वागत की अपेक्षा की थी और वह उन्होंने पाया. खुद उन्होंने इसे इन शब्दों में बयान किया, जैसा स्वागत मैंने पाया वैसा किसी ने नहीं पाया. स्टेडियम के बाहर भी हजारों लोग थे. वह एक शानदार दृश्य था. वास्तव में मोदी सरकार ने यह सुनिश्चित किया था कि अमेरिकी राष्ट्रपति का स्वागत उनकी उम्मीदों और उस माहौल के अनुरूप हो जो उनके भारत आगमन को लेकर बना दिया गया था. ऐसे बहुत कम देश हैं जहां ट्रंप का ऐसा शानदार स्वागत हो सकता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया भर के नेताओं और यहां तक कि अस्थिर स्वभाव वाले डोनाल्ड ट्रंप के साथ तालमेल बैठाने में सिद्धहस्त हैं. वह ट्रंप के साथ व्यक्तिगत रिश्ता कायम करने में इसके बावजूद सफल रहे कि प्रारंभ में अमेरिकी राष्ट्रपति ने उनके प्रति उपेक्षा भाव दिखाया था. यही कारण रहा कि भारत यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति भारतीय प्रधानमंत्री की प्रशंसा उत्साहित होकर करते रहे.
उन्होंने साबरमती आश्रम की अतिथि पुस्तिका में भी नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करने वाली टिप्पणी दर्ज की. बीते आठ महीनों में यह ट्रंप और मोदी के बीच पांचवीं मुलाकात थी. इससे यही पता चलता है कि दोनों के बीच रिश्ते प्रगाढ़ हो रहे हैं. नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति ने एक व्यापक साझा बयान जारी किया. इसमें दोनों देशों के बीच हुए तीन समझौतों का जिक्र था. इनमें एक ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग को लेकर था.
साझा बयान में इस पर भी सहमति जताई गई कि दोनों देश बड़े व्यापार समझौते की दिशा में आगे बढ़ेंगे. दोनों नेताओं ने भारत-अमेरिका रणनीतिक रिश्तों के दायरे को वैश्विक स्तर पर ले जाने पर सहमति व्यक्त की. आंतरिक सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर और भरोसे के साथ काम करने की जो प्रतिबद्धता जताई गई उससे रक्षा और सुरक्षा संबंधों को बल मिलेगा.
तीन अरब डॉलर के रक्षा सौदे के तहत भारत एडवांस मिलिट्री इक्विपमेंट सिस्टम के साथ अपाचे और एमएच-60 रोमियो हेलीकॉप्टर अमेरिका से खरीदेगा. टं्रप ने दुनिया के सबसे आधुनिक अमेरिकी हथियारों जिसमें एयर डिफेंस सिस्टम, मिसाइल, रॉकेट से लेकर नौसैनिक जहाज आदि को भारत को देने का भी एलान किया. भारत-प्रशांत क्षेत्र हमेशा की तरह अमेरिकी राष्ट्रपति की प्राथमिकता में रहा. ट्रंप ने चार देशों-अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत की साझा पहल को बढ़ाने की जरूरत रेखांकित की ताकि आतंकवाद पर लगाम लगाने के साथ समुद्री सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके. भारत-प्रशांत क्षेत्र को परिभाषित करने को लेकर शुरुआती हिचक के बाद ट्रंप प्रशासन अब इसे लेकर स्पष्ट नजर आ रहा है कि भारत के पश्चिमी छोर से लेकर अफ्रीका के पूर्वी छोर तक का समुद्री इलाक़ा भारत-प्रशांत क्षेत्र है.
चूंकि भारत और अमेरिका, दोनों चीन की बेल्ट रोड परियोजना को लेकर संशकित हैं इसलिए क्षेत्रीय सहयोग आधारित परियोजनाओं को गति देने पर जोर दिया जा रहा है. इसमें ब्लू डॉट नेटवर्क भी शामिल है. इसमें ऐसी परियोजनाएं शामिल होंगी जो पारदर्शी, समावेशी और आर्थिक एवं सामाजिक रूप से उपयोगी तथा पर्यावरण हितैषी होंगे.
ट्रंप यह बताने को उत्सुक थे कि जबसे उन्होंने अपना कार्यकाल संभाला है तब से भारत को अमेरिकी निर्यात में 60 फीसद की बढ़ोतरी हुई है. ऊर्जा उत्पादों के निर्यात में यह वृद्धि 500 फीसद रही है. भारत अमेरिकी कच्चे तेल का चौथा और एलएनजी का पांचवां सबसे बड़ा ख़रीदार बन गया है. भारत को एलएनजी के आयात में कोई दिक्कत पेश न आए, इसके लिए एक्सॉन मोबील और इंडियन ऑयल के साथ एक करार भी हुआ है.
हालांकि दोनों पक्ष व्यापार के मामले में अपने मतभेद दूर नहीं कर पाए, लेकिन दोनों नेताओं ने यह उम्मीद जताई कि जल्द ही इसे लेकर एक बड़ा समझौता होगा. भारत में कई लोग ट्रंप द्वारा पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध होने का हवाला दिए जाने पर चिंतित हुए होंगे, लेकिन इसे अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना को सुरक्षित निकालने के संदर्भ में देखा जाना चाहिए.
चूंकि अमेरिका और तालिबान में समझौता होने वाला है इसलिए ट्रंप पाकिस्तान का सहयोग चाहते हैं. इसी तरह उनके मध्यस्थता संबंधी बयान को भी पाकिस्तान की चिंता को कम करने की नजर से ही देखा जाना चाहिए. भारत-अमेरिकी मैत्री के बीच पाकिस्तान की अधिक अहमियत नहीं रह गई है.
इस मैत्री को लेकर भारतीय प्रधानमंत्री ने यह सही कहा कि दोनों देशों के रिश्ते केवल सरकारों के बीच नहीं हैं, बल्कि लोगों के भी बीच हैं और उनके ज़रिये संचालित भी हैं. 21वीं सदी के सभी संबंधों में ये संबंध सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं. अमेरिका में रह रहे करीब 40 लाख भारतीय और लगभग दो लाख छात्र दोनों देशों के रिश्तों को मजबूत करने का काम कर रहे हैं.
हालांकि बीते दशकों में एक के बाद एक सरकारों ने दोनों देशों के रिश्तों को आगे बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन मोदी और ट्रंप ने रणनीतिक साझेदारी को धार देने के लिए वह किया है जो पहले नजर नहीं आता था. भारत-अमेरिका की सेनाओं के बीच साझा अभ्यास इसी का सुपरिणाम है. पहले इसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी.
साफ है कि मोदी ने ट्रंप को अमेरिका के दूसरे निकटतम सहयोगियों के मुकाबले काफी अच्छी तरह से साधा है. यही वजह रही कि ट्रंप अपने पूरे दौरे के दौरान अपने स्वाभाविक मिज़ाज से इतर काफी संभल कर टिप्पणी कर रहे थे. उन्होंने वही बात कही जो मोदी सरकार के हित में थी. उन्होंने भारत के महत्व को रेखांकित किया ही, भारत-अमेरिका रिश्तों को नई ऊंचाई देने में मोदी के योगदान की सराहना भी की.
कुछ लोगों द्वारा यह कहे जाने का कोई मतलब नहीं है कि ट्रंप की यात्रा भारत के लिए फ़ायदेमंद नहीं रही. जो समझौते हुए हैं वे पहले से जगजाहिर थे. ऐसे उच्च स्तरीय दौरे हमेशा ऐसे ही होते हैं और उनमें वार्ता के बिंदु पहले से तय होते हैं. दरअसल ट्रंप की छवि एक बड़े कारोबारी नेता की रही है. वह कोई भी समझौता बहुत सोच-समझकर करते हैं. ऐसे में भारत की झोली में कुछ ठोस देने के इतर उनका यहां आना ही बड़ी बात है. संबंध अच्छे रहेंगे तो करार भी होते रहेंगे.
यह लेख मूल रूप से जागरण अख़बार में छप चुका है.
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Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...
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