Author : Sunjoy Joshi

Published on Aug 18, 2020 Updated 0 Hours ago

आज दुनिया में एक उबाल आया हैं न सिर्फ़ कोविड-19 का बल्कि हम और भी कई तरह की बीमारियों से ग्रसित हो चुके हैं. कोविड-19 बस हमारी स्थिति को और ख़राब कर रहा है

एशियाई सदी का सपना, कितनी हक़ीकत — कितना फ़साना?

अमेरिका और चीन के बीच में तकनीकी युद्ध लगातार गति पकड़ता जा रहा है- चाहे वह चीन की कंपनी हुवावे पर प्रतिबंध लगाने से हो या टिक-टॉक पर और चाहे अब वी-चैट पर बैन लगने से. वहीं दूसरी तरफ अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव भी नज़दीक आता जा रहा है. इसके अलावा, विश्व-व्यवस्था किस तरह से बदल रही है ये भी एक मसला है? विश्व स्वास्थ्य संगठन को लेकर सुधार की बात की जा रही है लेकिन डोनाल्ड ट्रंप कैसे उसपर हावी हो रहे है. दूसरे देशों की क्या प्रतिक्रिया रही है? इसके अलावा, भारत के पड़ोस में क्या चल रहा हैं. उसका भी विश्लेषण इस लेख़ के माध्यम से करने की कोशिश करेंगे.

आज से 15 साल पहले हम बात करते थे कि 21वीं शताब्दी एशिया की शताब्दी होगी. और भारत और चीन तेज़ी से आगे बढ़ेंगे और आपस में टक्कर लेंगे लेकिन आज सिर्फ़ अमेरिका और चीन की बात हो रही है. आज दुनिया में एक उबाल आया है जो न सिर्फ़ कोविड-19 के कारण  बल्कि और भी कई तरह की बीमारियों के कारण है. कोविड-19 बस हमारी स्थिति को और ख़राब कर रहा है लेकिन इससे पहले और दो बीमारी लग चुकी थी. इसमें से पहला ग्लोबलाइज़ेशन है जिसका कोई भी अंग काम नहीं कर रहा है. यह एक तरह से आईसीयू में चला गया है. और दूसरा चीन और अमेरिका के बीच जो टेक्नोलॉजी वॉर चलता आ रहा है उसका टेंपरेचर लगातार बढ़ता ही जा रहा है. कुछ लोगों का कहना है कि यह अमेरिकी चुनाव तक चलेगा जबकि कुछ का कहना है कि मतभेद ज़्यादा गह़रा है इसलिए यह लंबे समय तक चलेगा.

लेकिन दूसरी जगह अगर इसके परिणाम देखें जाएं तो फेसबुक ने इंस्टाग्राम के माध्यम से रील एप्लीकेशन को लॉन्च कर दिया और यह ना सिर्फ़ अमेरिका में बल्कि जर्मनी में, यूरोप के कुछ देशों में और भारत में भी इस तरह के टेस्ट लॉन्च शुरू हो चुकी है. अमेरिका में यह चर्चा चल रही है कि क्लीन नेटवर्क को लागू किस प्रकार से किया जाएगा. वो कौन से क़ानून है जिसके तहत इसे लागू किया जाएगा क्योंकि इससे कई पहलू है जिससे अमेरिकी कोर्ट में निश्चित रूप से इसे चुनौती दी जायेगी. इस बात को लेकर भी गर्मा-गर्मी चल रही है कि कौन चीन पर सबसे ज़्यादा नकेल कस सकता है.

चुनाव में बाहरी ताक़तों का हस्तक्षेप 

अमेरिका का चुनाव एक ऐसा चुनाव है जिसमें पूरी दुनिया का हित कहीं ना कहीं छुपा रहता है. एक तरफ चीन और ईरान कहते हैं कि हम ट्रंप का विरोध करेंगे मगर दूसरी तरफ अमेरिकी इंटेलिजेंस के मुताब़िक रूस ट्रंप को सपोर्ट करेगा. रूस का मानना है कि अगर ट्रंप अगले कार्यकाल तक बने रहते हैं तो अमेरिका अपने आप ही और कमज़ोर हो जाएगा. वहीं जो बिडेन अपने प्रचार-प्रसार में कह रहे हैं कि रूस हमारा सबसे बड़ा सामरिक दुश्मन है और ट्रंप के रहते अमेरिका रूस को कभी कंट्रोल नहीं कर सकता. तो एक तरफ ट्रंप कहते हैं कि जो बिडेन चीन को नहीं कंट्रोल कर पाएंगे, वहीं दूसरी तरफ जो बिडेन कहते हैं कि ट्रंप रूस को नहीं कंट्रोल कर पाएंगे जिससे रूस पूरी दुनिया में हावी हो जाएगा. और इस प्रकार अमेरिका का वर्चस्व समाप्त हो जाएगा. इस तरह से यह राजनीतिक खेल अमेरिका में चल रहा है जो पूरे जोर-शोर से चलेगा और नवंबर माह तक चलेगा.

सबसे बड़ा ख़तरा कौन?

चीन अमेरिका के लिए दीर्घकालीक रूप से सबसे बड़ा ख़तरा है. और यह ख़तरा भू-राजनीति को लेकर है कि भविष्य में वर्चस्व किसका रहेगा? चीन बहुत ही शातिर खिलाड़ी है. वह कभी भी रक्षा और सुरक्षा के मामले में विश्व व्यवस्था में अपना नाम पहले आगे नहीं करता. वह रूस के साथ सामंजस्य बिठाकर मध्य-पूर्व में सीरिया के मामले में और भी जो घटनाएं हुई हैं उनमें वीटो का इस्तेमाल लगातार रूस के शह पर ही करता रहा है. चीन सुरक्षा के मामले में रूस को आगे करता है. जहां तक चीन का सवाल है मध्य पूर्व पर नियंत्रण, हिंद महासागर पर नियंत्रण — चाहे वह ग्वादर के माध्यम से हो या चाबहार के माध्यम से हो — उसके इरादे बड़े स्पष्ट है कि उसको अपनी आपूर्ति श्रृंखला चालू रखते हुए इस क्षेत्र में अपना वर्चस्व क़ायम रखना है और रूस की सहायता से अमेरिका को पीछे ढकेलना है या अगर इसके लिए अमेरिका को मज़बूर किया जाता है तो चीन पूरी तरह से रूस को सहायता देगा.

अभी पिछले ही महीने चीन ने नेपाल, अफग़ानिस्तान और पाकिस्तान के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए बात करने लगा कि हम ट्रांस हिमालयन कॉरिडोर बनाएंगे. यह कॉरिडोर चाइना पाकिस्तान इकोनामिक कॉरिडोर होते हुए तिब्बत, तिब्बत से शिनजियांग जाएगा. और इस तरह से हम पूरे इलाक़े का विकास करेंगे.

चीन मध्यपूर्व के देशों से लगातार अपने संबंध बनाए हुए हैं. उसने अपने संबंध सीरिया से, ईरान से और यहां तक कि इजराइल से भी धीरे-धीरे बढ़ाने शुरू कर दिए हैं. क्योंकि वह जानता है इज़राइल टेक्नोलॉजी के मामले में बहुत मज़बूत खिलाड़ी है. तो चीन इस खेल में सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए थोड़ा पीछे रह करके मगर इकोनॉमिकल स्टैंड ज़्यादा ले करके आता है. अभी पिछले ही महीने चीन ने नेपाल, अफग़ानिस्तान और पाकिस्तान के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए बात करने लगा कि हम ट्रांस हिमालयन कॉरिडोर बनाएंगे. यह कॉरिडोर चाइना पाकिस्तान इकोनामिक कॉरिडोर होते हुए तिब्बत, तिब्बत से शिनजियांग जाएगा. और इस तरह से हम पूरे इलाक़े का विकास करेंगे. इसमें उसने सुरक्षा की बात नहीं की है. लेकिन इसमें जो सुरक्षा का दृष्टिकोण है वह बहुत स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहा है और इस तरह से वह धीरे-धीरे अपना वर्चस्व फैलाने में लगा हुआ है. इस तरह से इस क्षेत्र के साथ-साथ अमेरिका के लिए चीन सबसे बड़ा ख़तरा है.

नेपाल का नक्शा 

राष्ट्रवाद की गंगा पूरी दुनिया में बह रही है. और इसी में सब लोग अपने हाथ धो रहे हैं. नेपाल और पाकिस्तान के नेता अपनी-अपनी जनता का ध्यान आकर्षित करने में लगे हुए हैं कि वह अपने दुश्मन से लड़ने में सक्षम हैं. पाकिस्तान हमारे साथ शुरू से ही शत्रुतापूर्ण रवैया अपनाते रहा है लेकिन समस्या की बात यह है कि नेपाल कहां से और कब से भारत को अपना दुश्मन मानने लगा है. इसलिए भारत को अपने पड़ोसी देशों के लिए रीजनल डायलॉग फिर से शुरू करनी चाहिए और अपने नेबरहुड पॉलिसी पर पुनर्विचार करना चाहिए क्योंकि चीन यहां पर आग में घी डालने का काम कर रहा है. वास्तव में शीत युद्ध के बाद की नींव अब रखी जा रही है. अंततः कौन से देश कोविड-19 से कितना जल्दी बाहर निकलते हैं, किसकी अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ेगी और किनकी अर्थव्यवस्था पीछे छूट जायेंगी. यह आज के समय में दुनिया के सभी देशों के लिए पहली प्राथमिकता बन जाती है कि कोविड-19 के चलते अपने स्वास्थ्य व्यवस्था को सुदृढ़ बनाया जाए की कम से कम मौतें हो और साथ ही साथ हमारी अर्थव्यवस्था पटरी पर आ जाएं क्योंकि अंततः यही तय करेगा कि कौन सा देश आने वाले समय में कितना मज़बूत है.

पाकिस्तान हमारे साथ शुरू से ही शत्रुतापूर्ण रवैया अपनाते रहा है लेकिन समस्या की बात यह है कि नेपाल कहां से और कब से भारत को अपना दुश्मन मानने लगा है. इसलिए भारत को अपने पड़ोसी देशों के लिए रीजनल डायलॉग फिर से शुरू करनी चाहिए और अपने नेबरहुड पॉलिसी पर पुनर्विचार करना चाहिए

तो इस प्रकार यह एक नया खेल चल रहा है और इससे हमें देखकर, समझ करके आगे चलने की आवश्यकता है. आने वाले छ: महीने या साल भर में जो देश कोविड-19 से लड़ करके अपनी अर्थव्यवस्था को उबार लेंगे उन देशों का भविष्य उज्जवल होगा. और बाकी जो ऐसा नहीं कर पायेंगे वो इस दौड़ में पीछे छूट जाएंगे. इस बात को चीन अच्छी तरह से समझता है.

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