Author : Anushka Saxena

Published on Mar 09, 2022 Updated 0 Hours ago

भारतीय नौसेना के द्वारा तीसरे एयरक्राफ्टर करियर को शामिल करना नौसेना के दुनिया भर में संचालन के उद्देश्य को हासिल करने की दिशा में एक क़दम है. 

भारतीय नौसेना में तीसरे एयरक्राफ्ट करियर को शामिल किये जाने पर तक़नीकी नज़रिया

क्षेत्रीय स्तर पर मानवीय सहायता और आपदा राहत (एचएडीआर) से लेकर अदन की खाड़ी में समुद्री लुटेरों के ख़िलाफ़ अभियान चलाने तक अलग-अलग अभियानों में भारतीय नौसेना की ताक़त को देखते हुए ये कोई हैरानी की बात नहीं है कि समुद्री विशेषज्ञ भारतीय नौसेना को आने वाले समय में एक शक्तिशाली समुद्री सेना बताते हैं. निस्संदेह समुद्र में नौसेना के उद्देश्यों को पूरा करने में पहला क़दम प्रमुख उभरती तकनीकों को हासिल करना है जो नौसेना के अलग-अलग अभियानों का साथ दे सकें और उसके काम-काज की क्षमता में बढ़ोतरी करे. ये तकनीकें निश्चित रूप से परंपरागत हथियारों जैसे डिस्ट्रॉयर (विध्वंसक पोत), युद्ध पोत, पनडुब्बी और एयरक्राफ्ट करियर के साथ-साथ अपेक्षाकृत नये आविष्कारों जैसे अनमैन्ड मरीन सिस्टम और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) में भी दिखना चाहिए. 

समुद्र में नौसेना के उद्देश्यों को पूरा करने में पहला क़दम प्रमुख उभरती तकनीकों को हासिल करना है जो नौसेना के अलग-अलग अभियानों का साथ दे सकें और उसके काम-काज की क्षमता में बढ़ोतरी करे.

भारतीय नौसेना में तीसरे एयरक्राफ्ट करियर को शामिल करने को लेकर जो चर्चा चल रही है, उसमें भी बहुत ज़्यादा ध्यान इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एयर लिफ्ट सिस्टम (ईएमएएलएस) जैसी तकनीकों को जगह देने पर दिया जा रहा है. इस तकनीक के साथ-साथ अत्याधुनिक एयरक्राफ्ट करियर में एयरक्राफ्ट (ख़ास तौर पर भारी वज़न के लड़ाकू विमानों) के प्रक्षेपण और स्टील के तार के इस्तेमाल से उनको वापस लैंड करने में ‘मदद’ के लिए इस्तेमाल होने वाले कैटेपुल्ट असिस्टेड टेक-ऑफ बट अरेस्टेड रिकवरी (कैटोबार) सिस्टम को अमेरिका की रक्षा कंपनी जनरल एटॉमिक्स इलेक्ट्रॉमैग्नेटिक सिस्टम्स इनकॉरपोरेशन ने भारत में फैलाया. कोचीन शिपयार्ड (लिमिटेड) द्वारा स्वदेशी रूप से

विकसित आईएनएस विक्रांत (जिसे स्वदेशी एयरक्राफ्ट करियर या आईएसी-1 के नाम से भी जाना जाता है) ने जनवरी में एक समय में एक एयरक्राफ्ट की लैंडिंग कराने में सक्षम तीन स्टील के तार के साथ STOBAR (शॉर्ट टेक-ऑफ बाई अरेस्टेड रिकवरी) सिस्टम का इस्तेमाल करके जनवरी में तीसरा समुद्री परीक्षण पूरा किया है. ये आईएनएस विक्रांत पर तैनात अपेक्षाकृत कम वज़न के लड़ाकू विमानों (जैसे कि मिग-29के) के प्रक्षेपण के लिए उपयुक्त है. लेकिन अगर भारतीय नौसेना के द्वारा 2015 में दुनिया भर के जहाज़ निर्माताओं को भेजे गए लेटर ऑफ रिक्वेस्ट में तय की गई आवश्यकताओं पर नज़र डालें तो आईएसी-2 के लिए विस्थापन (डिस्प्लेसमेंट) का सुझाव 300 मीटर (आईएसी-1 के 262 मीटर विस्थापन के मुक़ाबले 38 मीटर ज़्यादा) दिया गया था. साथ ही आईएसी-2 के लिए वज़न का सुझाव 65,000 टन (आईएसी-1 के 45,000 टन वज़न से ज़्यादा) जबकि रफ़्तार 30 नॉट्स या 56 किलोमीटर प्रति घंटा (आईएसी-1 के 28 नॉट या 52 किलोमीटर प्रति घंटे से ज़्यादा) दिया गया था. इसे देखते हुए आईएसी-2 को विकसित करने के लिए ज़रूरी तकनीकी विशेषज्ञता और निवेश स्वाभाविक रूप से मौजूदा स्वदेशी क्षमता के स्तर के मुक़ाबले कई गुना ज़्यादा होना होगा. 

भारतीय एयरक्राफ्ट करियर ब्रह्मोस सुपरसोनिक एंटी-शिप मिसाइल (जिसकी रेंज 292 किमी है) से भी लैस हैं. इससे उन्हें समुद्र से ज़मीन पर सटीक हमला करने की क्षमता मिलती है. शांति काल में भारतीय एयरक्राफ्ट करियर मानवीय सहायता और आपदा राहत मुहैया कराने का काम करते हैं.

क्या भारत को तीसरे एयरक्राफ्ट करियर की ज़रूरत है?

भारत के लिए उसके एयरक्राफ्ट करियर इंडो-पैसिफिक में सिर्फ़ सैन्य ताक़त दिखाने के औज़ार से बढ़कर हैं. भारत के एयरक्राफ्ट करियर खर्च के मामले में विदेश में सैन्य अड्डे के सस्ते विकल्प के रूप में काम करते हैं और इस बात की गारंटी देते हैं कि संघर्ष की स्थितियों में लड़ाकू विमान और लंबी दूरी की निगरानी मौजूद रहेगी. ऐसा करते हुए , एयरक्राफ्टर करियर ठीक समय पर युद्ध के लिए ज़रूरतों को पूरा करते हैं जिन्हें तट पर मौजूद सैन्य ताक़त पूरा नहीं कर सकती. भारतीय नौसेना के पूर्व अध्यक्ष एडमिरल करमबीर सिंह के शब्दों में कहें तो, भारत के लिए “समुद्र में हवाई ताक़त की ज़रूरत वर्तमान में है”. भारतीय नौसेना के द्वारा वर्ष 2015 में विकसित भारतीय समुद्री सुरक्षा सिद्धांत (डॉक्ट्रिन) के अनुसार, करियर बैटल ग्रुप (सीबीजी यानी एयरक्राफ्ट करियर और उसके साथ मौजूद एस्कॉर्ट्स) में विकसित नौसैनिक बेड़ा देश में युद्ध के लिए तैयार सबसे बड़ा बेड़ा और सामरिक समुद्री सिद्धांत है जिसके पास दुश्मनों की फ़ौज के कमांड कंट्रोल को अस्थिर करने और जवाबी हमला करने की क्षमता है. इस संबंध में एयरक्राफ्ट करियर के इर्द-गिर्द केंद्रित करियर बैटल ग्रुप भारतीय नौसेना के “समुद्री नियंत्रण” के सिद्धांत को आगे बढ़ाएंगे और समुद्र में चलता-फिरता हवाई क्षेत्र बनाने के लिए मिली-जुली टास्क फोर्स का इस्तेमाल करेंगे. 

वैसे तो आलोचक ये दलील देते हैं कि एयरक्राफ्ट करियर लंबी दूरी की एंटी-शिप बैलिस्टिक मिसाइल के लिए आसान टारगेट हैं लेकिन इस बात पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि एयरक्राफ्ट करियर की अपनी रफ़्तार के अलावा उनके साथ चलने वाले जहाज़ों (जिनमें युद्ध पोत, लड़ाकू जलपोत, डिस्ट्रॉयर और यहां तक कि रसद जहाज़ भी) के द्वारा मुहैया कराई गई सुरक्षा उन्हें बेहद सुरक्षित युद्धकालीन निवेश बनाते हैं. भारतीय एयरक्राफ्ट करियर ब्रह्मोस सुपरसोनिक एंटी-शिप मिसाइल (जिसकी रेंज 292 किमी है) से भी लैस हैं. इससे उन्हें समुद्र से ज़मीन पर सटीक हमला करने की क्षमता मिलती है. शांति काल में भारतीय एयरक्राफ्ट करियर मानवीय सहायता और आपदा राहत मुहैया कराने का काम करते हैं. इस तरह वो इस काम में दूसरे तौर-तरीक़ों की मदद करते हैं. ये अमेरिका के निमित्ज़ क्लास एयरक्राफ्ट करियर के इस्तेमाल के द्वारा इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भूकंप, तूफ़ान और सुनामी जैसी बर्बादी की हालत में जापान, इंडोनेशिया और फिलीपींस में आपदा राहत पहुंचाने में देखा जा चुका है. 

युद्ध के समय बिना सप्लाई के रहने का समय कम होकर एक से तीन महीने हो सकता है. हालांकि ये समय भी तेल से चलने वाले एयरक्राफ्ट करियर के एक से दो हफ़्ते तक बिना ईंधन भरे चलने के मुक़ाबले ज़्यादा है.

परमाणु ऊर्जा से युक्त एयरक्राफ्ट करियर की मदद के लिए साथ में साजो-सामान से लैस जहाज़ भी चलते हैं जो चालक दल (क्रू) की ज़रूरत को पूरा करते हैं. कुल मिलाकर 50 साल के जीवनकाल के साथ ये एयरक्राफ्ट करियर 10-20 साल तक करियर को चलाने के लिए नवीकरणीय, टिकाऊ और ऊर्जा के लिए स्वयं के स्रोत पर निर्भर होकर दुनिया भर में अभियान चलाने में सक्षम नौसेना की सोच को सही मायनों में बदल सकते हैं. इस बात को ध्यान में रखते हुए शांति काल में आज एक अत्याधुनिक परमाणु ऊर्जा युक्त एयरक्राफ्ट करियर (जैसे कि अमेरिका का निमित्ज़ क्लास एयरक्राफ्ट करियर) बिना ईंधन भरे हुए रहते हैं. युद्ध के समय बिना सप्लाई के रहने का समय कम होकर एक से तीन महीने हो सकता है. हालांकि ये समय भी तेल से चलने वाले एयरक्राफ्ट करियर के एक से दो हफ़्ते तक बिना ईंधन भरे चलने के मुक़ाबले ज़्यादा है. ये भी ध्यान रखना चाहिए कि परमाणु ऊर्जा युक्त एयरक्राफ्ट करियर को तब भी अपने फ्रिज को भरने के लिए तट पर आना पड़ सकता है लेकिन उसे ईंधन भराने और जांच कराने (रिफ्यूलिंग एंड कम्प्लेक्स ओवरहॉल) के लिए तट पर नहीं जाना पड़ता है जिसमें काफ़ी समय लगता है. तेल से चलने वाले एयरक्राफ्ट करियर को इन ज़रूरतों के लिए बार-बार तट पर जाना पड़ता है. परमाणु ऊर्जा युक्त एयरक्राफ्ट करियर को सिर्फ़ एक बार ईंधन भराने और जांच कराने (कमीशन होने के 25 साल बाद तक) की ज़रूरत पड़ती है. 

वैसे एक एयरक्राफ्ट करियर को विकसित करने और उसे तकनीक से लैस करने की लागत बहुत ज़्यादा है. वर्तमान में भारत सिर्फ़ एक परंपरागत एयरक्राफ्ट करियर आईएनएस विक्रमादित्य, जो कि एक संशोधित कीव-क्लास करियर है, का संचालन अपने पश्चिमी समुद्र तट पर कर रहा है. भारत का दूसरा एयरक्राफ्ट करियर आईएनएस विक्रांत अगस्त 2021 से समुद्र में परीक्षण के दौर से गुज़र रहा है और इस साल इसे चालू होने के लिए निर्धारित किया जाने वाला है. आईएनएस विक्रांत को एक साल तक बुनियादी ढांचे से लैस करने के बाद भारत के पूर्वी समुद्र तट पर तैनात किया जाएगा. आईएनएस विक्रमादित्य को जहां 2004 में 2.35 अरब अमेरिकी डॉलर में रूस से ख़रीदा गया था वहीं आईएनएस विक्रांत स्वदेश में विकसित है. आईएनएस विक्रांत परियोजना की लागत 3.1-3.5 अरब अमेरिकी डॉलर आने का अनुमान है. लेकिन आईएनएस विक्रमादित्य पर भारत को 10-11 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च करने पड़े जिसमें इसकी जांच और हथियारों की लागत शामिल हैं. इसे ध्यान में रखते हुए भारत में परमाणु ऊर्जा युक्त एयरक्राफ्ट करियर में नवीनतम तकनीकों और उसमें आईएसी-2 की जगह और आकार के मुताबिक़ परमाणु रिएक्टर के लिए डिज़ाइन करने का सरकारी ख़ज़ाने पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा. वित्तीय वर्ष 2019-20 और 2020-21 में नौसेना पर आई लागत को देखते हुए तत्काल लक्ष्यों जैसे पनडुब्बी और लड़ाकू विमानों को हासिल करने में मदद करने वाली क्षमताओं पर निवेश भारतीय नौसेना के लिए ज़्यादा संभव लगता है. चीन के द्वारा तेज़ी से ए2/एडी (एंटी एरिया एक्सेस डिनायल जो कि एक समुद्री रणनीति है और जिसके तहत दुश्मन की नौसेना को युद्ध क्षेत्र में आगे बढ़ने की इजाज़त नहीं दी जाती है) क्षमता विकसित करने की वजह से ये ख़ास तौर पर ज़रूरी है. 

दूसरी तरफ़, आईएनएस विक्रांत (आईएसी-1) के मामले में जैसा नौसेना की रिपोर्ट में बताया गया है, उसके मुताबिक़ क़रीब 23,000 करोड़ रुपये (एयरक्राफ्ट करियर के प्रोजेक्ट की लागत का 85 प्रतिशत) पहले ही भारतीय अर्थव्यवस्था में वापस आ चुके हैं. इसके अलावा आईएनएस विक्रांत हर रोज़ 2,000 लोगों को सीधा रोज़गार प्रदान करता है. बेरोज़गारी से परेशान अर्थव्यवस्था में तीसरे, परमाणु ऊर्जा युक्त एयरक्राफ्ट करियर के लिए मंज़ूरी बेहद आवश्यक नौकरी के अवसर प्रदान करेगी. 

आगे का रास्ता 

तकनीकी और साजो-सामान के पहलू से और वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारतीय नौसेना के लिए 46,323 करोड़ रुपये के बजटीय आवंटन को ध्यान में रखते हुए नौसेना सबसे पहले सुरक्षा में महत्वपूर्ण कमियों को पूरा करने में निवेश करने पर विचार कर सकती है. उदाहरण के लिए, आईएनएस विक्रमादित्य, जिसे वरिष्ठ नौसेना अधिकारी रियर एडमिरल एस. मधुसूदनन (रिटायर्ड) ने ‘अत्याधुनिक’ बताया था, पर हाइड्रोलिक ओवरलोड और ज़हरीले धुएं से जुड़ी दुर्घटनाएं हो चुकी हैं. जल्द ही हमारे वाहकों के ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल की समस्या का भी समाधान करना होगा. ये समस्या अमेरिकी एयरक्राफ्ट करियर जैसे कि यूएसएस हैरी एस. ट्रूमैन और यूएसएस ड्वाइट आइज़नहावर में देखी जा रही है. ज़्यादा इस्तेमाल से काम करने की क्षमता प्रभावित होती है और बार-बार एयरक्राफ्ट करियर के नवीनीकरण एवं देख-रेख की आवश्यकता होती है (जैसा कि भारत में सबसे लंबे समय तक काम करने वाले करियर आईएनएस विराट के मामले में भी देखा गया था और जिसे 2017 में सेवा मुक्त कर दिया गया था). 

परंपरागत ‘स्की-जंप’ की जगह आईएसी-2 में कैटोबार (CATOBAR) की मदद से टेकऑफ को सफलतापूर्वक लागू करने से दोहरे इंजन आधारित लड़ाकू विमान जैसे दसॉ रफाल-एम (Dassault Rafale-M) के कुशल इस्तेमाल में मदद मिल सकती है.

हालांकि, लंबे समय में, तीसरे एयरक्राफ्ट करियर का संचालन उपयोगी साबित होगा. देश में एयरक्राफ्ट करियर को विकसित करने की क्षमता उसकी लागत कम करने में मदद कर सकती है. वहीं एक हाइब्रिड इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन-कैटोबार सिस्टम को लगाना काफ़ी हद तक परमाणु ऊर्जा युक्त एयरक्राफ्ट करियर द्वारा मुहैया कराया जाने वाला महत्वपूर्ण लाभ प्रदान कर सकता है. परंपरागत ‘स्की-जंप’ की जगह आईएसी-2 में कैटोबार (CATOBAR) की मदद से टेकऑफ को सफलतापूर्वक लागू करने से दोहरे इंजन आधारित लड़ाकू विमान जैसे दसॉ रफाल-एम (Dassault Rafale-M) के कुशल इस्तेमाल में मदद मिल सकती है. आईएनएस विक्रांत के स्की-जंप के साथ रफाल-एम की अनुकूलता का इस समय गोवा के तट पर परीक्षण चल रहा है. इस परीक्षण का नतीजा तीसरे करियर के फ्लाइट लॉन्च डेक के लिए संभावित डिज़ाइन की ज़रूरतों के बारे में तकनीकी जानकारी मुहैया करा सकता है.

 

आख़िर में, भारत-अमेरिका साझेदारी, ख़ास तौर पर रक्षा और तकनीकी व्यापार पहल के तहत एयरक्राफ्ट करियर टेक्नोलॉजी पर ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप के ज़रिए, एयरक्राफ्ट करियर आधारित क्षमताओं के आधुनिकीकरण के लिए अच्छी संभावना पेश कर सकती है. ये संभावना विशेष तौर पर अनमैन्ड सिस्टम के क्षेत्र में ज़्यादा बेहतर हो सकती है. नवंबर 2021 में एयर सिस्टम को लेकर ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप (JWG) की बैठक का नतीजा एयर लॉन्च्ड अनमैन्ड एरियल व्हीकल प्रोजेक्ट की स्थापना की दिशा में एक द्विपक्षीय समझौते के रूप में निकला. अमेरिका के नॉर्थरोप ग्रुमैन के एक्स-47बी करियर आधारित ड्रोन कार्यक्रमों की सफलता को देखते हुए तकनीकी ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप को अनमैन्ड सिस्टम को हासिल करने और फिर उसके इस्तेमाल को लेकर विचार-विमर्श पर ध्यान देना चाहिए. लंबे समय में एयरक्राफ्ट करियर आधारित ड्रोन भारतीय एयरक्राफ्ट करियर को समुद्र में नियंत्रण के साथ-साथ इंटेलिजेंस, निगरानी और जासूसी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण लाभ प्रदान कर सकते हैं. 

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