Author : Shashidhar K J

Published on Jul 09, 2020 Updated 0 Hours ago

चूंकि भारत में अभी भी निजी डेटा संरक्षण का क़ानून नहीं बना है, तो ऐसी स्थिति में आरोग्य सेतु का दायरा बढ़ाना उचित नहीं होगा. फिलहाल तो इसे कोविड-19 के मरीज़ों की ट्रेसिंग के लिए ही इस्तेमाल किया जाना बेहतर होगा.

आरोग्य सेतु ऐप और विरोधाभास: क्या नागरिकों की मदद के नाम पर हो रही है निगरानी?

जैसे-जैसे दुनिया में कोविड-19 की महामारी बढ़ रही है, इसके प्रकोप से निपटने के लिए भारत में कई नए तरह के तकनीकी माध्यमों का प्रयोग भी बढ़ रहा है. भारत की केंद्रीय सरकार, कोविड-19 के मरीज़ों और उनके संपर्क में आए लोगों का पता लगाने के लिए आरोग्य सेतु ऐप को ख़ूब बढ़ावा दे रही है, जिससे इस वायरस के संक्रमण को सीमित किया जा सके. पूरे भारत में चार चरणों में लगाए गए लॉकडाउन के बाद अब अनलॉक का दूसरा चरण शुरू हो चुका है. लॉकडाउन के दौरान हर चरण में आवाजाही पर प्रतिबंध बढ़ते गए थे. अब लोगों की आमद-ओ-रफ़्त पर लगे प्रतिबंध हटाए जा रहे हैं, ताकि आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा सके. अन्य देशों के मुक़ाबले भारत में नए कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने की गति धीमी रही है. लेकिन, जब से लॉकडाउन में रियायतें दी जाने लगी हैं. लोगों की आवाजाही और आर्थिक गतिविधियां बढ़ने के साथ ही, भारत में भी कोविड-19 के मरीज़ों की संख्या और उनकी मौत की तादाद में विस्फोटक वृद्धि देखी जा रही है. ऐसे में स्वास्थ्य की निगरानी करने वाले तकनीकी औज़ार, महामारी से निपटने के अभियान में काफ़ी कारगर साबित हो सकते हैं.

2 अप्रैल 2020 को राष्ट्रीय अधिसूचना केंद्र (NIC) ने भारत में कोविड-19 के मरीज़ों और उनके संपर्क में आए लोगों का पता लगाने के लिए आरोग्य सेतु ऐप जारी किया था. इस ऐप को सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग ने निजी क्षेत्र के तमाम वॉलंटियर्स और विश्वविद्यालयों की मदद से विकसित किया था. आरोग्य सेतु ऐप के माध्यम से अब तक देश में कोविड-19 के 600 हॉट स्पॉट का पता लगाया जा चुका है. महामारी से निपटने के पहले मोर्चे के स्वास्थ्य कार्यकर्ता इस ऐप के माध्यम से स्वैच्छिक रूप से जुटाए गए आंकड़ों पर बहुत निर्भर हैं. वो इन आंकड़ों की मदद से महामारी से निपटने की कोशिश करते हैं. मरीज़ों के क्लस्टर का पता लगाते हैं और अपने काम के दौरान आने वाले जोखिमों से बचने के लिए सावधानियां बरत पाते हैं. इस लेख में हम आरोग्य सेतु की व्यापक स्वीकार्यता, इसके डिज़ाइन और प्राइवेसी को लेकर उठाए गए मुद्दों के बारे में चर्चा करेंगे. इसके साथ साथ हम नेशनल हेल्थ स्टैक के साथ आरोग्य सेतु के एकीकरण से जुड़ी समस्याओं के बारे में भी बात करेंगे.

ऐप के अंगीकरण की राह के रोड़े

आरोग्य सेतु को प्रभावी बनाने के लिए इसे जितने स्मार्टफ़ोन में मुमकिन हो, उतने में इन्सटॉल किया जाना चाहिए. और इसे इस्तेमाल करने वालों को नियमित रूप से अपने स्वास्थ्य की स्थिति अपडेट करते रहना चाहिए. ताकि सामुदायिक संवाद की एक तस्वीर गढ़ी जा सके. इस ऐप को विकसित करने वाली टीम का कहना था कि आदर्श रूप से देश में कम से कम पचास प्रतिशत आबादी को ये ऐप अपने मोबाइल पर इन्स्टॉल करना चाहिए. हालांकि, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में इस सीमा में फ़र्क़ हो सकता है. भारत में मोबाइल उपयोग करने वालों की संख्या को देखें तो शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत अंतर दिखता है. दूर दराज़ के ग्रामीण इलाक़ों में मोबाइल के यूज़र्स की संख्या काफ़ी कम है. ऐसे में शहरों में तो पचास फ़ीसद आबादी के फ़ोन में ये ऐप इन्स्टॉल करने का लक्ष्य तो आसानी से हासिल किया जा सकता है. लेकिन, ग्रामीण इलाक़ों में ये लक्ष्य प्राप्त कर पाना बहुत मुश्किल होगा. जैसे-जैसे ये बीमारी ग्रामीण क्षेत्रों में फैल रही है, उस लिहाज़ से ग्रामीण क्षेत्रों में ऐप के ज़रिए कोरोना वायरस के संक्रमण का पता लगा पाना बहुत मुश्किल होगा.

हालांकि, भारत में एक अरब से अधिक मोबाइल कनेक्शन हैं. लेकिन, इसका मतलब ये नहीं है कि इतने ही लोग फ़ोन भी इस्तेमाल कर रहे होंगे. आज बहुत से लोग कई कई सिम कार्ड रखते हैं. यानी हर मोबाइल ग्राहक के पास एक से अधिक कनेक्शन हो सकता है. इससे भी अधिक अहम बात ये है कि बेसिक फीचर फ़ोन को इस्तेमाल करने वालों की तादाद भारत में लगभग 55 करोड़ है. फीचर फ़ोन ये ऐप डाउनलोड नहीं कर सकते. ये बेसिक फ़ोन मोबाइल के अधिकतर ऐप स्टोर से नहीं जुड़े होते. फिर भी, आरोग्य सेतु को अब तक दस करोड़ से अधिक स्मार्टफ़ोन में इन्स्टॉल किया जा चुका है. मीडिया की ख़बरों के मुताबिक़, जियो के नए फीचर फ़ोन जिन्हें दूरसंचार रिलायंस जियो ने लॉन्च किया है, में आरोग्य सेतु ऐप इन्स्टॉल होकर मिलेगा. अभी ये साफ़ नहीं है कि क्या जियो के पुराने फ़ोन और दूसरे फीचर फोन में भी ये ऐप इन्स्टॉल किया जा सकेगा. ऐसे में इस ऐप को देश की ज़्यादातर जनता इस्तेमाल ही नहीं कर सकती. क्योंकि उनके पास या तो स्मार्टफ़ोन नहीं हैं. या फिर मोबाइल कनेक्शन ही नहीं है.

बहुत से कर्मचारियों और कोविड-19 के फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं ने आरोग्य सेतु ऐप के असर को लेकर चिंता जताई है. इन कर्मचारियों की चिंता है कि सरकार, इस ऐप के ज़रिए उनके ऊपर नज़र रख सकती है. और इस दौरान उनके बारे में जमा किए गए आंकड़ों का इस्तेमाल महामारी ख़त्म होने के बाद भी हो सकता है.

एक मई 2020 को गृह मंत्रालय ने सभी सरकारी और निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए इस ऐप को इन्स्टॉल करना अनिवार्य बना दिया. मंत्रालय ने कहा कि ये हर कंपनी का फ़र्ज़ है कि वो अपने हर कर्मचारी का ये ऐप डाउनलोड कराना सुनिश्चित करे. हालांकि, गृह मंत्रालय द्वारा बाद में जारी किए गए दिशा निर्देशों में मंत्रालय ने इसे लेकर अपने रुख़ में नरमी के संकेत दिए. और अब गृह मंत्रालय कंपनियों और ज़िला अधिकारियों को इस बात के लिए प्रोत्साहन देता है कि वो इस ऐप को इन्स्टॉल कराएं. रेलवे और हवाई सफ़र के लिए भी ये ऐप इन्स्टॉल करना अनिवार्य कर दिया गया था. हालांकि, नई गाइडलाइन में केंद्र सरकार ने ये फ़ैसला राज्यों पर छोड़ दिया है कि वो अपने यहां आरोग्य सेतु के इस्तेमाल का प्रोटोकॉल तय करें.

लेकिन, केंद्र सरकार द्वारा नियमों में ढील देने के बावजूद, अभी भी आरोग्य सेतु ऐप के इस्तेमाल को अनिवार्य बनाने की भरपूर कोशिशें की जा रही हैं. जैसे कि, नोएडा शहर ने एक आदेश पारित किया कि यहां रहने वाले हर नागरिक को ये ऐप डाउनलोड करना होगा. और जो ऐसा नहीं करेगा, उसे छह महीने तक की जेल की सज़ा हो सकती है. ई-कॉमर्स कंपनियों ने अपने सामान की डिलीवरी के लिए ये ऐप अनिवार्य बना दिया है. खाना डिलीवरी करने वाली कंपनियां जैसे कि ज़ोमाटो और स्विगी ने अपने सभी कर्मचारियों के लिए इस ऐप को अपने स्मार्टफ़ोन में रखना ज़रूरी बना दिया है, ताकि वो खाने की डिलीवरी कर सकें.

इसके अलावा सरकारी और निजी क्षेत्र की कंपनियों के जो कर्मचारी काम पर लौट रहे हैं, वो कंपनियां अपने कर्मचारियों के लिए इस ऐप को डाउनलोड करना अनिवार्य बना रही हैं. जिससे की अनलॉक के नियमों का पालन हो सके. बहुत से कर्मचारियों और कोविड-19 के फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं ने आरोग्य सेतु ऐप के असर को लेकर चिंता जताई है. इन कर्मचारियों की चिंता है कि सरकार, इस ऐप के ज़रिए उनके ऊपर नज़र रख सकती है. और इस दौरान उनके बारे में जमा किए गए आंकड़ों का इस्तेमाल महामारी ख़त्म होने के बाद भी हो सकता है. बहुत से लोग इस बात को लेकर भी चिंतित हैं कि अगर उन्होंने आरोग्य सेतु ऐप को अपने फ़ोन पर इन्स्टॉल नहीं किया. तो, उनकी आवाजाही में दिक़्क़तें आ सकती हैं. और उन्हें कई सेवाओं से वंचित भी किया जा सकता है.

जब कोई दो आरोग्य सेतु वाले मोबाइल क़रीब आते हैं, तो वो अपने आईडी एक दूसरे से शेयर करते हैं. विशेषज्ञ कहते हैं कि आरोग्य सेतु ऐप स्यूडो स्टैटिक आईडी इस्तेमाल करता है. जबकि उसे लोगों की प्राइवेसी की ज़्यादा हिफ़ाज़त करने वाले डायनामिक स्यूडो आई को इस्तेमाल करना चाहिए

डिज़ाइन और प्राइवेसी को लेकर चिंताएं

आरोग्य सेतु ऐप कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग के दूसरे ऐप जैसा ही है, जिन्हें एप्पल और गूगल ने विकसित किया है. ये ब्लूटूथ तकनीक की मदद से काम करता है. लेकिन, एप्पल और गूगल के विपरीत, ये जीपीएस लोकेशन के आंकड़े भी जमा करता है. जैसे ही कोई व्यक्ति इसे अपने मोबाइल पर इन्स्टॉल करता है, तो सबसे पहले आरोग्य सेतु उसके बारे में ये जानकारियां जमा करता है: नाम, लिंग, उम्र, पेशा, यात्रा का इतिहास और टेलीफ़ोन नंबर. इन सभी जानकारियों को एक ख़ास डिवाइस आईडी से जोड़ा जाता है. फिर इसे सेंट्रल डेटाबेस पर अपलोड किया जाता है. शुरुआत में आरोग्य सेतु के डेटा अमेज़न वेब सर्विसेज पर इकट्ठे किए जा रहे हैं. बाद में इन्हें नेशनल इन्फ़ॉर्मेटिक्स सेंटर (NIC) के सर्वर पर रखा जाएगा. किसी को भी इस ऐप को इस्तेमाल करने के लिए लगातार अपने ब्लूटूथ और जीपीएस डेटा को ऑन रखना पड़ेगा. ये ब्लूटूथ की सेटिंग के एडमिन के अधिकार मांगता है. किसी भी मोबाइल पर अगर कोई ऐप ब्लूटूथ का एडमिन अधिकार मांगता है, तो ये सुरक्षा के लिए ख़तरा है. और इसके ज़रिए कोई भी ऐप अपनी ज़रूरत के अलावा दूसरे आंकड़े भी हासिल कर सकता है.

जब कोई दो आरोग्य सेतु वाले मोबाइल क़रीब आते हैं, तो वो अपने आईडी एक दूसरे से शेयर करते हैं. विशेषज्ञ कहते हैं कि आरोग्य सेतु ऐप स्यूडो स्टैटिक आईडी इस्तेमाल करता है. जबकि उसे लोगों की प्राइवेसी की ज़्यादा हिफ़ाज़त करने वाले डायनामिक स्यूडो आई को इस्तेमाल करना चाहिए. सिंगापुर का कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग ऐप इसी आईडी का प्रयोग करता है. आरोग्य सेतु ऐप ब्लूटूथ और लोकेशन की जानकारियां फ़ोन पर ही जमा करता है. लेकिन, जैसे ही किसी यूज़र में कोविड-19 के लक्षण पाए जाने लगते हैं, तो सिस्टम ये आंकड़े सेंट्रल डेटाबेस पर अपलोड करने लगता है. उनके अन्य लोगों के आस-पास की जानकारियां भी जुटाई जाने लगती हैं. फिर इनके ज़रिए आस पास के कोविड-19 क्लस्टर का पता लगाया जाता. ताकि आस पास अगर कोई कोरोना वायरस पॉजिटिव व्यक्ति हो तो उसका भी पता लगाया जा सके. अधिकारी कहते हैं कि आरोग्य सेतु के ज़रिए अब तक पंद्रह हज़ार से ज़्यादा लोगों के लोकेशन और ब्लूटूथ डेटा को सेंट्रल सर्वर पर अपलोड किया गया है.

आरोग्य सेतु की प्राइवेसी नीतियों को दो महीने में तीन बार बदला गया है. पहली प्राइवेसी पॉलिसी में इस बात का ज़िक्र नहीं था कि ऐप के ज़रिए जमा किया गया डेटा किसी तीसरे पक्ष से साझा नहीं किया जाएगा. जब ऐप से जुड़ी दूसरी नीति आई, तो इस कमी को दूर किया गया. और इसमें साफ़ तौर पर इस बात का ज़िक्र था कि ऐप के माध्यम से लोगों के जो आंकड़े इकट्ठा किए जाएंगे, उन्हें किसी तीसरे पक्ष से शेयर नहीं किया जाएगा. ऐप के मक़सद की सीमाएं तय करना और ये सुनिश्चित करना कि इससे जुटाए गए डेटा को थर्ड पार्टी से साझा नहीं किया जाएगा, एक सही दिशा में उठाया गया क़दम था. इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय का आरोग्य सेतु डेटा एक्सेस ऐंड नॉलेज शेयरिंग प्रोटोकॉल कहता है कि, किसी भी व्यक्ति के डेटा को उसकी पहचान बताए बग़ैर लगभग हर सरकारी मंत्रालय या एजेंसी से शेयर किया जा सकता है. पर शर्त ये है कि अगर इसका इस्तेमाल कोविड-19 से निपटने के लिए किया जा रहा हो तभी डेटा शेयर हो सकता है. यानी इस प्रोटोकॉल में कुछ डेटा तीसरे पक्ष से साझा करने का प्रावधान है. लेकिन, इसमें ये शर्त जोड़ी गई है कि न तो इस डेटा का फिर से इस्तेमाल होगा और न ही इसे किसी अन्य संस्था को दिया जाएगा. इस प्रोटोकॉल में ये नियम भी है कि ऐप के माध्यम से जुटाए गए आंकड़े केवल 180 दिनों तक रखे जा सकते हैं. और थर्ड पार्टी को भी इन नियमों का पालन करना होगा. ऐप के कोड को ओपन सोर्स का बनाने और रिवर्स इंजीनियरिंग पर लगाई गई पाबंदियों को हटाने जैसे कुछ सकारात्मक क़दम भी उठाए गए हैं. इनसे आरोग्य सेतु के इस्तेमाल को लेकर भरोसा बढ़ाया जा सकेगा.

कोविड-19 की महामारी सार्वजनिक स्वास्थ्य की चुनौती है. ऐसे में नागरिकों के निजी अधिकारों को सार्वजनिक हितों के अनुसार ढालने की आवश्यकता है. लेकिन, भारत सरकार, नागरिकों के अधिकारों को प्राकृतिक संसाधन के तौर पर देखती है, जिनका दोहन किया जा सकता है

हालांकि, उपरोक्त सभी बदलाव स्वागत योग्य हैं. लेकिन अभी भी फिक्र की एक अहम बात बची हुई है. अभी भी किसी यूज़र के ऐप से छुटकारा पाने के तरीक़े स्पष्ट नहीं हैं. यूज़र के अधिकार के सेक्शन में ये लिखा है कि कोई भी यूज़र अपना रजिस्ट्रेशन रद्द कर सकता है. जिसके बाद उसने जितनी भी जानकारी दी है, उसे तीस दिनों के अंदर डिलीट कर दिया जाएगा. लेकिन, ऐप में रजिस्ट्रेशन कैंसिल करने की व्यवस्था नहीं है. न ही एकाउंट को डिलीट करने की सुविधा दी गई है. ऐसे में अगर कोई व्यक्ति अपने मोबाइल से आरोग्य सेतु ऐप को अनइन्स्टॉल कर भी देता है, तो क्या उसे रजिस्ट्रेशन रद्द करने के तौर पर गिना जाएगा? ये बात भी स्पष्ट नहीं है.

कोविड-19 की महामारी सार्वजनिक स्वास्थ्य की चुनौती है. ऐसे में नागरिकों के निजी अधिकारों को सार्वजनिक हितों के अनुसार ढालने की आवश्यकता है. लेकिन, भारत सरकार, नागरिकों के अधिकारों को प्राकृतिक संसाधन के तौर पर देखती है, जिनका दोहन किया जा सकता है और उससे पैसे कमाए जा सकते हैं. 2018-19 का आर्थिक सर्वे कहता है कि नागरिकों के डेटा को सार्वजनिक संपत्ति के तौर पर देखा जाना चाहिए और इसके कुछ हिस्सों को निजी कंपनियों को देकर उनका आर्थिक लाभ उठाया जाना चाहिए. ताकि, सरकार के ऊपर पड़ रहे वित्तीय दबाव को कुछ कम किया जा सके. हालांकि, मंत्रालयों और सरकारी एजेंसियों को इस बात का ध्यान रखना होगा कि वो जनता के डेटा से मुनाफ़ा न कमाएं.

महामारी ख़त्म हो जाने के बाद आरोग्य सेतु के जुटाए आंकड़ों का क्या होगा?

नॉलेज शेयरिंग प्रोटोकॉल कहता है कि जुटाए गए आंकड़ों को छह महीने के बाद डिलीट कर दिया जाएगा. लेकिन, इसमें एक प्रावधान, सनसेट क्लॉज़ की अवधि बढ़ाने का भी है. इसका मतलब ये है कि किसी ऐप द्वारा इकट्ठे किए गए आंकड़ों को छह महीने बाद भी रखा जा सकता है. यहां ध्यान रखने वाली बात ये है कि आरोग्य सेतु ऐप पर ये सनसेट प्रावधान लागू नहीं होता. यानी महामारी के बाद भी आरोग्य सेतु का किसी और मक़सद से उपयोग जारी रखा जा सकता है. इसके इस्तेमाल के माध्यम से किसी छुपे हुए मक़सद को हासिल करने को लेकर चिंता पहले से ही जताई जा रही है. क्योंकि ऐप को डेवेलप करने वाली टीम की योजना है कि इस ऐप में एक अलग सेक्शन, आरोग्य सेतु मित्र बना कर इसे टेलेमेडिसिन, ई-फार्मेसी और घर में ही जांच के काम के लिए प्रयोग किया जा सकता है.

नीति आयोग के अधिकारियों ने कहा है कि कोविड-19 की महामारी के बाद आरोग्य सेतु ऐप का कोई उपयोग नहीं रह जाएगा. लेकिन, ये ऐप नेशनल हेल्थ स्टैक (NHS) के निर्माण की आधारशिला रखेगा.

‘द केन’ की एक रिपोर्ट कहती है कि जिस तरह भीम (BHIM) ऐप यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) का स्टार्टर ऐप था. उसी तरह, आरोग्य सेतु ऐप भी नेशनल हेल्थ स्टैक (NHS) का स्टार्टर ऐप होगा. नेशनल हेल्थ स्टैक, राष्ट्रीय स्वास्थ्य से जुड़े तमाम इलेक्ट्रॉनिक आंकड़ों का संग्रह होगा. जिसमें नागरिकों के स्वास्थ्य कवरेज से लेकर उनके दावों और निजी स्वास्थ्य के आंकड़ों का भी संग्रह किया जाएगा. एनएचएस के इन आंकड़ों को तीसरे पक्ष भी एपीआई (API) के माध्यम से प्राप्त कर सकेंगे.

अब चूंकि भारत में अभी भी निजी डेटा के संरक्षण का कोई क़ानून नहीं है. ऐसे में आरोग्य सेतु ऐप को इसके कोविड-19 से संबंधित आंकड़े जुटाने के मूल लक्ष्य से आगे व्यापक ऐप बनाना ठीक नहीं होगा. अभी ये स्पष्ट नहीं है कि नेशनल हेल्थ स्टैक (NHS) का सहमति मंच कैसे काम करेगा. और क्या उसमें ये सुनिश्चित करने के तमाम सुरक्षा उपाय होंगे, जिनसे किसी के संवेदनशील निजी डेटा, जैसे कि स्वास्थ्य के रिकॉर्ड, दवाओ के प्रेसक्रिप्शन और अस्पताल से डिस्चार्ज के आंकड़ों की दुरुपयोग से सुरक्षा की जा सके. जैसे-जैसे भारत में कोविड-19 के मरीज़ों की संख्या बढ़ रही है. वैसे-वैसे ये और ज़रूरी होता जा रहा है कि आरोग्य सेतु ऐप अपनी इन ख़ामियों को दूर करे. ताकि उसका लोगों के स्वास्थ्य की निगरानी में बेहतर उपयोग किया जा सके. न कि वो अन्य सेवाओं को इससे जोड़ने में अपनी शक्ति व्यर्थ करे. आज ज़रूरत इस बात की है कि सरकार इस ऐप के प्रभावशाली होने का सबूत पेश करे. तभी नागरिकों और फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कर्मियों के बीच भरोसा क़ायम हो सकेगा.

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