Author : K. V. Kesavan

Published on Oct 05, 2020 Updated 0 Hours ago

हिंद-प्रशांत में बिगड़ती सुरक्षा स्थिति को देखते हुए वे आबे की,'मुक्त एवं निर्बाध हिंद-प्रशांत' रणनीति का ही अनुसरण करेंगे तथा भारत, ऑस्ट्रेलिया तथा आसियान से संबंध मज़बूत करेंगे.

सुगा हैं जापान के नए प्रधानमंत्री मगर आबे की नीतियां जारी रहने के आसार

लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी में (एलडीपी) राष्ट्रपति का चुनाव संपन्न हो गया और उम्मीद के मुताबिक शिन्ज़ो आबे की जगह सुगा योशिहिदे पार्टी के मुखिया निर्वाचित हो गए. आबे अब पूर्व प्रधानमंत्री एवं पार्टी के पूर्व अध्यक्ष हो गए. सुगा भले ही आखिरी क्षण तक छुपे रूस्तम रहे मगर अब वे जापान की राजनीति में केंद्रीय शख़्सियत बन गए हैं. तकनीकी रूप में वे सितंबर 2021 तक सिर्फ एक वर्ष में आबे के बाकी कार्यकाल को पूरा करने के लिए निर्वाचित हुए हैं. इस वजह से कुछ टिप्पणीकार उन्हें कामचलाउ प्रधानमंत्री बता रहे हैं. फिर भी चुनाव के दौरान जिस प्रकार मुख्यधारा के पांच बड़े धड़ों का उनके लिए जबर्दस्त समर्थन दिखा है उससे स्पष्ट कि यदि वर्तमान गुटों की अचानक राय नहीं बदली तो सुगा 2021 के बाद भी पद पर बरकरार रह सकते हैं.

यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि राष्ट्रपति पद के दो अन्य दावेदारों शिगेरू इशिबा (63) एवं फुमियो किशिदा (63) के मुकाबले 71 वर्षीय सुगा कहीं वरिष्ठ हैं मगर वे दोनों पहले अपने हाथ में रहे महत्वपूर्ण मंत्रालयों के कारण शायद अधिक लोकप्रिय हैं. उदाहरण के लिए पूर्व रक्षा मंत्री इशिबा को जापान की रक्षा नीति, चीन एवं जापान-अमेरिका सुरक्षा गठबंधन एवं उत्तरी कोरिया संबंधी अपने विचारों के लिए बख़ूबी जाना जाता है. वे साल 2012 एवं 2018 में पार्टी अध्यक्ष पद के लिए आबे के विरूद्ध लड़े चुनाव में विफल रहे हैं. साल 2012 में अध्यक्ष पद के चुनाव में उन्हें आबे से भी अधिक प्रचलित मत प्राप्त हुए थे. किशिदा की बात करें तो आबे की अगुआई में वे पांच साल विदेश मंत्री रहे हैं. उसके बाद उन्हें पार्टी के मामलों के प्रबंध के लिए उसके नीति प्रमुख के रूप में शामिल कर लिया गया. यह बात सब जानते हैं कि आबे पहले किशिदा को ही अपने बाद सरकार की बागडोर संभालने के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे लेकिन फिर सुगा को तरजीह देने के लिए उन्होंने अचानक अपनी राय बदल ली.

सुगा का पार्टी के भीतर अपना कोई गुट नहीं है. उनकी चमत्कारी नेता की छवि भी नहीं है; न ही सार्वजनिक जीवन में उनका कोई पूर्वज बहुत प्रभावशाली रहा है. देश की तेज़ी से बदलती आर्थिक, सामाजिक एवं रणनीतिक आवश्यकताओं के मध्य भविष्य में एलडीपी के आगे बढ़ने की युक्तियों के प्रति अपनी ही महत्वाकांक्षी दृष्टि उन्होंने विकसित की है.

आबे द्वारा अपनी पसंद बदलने का एक कारण सुगा का अपने प्रति लंबे समय तक वफ़ादार बना रहना भी रहा. सुगा का पार्टी के भीतर अपना कोई गुट नहीं है. उनकी चमत्कारी नेता की छवि भी नहीं है; न ही सार्वजनिक जीवन में उनका कोई पूर्वज बहुत प्रभावशाली रहा है. देश की तेज़ी से बदलती आर्थिक, सामाजिक एवं रणनीतिक आवश्यकताओं के मध्य भविष्य में एलडीपी के आगे बढ़ने की युक्तियों के प्रति अपनी ही महत्वाकांक्षी दृष्टि उन्होंने विकसित की है. आबे के पहले प्रधानमंत्री काल (2006-7) में उन्होंने आंतरिक मामलों के काबीना मंत्री के रूप में देश की सेवा की. आबे जब साल 2008-2012 के बीच राजनीतिक रूप में उपेक्षित थे सुगा ने तक भी कंधे से कंधा मिला कर उनका साथ दिया. साल 2012 के चुनाव में एलडीपी की जबर्दस्त जीत ने आबे को दोबारा प्रधामंत्री के रूप में स्थापित किया और उन्होंने सुगा को अपना चीफ कैबिनेट सेक्रेट्री (सीसीएस) नियुक्त किया. सीसीएस का पद प्रधानमंत्री के बाद सबसे अधिक महत्वपूर्ण आंका जाता है. सुगा ने उस पद को लगातार साढ़े सात साल से भी अधिक समय तक संभाला और जापान की युद्धोपरांत राजनीति में सबसे अधिक समय तक चीफ कैबिनेट सेक्रेट्री रहने का इतिहास बनाया.

सीसीएस के रूप में उन्होंने विभिन्न मंत्रालयों के साथ नीतिगत समन्वय किया जिससे उन्हें प्रशासन के कामकाज की विहंगम दृष्टि प्राप्त हुई. इस दौरान आमने-सामने काम करवाने के लिए उनका जापान की शक्तिशाली नौकरशाही से भी पाला पड़ा. इसके बावजूद सुगा की जनछवि लोक-लुभावन नेता के बजाय परदे के पीछे सूझबूझ और मेहनत से चुपचाप जुटे रहने वाली शख्सियत बने रहने की है. सुगा का यह रूप उनके सीसीएस कार्यकाल में आबे की नीतियां पूरे मनोयोग से लागू करते समय बख़ूबी उजागर हुआ.

आबे की नीतियों के लिए प्रतिबद्धता ही सुगा के नेतृत्व में गठित नए प्रशासन की भी वरीयता रहेगी. उनके मंत्रिमंडल को अनेक विश्लेषक ‘निरंतर मंत्रिमंडल” बता भी चुके हैं. उन्होंने पूर्ववर्ती आबे मंत्रिमंडल के आठ मंत्रियों को उनके पुराने विभागों के साथ बरकरार रखते हुए सात मंत्रियों को नए विभाग सौंपे हैं. उन्होंने आबे के छोटे भाई किशी नोबुओ सहित सिर्फ पांच नए लोगों को मंत्री बनाया है. नोबुओ को रक्षा मंत्रालय सौंपा है. मंत्रिमंडल के सुचारू संचालन के लिए असो तोरू, मोटेगी तोशीमित्सु, कोनो तारो और कातो कात्सुनोबू जैसे दिग्गज भी मंत्री बनाए गए हैं.

निर्वाचित होने के बाद जारी पहले बयान में सुगा ने आबे की नीतियों को बरकरार रखने वाले मंत्रिमंडल के रूप में अपनी सरकार की पहचान बनाने तथा उसके तहत क्षत-विक्षत अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित और कोरोना वायरस पर काबू पाने के वास्ते हर संभव प्रयास करने के लिए दुतरफा नीतियां अपनाने की घोषणा की है. सुगा ने मंदी को भगाने तथा आर्थिक वृद्धि की गति तेज़ करने संबंधी मिलेजुले उपायों वाली ‘आबेनॉमिक्स’ सहित आबे की नीतियां ही लागू करने का संकल्प किया. आबे सरकार द्वारा गिरती अर्थव्यवस्था को संभालने तथा पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पूर्वघोषित आर्थिक पैकेज को और व्यापक करने को उन्होंने नए उपाय अपनाने की भी घोषणा की. राष्ट्रीय राजस्व का जहां तक सवाल है वे यह बात कष्टपूर्वक ही सही अच्छी तरह समझते हैं कि सरकार को अगले करीब दस साल के दौरान उपभोग कर की दर 10 प्रतिशत से अधिक बढ़ानी ही पड़ेगी.

सुगा ने खुद ही यह माना है कि अर्थव्यवस्था को उबारने के साथ—साथ कोरोना वायरस को काबू करना कड़ी चुनौती है. यह कहते हुए इस तथ्य की अनदेखी नहीं की जा सकती कि कोविड19 संकट से जापान अपेक्षाकृत बेहतरीन ढंग से निपटा है. इसका सबूत है संक्रमण के कम मामले, लघु मृत्यु दर तथा महामारी से उबर कर ठीक होने वालों की उच्च दर. फिर भी चिंताजनक यह है कि जुलाई से हालात बिगड़ रहे हैं, विशेषकर टोक्यो जैसे शहरी क्षेत्रों में जहां आवाजाही में रियायतों के कारण संक्रमितों की संख्या में बहुत तेज़ी आ गई है.

आबे के समान ही वे इस बात का ध्यान रखेंगे कि जापान के चीन से संबंध अमेरिका को नाराज़ किए बग़ैर और राज्यक्षेत्र की संप्रभुता एवं नौवहन सुरक्षा से समझौता किए बग़ैर स्थिर हो सकें.

जापान के परराष्ट्र संबंधों के क्षेत्र में सुगा ने कहा है कि वे अमेरिका से सुरक्षा गठबंधन को बरकरार रखने की पारंपरिक जापानी दृष्टि के इर्द गिर्द ही अपनी विदेश नीति बनाएंगे.

वे ज़ाहिर है कि नवंबर में अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव का इंतज़ार करेंगे और उसके परिणाम के आधार पर ही अमेरिका से जापान के संबधों में आवश्यक कतर ब्योंत करेंगे. आबे के समान ही वे इस बात का ध्यान रखेंगे कि जापान के चीन से संबंध अमेरिका को नाराज़ किए बग़ैर और राज्यक्षेत्र की संप्रभुता एवं नौवहन सुरक्षा से समझौता किए बग़ैर स्थिर हो सकें. हिंद-प्रशांत में बिगड़ती सुरक्षा स्थिति को देखते हुए वे आबे की,’मुक्त एवं निर्बाध हिंद-प्रशांत’ रणनीति का ही अनुसरण करेंगे तथा भारत, आॅस्ट्रेलिया तथा आसियान से संबंध मज़बूत करेंगे.

अंतत: अपने लगातार प्रयासों के बावजूद आबे जापान के संविधान को संशोधित कराने की मंशा पूरी करने में नाकाम रहे तथा इस पर अमल का ज़िम्मा अपने उत्तराधिकारी पर छोड़ दिया. हालांकि सुगा इस विषय में अभी तक कुछ नहीं बोले मगर कुछ विश्लेषकों का अनुमान है कि वे आरंभ में ही इस विषय पर आबे की तरह ज़ोर नहीं देंगे. वे, निचले सदन के चुनाव पूरे हो जाने का इंतज़ार करेंगे, भले ही वो कभी भी हो पाएं.

लेकिन जापान की जनता को सबसे अधिक चिंतित करने वाला प्रश्न है: सुगा प्रतिनिधि सदन को भंग करके नए चुनाव कब करवाएंगे? वर्तमान संसद की मियाद सितंबर-2021 तक है मगर सुगा को सदन भंग करने का समय तय करने का विशेषाधिकार है और उस बारे में फैसला पार्टी के पदाधिकारियों तथा धड़ों के नेताओं से लंबे सलाह- मशवरे पर निर्भर करेगा.

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