Published on Oct 22, 2020 Updated 4 Hours ago

जीआईएस तकनीक के ज़रिए प्राप्त किए गए सूचनागत और विषय आधारित नक़्शों को शहरों की जानकारियों वाले वेब-पोर्टल से जोड़कर नागरिकों की भागीदारी और संचार के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. 

स्मार्ट सिटी और जीआईएस तकनीक: महामारी के दौरान सामने आयी तकनीक की उपयोगिता

भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS), जिसका इस्तेमाल भारत में आमतौर पर स्मार्ट सिटी कॉरपोरेशन द्वारा कभी-कभार यानी विशेष परिस्थितियों में ही किया जाता था, वह कोविड-19 महामारी के दौरान संक्रमण का पता लगाने और आम नागरिकों को सुरक्षित रखने में, बुनियादी रूप से महत्त्वपूर्ण साबित हुई है. इन प्रणालियों ने बहुत तेज़ी से खुद को अति-आवश्यक माध्यमों और तकनीक के रूप में रूपांतरित किया है, ताकि शहरों में कोरोनवायरस के कारण होने वाली अभूतपूर्व और आपातकालीन स्थितियों का आकलन किया जा सके और समय रखते उन पर नियंत्रण पाया जा सके. इसके अलावा इन तकनीकों को जवाबी कार्रवाई करने और समस्याओं के लिए रणनीति बनाने की दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण माना गया है. भारत भर के शहरों में यह देखा गया कि जीआईएस तकनीक का इस्तेमाल कर डेटा के ज़रिए संक्रमित इलाकों और मामलों के ‘हीट मैप’ बनाए गए ताकि यह पता लगाया जा सके कि संक्रमण के मामले सबसे अधिक संख्या में किन इलाकों में मौजूद हैं. इसके अलावा भविष्य की गणना करने वाली तकनीकों का उपयोग कर, ‘बफ़र ज़ोन’ भी चिन्हित किए गए.

आमतौर पर, स्मार्ट सिटी कॉरपोरेशन यानी उच्च तकनीक पर आधारित शहरी व्यवस्था में ‘इंटरनेट ऑफ थिंग्स’ (Internet of Things) आधारित एप्लिकेशन स्थापित किए जाते हैं. इनमें सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (Information and Communication Technology, ICT) द्वारा संचालित, स्वास्थ्य रिकॉर्ड, इंटेलिजेंट ट्रांसपोर्ट सिस्टम यानी स्मार्ट परिवहन व्यवस्था आदि आते हैं, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य, ट्रैफिक प्रबंधन और शासन से संबंधित सेवाओं तक नागरिकों की पहुंच को सीधा और सक्षम बनाते हैं. जीआईएस तकनीक ने स्मार्ट सिटी कॉरपोरेशन  को कई तरह की सुविधाएं मुहैया करवाई हैं. जैसे, रियल टाइम डेटा एनालिटिक्स (real time data analytics) यानी वास्तविक समय के अनुरूप आंकड़े उपलब्ध करवाकर, उसके हिसाब से आकलन करने की सुविधा, रिमोट एसेट्स (remote assets) की निगरानी यानी लोगों की गैर मौजूदगी में तकनीक और उपकरणों द्वारा मशीनों और संसाधनों की निगरानी, निर्णय संबंधी सहयोग, और आंकड़ों को बेहतर व सरल ढंग से प्रस्तुत करने में सहयोग देने का काम किया है. स्मार्ट सिटी कॉरपोरेशन ने जीआईएस-सक्षम डैशबोर्ड के ज़रिए डेटा के विज़ुअलाइज़ेशन यानी उसे तस्वीरों और ग्राफ के रूप में प्रस्तुत करने और इस डेटा के आकलन के ज़रिए आंकड़ों को प्रासंगिक बनाने का वातावरण विकसित किया. यह डैशबोर्ड (यानी ऐसे तकनीकी पटल जो आंकड़ों को देखने व समझने का आसान और सरल मंच उपलब्ध कराते हों) अधिकारियों को संक्रमण के मामलों की सक्रिय पकड़, घरों में क्वारंटीन में रह रहे लोगों की जानकारी व निगरानी, मामलों के क्षेत्रवार और उम्रवार विश्लेषण, वास्तविक समय में आकड़ों के विश्लेषण और उन क्षेत्रों की पहचान करने में मदद करते हैं, जहां संक्रमण फैलने का ख़तरा अधिक हो. जीआईएस तकनीक द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के विश्लेषण और विज़ुअलाइज़ेशन के तहत, डैशबोर्ड पर स्थित मानचित्रों को ज़मीनी स्तर पर इकट्ठा किए गए डेटा के साथ रेखांकित किया जाता है. इस तरह, भौगोलिक सूचना प्रणाली से जुड़ी तकनीकों ने कोविड-19 से निपटने के लिए स्मार्ट सिटी कॉरपोरेशन को तकनीक और संस्थागत समन्वय का सही संतुलन प्राप्त करने में मदद की है.

भारत भर के शहरों में यह देखा गया कि जीआईएस तकनीक का इस्तेमाल कर डेटा के ज़रिए संक्रमित इलाकों और मामलों के ‘हीट मैप’ बनाए गए ताकि यह पता लगाया जा सके कि संक्रमण के मामले सबसे अधिक संख्या में किन इलाकों में मौजूद हैं. इसके अलावा भविष्य की गणना करने वाली तकनीकों का उपयोग कर, ‘बफ़र ज़ोन’ भी चिन्हित किए गए.  

जीआईएस तकनीक का सुदृढ़ इस्तेमाल, नियंत्रण यानी कंटेनमेंट, क्वारंटीन प्रबंधन और आम लोगों के बीच, अनिवार्य चीज़ों की नियमित आपूर्ति बनाए रखने के लिए, लगभग सभी स्मार्ट नगर निगमों ने किया. इसके लिए लगभग हर बड़े शहर में, जीआईएस डैशबोर्ड से लैस कोविड-19 वॉर रूम की स्थापना की गई. ये जीआईएस डैशबोर्ड ऐसे इलाकों की खोज करने का काम करते थे, जहां संक्रमण तेज़ी से फैल रहा हो यानी संक्रमित मामले या पॉज़िटिव केस बढ़ रहे हों. इसके अलावा यह डैशबोर्ड कोविड-19 से ठीक हुए लोगों की संख्या पर नज़र रखने और उन्हें दर्ज करने का काम भी करते हैं. इसके बाद इन आंकड़ों और आकलनों को संबंधित शहरों के एंड्रॉइड व आईओएस ऐप के साथ एकीकृत किया गया. जीआईएस तकनीक से लैस डैशबोर्ड और एप्लिकेशन के एकीकरण ने नागरिकों और अधिकारियों को तकनीक द्वारा दर्ज किए गए मामलों का जनसांख्यिकीय (demographic) और स्थलाकृतिक (topographic) विश्लेषण उपलब्ध कराया और अपने इलाकों से संबंधित सटीक जानकारी का लाभ उठाने में सक्षम बनाया. उदाहरण के लिए, हर दिन अपडेट होने वाले इन आंकड़ों के आधार पर आगरा के स्मार्ट सिटी कॉरपोरेशन ने आईजीआईएस प्लेटफॉर्म (IGiS platform) पर एक डैशबोर्ड विकसित किया है. यह डैशबोर्ड, स्वदेशी तकनीक पर आधारित है, और भौगोलिक सूचना प्रणाली द्वारा प्राप्त किए गए नक्शों, तस्वीरों, फोटोग्राममेट्री यानी इलैक्ट्रोमेगनेटिक किरणों के प्रसंस्करण के ज़रिए वातावरण से ली गई तस्वीरों के साथ वास्तविक समय के आंकड़ों को जोड़कर, निष्कर्ष प्रस्तुत करती है.

पिंपरी चिंचवाड़ स्मार्ट सिटी कॉरपोरेशन द्वारा विकसित हेल्थकेयर डैशबोर्ड जीआईएस तकनीक से लैस है. स्वास्थ्य संबंधी मामलों की देखभाल के लिए विकसित इस डैशबोर्ड के ज़रिए कंटेनमेंट ज़ोन और क्वारंटीन में रह रहे लोगों के घरों की स्थान-आधारित (geo-tagged) सूचना उपलब्ध कराई जा सकती है. इस जानकारी का इस्तेमाल स्वास्थ्य विभाग ने विशेष कार्य बलों को उन जगहों पर भेजने के लिए भी किया जहां ‘डोर-टू-डोर’ यानी घर-घर जाकर लोगों को जागरूक बनाने और संक्रमित लोगों के संपर्क सूत्रों की पहचान की आवश्यकता थी. संक्रमण को फैलने से रोकने की दिशा में, इस भौगोलिक जानकारी ने क्षेत्रों की पहचान करने और यह निर्धारित करने में मदद की, कि संक्रमण के समूह कहां पनप रहे हैं और कौन से इलाके कोविड के क्लस्टर के रूप में सामने आ रहे हैं, ताकि इन इलाकों को अलग कर उन्हें स्वस्थ आबादी से दूर किया जा सके.

जीआईएस तकनीक का सुदृढ़ इस्तेमाल, नियंत्रण यानी कंटेनमेंट, क्वारंटीन प्रबंधन और आम लोगों के बीच, अनिवार्य चीज़ों की नियमित आपूर्ति बनाए रखने के लिए, लगभग सभी स्मार्ट नगर निगमों ने किया. इसके लिए लगभग हर बड़े शहर में, जीआईएस डैशबोर्ड से लैस कोविड-19 वॉर रूम की स्थापना की गई. 

बेंगलुरु ने कोविड-19 के मामलों को ट्रैक करने के लिए जीआईएस डेटा का उपयोग किया. अप्रैल 2020 तक  बेंगलुरु पहला भारतीय स्मार्टकोरपोरेशन बन गया जो कोविड-19 के रोज़ाना  सामने आ रहे नए मामलों को लेकर डेटा प्रकाशित कर रहा था. जीआईएस डैशबोर्ड और सिटी सर्विलांस डैशबोर्ड शहर के हर कोने से जुड़े थे. डैशबोर्ड के लिए तैयार किए गए जीआईएस नक्शे, जनसांख्यिकी, स्थलाकृति और भूमि उपयोग से जुड़े आंकड़ों और मापदंडों के ज़रिए तैयार किए गए थे. इसके बाद उन्हें एकीकृत किया गया और आंकड़ों के विश्लेषण (data analytics) के ज़रिए उन्हें महत्वपूर्ण जानकारी निकाली गई.

यह दिलचस्प है, जीआईएस तकनीक का उपयोग कीटाणु रहित स्वच्छता (sanitisation) सुनिश्चित करने की प्रक्रिया में भी किया गया. जीआईएस के लेयरिंग डेटा को छिड़काव संबंधी गतिविधियों के साथ संबद्ध कर इस काम को पूरा किया गया. इसके ज़रिए उन क्षेत्रों के अधिकारियों को वास्तविक समय में इनपुट प्रदान किया गया, जहां अभी तक सैनिटाइज़ नहीं हुआ है, या सैनिटाइज़ेशन की प्रक्रिया से अछूते रह गए हैं. साथ ही सैनिटाइज़ किए जा चुके क्षेत्रों के जीआईएस नक्शे को ऐप्स पर अपडेट किया गया ताकि नागरिकों और अधिकारियों को इस बारे में जागरूक किया जा सके. राउरकेला के स्मार्ट सिटी कॉरपोरेशन ने ड्रोन-आधारित तकनीक का उपयोग कर कंटेनमेंट ज़ोन यानी नियंत्रित क्षेत्रों में अनावश्यक मानव गतिविधि को रोकने के लिए कीटाणुनाशक के छिड़काव का सहारा लिया. ड्रोन तकनीक का इस्तेमाल करने वाली टीमों ने इमारतों और इलाकों के जीआईएस नक़्शे का इस्तेमाल करने के अलावा दृश्य सर्वेक्षण करने के लिए उपग्रहों द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाली तस्वीरों का भी उपयोग किया. सूरत, तिरुप्पुर, सेलम और पटना के स्मार्ट सिटी कॉरपोरेशन ने भी इस तरह के जीआईएस उपकरणों का उपयोग किया है.

संक्रमण को फैलने से रोकने की दिशा में, इस भौगोलिक जानकारी ने क्षेत्रों की पहचान करने और यह निर्धारित करने में मदद की, कि संक्रमण के समूह कहां पनप रहे हैं और कौन से इलाके कोविड के क्लस्टर के रूप में सामने आ रहे हैं, ताकि इन इलाकों को अलग कर उन्हें स्वस्थ आबादी से दूर किया जा सके. 

आवश्यक वस्तुओं की निर्बाध आपूर्ति, लॉकडाउन के दौरान एक बड़ी चुनौती थी. स्मार्ट सिटी निगमों ने जीआईएस तकनीक का उपयोग करके दवाओं, किराने के सामान और पके हुए भोजन की डिलीवरी का प्रबंध किया. जीआईएस आधारित निगरानी के ज़रिए, शहर के उन इलाकों की पहचान की जा सकती है, जो आवश्यक वस्तुओं की वितरण प्रणाली और आपूर्ति श्रंखलाओं की पहुंच से दूर हैं या किसी कारणवश अछूते रह गए हैं. इसके अलावा यह तकनीक उन विक्रेताओं के तय स्थानों की मैपिंग को भी सक्षम बनाती है, जो ज़रूरी सामान की आपूर्ति कर सकते हैं. आगरा स्मार्ट सिटी कॉरपोरेशन ने नागरिकों की दैनिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए, उपलब्ध विक्रेताओं की जानकारी वाले एक पोर्टल का निर्माण किया ताकि नागरिक अपने आसपास मौजूद सबसे नज़दीकी विक्रेता तक पहुंच सकें और उसका संपर्क उनके पास उपलब्ध हो. इस तरह की जानकारी जीआईएस संपत्ति सर्वेक्षण के दौरान जुटाई जा चुकी थी और यह विवरण पहले ही एकत्र किए जा चुके थे, इसलिए इस प्रणाली को तैयार करने और लागू करने में कोई देरी नहीं हुई.

रायपुर स्मार्ट सिटी कॉरपोरेशन, ने अपने इस मिशन के साथ कि शहर में कोई भी खाली पेट नहीं सोए, ज़रूरतमंदों और शहरी गरीबों को पका हुआ भोजन उपलब्ध कराने के लिए जीआईएस सक्षम वॉर रूम, हेल्पलाइन और वितरण केंद्रों की स्थापना की. वितरण केंद्र, स्थान के आधार पर चिन्हित किए गए (geo-tagged) और जीआईएस तकनीक इस्तेमाल कर उनकी मौजूदगी का एक नक़्शा तैयार किया गया. डैशबोर्ड पर आधारित इस तकनीक को एक ऐप के साथ एकीकृत कर, मदद करने वालों और मदद के ज़रूरतमंद लोगों को जोड़ने का काम किया जा सका. चेन्नई और भुवनेश्वर में, जीआईएस का उपयोग करके किए गए स्थानिक विश्लेषण ने दवाओं की होम डिलीवरी में सहायता की. सरकार या निजी इकाईयों की वितरण प्रणाली जिन इलाकों तक नहीं पहुंच पा रही थी, वहां के बारे में संबंधित ज़ोनल अधिकारियों को जानकारी दी गई ताकि ज़रूरी सहायता पहुंचाई जा सके और वितरण संबंधी आम लोगों की शिकायतों का निवारण किया जा सके.

यह दिलचस्प है, जीआईएस तकनीक का उपयोग कीटाणु रहित स्वच्छता (sanitisation) सुनिश्चित करने की प्रक्रिया में भी किया गया. जीआईएस के लेयरिंग डेटा को छिड़काव संबंधी गतिविधियों के साथ संबद्ध कर इस काम को पूरा किया गया. 

ये सभी उदाहरण इस बात पर ज़ोर देते हैं कि जीआईएस तकनीक से जुड़े अन्य टूल और तकनीकें, शहरी स्तर पर योजनाएं बनाने और उनके क्रियान्वयन, प्रबंधन और शहरी प्रशासन को लेकर अत्यंत उपयोगी साबित हो सकती हैं. ऐसे में महामारी के बाद भी इन्हें इस्तेमाल कर इन्हें स्थाई रूप दिया जा सकता है. जीआईएस तकनीक से जुड़े अन्य एप्लीकेशन जैसे  नेटवर्क विश्लेषण का प्रयोग, शहर की स्वच्छता संबंधी योजनाओं, और पानी व जल निकासी नेटवर्क को तैयार करने के लिए किया जा सकता है. जीआईएस-आधारित मूल-गंतव्य विश्लेषण तकनीक के ज़रिए, ट्रैफिक जाम से बचने के लिए एकीकृत यातायात प्रबंधन प्रणाली (आईटीएमएस) स्थापित की जा सकती है. साथ ही इस तकनीक के ज़रिए, आवश्यक वस्तुओं व सेवाओं की आपूर्ति श्रृंखलाओं के प्रबंधन का काम भी किया जा सकता है. इन तकनीकों का इस्तेमाल बड़ी संख्या में स्थानीय उद्यमियों के लिए नए अवसर पैदा कर सकता है. सूचनात्मक और विषयगत मानचित्रों की रूपरेखा और शहर के पोर्टल के साथ उनका एकीकरण, सार्वजनिक भागीदारी और संचार को बढ़ा सकता है. यह नागरिकों और सरकारी प्रशासन को एक पटल पर लाने का काम कर सकता है. कोविड-19 की महामारी ने शहरी योजनाओं में मौजूद कई ख़ामियां उजागर की हैं, लेकिन साथ ही जीआईएस जैसी तकनीकों ने इससे होने वाले नुकसान की रोकथाम और इन समस्याओं के नियंत्रण में जीआईएस की भूमिका और उसकी क्षमता को भी उजागर किया है. इस रूप में इस प्रणाली को औपचारिक रूप दिया जा सकता है, और महामारी के बाद आने वाले सालों में शहरी विकास और नागरिक कल्याण के लिए इन तकनीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है.

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