यह संक्षिप्त सार यूक्रेन संकट: कारण और संघर्ष का एक हिस्सा है.
द्वितीय विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप साल 1951 के शरणार्थी अभिसमय की परिकल्पना की गई, जिसे अस्तित्व में आए 70 साल पूरे हो गए हैं. रूस ने 24 फ़रवरी को यूक्रेन पर हमला कर दिया, जिसके बाद से यूरोप एक बार फिर से शरणार्थी संकट का सामना कर रहा है. रूस द्वारा यूक्रेन की लोकतांत्रिक सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए उसके प्रमुख शहरों पर कब्ज़ा जमाने के प्रयास ने दशक के सबसे बड़े शरणार्थी संकट को जन्म दिया है.
रूस द्वारा यूक्रेन की लोकतांत्रिक सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए उसके प्रमुख शहरों पर कब्ज़ा जमाने के प्रयास ने दशक के सबसे बड़े शरणार्थी संकट को जन्म दिया है.
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा यूक्रेन में नेटो की मौजूदगी, चाहे वह सैन्य ढांचे के रूप में हो या रूसी सीमाओं के निकट सैन्य बलों के रूप में हो, को हटाने के प्रयास में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोपीय धरती पर अब तक का सबसे बड़ा युद्ध शुरू हो गया है. पिछले एक हफ़्ते में क़रीब 660,000 शरणार्थी पहले से ही यूक्रेन के पड़ोसी राज्यों में पहुंच चुके हैं, जबकि यूक्रेन के कई अन्य नागरिक अभी भी चेक गणराज्य, रोमानिया, हंगरी, माल्डोवा, पोलैंड और स्लोवाकिया जैसे मध्य यूरोपीय देशों में शरण मांग रहे हैं.
शरणार्थियों को लेकर पोलैंड की स्थिति
रिपोर्ट बताती हैं कि दूसरे यूरोपियन देशों की तुलना में पोलैंड में सबसे ज़्यादा यूक्रेनी शरणार्थियों का आगमन हुआ है. यूक्रेन के लोग आठ सीमा बिंदुओं से पोलैंड पहुंचे हैं, जिनमें से, कोरचोवा- क्राकिवेट्स और मेड्यका जैसी मुख्य सीमा बिंदुओं से बहुत बड़ी संख्या में महिलाओं और बच्चों ने देश में प्रवेश किया है. पोलिश अधिकारियों ने सीमा प्रतिबंधों में ढील दी है, और यूक्रेनी शरणार्थियों को कोरोना जांच रिपोर्ट दिखाने से भी छूट प्रदान की है. जिन लोगों के पास वैध दस्तावेज़ नहीं हैं, उन्हें स्थिति की गंभीरता को देखते हुए सुरक्षित रास्ता दिया गया है. हालांकि, पोलिश सरकार के इस कदम को देखते हुए कई स्वास्थ्य चिंताएं पैदा हुई हैं जबकि यूक्रेन में फरवरी महीने में कोरोना के मामलों में आश्चर्यजनक बढ़ोतरी देखी गई थी, और आंकड़ों के मुताबिक देश भर में कराए गए कोरोना जांच परीक्षणों में 60 फीसदी संक्रमण के मामले थे.
साइरेत सीमा रेखा पर बड़ी संख्या में महिलाओं एवं बच्चों की भीड़ मौजूद है. राष्ट्रपति द्वारा 18 से 60 साल के पुरुषों को भर्ती किए जाने के बाद फैसले के कारण यूक्रेनी सरकार ने पुरुष शरणार्थियों पर देश से बाहर जाने पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिसके कारण महिलाएं और बच्चे अकेले पड़ गए हैं.
पोलिश नागरिक और रेड क्रॉस जैसी संस्थाएं बड़ी तन्मयता के साथ राहत सामग्रियों के वितरण कार्य जुटी हुई हैं, जहां यूक्रेन और पोलैंड की सीमा रेखा के पास रेड क्रॉस स्टेशन बनाए गए हैं और वहां गर्म कपड़ों, कंबल और पानी के रूप में ज़रूरी सामान लोगों को मुहैया कराया जा रहा है. पोलिश रेड क्रॉस यूक्रेनी शरणार्थियों की सहायता के लिए धन जमा करने का प्रयास कर रहा है.
रोमानिया का ख़ामोश रवैया
पिछले एक हफ़्ते के बीच रोमानिया सरकार द्वारा जारी किए आंकड़ों से पता चलता है कि रूसी आक्रमण के कारण 67000 यूक्रेनी शरणार्थियों ने रोमानिया में आश्रय लिया है. उदाहरण के लिए, साइरेत सीमा रेखा पर बड़ी संख्या में महिलाओं एवं बच्चों की भीड़ मौजूद है. राष्ट्रपति द्वारा 18 से 60 साल के पुरुषों को भर्ती किए जाने के बाद फैसले के कारण यूक्रेनी सरकार ने पुरुष शरणार्थियों पर देश से बाहर जाने पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिसके कारण महिलाएं और बच्चे अकेले पड़ गए हैं. हालांकि, रोमानिया की सरकार ने साइबर सुरक्षा की गारंटी देकर यूक्रेन की सरकार के साथ एकजुटता दिखाई है, लेकिन देश से आने वाले शरणार्थियों को आवास की सुविधा मुहैया कराने में बहुत सक्रिय नहीं रहा है. बल्कि, सोशल मीडिया के माध्यम से रोमानियाई नागरिक अपने पड़ोसियों की मदद कर रहे हैं. लोगों ने ‘यूनिटी पेंट्रु उक्रेना’ (या यूक्रेन के लिए एकजुट) नाम से एक फेसबुक ग्रुप बनाया है, और इसमें पहले से ही 242,000 से अधिक सदस्य हैं, जिनमें वॉलंटियर्स, डोनर्स और यूक्रेनियन शामिल हैं, जो मदद की तलाश में इधर से उधर भटक रहे हैं.
स्लोवाकिया ने खोले अपने घरों के दरवाज़े
स्लोवाकिया-यूक्रेन सीमा रेखा (97 किमी) यूक्रेन-पोलैंड सीमा (535 किमी) और यूक्रेन-रोमानिया सीमा (600 किमी) की तुलना में सबसे छोटी है. लेकिन इसके बावजूद यहां भारी संख्या में शरणार्थियों की भीड़ जुटी हुई है क्योंकि यूक्रेन और स्लोवाकिया के बीच वीज़ा समझौता होने के चलते दोनों देश एक दूसरे के यहां 90 दिनों तक रह सकते हैं. आंकड़ों के मुताबिक 24 फरवरी के बाद से लगभग 26000 यूक्रेनी नागरिक स्लोवाकिया चले गए हैं.
केवल वही यूक्रेनी नागरिक स्लोवाकिया में प्रवेश कर सकते हैं, जिनके पास वैध बायोमेट्रिक पासपोर्ट है. उदाहरण के लिए, स्लोवाकिया के गृह मंत्रालय ने सीमा रेखा पर बिना बायोमेट्रिक पासपोर्ट के यूक्रेनी नागरिकों को प्रवेश की अनुमति दी है लेकिन उन्हें राष्ट्रीय पासपोर्ट जैसे व्यक्तिगत दस्तावेज़ों को दिखाने के साथ-साथ व्यक्तिगत रूप से मूल्यांकन के लिए तैयार रहना होगा. चूंकि सीमा रेखाओं से आने वाले शरणार्थियों में मुख्य रूप से महिलाएं और बच्चे हैं, इसलिए कुछ मामलों में इन नाबालिगों के पास जन्म प्रमाण पत्र और टीकाकरण प्रमाण पत्र जैसे वैध दस्तावेज़ नहीं होते हैं.
हंगरी ने यूक्रेन को किसी भी प्रकार की सैन्य सहायता करने से परहेज़ किया है लेकिन वह यूक्रेन के शरणार्थियों की हर तरह से मदद करने के लिए तैयार है. हंगरी के अधिकारियों ने अपने सख़्त आव्रजन नियमों में ढील देते हुए यूक्रेनी शरणार्थियों को टीकाकरण प्रमाण पत्र या वीज़ा जैसे दस्तावेज़ों के बिना भी प्रवेश दिया है.
स्लोवाक अधिकारियों ने यूक्रेनी शरणार्थियों का स्वागत किया है और उन सभी स्लोवाक घरों और संस्थानों को प्रति माह 200 यूरो की सहायता देने की घोषणा की है, जहां कोई वयस्क यूक्रेनी नागरिक ठहरा हुआ है. इसके अलावा, स्लोवाकिया के वित्त मंत्रालय ने बाल शरणार्थियों को जगह देने के लिए प्रति माह 100 यूरो की सहायता देने का प्रावधान किया है. जबकि यूक्रेन और स्लोवाकिया के बीच मौजूद सभी सीमा रेखाएं खुली हैं, लेकिन सिएर्ना नाद टिसौ रेलवे क्रॉसिंग को बंद कर दिया गया है. इसके कारण दोनों देशों के बीच वाहनों की आवाजाही के लिए सीमाओं से होकर जाने वाले रास्तों पर निर्भरता बढ़ गई है. इसके अलावा, यूक्रेन ने 24 फरवरी से सभी नागरिक विमानों की उड़ानें रद्द कर दी हैं, जिससे सड़क मार्ग पर दबाव बहुत ज़्यादा बढ़ गया है.
प्रवासियों को लेकर हंगरी ने अपनाए दोहरे मानदंड
जबकि हंगरी के प्रधान मंत्री विक्टर ओर्बन मध्य पूर्व के शरणार्थियों के प्रति नस्लवादी नज़रिया रखते हैं, वहीं उन्होंने यूक्रेनी शरणार्थियों के लिए अपने दरवाज़े खोल दिए हैं. अफगानिस्तान और सीरिया के शरणार्थियों के प्रति हंगरी के शत्रुतापूर्ण और भेदभावपूर्ण रवैए को देखते हुए यूरोपीय संसद ने अतीत में उसकी प्रवासी विरोधी नीतियों के खिलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के संदर्भ में चर्चाएं की हैं. लेकिन जिस तरह से हंगरी ने यूक्रेनी शरणार्थियों को अपनाया है, उसे देखते हुए ऐसा लगता है कि उसने अपनी प्रवासी विरोधी नीति को छोड़ दिया है.
गौरतलब है कि हंगरी ने यूक्रेन को किसी भी प्रकार की सैन्य सहायता करने से परहेज़ किया है लेकिन वह यूक्रेन के शरणार्थियों की हर तरह से मदद करने के लिए तैयार है. हंगरी के अधिकारियों ने अपने सख़्त आव्रजन नियमों में ढील देते हुए यूक्रेनी शरणार्थियों को टीकाकरण प्रमाण पत्र या वीज़ा जैसे दस्तावेज़ों के बिना भी प्रवेश दिया है. उदाहरण के लिए, हंगरी-यूक्रेन की प्रमुख सीमाओं जैसे लोन्या-हरंगलाब और बरबस-कास्ज़ोनी को यूक्रेनी शरणार्थियों के लिए खोल दिया गया था. सामान्य तौर पर देखें, तो वैश्विक उत्तर शरणार्थियों को जगह देने की बजाय वैश्विक दक्षिण में बने शरणार्थी शिविरों को दान करने पर ज़्यादा ज़ोर देता है. रूस-यूक्रेन संघर्ष के संदर्भ में देखें तो सारे नियम उल्टे पड़ते हुए नज़र आ रहे हैं, जहां वैश्विक उत्तर के धनी देशों ने यूक्रेन से आने वाले शरणार्थियों के लिए अपने दरवाज़े खोल दिए हैं.
माल्डोवा का हाल
माल्डोवा ने कम से कम 88000 यूक्रेनी शरणार्थियों को जगह दी है, इसके साथ ही वह पोलैंड और हंगरी के बाद तीसरे स्थान पर पहुंच गया है, जिसने इतनी बड़ी संख्या में यूक्रेनी शरणार्थियों को अपनाया है. माल्डोवा श्रम बाज़ार में गिरावट जैसी गंभीर समस्या से जूझ रहा है, इसलिए वहां के अधिकारियों ने यूक्रेनी शरणार्थियों को स्कूली शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल जैसी सुविधाएं मुहैया कराई हैं ताकि उनके जरिए वे अपने श्रमबल का विस्तार कर सकें. माल्डोवा ने अपने स्कूलों को यूक्रेनी शिक्षकों के लिए खोल दिया है, और रेस्तरां कर्मचारियों के रूप में नौकरियों की पेशकश की है और इसी तरह वे सभी यूक्रेनी नागरिकों को अपने श्रमबल का हिस्सा बना रहे हैं.
हालांकि, माल्डोवा यूक्रेनी शरणार्थियों की एक बड़ी आबादी को जगह देने के लिए तैयार है लेकिन यूक्रेनी लोग माल्डोवा में बसने से हिचक रहे हैं क्योंकि उन्हें डर है कि रूस कहीं उस पर हमला न कर दे.
बेलारूस ने की रूसी सेना की मदद
बेलारूस में भी कुछ यूक्रेनी शरणार्थियों ने शरण ली है. जबकि यह सच है कि बेलारूस यूक्रेन के खिलाफ़ रूसी सेना की सहायता के लिए अपनी सैन्य टुकड़ियां भेज रहा है. बेलारूस द्वारा रूस के युद्ध प्रयासों का समर्थन किए जाने पर यूरोपीय संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान जैसे एशियाई देशों समेत समूची अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी ने उसकी निंदा की है, जहां उन्होंने बेलारूस के उच्च अधिकारियों के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंधों लागू करने का निर्णय लिया है. बेलारूसी प्रधान मंत्री लुकाशेंको ने कहा था कि आवश्यकता पड़ने पर वह यूक्रेन पर आक्रमण करने में रूस की सहायता करेंगे. वास्तव में, पोलैंड इसी कारण इतनी बड़ी संख्या में यूक्रेनी शरणार्थियों की मदद कर रहा है क्योंकि पोलिश राष्ट्रवादियों का मानना है कि रूसी गठजोड़ के कारण उनके देश में यूक्रेनी शरणार्थियों की भीड़ इतनी बढ़ गई है.
चेक गणराज्य की सहायता
शरणार्थियों को रोकने के लिए चेक गणराज्य ने सख्त आव्रजन नियमों और कानूनों के साथ साथ अन्य कई व्यवस्थात्मक उपाय अपाय अपनाए हैं. इसके बावजूद उसने अपनी सीमाओं को यूक्रेनी नागरिकों के लिए पूरी तरह खोल दिया है. यूक्रेनी नागरिकों को टीकाकरण प्रमाण पत्र दिखाने, नकारात्मक कोविड-19 परीक्षण, चेक क्षेत्र के भीतर आरटी-पीसीआर परीक्षण कराने जैसी अनिवार्यताओं में छूट देने के बाद, इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि चेक गणराज्य में कोरोना संक्रमण के मामलों में वृद्धि देखी जाएगी. इसके अलावा बड़ी संख्या में यूक्रेनी शरणार्थियों के आने के बाद देश के स्वास्थ्य ढांचे पर अतिरिक्त दबाव पड़ने की आशंका है. जबकि कई यूक्रेनी शरणार्थी बिना किसी मदद के अपने आप वहां पहुंचे थे, कई अन्य लोगों ने ट्रेनों के जरिए या चेक सरकार द्वारा नियुक्त कर्मचारियों की सहायता से यूक्रेन के पड़ोसी राज्यों जैसे स्लोवाकिया और पोलैंड के रास्ते देश में प्रवेश किया. भले ही यूक्रेन और चेक गणराज्य कोई सीमा रेखा नहीं साझा करते, लेकिन जिस तरह से चेक गणराज्य की सीमा पर भारी यातायात और वाहनों की लंबी कतार लगी हुई है, उससे लग रहा है कि मानो दोनों एक-दूसरे के पड़ोसी देश हों.
निष्कर्ष: शरणार्थी बनाम ‘यूरोपियता’
इसमें कोई शक नहीं है कि यूक्रेन पर रूस द्वारा हमला किए जाने से पूरी दुनिया प्रभावित हुई है, लेकिन मध्य यूरोप में इस संकट के प्रभाव को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. यूक्रेनी शरणार्थियों के प्रति यूरोपीय यूनियन के कुछ देशों, जो उसके पड़ोसी देश भी हैं, (बेलारूस, स्लोवाकिया, पोलैंड, रोमानिया, हंगरी, माल्डोवा, चेक गणराज्य) की प्रतिक्रिया ने शरणार्थी समस्या को लेकर अपनाए गए दोहरे मानदंडों को उजागर किया है. समय के साथ, शरणार्थी संकट ने राष्ट्रीय पहचान, अवसर की समानता और मानवाधिकारों की सार्वभौमिकता जैसे मुद्दों पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं. “अन्यकरण” के सिद्धांत पर आधारित व्यवहार, जहां कुछ समूहों या लोगों के साथ सिर्फ इसलिए भेदभाव किया जाता है कि वे किसी विशिष्ट समूह की मान्यताओं के साथ मेल नहीं रखते, यूरोप में शरण मांगने वाले गैर-यूरोपीय शरणार्थियों के मामले में काफी स्पष्ट है।
वैश्विक दक्षिण से आने वाले गैर-यूरोपीय शरणार्थियों, ख़ासकर अफगानिस्तान, सीरिया और फिलिस्तीन से आने वाले शरणार्थियों के प्रति यूरोपीय देशों के व्यवहार के संदर्भ में देखें तो “यूरोपियता” को तरजीह देने की मानसिकता और पूर्वाग्रह स्पष्ट रूप से दिखाई देती है.
यूक्रेन के पड़ोसी देश शरणार्थियों, ख़ासकर मध्य-पूर्व और अफ्रीकी देशों के शरणार्थियों के खिलाफ कड़ा रवैया अपनाते हैं और उन्हें आश्रय देने की बजाय उन्हें रोकने के लिए उनके खिलाफ विद्वेषपूर्ण कार्रवाईयों का सहारा लिया जाता है. वैश्विक दक्षिण से आने वाले गैर-यूरोपीय शरणार्थियों, ख़ासकर अफगानिस्तान, सीरिया और फिलिस्तीन से आने वाले शरणार्थियों के प्रति यूरोपीय देशों के व्यवहार के संदर्भ में देखें तो “यूरोपियता” को तरजीह देने की मानसिकता और पूर्वाग्रह स्पष्ट रूप से दिखाई देती है. इसने इन चिंताओं को भी उभारा है कि किस तरह से “यूरोपीयता” के सिद्धांत को इतनी मज़बूती और सख़्ती के साथ गढ़ा गया है. इसके अलावा, एक सवाल जो यहां सबसे ज़्यादा प्रासंगिक है कि बिना बहुपक्षीय दृष्टिकोण को अपनाए क्या मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय कानूनी ढांचा समकालीन शरणार्थी समस्या को लेकर वैश्विक दक्षिण की चिंताओं का समाधान करने में सक्षम है? ख़ासकर जो 1951 के शरणार्थी अभिसमय (सम्मेलन) के यूरो-केंद्रित चरित्र से परे व्यापक समूहों के हितों का प्रतिनिधित्व करे?
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