मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिव राजसिंह चौहान की 29 नवंबर 2005 से आज तक की राजनीतिक यात्रा पर सरसरी नजर डालें तो वे एक परिपक्व राजनीतिज्ञ नजर आते हैं. ऐसा नेता जिसकी वैचारिक दृढ़ता तथा कार्य शैली का प्रभाव जमीनी सतह पर भी दिखाई पड़ता है. नए-नए आइडियाज लाने तथा चुनावी मैदान में विजय पताका फहराने के वे माहिर हैं. अलबत्ता वास्तविक रूप में बारीकी से विश्लेषण करने पर उनके कामकाज में कई कमियां नजर आने लगती हैं. अब मध्यप्रदेश के बदलते राजनीतिक परिदृश्य में उनके दोबारा सत्तासीन होने से नई चुनौतियां आ गई हैं.
इस समय भाजपा को मध्यप्रदेश में दोबारा सत्तासीन करने का पूरा श्रेय चौहान की सोशल इंजीनियरिंग को दिया जाना चाहिए. राजनीतिक नैतिकता भले राज्य में सत्ता पाने के लिए भाजपा द्वारा अपनाए गए हथकंडों की आलोचना करे, लेकिन ‘रियल पोलीटिक’ की भाषा में चौहान ने अमित शाह व अटलबिहारी वाजपेयी के मिश्रण से निकली राजनीति का उदाहरण प्रस्तुत कर दिया है. ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा में लाना कोई आसान काम नहीं था, क्योंकि ग्वालियर व चंबल क्षेत्र के भाजपा नेता ‘महल’ की राजनीति का प्रबल विरोध करते आ रहे थे. मध्यप्रदेश विधानसभा के सन् 2018 में हुए चुनाव में खुद शिवराज ने ‘माफ करो महाराज’ का नारा दिया था. परंतु जैसे ही सिंधिया का कांग्रेस से मोहभंग हुआ, चौहान ने भाजपा में उनका खुले दिल से स्वागत किया. यह लचीलापन शिवराज के व्यक्तित्व तथा उनकी राजनीति के बारे में बहुत कुछ कहता है.
एक सादगी-पसंद आमजन के नेता की अपनी छवि गढ़ पाए. प्रदेश की बालिकाओं के लिए लाई गई उनकी योजनाओं के चलते तो उन्हें ‘मामा’ की उपाधि ही मिल गई
उनके पहले मुख्यमंत्री काल में मध्यप्रदेश उन्हें एक बीमारू राज्य (हिंदी बेल्ट के पिछड़े राज्य बिहार, राजस्थान व उत्तरप्रदेश भी इसमें शामिल हैं.) के रूप में मिला. ऐसा राज्य जो सामाजिक व आर्थिक रूप से खासा पिछड़ा था. 13 साल तक वे इस राज्य में सतत् कार्य करते रहे. बतौर मुख्यमंत्री अपने तीन कार्यकाल में शिवराज सिंह चौहान ने राज्य की पंचायतों को व्यवस्थित किया तथा असंगठित क्षेत्र के लिए अनेक राहत भरी योजनाएं चलाई. आमजन की दशा जानने के लिए मंत्रियों व आला अधिकारियों का सप्ताह में चार दिन गांव में बिताना, गरीब कन्याओं के लालन-पालन व विवाह के लिए ‘लाडली लक्ष्मी’ तथा ‘कन्यादान’ जैसी योजनाएं, महिलाओं तथा बालिकाओं के लिए विशेष योजनाएं लाना उनके उल्लेखनीय कार्य थे. इन्हीं की बदौलत वे एक सादगी-पसंद आमजन के नेता की अपनी छवि गढ़ पाए. प्रदेश की बालिकाओं के लिए लाई गई उनकी योजनाओं के चलते तो उन्हें ‘मामा’ की उपाधि ही मिल गई.
सार्वजनिक सेवाओं से जुड़े लोगों में दायित्वबोध पैदा करने तथा कार्य में पारदर्शिता लाने के लिए चौहान ने कुछ कानून बनाए. जैसे स्पेशल कोर्ट्स बिल 2011 का उद्देश्य था, भ्रष्टाचार के आरोपियों के मुकदमों का तेजी से निपटारा करना. इसके द्वारा राज्य सरकार को यह अधिकार दे दिए गए कि वह आरोपित की अवैध संपत्ति छह माह में जब्त कर सके तथा एक साल के भीतर उसके खिलाफ फैसला कर दे. इस प्रकार जब्त की गई संपत्ति को जन कल्याण के कार्यों में इस्तेमाल किए जाने का प्रावधान भी इस कानून में रखा गया. हालांकि, व्यावसायिक परीक्षा मंडल अर्थात् व्यापम के महा-घोटाले के बीच राज्य सरकार की अक्षमता ने इस कानून को ज्यादा प्रभावी नहीं होने दिया, जिसका उनकी छवि को खासा नुकसान भी पहुंचा.
कुछ जानकार लोगों को जरूर याद होगा कि कोई दस साल पहले बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने शिवराज सिंह चौहान को फोन कर के मध्यप्रदेश सार्वजनिक सेवाएं अधिनियम 2010 की प्रति मंगाई थी. इस एक्ट द्वारा नागरिकों की आधारभूत सार्वजनिक सेवाओं के कार्य तय समय सीमा में पूरा करने के नियम तय किए गए हैं. ऐसा नहीं होने पर संबंधित अधिकारी, कर्मचारी की जवाबदारी तय की गई है. इस एक्ट में कहा गया है कि तयशुदा समयसीमा में कार्य संपन्न नहीं किया जाता है तो उसके लिए जिम्मेदार अधिकारी, कर्मचारी को न केवल जवाब देना है, बल्कि उस पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है. जुर्माने की यह राशि 250 रुपए प्रतिदिन से लेकर 5 हजार रुपए प्रतिदिन तक तय की गई है, जो कार्य की देरी से परेशान होने वाले व्यक्ति को दी जाएगी.
प्रदेश का सांप्रदायिक सौहार्द कायम रखने में भी शिवराज सफल रहे. हालांकि, सांप्रदायिक टकराव की छोटी-मोटी घटनाएं होती रहीं, लेकिन भाजपा सरकार द्वारा तुरंत प्रभावी कदम उठा कर उन्हें फैलने नहीं दिया गया. चौहान की सोच है कि भाजपा शासित प्रदेशों में सेक्युलरिज्म के साथ विकास का समावेश ठीक से काम करता है. इसका सटीक उदाहरण उन्होंने सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील ‘धार’ में प्रस्तुत किया, जहां बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद् तथा आरएसएस के लोगों द्वारा भारी विरोध किए जाने के बावजूद 16वीं शताब्दी की मस्जिद में जुमे की नमाज अदा कराई. सांप्रदायिक दंगा निवारण व सद्भाव कायम रखने में उनके इस सार्थक प्रयास की बदौलत ही सन् 2006 का इंदिरा गांधी अवॉर्ड मध्यप्रदेश को दिया गया. जनवरी 2013 व फरवरी 2016 में भी धार में वे ऐसे ही सांप्रदायिक दंगे टालने तथा शांति कायम रखने में कामयाब रहे. गौरतलब है कि धार की विवादित हो चुकी जामा मस्जिद-भोजशाला में उपद्रवी तत्व परंपरागत रूप से होने वाली नमाज रोकना चाहते थे. बात बढ़ने पर पुलिस ने सख्ती की तथा उपद्रवी तत्वों से निपटने के लिए लाठी चार्ज व आंसू गैस छोड़ने से भी परहेज नहीं किया.
अपने कार्यकाल में चौहान ने प्रदेश के अल्पसंख्यकों का भी विशेष ध्यान रखा. स्कूली पाठ्यक्रम में गीता पाठ शामिल करना, सूर्य नमस्कार, भोजन मंत्र, वंदे मातरम् गान जैसे मुद्दों का राज्य के अल्पसंख्यकों द्वारा विरोध करने पर मुख्यमंत्री ने अल्पसंख्यक विद्यार्थियों व सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों को इनसे छूट दे दी. जबरिया धर्मांतरण रोकने के लिए लाए गए म.प्र. धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक 2013 का मुस्लिम व ईसाई समुदाय ने विरोध किया कि दोनों समुदायों के खिलाफ इसका दुरुपयोग किया जाएगा, लेकिन कानून बन जाने के बाद ऐसी कोई शिकायत नहीं पाई गई. इसी तरह म.प्र. गौवंश प्रतिषेध (संशोधन) विधेयक के साथ भी हुआ. इसके कुछ प्रावधान, जैसे गौ वध करने वाले को सात साल की जेल, अति भयावह तक करार दिए गए, परंतु इस कानून के दुरुपयोग की भी कोई शिकायत नहीं मिली.
इस लंबी यात्रा में कुछ ऐसे दाग उनके दामन पर लग गए, जिनसे वे बच सकते थे. अब उन्हें फिर मौका मिला है. ऐसे में भ्रष्टाचार व भाई-भतीजावाद के प्रति उन्हें जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाना होगी
राज्य के मुसलमानों सहित अन्य अल्पसंख्यक समुदाय सामाजिक स्तर पर भी शिव राजसिंह चौहान द्वारा चलाई गई योजनाओं से लाभांवित होते रहे. उदाहरणार्थ तीर्थ दर्शन योजना ले लें. इसमें 60 साल से ज्यादा उम्र के वरिष्ठ नागरिकों को देश-प्रदेश के विभिन्न धर्म स्थलों की यात्रा मुफ्त कराई जाती थी. इसमें हिंदू धर्म के तीर्थस्थलों जैसे रामेश्वरम्, पुरी, केदारनाथ, बद्रीनाथ, हरिद्वार के साथ अजमेर स्थित ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की विश्वप्रसिद्ध दरगाह, तमिलनाडु के नागपट्टिनम स्थित वेलंकन्नी चर्च तो अमृतसर का स्वर्ण मंदिर, बोध गया, पारसनाथ (झारखंड) आदि तीर्थ स्थलों की भी यात्रा कराई जाती थी. मुस्लिम, ईसाई, जैन तथा अन्य अल्पसंख्यक समुदायों से संबंधित हजारों नागरिकों ने इस धार्मिक यात्रा का लाभ लिया. ‘कन्यादान’ इसी तरह की एक और लोकप्रिय योजना थी. इसमें नौब्याहता जोड़े को आर्थिक सहायता दी जाती थी. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक कोई 8 लाख जोड़े इस योजना से लाभांवित हुए, जिनमें से एक लाख मुस्लिम धर्मावलंबी थे.
एक संकोची स्थानीय नेता से प्रदेश के मुख्यमंत्री व अपनी पार्टी भाजपा के उपाध्यक्ष बनने और फिर मुख्यमंत्री बनने तक शिव राजसिंह चौहान ने लंबा सफर तय किया. कर्मठ व समर्पित सेवक की तरह वे निज स्वार्थ वाली राजनीति से बच निकले. लेकिन इस लंबी यात्रा में कुछ ऐसे दाग उनके दामन पर लग गए, जिनसे वे बच सकते थे. अब उन्हें फिर मौका मिला है. ऐसे में भ्रष्टाचार व भाई-भतीजावाद के प्रति उन्हें जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाना होगी. एक जीवंत व समृद्ध तथा आमजन की सहभागिता से भरपूर प्रजातंत्र के लिए आवश्यक है कि कानून व्यवस्था सुदृढ़ हो, नागरिक अधिकारों का सम्मान, वंचितों को अधिकार मिलें तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा केवल बातों तक ही सीमित न रहकर व्यवहार में हों. शिवराज सिंह चौहान इनका महत्व समझते हैं. निश्चित ही व इन पर यथोचित् ध्यान देंगे.
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