Author : Harsh V. Pant

Published on Dec 03, 2021 Updated 0 Hours ago

भारत अगर अपने संबंध अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ और प्रगाढ़ कर रहा है तो इसका यह मतलब नहीं कि वह रूस को दरकिनार कर देगा

चीन को बड़ा संदेश है, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का भारत दौरा
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जो दिसंबर का महीना है, यह बड़ा दिलचस्प है क्योंकि इसमें पहले भारत पुतिन की मेजबानी कर रहा है, फिर उसके बाद समिट फॉर डेमोक्रेसी, जो अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडेन ने बुलाई है, उसमें हिस्सा ले रहा है. ऐसे में जिस तरह से साल का अंत हो रहा है, उसमें भारत के सामने सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि विदेश नीति में जो बड़ी ताकतों की राजनीति है, उसे वह कैसे नेविगेट करता है. इसका एक नमूना हमको इस महीने देखने को मिलेगा. रूस और अमेरिका के संबंध काफी खराब चल रहे हैं, और भारत ही एक ऐसा देश है जो दोनों के बीच एक पुल का काम कर सकता है. भारत यह कैसे करेगा, इसका भी नमूना हमें इस महीने देखने को मिलेगा.

रूस और अमेरिका के संबंध काफी खराब चल रहे हैं, और भारत ही एक ऐसा देश है जो दोनों के बीच एक पुल का काम कर सकता है. भारत यह कैसे करेगा, इसका भी नमूना हमें इस महीने देखने को मिलेगा.

चीन को संदेश

इन चीजों का आकलन दो तरह से किया जा सकता है. एक तो यह कि पुतिन भारत आ रहे हैं. कोविड के बाद उनकी इन-पर्सन यह पहली विदेश यात्रा है. भारत के लिए डर यह बना हुआ है कि चीन के साथ रूस के संबंध प्रगाढ़ हो रहे हैं तो भारत के साथ कमतर हो जाएंगे. पुतिन ऐसी कोशिश कर रहे हैं कि ऐसा ना दिखे. अगस्त में भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सामुद्रिक सुरक्षा (Maritime Security) पर वर्चुअल बैठक की थी, जिसे पीएम नरेंद्र मोदी ने चेयर किया था. उस बैठक में भी वह आए थे. तो पुतिन जो हिंदुस्तान को तरजीह देना चाहते हैं, वह स्पष्ट है. दूसरे यह कि टू प्लस टू बातचीत भी होगी. 6 दिसंबर को रूस के रक्षा और विदेश मंत्री भारत में अपने समकक्षों के साथ बैठेंगे. भारत का टू प्लस टू फ्रेमवर्क यूएस, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ है. रूस ऐसा चौथा देश होने जा रहा है. यह बड़ी महत्वपूर्ण बात है कि दोनों देश अपने संबंधों को मजबूत दिखाने की कोशिश कर रहे हैं. भारत ने अमेरिकी प्रतिबंधों के डर के बावजूद रूस से एंटी मिसाइल सिस्टम एस-400 खरीदा है. ऐसा करके उसने दिखाया कि वह रूस का साथ छोड़ नहीं रहा. भले ही भारत के संबंध अमेरिका के साथ अच्छे बन रहे हों, लेकिन रूस के साथ उसके ऐतिहासिक संबंध हैं.

भारत ने अमेरिकी प्रतिबंधों के डर के बावजूद रूस से एंटी मिसाइल सिस्टम एस-400 खरीदा है. ऐसा करके उसने दिखाया कि वह रूस का साथ छोड़ नहीं रहा. भले ही भारत के संबंध अमेरिका के साथ अच्छे बन रहे हों, लेकिन रूस के साथ उसके ऐतिहासिक संबंध हैं.

इसमें परेशानियां ज़रूर हैं, जैसे कि रूस की चीन के साथ बढ़ती दोस्ती या फिर हिंद-प्रशांत और क्वाड को लेकर रूस का नकारात्मक रवैया. मगर दूसरी ओर रूस और चीन का ट्रेड इंगेजमेंट और लोगों का आपसी मिलना-जुलना बहुत कम है. हालांकि सामरिक रोडमैप में दोनों ही देशों ने अपनी-अपनी विदेश नीति में एक दूसरे का महत्व कम ना करने की प्रायॉरिटी अपनाई हुई है.

रूस के भारत के साथ संबंध मजबूत होंगे तो यह चीन के लिए भी एक महत्वपूर्ण इशारा होगा कि रूस चीन का जूनियर पार्टनर नहीं है. उसके पास भी और विकल्प हैं. रूस और चीन के जो संबंध बने हैं, वे पश्चिम को लेकर उनके नजरिए के चलते बने हैं. पहले दोनों ने एक-दूसरे के विपक्ष में भी काम किया है. लेकिन जहां तक रूस और भारत के संबंध हैं, वे तो पिछले सात दशक से चल ही रहे हैं और उनको इतनी आसानी से दरकिनार भी नहीं किया जा सकता. भारत की जो 65 फीसदी मिलिट्री सप्लाई है, वह रूस से आती है. फिर रूस ने हमेशा भारत के साथ सामरिक तकनीक शेयर की. भारत-चीन सीमा विवाद में भी रूस के साथ रक्षा संबंध बने रहे, जबकि चीन ने इस पर घोषित रूप से नाखुशी जाहिर की थी.

क्षेत्रीय नज़रिए से भारत भी रूस का महत्व अच्छे से समझता है, जैसा कि पिछले महीने अफ़गानिस्तान में हुई बातचीत में दिखा भी. उसमें रूस और मध्य एशिया के देश आए, जबकि चीन और पाकिस्तान नहीं आए. वहां पर तालिबान को लेकर रूस का जो बड़ा आशावादी रवैया था, वह कमजोर पड़ता दिखा. अफ़गानिस्तान से जो समस्या उभर रही है, उसे लेकर रूस और भारत का आकलन एक जैसा है.

अफ़गानिस्तान से जो समस्या उभर रही है, उसे लेकर रूस और भारत का आकलन एक जैसा है.

रूस से जल्‍द आ रहा S-400 डिफेंस सिस्‍टम, भारत को बड़ा झटका दे सकते हैं बाइडेन

शीत युद्ध के दौरान सोवियत यूनियन और चीन अलग-अलग दिशाओं में काम कर रहे थे. सत्तर के बाद चीन अमेरिका के साथ आ गया था. शीतयुद्ध के बाद रूस और चीन ने फटाक से हाथ मिला लिया. अब भारत जिस तरह से अमेरिका और पश्चिम के साथ संबंध बढ़ रहा है, और जैसे-जैसे संतुलन बदल रहा है, उसी हिसाब से बनते जियो-पॉलिटिकल एनवायरमेंट में भारत और रूस प्रतिक्रिया कर रहे हैं. जहां तक मॉस्को का चीन की तरफ झुकाव है, उसमें भारत बहुत कुछ नहीं कर सकता क्योंकि वह पश्चिम को लेकर एक संयुक्त विपक्ष है. इसके अलावा रूसी विदेश नीति का बड़ा फ्रेमवर्क अमेरिका के विरोध को लेकर है. उसमें भी भारत बहुत कुछ नहीं कर सकता, क्योंकि भारत की अपनी चुनौती चीन को लेकर है. इसमें भारत जो कर सकता है, वह यह कि उसके रूस के साथ जो संबंध हैं, उनको अमेरिकी संबंधों से एकदम अलग कर ले.

भारत अगर अपने संबंध अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ और प्रगाढ़ कर रहा है तो इसका यह मतलब नहीं कि वह रूस को दरकिनार कर देगा. रूस भी अपनी तरफ से यह दिखाने की कोशिश कर रहा है कि भारत के साथ जो उसके संबंध हैं वह उनको गंभीरता से लेता है. चीन के साथ उसके संबंध भारत की कीमत पर नहीं बढ़ रहे हैं.

तो पुतिन का आना दिखाता है कि वह भारत को तरजीह देते हैं और भारत भी इसे रेखांकित कर रहा है कि वह रूस को अपना महत्वपूर्ण साझेदार मानता है. भारत अगर अपने संबंध अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ और प्रगाढ़ कर रहा है तो इसका यह मतलब नहीं कि वह रूस को दरकिनार कर देगा. रूस भी अपनी तरफ से यह दिखाने की कोशिश कर रहा है कि भारत के साथ जो उसके संबंध हैं वह उनको गंभीरता से लेता है. चीन के साथ उसके संबंध भारत की कीमत पर नहीं बढ़ रहे हैं.

साथ में ही फ़ायदा

अब दोनों देश अपने अपने सामरिक अजेंडे के लिए इनका किस तरह से प्रयोग कर पाते हैं, यह तो आने वाला समय बताएगा. लेकिन पुतिन का आना एक बड़े महत्वपूर्ण मौके पर हो रहा है, क्योंकि पिछले कुछ सालों में कई सवाल खड़े हुए हैं. ख़ासकर पिछले दो सालों में यह कि भारत और रूस दूर होते जा रहे हैं. अब दोनों देशों की यह पहल स्पष्ट कर रही है कि मतभेद भले बढ़ रहे हों, लेकिन दोनों देश अपनी रणनीति साथ में बनाने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि दोनों का ही साथ काम करने में फ़ायदा है.


यह आर्टिकल नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हो चुका है.

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