Author : Seema Sirohi

Published on Aug 10, 2023 Updated 0 Hours ago

रूस-यूक्रेन युद्ध का पश्चिमी देशों के भविष्य पर क्या असर पड़ेगा?

क्या पश्चिमी देशों के युद्ध के मक़सद का विस्तार हो रहा है?
क्या पश्चिमी देशों के युद्ध के मक़सद का विस्तार हो रहा है?

ये लेख यूक्रेन संकट: संघर्ष का कारण और आगे का रास्ता का हिस्सा है. 


रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन में एक “लंबी लड़ाई” के लिए तैयार हैं और वो महंगाई, अनाज की कमी और ऊर्जा की बढ़ती क़ीमत के सामने पश्चिमी देशों के संकल्प में नरमी से “संभवत: उम्मीद” कर रहे हैं. 

पिछले मंगलवार को नेशनल इंटेलिजेंस के डायरेक्टर अवरिल हैंस ने अमेरिकी कांग्रेस को कहा कि पुतिन का इरादा अभी भी अपने लक्ष्यों को हासिल करने का है क्योंकि उनकी सोच के मुताबिक़ चुनौतियों का सामना करने में रूस अपने विरोधियों के मुक़ाबले ज़्यादा तैयार है. डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल स्कॉट बैरियर ने स्वीकार किया कि युद्ध “एक तरह के गतिरोध की स्थिति” में है जिसमें कोई भी पक्ष जीत नहीं रहा है. ये गतिरोध कुछ समय तक जारी रह सकता है लेकिन अगर रूस युद्ध का एलान (अभी वो इसे एक सैन्य अभियान बता रहा है) कर देता है और हज़ारों और सैनिकों को जुटाता है तो परिस्थिति बदल सकती है. 

ऑस्टिन ने हाल में उजागर किया है कि उनका उद्देश्य इस युद्ध में रूस को ‘कमज़ोर’ होते हुए देखना है ताकि वो भविष्य में इस तरह के आक्रमण की इच्छा बिल्कुल नहीं करे.

दो बड़े इंटेलिजेंस अधिकारियों के द्वारा इस तरह का संयमित आकलन अमेरिका के दूसरे बड़े अधिकारियों, जिनमें रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन भी शामिल हैं, की बड़ी-बड़ी बातों के उलट है. ऑस्टिन ने हाल में उजागर किया है कि उनका उद्देश्य इस युद्ध में रूस को ‘कमज़ोर’ होते हुए देखना है ताकि वो भविष्य में इस तरह के आक्रमण की इच्छा बिल्कुल नहीं करे. 

यूरोप के कुछ अधिकारी भी ऑस्टिन के उद्देश्य से सहमति रखते हैं. फ्रांस की सेना के चीफ ऑफ स्टाफ जनरल थियरी बुरखार्ड ने ऑस्टिन के विचारों को दोहराते हुए कहा, “यूरोप के देशों की दिलचस्पी रूस को कमज़ोर करने में है.” ब्रिटेन की विदेश मंत्री लिज़ ट्रस ने “रूस को पूरे यूक्रेन से और तेज़ी से बाहर करने” का संकल्प लिया है. 

फिनलैंड नेटो में शामिल होने के कगार पर

ये तय है कि यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस के युद्ध ने यूरोप के सुरक्षा परिदृश्य को बदल दिया है. फिनलैंड नेटो में शामिल होने के कगार पर है- राष्ट्रपति साउली निनिस्टो और प्रधानमंत्री सना मरीन ने 12 मई को साझा बयान में ये कहा कि फिनलैंड को बिना किसी देरी के नेटो की सदस्यता के लिए आवेदन करना चाहिए. स्वीडन के भी फिनलैंड की राह पर चलने की उम्मीद है, वैसे वो नेटो के सवाल पर राजनीतिक रूप से ज़्यादा बंटा हुआ है. 

जब यूक्रेन में रूस अपनी बढ़त को बनाये रखने के लिए संघर्ष कर रहा है, उस वक़्त रूस के लिए ये एक और झटका है. रूस ने नॉर्डिक क्षेत्र के इन दोनों देशों के नेटो में शामिल होने पर “नतीजे भुगतने” और एक पुख्ता “जवाब” की चेतावनी दी है.

जब यूक्रेन में रूस अपनी बढ़त को बनाये रखने के लिए संघर्ष कर रहा है, उस वक़्त रूस के लिए ये एक और झटका है. रूस ने नॉर्डिक क्षेत्र के इन दोनों देशों के नेटो में शामिल होने पर “नतीजे भुगतने” और एक पुख्ता “जवाब” की चेतावनी दी है. इस चेतावनी का जो भी मतलब निकालिए लेकिन नेटो का कम-से-कम एक सदस्य इस मुद्दे पर फिलहाल रूस के साथ है. तुर्की ने फिनलैंड और स्वीडन के लिए नेटो की सदस्यता का विरोध किया है और उसने दोनों देशों को “कई आतंकी संगठनों का घर” बताया है. ये कहकर तुर्की स्वीडन में कुर्द संगठनों की मौजूदगी की तरफ़ इशारा कर रहा है. चूंकि नेटो की सदस्यता के लिए मौजूदा सदस्यों की सर्वसम्मति ज़रूरी है, ऐसे में दोनों नॉर्डिक देशों के लिए इस गठबंधन में शामिल होने का रास्ता साफ़ नहीं है. तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन कहते हैं कि उनका देश स्वीडन, फिनलैंड के नेटो में शामिल होने का समर्थन नहीं करता है. 

युद्ध को लेकर अमेरिका के उद्देश्यों में विस्तार और यूरोप के देशों द्वारा अमेरिका की राह पर चलने की पृष्ठभूमि में अब कोई भी देश शांति की बात नहीं कर रहा है. जिन देशों ने अतीत में शांति की बात की जैसे कि तुर्की और इज़रायल, अब उन्होंने भी युद्ध ख़त्म करने की बात छोड़ दी है क्योंकि उन्हें लगता है कि मुख्य किरदारों- रूस, यूक्रेन और पश्चिमी देश- की दिलचस्पी इसमें नहीं है. यूरोप के ज़्यादातर देशों में अब स्वायत्तता की बात कम और अमेरिका के नेतृत्व में एकता की बात ज़्यादा हो रही है. 

जिन देशों ने अतीत में शांति की बात की जैसे कि तुर्की और इज़रायल, अब उन्होंने भी युद्ध ख़त्म करने की बात छोड़ दी है क्योंकि उन्हें लगता है कि मुख्य किरदारों- रूस, यूक्रेन और पश्चिमी देश- की दिलचस्पी इसमें नहीं है. यूरोप के ज़्यादातर देशों में अब स्वायत्तता की बात कम और अमेरिका के नेतृत्व में एकता की बात ज़्यादा हो रही है. 

नेटो गठबंधन में शामिल देशों का दिखावा जारी है कि वो रूस के ख़िलाफ़ सीधी लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं जबकि उन्होंने सैन्य मदद के तौर पर अरबों डॉलर की मदद के अलावा यूक्रेन की सेना को रूस के सैन्य ठिकानों के बारे में खुफ़िया जानकारी भी मुहैया कराई है. अमेरिका 40 अरब अमेरिकी डॉलर की सैन्य और आर्थिक मदद के पैकेज पर विचार कर रहा है जबकि युद्ध की शुरुआत से अब तक वो 3.8 अरब अमेरिकी डॉलर के हथियार पहले ही भेज चुका है. 

दिखावे का गेम खेल

पुतिन भी एक तरह के दिखावे का गेम खेल रहे हैं. उन्हें मालूम है कि वो नेटो के ख़िलाफ़ “जीत” नहीं सकते हैं लेकिन इसके बावजूद वो लंबे समय तक युद्ध जारी रखकर यूरोप में एक सीरिया बना सकते हैं. युद्ध को लेकर उनका मक़सद सिकुड़ गया है क्योंकि पहले वो कीव पर कब्ज़ा करके रूस समर्थक सरकार को सत्ता सौंपने से लेकर दक्षिण-पूर्व यूक्रेन में अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहते थे. सैनिकों के हौसले में कमी और युद्ध के मैदान में नाकामी का नतीजा रूस के द्वारा अप्रत्यक्ष लड़ाई के रूप में सामने आएगा. मारियूपोल की घेराबंदी और उसका विनाश इस रणनीति का एक उदाहरण था. 

रूस के टीवी चैनल पर चर्चाओं में परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का इशारा किया जा रहा है. ये उस वक़्त हो रहा है जब अमेरिका और रूस ने उन हथियारों समझौतों को समाप्त होने दिया है जो जांच की कसौटी पर खरे नहीं उतरते हैं. वहीं अमेरिका के टीवी चैनलों पर चर्चा के दौरान पुतिन की ग़लतियों और युद्ध अपराधों का बोलबाला है. इन चर्चाओं को यूक्रेन के लिए काम करने वाले और रूस विरोधी अमेरिका के लॉबिस्ट बढ़ावा देते हैं जो छोटे से मौक़े को भी गंवाना नहीं चाहते और पुतिन ने तो उन्हें इस बार बड़ा मौक़ा दे दिया है. 

यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदीमीर ज़ेलेंस्की का पश्चिमी देशों की चर्चाओं में दबदबा है और उनके पक्ष में मज़बूती से माहौल बना हुआ है. अमेरिकी संसद में यूक्रेन को सैन्य सहायता सीमित करने को लेकर बेहद कम सवाल उठाए जा रहे हैं. अमेरिका के राजनीतिक प्रतिष्ठान युद्ध में तेज़ी और ग़लत आकलन के जोखिम पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं दिखते हैं जबकि ये ऐसी बातें हैं जो अमेरिका दुश्मनी के एक निश्चित सीमा के पार करने के बाद हमेशा दूसरे देशों को बताता रहता है. 

जोखिमों को देखते हुए इस बात की तत्काल आवश्यकता है कि अंतिम लक्ष्य को तय किया जाए क्योंकि रूस पहले ही “कमज़ोर” हो चुका है और जूझ रहा है. युद्ध के जारी रहने की वजह से यूक्रेन बर्बाद हो रहा है और मौतों की संख्या हज़ारों को पार कर रही है लेकिन इसके बावजूद कोई पश्चिमी देश इस पर बात नहीं कर रहा है. 

सवाल ये है कि एक कमज़ोर और हताश रूस ज़्यादा ख़तरनाक है या कम.  

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