पूर्वी यूक्रेन में रूस की सैन्य तैनाती और बढ़ते क्षेत्रीय तनाव के बीच भी रूस के साथ संबंधों को बढ़ावा देने के लिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने मॉस्को की अपनी दो दिन की आधिकारिक यात्रा जारी रखी. इस बातचीत में आर्थिक सहयोग और नॉर्थ-साउथ गैस पाइपलाइन परियोजना पर ध्यान दिया गया. रूस की कंपनियों के सहयोग से बनाई जाने वाली नॉर्थ-साउथ गैस पाइपलाइन परियोजना में काफ़ी देर हो चुकी है.
प्रधानमंत्री इमरान ख़ान पहले पाकिस्तानी नेता हैं जिन्होंने पिछले दो दशकों के दौरान रूस की यात्रा की. साथ ही इमरान ख़ान पहले राष्ट्राध्यक्ष भी रहे जिन्होंने यूक्रेन के अलगाववादी क्षेत्रों दोनेत्स्क और लुहान्स्क को राष्ट्रपति पुतिन के द्वारा अलग देश की मान्यता देने के बाद रूस का दौरा किया. ‘ग़लत समय’ पर उनके इस दौरे की आलोचना हुई क्योंकि पाकिस्तान इस समय बेहद ख़राब आर्थिक हालात से गुज़र रहा है. साथ ही इमरान सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव की वजह से राजनीतिक अनिश्चितता भी है. पाकिस्तान के प्रमुख आर्थिक हित अभी भी काफ़ी हद तक पश्चिमी देशों के संस्थानों जैसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) पर निर्भर हैं. ऐसे में पुतिन के साथ इमरान ख़ान की मुलाक़ात के बाद ऐसे संस्थानों से वित्तीय सहायता की मांग करना पाकिस्तान के लिए अनिश्चितता की स्थिति पैदा कर सकता है.
प्रधानमंत्री इमरान ख़ान पहले पाकिस्तानी नेता हैं जिन्होंने पिछले दो दशकों के दौरान रूस की यात्रा की. साथ ही इमरान ख़ान पहले राष्ट्राध्यक्ष भी रहे जिन्होंने यूक्रेन के अलगाववादी क्षेत्रों दोनेत्स्क और लुहान्स्क को राष्ट्रपति पुतिन के द्वारा अलग देश की मान्यता देने के बाद रूस का दौरा किया
शीत युद्ध के बाद बदले हालात
इमरान ख़ान के इस दौरे को ‘ख़राब कूटनीति’ बताया गया और पाकिस्तान में लोगों ने इस यात्रा के समय को लेकर सावधान किया. रूस पिछले एक वर्ष से यूक्रेन के साथ अपनी सीमा पर सेना को जमा कर रहा था और हाल के दिनों में ऐसी कई रिपोर्ट थी जिनमें बताया गया था कि रूस यूक्रेन पर हमला करने वाला है. इसके बावजूद इमरान ख़ान ने अपने अमेरिका विरोधी रुख़ की वजह से पाकिस्तान की विदेश नीति को बदलने के लिए रूस के साथ संबंधों को प्राथमिकता दी. अगर पाकिस्तान से आ रही ख़बरों पर यकीन करें तो रूस ने इमरान ख़ान को न्योता नहीं दिया था बल्कि न्योता मांगा गया था.
इस बात पर ज़ोर देते हुए कि उनका मॉस्को दौरा मुख्य रूप से द्विपक्षीय संबंधों पर केंद्रित है, प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने रूसी मीडिया के साथ इंटरव्यू में ये जताया कि पाकिस्तान दुनिया के किसी गुट का हिस्सा नहीं बनना चाहता है बल्कि अपने लोगों को ग़रीबी से बाहर निकालने के लिए सभी देशों के साथ व्यापार करने की इच्छा रखता है. अपने रूस के दौरे में पाकिस्तान की भू-राजनीतिक सीमा का विस्तार करने से जुड़े सवाल पर इमरान ख़ान ने कहा कि “इसकी हमें चिंता नही है, रूस के साथ हमारे द्विपक्षीय संबंध हैं और हम इसे वास्तव में मज़ूबत करना चाहते हैं.” उन्होंने क्षेत्रीय संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान पर भी ज़ोर दिया.
प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने रूसी मीडिया के साथ इंटरव्यू में ये जताया कि पाकिस्तान दुनिया के किसी गुट का हिस्सा नहीं बनना चाहता है बल्कि अपने लोगों को ग़रीबी से बाहर निकालने के लिए सभी देशों के साथ व्यापार करने की इच्छा रखता है.
रूस के साथ पाकिस्तान के संबंध मज़बूत नहीं रहे हैं लेकिन शीत युद्ध के समय के मुक़ाबले इसमें बदलाव आया है. शीत युद्ध के समय तो पाकिस्तान ने खुलकर अमेरिका का साथ दिया था. संबंधों में सुधार के सबूत के रूप में दोनों देश 2016 से हर साल साझा सैन्य अभ्यास भी कर रहे हैं. इसके अलावा दोनों देश सुरक्षा चिंता भी साझा करते हैं क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान के अलग-अलग आतंकी संगठनों से वो ख़तरे का सामना कर रहे हैं. लगता है कि शीत युद्ध के समय के ये पूर्व प्रतिद्वंदी अपनी साझेदारी का विस्तार करने की दिशा में काम कर रहे हैं क्योंकि पाकिस्तान को ऊर्जा और आर्थिक भागीदारी में बढ़ोतरी की ज़रूरत है. पिछले एक दशक के दौरान रूस और पाकिस्तान के बीच व्यापार संबंध में बढ़ोतरी का रुझान दिखा है (आंकड़ा 1) और दोनों देशों को उम्मीद है कि ऊर्जा और सामानों को ले जाने के क्षेत्र में और ज़्यादा सहयोग हो सकता है. साथ ही विचार-विमर्श और नज़दीकी राजनीतिक और सुरक्षा बातचीत में भी और ज़्यादा सहयोग हो सकता है.
आंकड़ा 1- पाकिस्तान सांख्यिकी ब्यूरो
जहां तक बात 2.5 अरब अमेरिकी डॉलर के गैस पाइपलाइन प्रोजेक्ट पर वादे को लेकर है तो इस मामले में फिर से 2014 जैसे स्थिति हो सकती है. उस वक़्त क्रीमिया को रूस में मिलाने की वजह से रूस पर आर्थिक पाबंदियां लगाई गई थीं और जिसकी वजह से ये प्रोजेक्ट थम गया था. रूस पर इस बार भी यूक्रेन में उसके सैन्य अभियान की वजह से अमेरिका और उसके सहयोगियों ने सख़्त आर्थिक पाबंदियां लगाई हैं और इस कारण फिर से ये प्रोजेक्ट रुक जाएगा. इसलिए प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की कोशिशों पर सवाल उठ रहे हैं जो पुतिन के द्वारा उठाए क़दमों के समर्थन का संकेत देते हैं.
भारत भी एक फैक्टर
भारत का सबसे बड़ा क्षेत्रीय विरोधी होने की वजह से पाकिस्तान की विदेश नीति अनिवार्य रूप से इस संदर्भ में देखी जाती है कि उसका भारत के लिए नतीजा क्या होगा और इस मामले में इमरान ख़ान की रूस यात्रा अलग नहीं है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का रूस दौरा ऐसे समय में हुआ जब वैश्विक समीकरणों में बदलाव की वजह से भारत और रूस के बीच संबंधों में बदलाव की अटकलें लग रही हैं. वैश्विक समीकरण में बदलाव भारत को अमेरिका के साथ नज़दीकी संबंध की ओर ले गया है जबकि रूस भारत के सबसे ख़तरनाक क्षेत्रीय विरोधी चीन के साथ साझेदारी बना रहा है. चीन के साथ रूस की इस साझेदारी की वजह दोनों देशों का अमेरिका के साथ साझा और बढ़ता विरोध है.
भारत और रूस- दोनों देश अपने संबंधों को दुनिया की किसी और ताक़त के साथ उनके समीकरणों से अलग देखते हैं. इसलिए इस बात की संभावना नहीं है कि रूस और पाकिस्तान के बीच संबंध में मौजूदा दौर से भारत चिंतित होगा या ख़तरा महसूस करेगा.
लंबे समय तक उपमहाद्वीप में भारत रूस का सबसे भरोसेमंद साझेदार रहा है लेकिन ऊपर बताए गए घटनाक्रम की वजह से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने क़रीबी रिश्ते बढ़ाने के लिए रूस का दौरा किया. इस बदलते हालात को लेकर भारत की चिंता की धारणा स्वाभाविक है. हालांकि, ये मानना अनुभवहीनता होगी कि रूस के साथ पाकिस्तान के संबंध जल्द ही भारत वाली स्थिति में पहुंच जाएंगे. वैसे ये कई बार बिल्कुल साफ़ किया जा चुका है कि भारत-रूस के बीच संबंध व्यावहारिकता के आदर्श पर मज़बूती से आधारित है. भारत और रूस- दोनों देश अपने संबंधों को दुनिया की किसी और ताक़त के साथ उनके समीकरणों से अलग देखते हैं. इसलिए इस बात की संभावना नहीं है कि रूस और पाकिस्तान के बीच संबंध में मौजूदा दौर से भारत चिंतित होगा या ख़तरा महसूस करेगा.
इसके अलावा भारत ने अमेरिका और रूस के रिश्तों में अभूतपूर्व हलचल के समय में अमेरिका के साथ मज़बूत संबंध बनाते हुए रूस के साथ अपने संबंधों की जटिलता के मार्ग-निर्देशन के बेहद मुश्किल काम को अच्छी तरह अंजाम दिया है. रूस की नापसंदगी के बावजूद भारत इंडो-पैसिफिक के भविष्य को आकार देने के लिए क्वॉड के भीतर और बाहर अमेरिका के साथ नज़दीकी तौर पर काम कर रहा है. इसके साथ-साथ भारत अलग-अलग कूटनीतिक चर्चाओं और 2+2 मंत्री स्तर की बातचीत- जो कि भारत ने पहले केवल क्वॉड साझेदार देशों के साथ की थी- जैसे संकेतों के सहारे इस बात को भी फिर से दृढ़तापूर्वक कहने में सफल रहा है कि रूस का उसके लिए क्या महत्व है. भारत ने अमेरिका की तरफ़ से आर्थिक प्रतिबंध के मंडराते ख़तरे के बावजूद रूस के साथ और हथियारों की आपूर्ति के लिए समझौते पर भी हस्ताक्षर किए हैं. भारत ने यूक्रेन संकट को लेकर संयुक्त राष्ट्र महासभा और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मतदान के दौरान अनुपस्थित रहकर और कूटनीति के ज़रिए इस संकट के शांतिपूर्ण समाधान की अपील करके कूटनीतिक रवैया भी अपनाया. भारत के लिए श्रेय की बात ये है कि यूक्रेन-रूस संघर्ष पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मतदान के दौरान अनुपस्थित रहने के भारत के विवादित निर्णय के बावजूद अमेरिका ने भी कहा है कि भारत के साथ उसके संबंध अपने गुण-दोष पर आधारित हैं.
रूस के साथ दोस्ती पर ज़ोर देने की पाकिस्तान की कोशिश वैसे तो भारत के दीर्घकालीन हितों के लिए ठीक नहीं है लेकिन वर्तमान में भारत के लिए अमेरिका या रूस के साथ अपने समीकरणों को संतुलित करने की कोशिश के मुक़ाबले बड़ा सिरदर्द नहीं है
भारत ने ये कहकर अपने दोनों सामरिक साझेदारों- रूस और अमेरिका- को नाराज़ करने का बड़ा जोख़िम उठाया कि वो अपनी विदेश नीति को निर्धारित करने की अनुमति किसी भी देश को नहीं देगा. लेकिन अभी तक रूस या अमेरिका ने इस पर नाराज़गी नहीं जताई है. इस तरह रूस के साथ दोस्ती पर ज़ोर देने की पाकिस्तान की कोशिश वैसे तो भारत के दीर्घकालीन हितों के लिए ठीक नहीं है लेकिन वर्तमान में भारत के लिए अमेरिका या रूस के साथ अपने समीकरणों को संतुलित करने की कोशिश के मुक़ाबले बड़ा सिरदर्द नहीं है. निष्कर्ष ये निकलता है कि रूस के साथ पाकिस्तान के संबंध की वजह से भारत-रूस समीकरण पर नुक़सानदेह असर को लेकर ख़तरे की घंटी बजाना अभी जल्दबाज़ी है. वैसे भी भारत-रूस की दोस्ती पहले ही मुश्किल भू-राजनीतिक पहेलियों का सामना कर चुकी है और अब भी कर रही है.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.