Author : Jaibal Naduvath

Published on Jul 31, 2023 Updated 0 Hours ago

रूस-यूक्रेन संघर्ष के आख्यान (नैरेटिव) में ‘ईश्वर’ और ‘ईसाई अच्छाई’ की वापसी पश्चिम और उसके विरोधियों के बीच एक ऐसी दरार की ओर इशारा करती है, जो महज़ विचाराधारात्मक नहीं, बल्कि उससे कहीं ज़्यादा गहरी है.

रूस-यूक्रेन युद्ध: ‘ईश्वर और देश’ के नाम पर गढ़ा जा रहा मीडिया नैरेटिव!
रूस-यूक्रेन युद्ध: ‘ईश्वर और देश’ के नाम पर गढ़ा जा रहा मीडिया नैरेटिव!

ज्ञानोदय यानी (Enlightenment) के युग के दौरान संगठित धर्म से दूर यूरोपीय सामूहिक बुद्धि के गहरे मंथन, और पश्चिमी संवेदनशीलताओं के बाद के विकास पर विलाप करते हुए नीत्शे ने कहा, ‘ईश्वर मर चुका है’. हालांकि, युगों का बदलाव मानव की बुद्धि व साधन या एजेंसी का ऋणी नहीं है. इसके बजाय, यह शाश्वत पुनरावृत्ति के अपने स्वयं के चक्र का अनुसरण करता है, जैसे कि अभी पश्चिमी राजनीतिक संवेदनशीलता और अभिकर्तृत्व में ईश्वर तथा अच्छे व बुरे के बीच बाइनरी (जो पश्चिमी धर्मशास्त्रीय ढांचे के केंद्र में है) की वापसी हो रही है.

वारसा के ऐतिहासिक रॉयल कैसल के प्रांगण में, राष्ट्रपति बाइडेन के भावावेशपूर्ण भाषण ने ईश्वर और पोप का आवाहन करते हुए इस नैतिक बाइनरी का इस्तेमाल किया. उन्होंने एक जैसी सोच वाले राष्ट्रों से एकजुट होकर पुतिन और उनके प्रशासन – जिन्होंने अभागे लोगों पर हिंसा और तकलीफ़ का क़हर बरपाया – का प्रतिरोध करने की अपील की. इस तरह, बाइडेन ख़ुद को नैतिक विरोधी की तरह पेश करते हैं. स्थल के चुनाव में मौजूद संदेश बिल्कुल साफ़ था. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाज़ियों द्वारा बमबारी कर ज़मींदोज़ कर दिये जाने के बाद पुनर्निर्मित, वारसा का रॉयल कैसल विपरीत परिस्थितियों के सामने प्रतिवाद और पुनरुत्थान का द्योतक है, जो कि मौजूदा यूक्रेनी राष्ट्रीय भावना के अनुरूप है.

वारसा के ऐतिहासिक रॉयल कैसल के प्रांगण में, राष्ट्रपति बाइडेन के भावावेशपूर्ण भाषण ने ईश्वर और पोप का आवाहन करते हुए इस नैतिक बाइनरी का इस्तेमाल किया. उन्होंने एक जैसी सोच वाले राष्ट्रों से एकजुट होकर पुतिन और उनके प्रशासन – जिन्होंने अभागे लोगों पर हिंसा और तकलीफ़ का क़हर बरपाया – का प्रतिरोध करने की अपील की.

इसके कुछ दिन पहले, क्राइमिया को रूस में मिलाने की आठवीं वर्षगांठ के मौक़े पर, मॉस्को के मशहूर लुज़्निकी स्टेडियम में एक विशाल रैली में बोलते हुए, पुतिन ने बाइबल के कथन को थोड़ा बदलते हुए कहा, ‘अपने दोस्तों के लिए अपनी ज़िंदगी क़ुर्बान कर देने से बड़ी कोई मोहब्बत नहीं है’. यह पद ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाये जाने से एक रात पहले की उनकी बातचीत से लिया गया है, जो लोगों के पापों को ख़ुद पर लेकर सलीब पर चढ़ने के उनके चुनाव – अपनी खुशी से क़ुर्बानी – को दर्शाता है. ईसा मसीह से विश्वासघात करने वाले यहूदा इस्करियोती (जूडस इस्कैरियट) की तरह, अपने देश के ख़िलाफ़ पश्चिम के कथित विश्वासघात और धूर्तता की पुतिन की यह अवधारणा, उन्हें और उनके लोगों को अपनी कल्पना में एक हमलावर के बजाय पीड़ित बनाती है. इस तरह, पुतिन अपने वर्तमान कर्तृत्व की नैतिकता को जायज़ ठहराते हैं, भले वह कितना ही जघन्य हो.

हालांकि, आस्था ने गृहयुद्ध के शुरुआती दिनों से लेकर डेढ़ सदी से अधिक वक़्त तक अमेरिकी राजनीतिक उपक्रम में एक अहम भूमिका निभायी है, लेकिन शीत युद्ध के दौरान धार्मिकता को आत्म-पहचान के एक महत्वपूर्ण अवयव के रूप में ख़ास तौर पर बल मिला, जिसने ईश्वरविहीन सोवियत से अमेरिका को अलग किया.

मीडिया नरैटिव पर कब्ज़ा

8 मार्च 1983 को नेशनल एसोसिएशन ऑफ इवानजेलिकल्स में राष्ट्रपति रीगन के मशहूर ‘ईवल एंपायर’ (बुराई के साम्राज्य) संबोधन ने, उनकी बेचैन राजनीतिक कांस्टीटुएंसी के बीच न सिर्फ़ उनकी कम्युनिस्ट-विरोधी साख को पुख़्ता किया, बल्कि शीत युद्ध को एक राजनीतिक या वैचारिक मुद्दे की जगह नैतिक मुद्दे के रूप में पेश किया. नैतिकतापूर्ण बराबरी को ख़ारिज करते हुए, रीगन ने स्वतंत्रता और लोकतंत्र को ईश्वर से मिली नेमत बताया. और, इन्हें देने से इनकार करके, सर्वसत्तावादी कम्युनिस्टों ने ख़ुद को नैतिकता के दूसरे छोर पर रखा, जो शीत युद्ध को अच्छाई की शक्तियों और बुराई की शक्तियों के बीच संघर्ष बना रहा था.

अपनी किताब ‘द क्लैश ऑफ बार्बरिजम्स’ में गिल्बर्ट अशकर (Gilbert Achcar) तर्क देते हैं कि नैतिकता और धार्मिकता के पर्दे के पीछे से काम करना सभ्यता के स्याह और बर्बर पक्ष हैं – जहां राष्ट्र राज्य हिंसा, तबाही और एक-दूसरे की बर्बादी के सर्पिल चक्र को जन्म देते हुए, एक हॉब्सियन विश्व व्यवस्था में प्रभाव और स्थान के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं.

अपनी किताब ‘द क्लैश ऑफ बार्बरिजम्स’ में गिल्बर्ट अशकर (Gilbert Achcar) तर्क देते हैं कि नैतिकता और धार्मिकता के पर्दे के पीछे से काम करना सभ्यता के स्याह और बर्बर पक्ष हैं – जहां राष्ट्र राज्य हिंसा, तबाही और एक-दूसरे की बर्बादी के सर्पिल चक्र को जन्म देते हुए, एक हॉब्सियन विश्व व्यवस्था में प्रभाव और स्थान के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं. ‘स्व’ की दैवीय सुरक्षा और जीत के लिए आवाहन में एक प्रच्छन्न और अनकहा निष्कर्ष छिपा होता है- ‘अन्य’ का विनाश और खात्मा, जिस पर इस तरह की जीत निर्भर होती है.

युद्ध अब दूर रणभूमि में चेहराविहीन दुश्मनों से लड़ाई भर नहीं है, बल्कि मीडिया नरैटिव पर क़ब्ज़े के ज़रिये श्रोताओं के दिलो-दिमाग को गिरफ़्त में लेने के लिए ड्राइंग रूम में बैठकर किया जानेवाला काम है. तो, मीडिया भू-राजनीतिक लक्ष्य हासिल करने के लिए राजकीय नीति का एंपलीफायर और हथियार बन जाता है. संभाल कर चुनी गयी सूचनाओं और गलत सूचनाओं के शक्तिशाली मिश्रण के ज़रिये, मीडिया अपने श्रोताओं से विशिष्ट प्रतिक्रिया हासिल करने और विरोधी का मनोबल गिराने की कोशिश करता है.

तबाही, अनुशासनहीनता  सैनिक विद्रोह की ख़बरों व तस्वीरों, अश्लील व्यक्तिगत हमलों, अजीबोगरीब हद तक के गढ़े हुए विवादों से लेकर घरेलू मतभेद और भाड़े के लड़ाकों के महिमामंडन तक (जैसा कि अफ़ग़ानिस्तान का अनुभव दिखाता है, यह एक चिंताजनक रुझान का लक्षण है) – पश्चिमी मीडिया की कहानी निश्चित रूप से एकपक्षीय है, जिसके द्वारा रूस को पश्चिमी जनमत की अदालत के कठघरे में खड़ा किया जा रहा है.

संघर्ष के दो चेहरें की जटिल सच्चाई

दूसरी तरफ़, रूस इसके ठीक उलट का उदाहरण पेश करता है. राज्य-नियंत्रित मीडिया के स्वाभाविक रूप से सरकारी लाइन लेने के बावजूद, निजी समाचार संस्थाओं ने युक्तिसंगत स्वतंत्र कर्तृत्व दिखाया है और इंटरनेट अपेक्षाकृत खुला है, जो आम रूसियों को विविध दृष्टिकोणों तक पहुंच प्रदान कर रहा है. फिर भी, स्वतंत्र सर्वेक्षण इशारा करते हैं कि रूसियों का अधिकांश हिस्सा न सिर्फ़ यूक्रेन में युद्ध का समर्थन करता है, बल्कि घर में पुतिन की अपनी रेटिंग कई सालों की ऊंचाइयों पर पहुंच गयी है. यह बड़े एहतियात से निर्मित घरेलू मतभेद के नरैटिव को पेश करने की पश्चिमी मीडिया की कोशिश के उलट है.

संघर्ष की दो चेहरों वाली सच्चाई जटिल है और बयानों की जंग में गुम हो गयी है. सच्चे संवाद की जगह बनाने के लिए इन दोनों सच्चाइयों का आमना-सामना कराये जाने की ज़रूरत है. हालांकि, धार्मिकता और नैतिक परमवाद (एब्सोलूटिजम) के चश्मे से तैयार किये गये राजनीतिक विमर्श, राजनीतिक रूप से सुविधाजनक होने के बावजूद, काफ़ी समस्याजनक हैं. ये न सिर्फ़ ‘स्व’ को ज़िम्मेदारी से मुक्त करते हैं, बल्कि ‘अन्य’ के कर्तृत्व को मानने से इनकार करते हैं और तर्क के लिए जगह को ख़त्म करते हैं- जबकि, ये दोनों एक सार्थक बीच का रास्ता तलाशने में महत्वपूर्ण पहलू हैं. ‘स्व’ की अंतर्निहित परोपकारिता में विश्वास, ‘स्व’ की शक्ति व प्रभाव के प्रसार को ‘स्व’ की परोपकारिता के विस्तार के रूप में देखता है, जो पराधीन आबादी को उसकी निराशा और तकलीफ़ों से मुक्त कराना आवश्यक बना देता है.

इस नज़रिये से देखें, तो प्रतिस्पर्धा करनेवाला ‘अन्य’ नैतिक विरोधी बन जाता है, जिसकी परोपकारिता से इनकार करने की क्षमता पर ‘स्व’ उसे बुरी शक्ति बना देता है. इस तरह का नैतिक औचित्य विभिन्न ‘अन्य’ की क़ीमत पर ‘स्व’ के हितों को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरणा और पर्दा प्रदान करता है, जो संघर्ष और टकराव की ओर ले जाता है.

इस नज़रिये से देखें, तो प्रतिस्पर्धा करनेवाला ‘अन्य’ नैतिक विरोधी बन जाता है, जिसकी परोपकारिता से इनकार करने की क्षमता पर ‘स्व’ उसे बुरी शक्ति बना देता है. इस तरह का नैतिक औचित्य विभिन्न ‘अन्य’ की क़ीमत पर ‘स्व’ के हितों को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरणा और पर्दा प्रदान करता है, जो संघर्ष और टकराव की ओर ले जाता है. पश्चिम के लिए, पराधीन जनता के वास्ते ‘स्वतंत्रता’ और ‘उदार मूल्य’ लाने के लिए पूर्व की ओर उसका अथक विस्तार, सस्ते में प्रभाव विस्तार के उसके बड़े भू-राजनीतक इरादे को नैतिक औचित्य प्रदान करता है. और, यह उसकी सदा बढ़नेवाली अग्रिम पंक्ति (फ्रंटलाइन) पर अनवरत संघर्ष उत्पन्न करता है. कहीं इसे भुला न दिया जाए, ‘सभ्य बनाने’ की यही वो ‘परोपकारी’ ललक थी जिसने उपनिवेशवाद को जन्म दिया – दर्ज इतिहास में सबसे बड़ी पराधीनता, जिसने राष्ट्रीय मानसों को हमेशा के लिए बदल दिया है.

अरस्तू ने ‘मेटाफिजिक्स’ में कहा, ‘जो है उसे वो कहना, और जो नहीं है उसे वो नहीं कहना ही सत्य है.’ सत्य – जो हमेशा परम होता है, और कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि मौजूदा संकट में कोई विभाजन रेखा के किस तरफ़ खड़ा है – यह है कि इस संघर्ष के संपर्क में आने वाली पीढ़ी के मानस पर एक गहरा मनोवैज्ञानिक ज़ख़्म हमेशा के लिए अंकित हो जायेगा. यह एक ऐसा संघर्ष है, जहां बड़ी ताक़त होने के अहं की बलिवेदी पर वो अनगिनत मासूम जान गंवा रहे हैं जिनका इस खेल से कोई लेना-देना नहीं है – बच्चे व उनके पिता, पत्नियां व उनके पति, माताएं व उनके बेटे, और राष्ट्र व उनके निवासी जिनका सामूहिक उद्यम हम सभी के लिए एक बेहतर कल का निर्माण करता.

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