Author : Harsh V. Pant

Published on Apr 17, 2017 Updated 0 Hours ago

रूस के अमेरिका के साथ प्रतिस्‍पर्धा के लिए तैयार होने के साथ ही दक्षिण एशिया की विदेश नीति का हिसाब तेजी से जटिल होता जा रहा है।

दक्षिण एशिया के ‘ग्रेट गेम’ में शामिल हुआ रूस

हाल के महीनों में रूस ने पाकिस्‍तान तक व्‍यापक पहुंच और बीते दौर में अपनी पसंदीदा जगह रहे अफगानिस्‍तान में असरदार मध्‍यस्‍थ के रूप में कदम बढ़ाते हुए अपनी दक्षिण एशिया नीति में आमूल-चूल बदलाव किया है। रूस अपने नए रणनीतिक साझेदार चीन की मदद से अमेरिका के क्षेत्रीय उत्‍कर्ष को शिकस्‍त देना चाहता है। लेकिन रूस के इसी दाव ने उसे भारत के खिलाफ ला खड़ा किया है, जिसके साथ उसके परम्‍परागत रूप से मजबूत रिश्‍ते रहे हैं। क्षेत्र में किसी भी नए सत्‍ता समीकरण के दीर्घकालिक प्रभाव होंगे।

रूस 1960 के दशक से ही दक्षिण एशिया में भारत का करीबी साझेदार रहा है। शीत युद्ध के बाद वैश्विक स्‍तर पर सत्‍ता के समीकरण बदलने के बावजूद यह रिश्‍ता समय की कसौटी पर खरा उतरा। शीत युद्ध के दौरान, इस रिश्‍ते का सुनहरा क्ष्‍ाण 1971 में भारत-सोवियत शांति, मैत्री और सहयोग संधि पर हस्‍ताक्षर होना था, जिसने दक्षिण एशिया में उभर रही अमेरिका-पाकिस्‍तान-चीन धुरी के बारे में पश्चिम की प्रतिक्रिया से अलग निणार्यक बदलाव के संकेत दिए थे। यह स्‍पष्‍ट रूप से कोई सैन्‍य गठबंधन नहीं था, लेकिन यह संधि भारत द्वारा अपनी गुटनिरपेक्षता की नीति से स्‍पष्‍ट तौर पर हट जाना था और भारत शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ के करीबी भागीदार के रूप में उभरा। इस संधि ने अमेरिका-पाकिस्‍तान-चीन के सुधरते संबंधों के किसी भी स्‍वरूप के खिलाफ रोकथाम का उपाय तैयार किया और रक्षा क्षमताओं के लिए भारत की सोवियत संघ पर निर्भरता लगातार बढ़ती गई।

इस रिश्‍ते के आर्थिक आयाम कभी मजबूत नहीं रहे और बर्लिन की दीवार ढहने की घटना ने भारत-रूस संबंधों के नए खतरों को उजागर कर दिया। 1990 के दशक में पश्चिम द्वारा भारत के लिए द्वार खोलने के बाद से भारत के पसंदीदा रक्षा आपूर्तिकर्ता के रूप में रूस की स्थिति लगातार दबाव में है। इसके बावजूद, रूस और भारत एक-दूसरे की जरूरत को समझते हैं। विश्‍व का सबसे बड़ा रक्षा आयातक-भारत, अपने अधिकांश सोवियत-युगीन सैन्‍य उपकरणों को अपग्रेड करने का उपाय कर रहा है। अमेरिका के बाद रूस विश्‍व का दूसरा सबसे बड़ा हथियार निर्यातक है। वर्ष 2016 में, भारत और रूस ने पांच एस-400 ट्रिम्‍फ वायु रक्षा प्रणालियों, चार स्‍टेल्‍थ फ्रीगेट्स और कामोव-226 लाइट यूटिलिटी हेलीकॉप्‍टर्स का निर्माण करने के लिए एक संयुक्‍त उद्यम लगाने सहित अरबों डॉलर के रक्षा सौदों पर हस्‍ताक्षर किए।

अमेरिकी रक्षा निर्यातकों के लिए भारत एक चुनौतीपूर्ण बाजार है और रूस परम्‍परागत रूप से स्‍वदेशी उत्‍पादन को प्रोत्‍साहन देने वाली भारत की ‘मेक इन इंडिया’ नी‍तियों का साथ देने का इच्‍छुक रहा है। भारत अपने रक्षा सांचे के लिए रूस को हाशिये पर डालने का खतरा नहीं उठा सकता, क्‍योंकि अभी तक रूस ही एकमात्र ऐसा देश है, जो भारत को महत्‍वपूर्ण रणनीतिक प्रौद्योगिकियां बेच रहा है।

हाल के वर्षों में भारत, रूस की चीन के साथ बढ़ती नजदीकियों और विशेषकर पाकिस्‍तान से संबंध बढ़ने के संकेतों को लेकर चिंतित है। व्‍लादिमीर पुतिन द्वारा दक्षिण एशिया को रूस की पश्चिम के साथ भूराजनीतिक स्‍पर्धा के नजरिए से देखने की मंशा के कारण शायद यह तय किया गया होगा कि पाकिस्‍तान के प्रति झुकाव का समय आ चुका है। अमेरिका-पाकिस्‍तान के संबंध संभवत: सबसे निचले बिंदु तक पहुंच चुके हैं और नया अमेरिकी प्रशासन, अलगाव की प्रवृत्ति व्‍य‍क्‍त करता हुए विविध घरेलू संकटों से जूझ रहा है।

चीन द्वारा अपने हथियार रूस से खरीदने की जगह, खुद बनाने का फैसला किए जाने के कारण रूस के लिए वैश्विक हथियार बाजार में राह बनाना ज्‍यादा कठिन होता जा रहा है। रूस को अब नए खरीददारों की जरूरत है।

रूस और पाकिस्‍तान ने सितम्‍बर, 2016 में पहला संयुक्‍त सैन्‍य अभ्‍यास किया था और क्षेत्रीय मामलों के संबंध में उनका पहला द्विपक्षीय विचार-विमर्श दिसम्‍बर में हुआ था। रूस ने 2014 में पाकिस्‍तान से हथियार प्रतिबंध हटा दिया था और वह इस साल उसे चार एमआई- 35 एम युद्धक हेलीकॉप्‍टर भेजेगा। रूसी सैनिकों ने इस साल पाकिस्‍तान की सैन्‍य परेड में भाग लिया। और शिनजियांग को पाकिस्‍तान के ग्‍वादर से जोड़ने वाले चीन-पाकिस्‍तान आर्थिक गलियारे को रूस समर्थित यूरेशियाई आर्थिक संघ के साथ मिलाया जा सकता है।

लेकिन भारत की घबराहट का वास्‍तविक कारण पाकिस्‍तान को वैश्विक स्‍तर पर अलग-थलग नहीं पड़ने देने में चीन का साथ देने का रूसी फैसला था। गोवा में 2016 में आयोजित ब्रिक्‍स शिखर सम्‍मेलन में, पाकिस्‍तान से गतिविधियां चलाने वाले आतंकी गुटों को भारत के खिलाफ आतंकवाद फैलाने के दोषी नामित किए जाने की भारत की मांग का रूस ने समर्थन नहीं किया था। इसके फलस्‍वरूप पाकिस्‍तान निंदा से बच गया था।

रूस के रवैये में यह बदलाव अफगानिस्‍तान पर 1979 में सोवियत आक्रमण के लगभग चार दशक बाद अफगानिस्‍तान में उसकी स्‍वयं के लिए परिकल्पित भूमिका से भी जाहिर हो रहा है। रूस ने अफगानिस्‍तान के भविष्‍य पर विचार-विमर्श करने के लिए फरवरी में भारत, ईरान, पाकिस्‍तान, चीन और अफगानिस्‍तान सहित छह देशों का सम्‍मेलन आयोजित किया था। दिसम्‍बर में केवल चीन और पाकिस्‍तान के साथ प्रथम त्रिपक्षीय सम्‍मेलन के आयोजन के बाद इस दिशा में यह रूस की दूसरी पहल थी।

दिसम्‍बर सम्‍मेलन में “अफगानिस्‍तान और तालिबान आंदोलन के बीच शांतिपूर्ण बातचीत को प्रोत्‍साहन देने के प्रयासों के तहत कुछ लोगों (तालिबान)को (संयुक्‍त राष्‍ट्र) की प्रतिबंध सूचियों से हटाने के बारे में लचीला दृष्टिकोण अपनाने” पर सहमति बनी। तीनों देशों ने — “देश (अफगानिस्‍तान) में आई एस (इस्‍लामिक स्‍टेट) की अफगान शाखाओं सहित उग्रवादी गुटों की बढ़ती गतिविधियों” — पर चिंता व्‍यक्‍त की और इस बात पर बल दिया कि इस्‍लामिक स्‍टेट के खिलाफ वैश्विक संघर्ष में तालिबान एक आवश्‍यक संरक्षण है। इससे अफगानिस्‍तान और भारत जैसे अन्‍य भागीदार हैरान थे जबकि तालिबान बेहद खुश था। तालिबान की ओर से जारी वक्‍तव्‍य में कहा गया, “बहुत खुशी की बात है कि क्षेत्रीय देशों को भी समझ में आ चुका है कि अफगानिस्‍तान के इस्‍लामिक अमीरात राजनीतिक और सैन्‍य बल है। मास्‍को त्रिपक्षीय सम्‍मेलन में प्रस्‍तुत किया गया इस्‍लामिक अमीरात के सदस्‍यों को सूची से हटाने का प्रस्‍ताव अफगानिस्‍तान में शांति और सुरक्षा लाने की दिशा में उठाया गया एक सकारात्‍मक कदम है।”

दिसम्‍बर सम्‍मेलन में अफगानिस्‍तान को आमंत्रित नहीं करने के लिए रूस को आलोचना का सामना करना पड़ा। अमेरिका के समर्थन वाली अफगान सरकार ने खुद को बाहर रखे जाने के लिए कड़ा विरोध दर्ज करते हुए कहा कि सम्‍मेलन में भाग लेने वालों की ‘मंशा’ के बावजूद,अफगानिस्‍तान को बाहर रखने से देश में स्‍थायित्‍व कायम करने की दिशा में कोई मदद नहीं मिलेगी।

इसलिए रूस ने फरवरी बैठक के प्रति ज्‍यादा सावधानी बरतते हुए भारत, ईरान,अफगानिस्‍तान और ज्‍यादातर क्षेत्रीय हितधारकों को आमंत्रित करते हुए अपनी पहुंच बढ़ायी,जबकि स्‍पष्‍ट रूप से अमेरिका और नेटो को बाहर रखा। यह अफगानिस्‍तान पर छोड़ दिया गया कि वह देश के विकास की गतिशीलता में अमेरिका की केंद्रीयता को रेखांकित करे और “अफगानिस्‍तान में युद्ध समाप्‍त करने तथा सतत शांति का सूत्रपात करने के लिए सबसे महत्‍वपूर्ण साझेदारों में से एक के रूप में अमेरिका को सम्मिलित करे।”

सम्‍मेलन में अफगानिस्‍तान ने “कुछ खास स्‍टेट एक्‍टर्स के व्‍यवहार में बदलाव लाने” और पिछले साल रिकॉर्ड स्‍तर पर पहुंची हिंसा को समाप्‍त करने की जरूरत पर बल देते हुए पाकिस्‍तान पर भी निशाना साधा। अफगानिस्‍तान ने रूस, चीन और पाकिस्‍तान द्वारा प्रस्‍तुत विचार — “अच्‍छा तालिबान, बुरा तालिबान” — का भी कड़ा विरोध किया। वार्ता में अफगानिस्‍तान के प्रतिनिधि एम.अशरफ हैदरी ने दलील दी, ”कुछ विशिष्‍ट लोगों को इस प्रक्रिया की सबसे प्रमुख चुनौती अच्‍छे और बुरे आतंकवादियों में अंतर पहचाने की रणनीति लगती है, जबकि आतंकवाद एक साझा खतरा है, जिसका सामना पूरा क्षेत्र कर रहा है, जब तक हममें से हर एक इसके खिलाफ मजबूती से खड़ा नहीं होता, तब तक आतंकवाद से निपटने के दूसरों के प्रयासों का भी सबकी मर्जी के अनुरूप परिणाम न‍हीं निकलेगा।”

बेशक, भारत ने इस रुख का स्‍वागत दलील दी कि अफगान नेतृत्‍व और अफगान स्‍वामित्‍व वाले सुलह के प्रयासों में ”अफगानिस्‍तान के मित्रों और शुभचिंतकों द्वारा” सहायता प्रदान करनी चाहिए । पाकिस्‍तान पर निशाना साधते हुए भारत ने भी दोहराया ” हमारे क्षेत्र के देशों द्वारा आतंकवादी गुटों या व्‍यक्तियों को सुरक्षित स्‍थान या पनाहगाह न उपलब्‍ध कराना अफगानिस्‍तान के दीर्घकालिक स्‍थायित्‍व का केंद्रीय भाग बना हुआ

रूस अब अफगानिस्‍तान में संघर्ष के संबंध में 14 अप्रैल को वार्ता का एक और दौर आयोजित करने की योजना बना रहा है अमेरिका और पांच मध्‍य एशियाई देशों सहित 12 देशों को इसमें भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया है। बैठक से पहले, पाकिस्‍तान ने हाल ही में सात शीर्ष तालिबानी नेताओं को शांति वार्ता के लिए राजी करने के लिए इस्‍लामाबाद में एकत्र किया।

2014 में नेटो सुरक्षा बलों की वापसी और 8400 अमेरिकी सैनिकों की मौजूदगी के कारण रूस ने खुद को इस संघर्षग्रस्‍त देश के प्रमुख मध्‍यस्‍थ के रूप में स्‍थापित कर लिया है। यूरोप में नेटो के सर्वोच्‍च कमांडर जनरल कर्टिस स्‍कापार्रोट्टी ने कुछ ही अर्सा पहले चेतावनी दी कि “वह हाल में रूस का प्रभाव — संगठन और संभवत: तालिबान को आपूर्ति के संदर्भ में — बढ़ा हुआ प्रभाव देख रहे हैं।”

रूस, चीन के साथ मिलकर विभिन्‍न मोर्चों पर अमेरिका की रणनीतिक प्राथमिकताओं को चुनौती दे रहा है और दक्षिण एशिया जैसे रीजनल थिएटर्स — जहां पुराने संबंध दबाव में हैं और नए संबंध आकार ले रहे हैं, को इस भूराजनीतिक स्‍पर्धा का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। दक्षिण एशिया के लिए नया राजनीतिक और कूटनीतिक टकराव (न्‍यू ग्रेट गेम) अभी शुरू ही हुआ है।

यह टिप्‍पणी मौलिक रूप से Yale Global Online में जारी हुई थी।


लेखक के बारे में

हर्ष वी पंत एक विशिष्‍ट फेलो और ORF के स्‍ट्रे‍टेजिक स्‍टडीज़ प्रोग्राम के प्रमुख है। वे डिपार्टमेंट ऑफ डिफेन्‍स स्‍टडीज और किंग्‍स इंडिया इंस्‍टीट्यूट दोनों स्‍थानों पर इंटरनेशनल रिलेशन्‍स के प्रोफेसर के रूप में नियुक्‍त हैं। वे सेंटर फॉर स्‍ट्रेटेजिक एंड इंटरनेशनल स्‍टडीज,वाशिंगटन डीसी में यूएस- इंडिया पॉलिसी स्‍टडीज में नॉन-रेजिडेंट फेलो भी हैं।

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.