Author : Saaransh Mishra

Published on Nov 29, 2021 Updated 0 Hours ago

कोविड-19 के बढ़ते संक्रमण और वैक्सीन को लेकर आशंकाओं के चलते रूस की सरकार बेहद मुश्किल में दिख रही है.

रूस का कोविड-19 की चौथी लहर से सामना

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रूस इस वक़्त कोविड-19 की चौथी लहर का सामना कर रहा है. रोज़ाना संक्रमण और मौत के आंकड़े अब तक के शीर्ष पर पहुंच चुके हैं. सरकारी कोरोना वायरस टास्क फोर्स हर दिन क़रीब चालीस हज़ार नए संक्रमण की ख़बरें दे रही है. संक्रमित लोगों के बीच मौत की दर भी बेहद चिंताजनक है. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़, महामारी की शुरुआत से लेकर अक्टूबर 2021 तक रूस में कोविड-19 से 2 लाख 30 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. यूरोप के तमाम देशों में रूस में इस महामारी से मौत की दर भी सबसे ज़्यादा है. वहीं, एशियाई देशों में कोरोना से मौत की दर के मामले में रूस, केवल भारत से पीछे है. चिंताजनक बात ये है कि रूस की सरकारी सांख्यिकी सेवा, रोस्टैट ने अक्टूबर 2021 के आख़िरी हफ़्ते में जो रिपोर्ट जारी की है, उससे तो और भी भयानक तस्वीर बनती दिख रही है. इस रिपोर्ट से पता चलता है कि अप्रैल 2020 से सितंबर 2021 के बीच रूस में कोरोना से 4,62,000 लोगों की मौत हो चुकी है.

लॉकडाउन लगाने की ज़रूरत

रूस में कोरोना के इन बढ़ते आंकड़ों ने वहां की सरकार को बड़ी मुश्किल में डाल दिया है. सरकार को महामारी पर तो क़ाबू पाना ही है. उसे ये भी सुनिश्चित करना है कि लॉकडाउन लगाने से अर्थव्यवस्था को नुक़सान न पहुंचे. एक वरिष्ठ सरकारी वैज्ञानिक कामिल काफ़िज़ोव ने चेतावनी दी है कि पूरी दुनिया में पाए गए वायरस के नए वैरिएंट AY.4.2 डेल्टा वैरिएंट के केस रूस में भी मिले हैं. अगर संक्रमण की बढ़ती रफ़्तार को क़ाबू करना है, तो देश के अलग अलग हिस्सों में लंबे समय तक लॉकडाउन लगाने की ज़रूरत है. तेज़ी से बिगड़ते हालात और जनता की सेहत की सुरक्षा के लिए राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 30 अक्टूबर से 7 नवंबर के बीच तनख़्वाह के साथ छुट्टियों का एलान किया था. राष्ट्रपति ने क्षेत्रीय सरकारों को ये अधिकार भी दिया था कि वो इस प्रतिबंधों को ज़रूरत के हिसाब से और आगे भी बढ़ा सकते हैं. लेकिन, बढ़ते संक्रमण के बावजूद, रूस के पांच क्षेत्रों को छोड़कर बाक़ी सभी जगह तय समय पूरा होने पर लॉकडाउन की पाबंदियां हटा ली गईं.

अगर संक्रमण की बढ़ती रफ़्तार को क़ाबू करना है, तो देश के अलग अलग हिस्सों में लंबे समय तक लॉकडाउन लगाने की ज़रूरत है. 

तमाम देशों ने वायरस का संक्रमण रोकने के लिए आम तौर पर लॉकडाउन का ही इस्तेमाल किया है, जिससे उनकी अर्थव्यवस्थाओं पर असर पड़ा है. विश्व बैंक ने अनुमान लगाया है कि इससे दुनिया की अर्थव्यवस्था में 3.8 प्रतिशत की कमी आई है. इनमें से विकसित देशों की अर्थव्यवस्था सिकुड़ने की दर 5.4 फ़ीसद थी और ज़्यादातर सामानों का निर्यात करने वाले देशों की अर्थव्यवस्था में 4.8 प्रतिशत की कमी आई. इसकी तुलना में साल 2020 में रूस की GDP में केवल 3 फ़ीसद की कमी आई थी. वैसे तो वित्तीय मदद, लॉकडाउन के दौरान सकारात्मक मौद्रिक नीति और महामारी के पहले डिजिटलीकरण में प्रगति जैसे कारणों ने रूस में आर्थिक नुक़सान को सीमित रखने में बड़ी भूमिका निभाई थी. लेकिन, राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने मई 2020 में कोरोना की पहली लहर आने के बाद, केवल छह हफ़्तों में ही लॉकडाउन हटाने का एलान कर दिया था. रूस की अर्थव्यवस्था के बेहतर प्रदर्शन के पीछे एक बड़ी वजह ये भी हो सकती है. 

अगर हम कोविड-19 की पहले की लहरों के दौरान रूस की सरकार के रवैये को देखें, तो रूस द्वारा देश में लंबे समय तक लॉकडाउन लगाने की संभावना कम ही है. क्योंकि जनता लॉकडाउन को बिल्कुल पसंद नहीं करती है  

अगर हम कोविड-19 की पहले की लहरों के दौरान रूस की सरकार के रवैये को देखें, तो रूस द्वारा देश में लंबे समय तक लॉकडाउन लगाने की संभावना कम ही है. क्योंकि जनता लॉकडाउन को बिल्कुल पसंद नहीं करती है. इसके अलावा, रूस की आर्थिक स्थिति में लॉक़ाउन बहुत उपयोगी नहीं हैं. क्योंकि रूस कुछ हद तक पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों से भी प्रभावित है. अनुमान बताते हैं कि 2014 के बाद से रूस की अर्थव्यवस्था की विकास दर औसतन 0.3 फ़ीसद रही है. जबकि इसी दौरान आर्थिक विकास का वैश्विक औसत 2.3 फ़ीसद रहा था. आंद्रे एज़लुंड और मारिया स्नेगोवाया लिखते हैं कि प्रतिबंधं से ‘विदेशी क़र्ज़’ और ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ कम हो गए हैं और इससे शायद रूस की विकास दर में सालाना 2.5 से लेकर 3 फ़ीसद के बीच कमी आई है, जो साला क़रीब 50 अरब डॉलर बैठती है. हालांकि 2024 के चुनाव से पहले राष्ट्रपति पुतिन ने सत्ता पर अपनी पकड़ और मज़बूत कर ली है. लेकिन, पिछले एक साल में उनकी लोकप्रियता में काफ़ी कमी आई है, जो उनकी अप्रूवल रेटिंग में चौंकाने वाली कमी से ज़ाहिर हो रही है. हो सकता है कि इसमें देश के ख़राब आर्थिक हालात का भी कुछ योगदान रहा हो. इसीलिए, लंबे समय तक लॉकडाउन लगाने से आर्थिक प्रगति में बाधा पहुंचेगी, जो सरकार के लिए सही रणनीति बिल्कुल नहीं होगी.

वैक्सीन को लेकर आशंकाएं

वैसे तो रूस उन अव्वल देशों में से था, जिन्होंने सबसे पहले कोरोना की वैक्सीन बना ली थी. लेकिन, देश की समस्या इसलिए बढ़ गई है, क्योंकि ज़्यादातर आम लोग वैक्सीन के असर को लेकर आशंकित हैं. रूस की क़रीब 14.6 करोड़ आबादी में से महज़ 4.5 करोड़ या 32 फ़ीसद को ही कोरोना के टीकों की दोनों ख़ुराक लग सकी है. हाल ही में टीका न लगवाने वाले लोगों पर किए गए एक गैलप सर्वे में शामिल 75 फ़ीसद लोगों ने कहा कि अगर उन्हें मुफ़्त में भी कोरोना का टीका लगाया गया तो भी वो नहीं लगवाएंगे.

कार्नेगी में सीनियर फेलो पॉल स्ट्रोंस्की लिखते हैं कि रूस की सरकार ने स्पुतनिक V वैक्सीन, साल 2020 के दूसरे हिस्से में बाज़ार में उतारी थी. वैक्सीन को क्लिनिकल ट्रायल का तीसरा चरण पूरा होने के एक साल पहले ही बाज़ार में उतार दिया गया था. शायद इसी वजह से वैक्सीन लगवाने से लोग हिचक रहे हैं. दूसरी बात ये है कि रूस की वैक्सीन विकसित करने वाले, विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूरोपीय मेडिसिन एजेंसी जैसी वैश्विक नियामक संस्थाओं को अपने टीके के असर और सुरक्षा से जुड़े आंकड़े उपलब्ध कराने से हिचकते रहे हैं. इससे भी रूस की वैक्सीन की छवि अपने देश में ही नहीं, अन्य देशों में भी ख़राब हुई है. ये तर्क पिछले साल किए गए एक स्वतंत्र सर्वे में सही साबित हुआ था. इस सर्वे में वैक्सीन को लेकर रूसी नागरिकों की हिचक को समझने की कोशिश की गई थी. सर्वे में पता चला था कि इसमें शामिल 33 फ़ीसद लोग टीके के साइड इफेक्ट को लेकर आशंकित थे. वहीं, 20 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वो क्लिनिकल ट्रायल पूरा होने का इंतज़ार कर रहे हैं. इसके अलावा स्वतंत्र संगठन लेवाडा सेंटर द्वारा किए गए सर्वेक्षणों से पता चलता है कि लोगों में ये राय बहुत आम है कि कोविड-19 के ख़तरे को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है. इससे भी टीकाकरण की रफ़्तार धीमी हुई है. रूस में जन्मी दार्शनिक और जैविक-नैतिकतावादी डॉक्टर एना गॉटलिब इसमें एक बात और जोड़ती हैं. वो कहती हैं कि वैक्सीन को लेकर बढ़ती हिचक का एक बड़ा कारण, रूस की जनता के बीच अपनी संघीय सरकार को लेकर लंबे समय से चला आ रहा अविश्वास भी है. लेवाडा सेंटर के निदेशक डेनिस वोल्कोव भी यही बात कह चुके हैं.

राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन लगातार अपने देश के नागरिकों से वैक्सीन लेने की गुज़ारिश करते रहे हैं. सरकार ने कोरोना के टीकों को बड़े पैमाने पर आसानी से उपलब्ध कराया है. रूसी नागरिक मॉल में, थिएटर में और दूसरी सार्वजनिक जगहों पर बड़ी आसानी से मुफ़्त में टीके लगवा सकते हैं. वैक्सीन लगवाने को बढ़ावा देने के लिए अधिकारियों ने टीका न लगवाने वाले बुज़ुर्गों पर फ़रवरी 2022 तक घर से निकलने पर रोक लगा रखी है. इसके अलावा, रूस के ज़्यादातर क्षेत्रों में किसी न किसी रूप में टीका लगवाना अनिवार्य किया हुआ है. लेकिन, ख़ुद राष्ट्रपति पुतिन ने मार्च 2021 तक कोरोना का टीका नहीं लगवाया था. जबकि, रूस की स्वदेशी वैक्सीन कई महीने पहले ही उतार दी गई थी. इस वजह से वैक्सीन को लेकर लोगों के मन में आशंका और भी बढ़ गई.

रूस में जन्मी दार्शनिक और जैविक-नैतिकतावादी डॉक्टर एना गॉटलिब इसमें एक बात और जोड़ती हैं. वो कहती हैं कि वैक्सीन को लेकर बढ़ती हिचक का एक बड़ा कारण, रूस की जनता के बीच अपनी संघीय सरकार को लेकर लंबे समय से चला आ रहा अविश्वास भी है.

रूस ने अपने यहां किसी अन्य देश में बने टीके को लगाने की  इजाज़त भी नहीं दी है. वहीं, रूस में बनी किसी भी वैक्सीन को विश्व स्वास्थ्य संगठन से मंज़ूरी नहीं मिली है. इसका नतीजा ये हुआ है कि रूस के नागरिक, पश्चिमी देशों में बने कोरोना के वो टीके लगवाने के लिए सर्बिया और आर्मेनिया जैसे देशों में जा रहे हैं, जिन्हें वैश्विक स्तर पर मान्यता मिल चुकी है. मोटे तौर पर इसके दो कारण हैं: पहला तो ये कि रूस के ज़्यादातर नागरिकों को ये वैक्सीन ज़्यादा भरोसेमंद लगती हैं, क्योंकि उनका दुनिया भर में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हो रहा है; दूसरा कारण ये है कि रूस में बने टीकों को वैश्विक स्तर पर मंज़ूरी न मिलने से, उन लोगों को विदेश यात्राएं करने में मुश्किलें पेश आ सकती हैं, जिन्होंने रूस में बना टीका लगवा लिया है.

रूस में स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा बेहद दबाव में है. क्योंकि, देश में कोविड-19 के मरीज़ों के लिए निर्धारित अस्पतालों के लगभग सभी 255,000 बेड भरे हुए हैं. हालात इतने भयंकर हैं कि रूस के स्वास्थ्य मंत्री को तो रिटायर हो चुके डॉक्टरों तक से मदद की गुहार लगानी पड़ी है. क्योंकि, ख़बरों के मुताबिक़, जनवरी से जून 2021 के बीच रूस के 700 से ज़्यादा डॉक्टरों की मौत कोविड-19 से होने के कारण, देश में स्वास्थ्य कर्मचारियों की भारी कमी हो गई है.

निष्कर्ष

रूस के दैनिक अख़बार कोमरसैंट ने अक्टूबर के आख़िर में ख़बर दी थी कि रूस की संघीय सरकार ने ये माना था कि उससे टीकाकरण अभियान में तेज़ी से बदलाव लाने की ज़रूरत है. जिसका साफ़ मतलब है कि पहले की सारी कोशिशें नाकाम रही हैं. रूस की संसद ड्यूमा के उपाध्यक्ष पीटर टॉल्सटॉय ने भी सरकारी टीवी चैनल को बताया था कि सरकार ने वायरस के बारे में पूरे के पूरे सूचना अभियान को बिल्कुल ग़लत तरीक़े से चलाया है. भले ही काफ़ी नुक़सान हो चुका हो, लेकिन, अगर सरकार ने अपनी इन ग़लतियों को माना है, तो इसे ही सही दिशा में उठा एक क़दम कहा जा सकता है.

 रूस में स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा बेहद दबाव में है. क्योंकि, देश में कोविड-19 के मरीज़ों के लिए निर्धारित अस्पतालों के लगभग सभी 255,000 बेड भरे हुए हैं. हालात इतने भयंकर हैं कि रूस के स्वास्थ्य मंत्री को तो रिटायर हो चुके डॉक्टरों तक से मदद की गुहार लगानी पड़ी है.  

रूस की सरकार के लिए आगे चुनौती इस बात की है कि अगर वो ज़रूरत पड़ने पर लॉकडाउन लगाने से हिचकती है, तो भले ही अर्थव्यवस्था पटरी पर बनी रहे, मगर वायरस का प्रकोप ज़रूर बेक़ाबू हो जाएगा. सरकार ने सभी नागरिकों को मुफ़्त में टीका लगाने और जनता से टीका लगवाने की लगातार अपील करने जैसे सराहनीय क़दम ज़रूरी उठाए हैं. इससे ज़ाहिर है कि सरकार सार्वजनिक स्वास्थ्य के संकट की पूरी तरह अनदेखी करते हुए, सिर्फ़ अर्थव्यवस्था सुधारने के विकल्प पर ज़ोर देने की इच्छुक नहीं है. लेकिन, अभी हमें ये देखना होगा कि हालात से कैसे फ़ुर्ती और अच्छे तरीक़े से निपटा जाता है. ख़ास तौर से तब और जब देश के ज़्यादातर हिस्सों से लॉकडाउन हटाने जैसा जोखिम भरा क़दम पहले ही उठाया जा चुका है.

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