Published on Aug 29, 2018 Updated 0 Hours ago

रूस द्वारा आयोजित युद्धाभ्यास वोस्तोक⎯2018 को शीत युद्ध खत्म होने के बाद रूस का सबसे बड़ा युद्धाभ्यास माना जा रहा है।

रूस-चीन सैन्य अभ्यास: एशियाई सैन्य संतुलन पर क्या होगा असर

रूस सबसे बड़े युद्धाभ्यास वोस्तोक⎯2018 का आयोजन कर रहा है। इसे शीत युद्ध खत्म होने के बाद रूस का सबसे बड़ा युद्धाभ्यास माना जा रहा है। रूसी रक्षा मंत्री सर्गेइ शोइगु ने कहा कि वोस्तोक⎯2018 (पूर्व — 2018) का आयोजन रूस के मध्य और पूर्वी सैन्य जिलों में आयोजित होगा जिसमें करीब 300,000 सैनिक हिस्सा लेंगे। इस युद्धाभ्यास में 1,000 से ज्यादा सैन्य विमान, रूसी नौसेना के दो जहाजी बेड़े और वायुसेना की टुकड़ियां भी शामिल होंगी। शोइगु ने ये भी कहा: “यह 1981 के बाद का सबसे बड़ा युद्धाभ्यास होगा।” उन्होंने कहा: “यह भौगौलिक दायरे और कमांड और नियंत्रण केन्द्रों और इसमें शामिल होने वाले बलों के लिहाज से अभूतपूर्व होगा।” क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने वोस्तोक⎯2018 की वकालत करते हुए कहा कि यह “अनिवार्य” है क्योंकि रूस के पास मौजूदा अंतरराष्ट्रीय स्थिति में अपना बचाव करने की क्षमता और सामर्थ्य होना चाहिए। रूस का मानना है कि “अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियां प्राय: आक्रामक और शत्रुतापूर्ण हो जाती हैं।” वोस्तोक⎯2018 में रूसी सेना के अलावा चीनी और मंगोलियाई सेनाएं भी हिस्सा लेंगी। चीन ने कहा कि वो “करीब 3,200 सैनिक, 900 से ज्यादा हथियार और 30 फिक्सड विंग विमान और हेलीकॉप्टर भेजेगा।” रूसी विश्लेषकों का कहना है “रूस⎯चीन साझेदारी वास्तव में सैन्य गठबंधन है, भले ही इसे औपचारिक रूप नहीं दिया गया है ताकि इसे लेकर भ्रम बरकरार रहे।”

रूस लंबे समय से नाटो के पूर्ववर्ती विस्तार को लेकर चिंतित रहा है और इस तरह के सैन्याभ्यास को नजदीकी पड़ोस में किसी संभावित सैन्य कार्रवाई के प्रतिरोधक के तौर पर देखा जाता हैं। यह युद्धाभ्यास वैसे मौके पर हो रहा है जब हाल ही में पश्चिम के साथ रूस के राजनीतिक और रणनीतिक संबंध काफी खराब हो चुके हैं जिसका एक बड़ा कारण 2014 में क्रिमिया पर रूस का कब्जा है। अमेरिका और यूरोप के चुनावों में रूसी दखलंदाजी के आरोपों की वजह से स्थिति नहीं सुधर पाई है। उक्रेन संकट के बाद रूस ने चीन के साथ मजबूत रणनीतिक संबंध बनाने चाहे। वोस्तोक⎯2018 में चीन की भागीदारी के बारे में क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्रि पेस्कोव ने कहा कि ये दोनों पक्षों के बीच विस्तारित साझेदारी का एक प्रतीक है। हांलाकि चीन ने इस बारे स्थिति साफ करने की कोशिश करते हुए कहा कि युद्धाभ्यास किसी खास देश के खिलाफ नहीं है, लेकिन नाटो देशों में इसे लेकर संदेह का वातावरण है खासकर जिन देशों की सीमा रूस की सीमा से लगी है। नाटो के कार्यकारी उप प्रवक्ता डिलन व्हाइट ने प्रेस को जारी बयान में कहा: “हम पिछले कुछ समय से देख रहे हैं कि रूस का तेवर आक्रामक हो रहा है और वो रक्षा बजट में खासी बढ़ोतरी कर रहा है। साथ ही अपनी सैन्य उपस्थिति भी बढ़ा रहा है।”

2009 के बाद से रूस ने समय समय पर सैन्य अभ्यास किये हैं, आम तौर पर हर चार साल में। हांलाकि क्रिमिया पर कब्जे के बाद नाटो इस तरह के युद्धाभ्यास को लेकर ज्यादा चिंतित हो गया है।

2009 के बाद से रूस ने समय समय पर सैन्य अभ्यास किये हैं, आम तौर पर हर चार साल में। हांलाकि क्रिमिया पर कब्जे के बाद नाटो इस तरह के युद्धाभ्यास को लेकर ज्यादा चिंतित हो गया है। उदाहरण के लिए, पिछले साल के जैपेड⎯2017 अभ्यास में बेलारूस औऱ रूस के पश्चिमी सीमा से लेकर आर्कटिका तक के विस्तृत इलाके में युद्धाभ्यास किया गया था। हांलाकि रूस ने दावा किया था कि इस अभ्यास में सिर्फ 12,000 सैनिकों ने हिस्सा लिया था लेकिन पश्चिमी देशों का मानना है वहां ये संख्या करीब 1,00,000 थी। उसी तरह उत्तरी कॉकस इलाके में जार्जिया की सीमा पर रूस के 15 दिनों के युद्धाभ्यास की वजह से जार्जिया और अन्य निकटवर्ती देशों की चिंता बढ़ गयी थी।

नाटो के उन अभ्यासों को लेकर रूस की अपनी चिंताएं हैं जिनमें पूर्वी यूरोपीय देश शामिल होते हैं। इन अभ्यासों में से कई में संभावित रूसी हमले के समक्ष कैसे बचाव करना है इसकी तैयारी होती है। इसी साल गर्मियों में 19 देशों ने सबरे स्ट्राइक अभ्यास में हिस्सा लिया था जो एस्टोनिया, लाटविया, लिथुआनिया और पोलैंड में आयोजित किया गया था। इस अभ्यास में भी संभावित रूसी हमले को ध्यान में रख कर तैयारी की गयी थी। पश्चिमी देशों के बीच ताकत के प्रदर्शन के लिए ब्रिटेन समेत 13 देशों ने जार्जिया की राजधानी तिब्लिसी के बाहरी इलाके वाजियानी में नोबल पार्टनर अभ्यासों में हिस्सा लिया था। ये चौथा मौका था जब जार्जिया ने नोबल पार्टनर अभ्यास का आयोजन किया था। भले ही जार्जिया नाटो का सदस्य नहीं है लेकिन ये नाटो रिस्पांस फोर्स में योगदान देता है और नाटो ने ये तर्क देते हुए इन अभ्यासों को सही साबित करने की कोशिश की है कि रूस से खतरा वास्तविक है खासकर पूर्वी यूरोप के सदस्य देशों को। दूसरी ओर रूस ने इन अभ्यासों की ये कहते हुए आलोचना की है कि अमेरिका के नेतृत्व वाला पश्चिम सिर्फ “रूसोफोबिया” रच रहा है और इस तरह के अभ्यास “सैन्य भावनाएं” भड़का सकते हैं और तनाव बढ़ा सकते हैं।

लेकिन ज्यादा गंभीर बात ये है कि रूस और चीन के बीच सितंबर महीने का सैन्य अभ्यास दोनों देशों के बीच की बढ़ती नजदीकियों को जाहिर करेगा और वो भी ऐसे वक्त में जब अमेरिका ने रूस और चीन को “संशोधनवादी शक्तियों” की संज्ञा दी है जो “अमेरिकी सुरक्षा और समृद्धि को चोट पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं।”

रूस और नाटो सदस्यों के ये युद्धाभ्यास कितने अनिवार्य हैं इसे दोनों पक्षों के बीच शत्रुतापूर्ण संबंधों के मद्देनजर समझा जा सकता है। इन अभ्यासों में चार वैसे देशों आर्मेनिया, अजरबैजान, जार्जिया और उक्रेन ने भी हिस्सा लिया था जो नाटो के सदस्य देश नहीं हैं। लेकिन इन अभ्यासों ने अकस्मात टकराव और राजनीतिक संबंधों में जारी तनाव के बढ़ने की आशंकाएं बढ़ा दी हैं। लेकिन ज्यादा गंभीर बात ये है कि रूस और चीन के बीच सितंबर महीने का सैन्य अभ्यास दोनों देशों के बीच की बढ़ती नजदीकियों को जाहिर करेगा और वो भी ऐसे वक्त में जब अमेरिका ने रूस और चीन को “संशोधनवादी शक्तियों” की संज्ञा दी है जो “अमेरिकी सुरक्षा और समृद्धि को चोट पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं।” हांलाकि चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति को लेकर रूस एक हद तक सशंकित रहा है लेकिन दोनों देशों के बीच तथाकथित व्यावहारिक संबंध ज्यादा रणनीतिक बनते नजर आ रहे हैं। जैसा कि कुछ विशेषज्ञों ने रेखांकित किया है “हांलाकि रूस और चीन के बीच काफी अविश्वास है लेकिन रूस के पास चीन के साथ काम करने के अलावा और कोई चारा नहीं है, विशेष तौर पर ऐसे समय में जब अमेरिका के साथ उसके संबंध अस्थिर हैं और पश्चिमी प्रतिबंधों के प्रभावों को नकारने के लिए उस चीन के वित्तीय समर्थन की जरूरत है।”

चीन ने कहा है कि उसकी भागीदारी से “चीन⎯रूस व्यापक रणनीतिक साझेदारी मजबूत होगी और दोनों सेनाओं के बीच व्यावहारिक और मैत्रीपूर्ण समन्वय बेहतर होगा। इससे कई सुरक्षा संबंधी खतरों से संयुक्त रूप से निबटने की दोनो देशों की क्षमता बढ़ेगी जो क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा को बनाये रखने में मददगार होगा।” अन्य विशेषज्ञों ने रेखांकित किया है कि रूस चीन को ये गलतफहमी नहीं होने देना चाहता कि ये अभ्यास उसके खिलाफ है। चीन के सैन्य सूत्रों ने भी बताया जाता है, कहा है कि वे सीरिया में रूस के सेन्य अनुभवों का लाभ लेना चाहते हैं क्योंकि “पीएलए एक ऐसा इकलौता सैन्य बल है जिसे लड़ाई का कोई अनुभव नहीं है और वो वास्तविक सबकों से कुछ सीखने को लेकर बेहद उत्सुक है।” रूस और चीन के बीच खासकर रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में सशक्त रणनीतिक साझेदारी का एशियाई सैन्य संतुलन पर महत्वपूर्ण असर होगा। सिर्फ एक उदाहरण इसके लिए काफी है कि भारत जो रूस का सबसे नजदीकी साझेदार है वो भी चीन के प्रति रूस की बढ़ती नजदीकी से काफी चिंतित होगा क्योंकि इसका असर भारत⎯रूस के भविष्य के संबंधों पर हो सकता है।

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