रूस ने इस सदी की शुरुआत से विश्व राजनीति में अपना पुराना रुतबा फिर से हासिल करने के लिए सिलसिलेवार तरीके से कोशिशें कीं. घरेलू राजनीतिक स्थिरता ने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के एकछत्र नेतृत्व में इन प्रयासों को आसान बनाया. नतीजतन 2014 में रूस ने क्रीमिया को मिला लिया, पूर्वी यूक्रेन में रूस समर्थक विद्रोहियों को बढ़ावा दिया, निकट-पूर्व में फिर से आधिपत्य स्थापित किया और सैन्य समर्थन देकर 2015 के बाद से सीरिया में असद का सत्ता में बना रहना सुनिश्चित किया. रूस का तुर्की, ईरान और सीरिया के साथ गर्मजोशी भरा रिश्ता इसे पश्चिम एशिया में एक बड़ा खिलाड़ी बना देता है. चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के लिए रूस के समर्थन और भारत व पाकिस्तान के साथ बढ़ते संबंधों ने एशिया में इसकी भूमिका को बढ़ा दिया है. चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस और भारत की तरह रूस ने भी अफ़्रीकी महाद्वीप में अपने हितों का नियमित अनुसरण करना शुरू कर दिया है. अक्टूबर 2019 में सोची में हुए पहले रूस-अफ़्रीका शिखर सम्मेलन ने साझा चिंताओं के कई क्षेत्रों में रूस और 54 अफ़्रीकी देशों के बीच संबंधों को बढ़ावा देने की शुरुआत की है. सोची शिखर सम्मेलन में 40 अफ़्रीकी नेता और 3000 कारोबारी इकट्ठा हुए थे. सोची शिखर सम्मेलन के माध्यम से पूरे अफ़्रीका में अपनी मौजूदगी दर्ज कर रूस ने अपना वैश्विक कद भी बढ़ाने का प्रयास किया. दरअसल यूरेशियाई क्षेत्र में रूस-चीन सहयोग के साथ ही जी21, एससीओ (शंघाई सहयोग संगठन) और ब्रिक्स (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन व दक्षिण अफ़्रीका जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों में रूस की महत्वपूर्ण भूमिका विश्व राजनीति में रूस की बढ़ती भूमिका की साफ़ परिचायक है. विश्व राजनीति में रूस-चीन की डरावनी साझीदारी का मुकाबला करने और अफ़्रीका में अमेरिकी हितों की सुरक्षा के लिए अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन ने 2018 में नई अमेरिकी रणनीति की घोषणा की जिसमें अफ़्रीका के विकास को बढ़ावा देने से लेकर आतंकवाद का मुकाबला करने तक के क्षेत्र शामिल हैं.
रूस ने अपनी तरफ़ से अफ़्रीकी देशों के साथ अपने सहयोग को फिर से बहाल करते हुए उस मददगार भूमिका का पूरा लाभ उठाया, जो सोवियत संघ ने राष्ट्रीय मुक्ति संघर्षों के साथ-साथ अफ़्रीका में रंगभेद विरोधी संघर्षों के समर्थन में निभाई थी.
रूस ने अपनी तरफ़ से अफ़्रीकी देशों के साथ अपने सहयोग को फिर से बहाल करते हुए उस मददगार भूमिका का पूरा लाभ उठाया, जो सोवियत संघ ने राष्ट्रीय मुक्ति संघर्षों के साथ-साथ अफ़्रीका में रंगभेद विरोधी संघर्षों के समर्थन में निभाई थी. इसके अलावा सोवियत संघ ने शीत युद्ध के दौरान घाना, गिनी, माली (1960) और अल्जीरिया, इथोपिया, लीबिया, अंगोला, मोज़ाम्बिक, ज़िम्बाब्वे (1980) जैसे तथाकथित कट्टरपंथी अफ़्रीकी देशों को आर्थिक मदद के साथ-साथ सैन्य मदद दी थी, जिन्होंने पश्चिमी साम्राज्यवाद का विरोध किया था. रूस ने आमतौर पर अपना पश्चिम-विरोधी रुख़ क़ायम रखा है. आज के दौर में अफ़्रीका के साथ अपने संबंधों को पुनर्जीवित करते हुए, रूस के भू-रणनीतिक हितों ने लीबिया, कार (सीएआर- सेंट्रल अफ़्रीकन रिपब्लिक) और हॉर्न ऑफ अफ़्रीका (उत्तर पूर्वी अफ़्रीका) में रूसी नीति को आकार दिया है.
ज़ाहिर तौर पर रूस के पश्चिम एशिया और भूमध्य सागर में सुरक्षित रखने के लिए व्यापक हित हैं. नतीजतन यूरोप के दक्षिणी तट पर अपनी ख़ास स्थिति के साथ तेल उत्पादक लीबिया एक स्वाभाविक निशाना है. रूस तुर्की का साथ लेकर संयुक्त्त राष्ट्र के समर्थन वाली त्रिपोली सरकार के ख़िलाफ विद्रोही नेता ख़लीफ़ा हफ़्तार का समर्थन कर कई बार मुंह की खाने के बावजूद लीबिया के गृहयुद्ध में दख़ल दे रहा है. बताया जाता है कि जून 2020 में युद्ध लड़ रहे रूसी भाड़े के सैनिकों में से 1,200 जवान कथित रूप से क्रेमलिन से करीबी संबंध रखने वाले व्यापारी येवगेनीव प्राइगोज़िन द्वारा नियंत्रित वागनेर ग्रुप के थे. इसके अलावा, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ख़लीफ़ा हफ़्तार को उन्नत रूसी हथियारों के साथ-साथ चीन निर्मित ड्रोन से मदद कर रहा है. इससे भी बढ़कर मिस्र, फ्रांस, जॉर्डन और सऊदी अरब अपने फ़ायदे के लिए ख़लीफ़ा हफ़्तार को समर्थन दे रहे हैं. इसी तरह 2017 से रूस की यूरेनियम समृद्ध देश कार में दिलचस्पी बढ़ी है. कार सोने और हीरे की खानों के अधिकार मॉस्को को औने-पौने दाम पर बेच रहा है. यहां रूसी मौजूदगी ट्रेनरों, सैनिकों और वालरी ज़ख़ारोव, जो कि एक रूसी नागरिक और राष्ट्रपति टोऊडेरा का सुरक्षा सलाहकार है, के माध्यम से महसूस की जा सकती है. पश्चिमी देशों ने सूडान का साथ छोड़ दिया तो रूस ने 2000 के दशक में दारफ़ुर संकट के दौरान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में पक्ष लेकर तेल समृद्ध सूडान में उमर अल बशीर (1989-2019) की तानाशाह सरकार का साथ दिया था, जिससे उसे मुस्लिम देशों में समर्थन मिला. इसके अलावा, शीत युद्ध के दौरान हॉर्न ऑफ अफ़्रीका (उत्तर-पूर्वी अफ़्रीका) में पांव जमाने के लिए सोवियत रूस ने बारी-बारी से सोमालिया और इथोपिया को दोस्त बनाया. चूंकि फ़्रांस, चीन और अमेरिका पहले से ही हॉर्न ऑफ अफ़्रीका में अपनी मौजूदगी दर्ज करा चुके हैं; रूसी अधिकारी इसके किनारों पर एक बेस स्थापित करने की दिशा में काम कर रहे हैं. सबसे ज़्यादा संभावना है कि यह बेस स्व-घोषित तटवर्ती देश सोमालीलैंड में बर्बेरा के बंदरगाह के पास बनाया जाएगा.
सोची शिखर सम्मेलन के दौरान राष्ट्रपति पुतिन ने दावा किया कि रूस का 30 से अधिक अफ़्रीकी देशों के साथ हथियारों की आपूर्ति का सौदा है. रूस कभी भी पश्चिमी देशों की तरह मानवाधिकारों के उल्लंघन की परवाह नहीं करता है, यहां तक कि तानाशाह सरकारों को हथियारों की सप्लाई में भी.
अफ़्रीकी देशों के साथ रूस के सैन्य संबंध का लंबा इतिहास रहा है. असल में, रंगभेदी सरकार के बाद राष्ट्रपति बने थाबो मबेकी और जैकब जुमा जैसे नेताओं ने सोवियत संघ में सैन्य प्रशिक्षण हासिल किया था. इसी तरह अंगोला के मौजूदा राष्ट्रपति जाओ लौरेंको ने 1970 के दशक में लेनिन पोलिटिकल/मिलिट्री अकादमी में प्रशिक्षण पाया था. दक्षिण अफ़्रीका और अंगोला प्राकृतिक संसाधन संपन्न देश हैं. रूस धीरे-धीरे महाद्वीप के उत्तर में अल्जीरिया से लेकर दक्षिण में दक्षिण अफ़्रीका तक में अपनी गतिविधियों का विस्तार कर रहा है. पहला और सबसे पुराना ग्राहक होने के नाते, रूस लगातार अल्जीरिया को हथियार बेच रहा है. सोची शिखर सम्मेलन में रूस ने अफ़्रीकी देशों से 14.6 अरब डॉलर का हथियार ऑर्डर हासिल किया और बताते चलें कि रूसी हथियार निर्यात का एक तिहाई अफ़्रीकी महाद्वीप को जाता है. 2017-18 में रूस ने नाइजीरिया, अंगोला, इक्वेटोरियल गिनी, सूडान, माली और बर्किनो फ़ासो जैसे प्राकृतिक संसाधन संपन्न देशों के साथ हथियार सौदे किए. इसके अलावा सोची शिखर सम्मेलन के दौरान राष्ट्रपति पुतिन ने दावा किया कि रूस का 30 से अधिक अफ़्रीकी देशों के साथ हथियारों की आपूर्ति का सौदा है. रूस कभी भी पश्चिमी देशों की तरह मानवाधिकारों के उल्लंघन की परवाह नहीं करता है, यहां तक कि तानाशाह सरकारों को हथियारों की सप्लाई में भी. 2014 में ज़िम्बाब्वे की दमनकारी मुगाबे सरकार से प्लेटिनम के बदले हथियारों का सौदा ऐसा ही एक उदाहरण है. इसके अलावा, बशीर के अधीन सूडान ने 2017 तक अपने आधे हथियार रूस से ख़रीदे और अफ़्रीका में रूस के हथियारों का दूसरा सबसे बड़ा ख़रीदार बना. रूस ने बशीर सरकार की सुरक्षा बढ़ाने के लिए निजी सैन्य ठेकेदारों की मदद मुहैया कराई थी. 2017 के बाद से रूस ने अल क़ायदा और इस्लामिक स्टेट (आईएस) से जुड़े संगठनों द्वारा सैन्य समर्थित आतंकवाद से लड़ने के लिए अफ़्रीकी समस्याओं का अफ़्रीकी समाधान खोजने की अपनी कोशिश में साहेल 5 देशों- यानी माली, बर्किनो फासो, मॉरिटियाना, नाइजर और चाड का समर्थन करना शुरू कर दिया. इससे भी बड़ी बात, रूस गैस समृद्ध मोज़ाम्बिक में पांव जमाना चाहता है. इसके भाड़े के सैनिक, जिसमें वैगनर के सैनिक भी शामिल हैं, अक्टूबर 2019 से जिहादी आतंकवाद से मुकाबला कर रहे हैं. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि रूस भले ही चीन की तरह अफ़्रीकी देशों को पैसा देने में असमर्थ है, लेकिन यह हथियारों के ज़रिये सैन्य ताक़त दे सकता है.
ज़मीन पर रूस की ताकत प्राकृतिक संसाधन संपन्न अफ़्रीकी देशों में बढ़ती रूस की सरकारी और निजी स्वामित्व वाली कंपनियों की मौजूदगी में दिखाई देती है. दुनिया की सबसे बड़ी हीरा खनन कंपनी अलरोसा अंगोला, बोत्सवाना और ज़िंबाब्वे में काम कर रही है. रूसी तेल और गैस कंपनियां जैसे कि सेनेफ़्ट (Rseneft), लकऑयल (Luckoil), गैज़ोप्रोमनेफ़्ट (Gazoprom), गज़ोप्रोमनेफ़ (Gazopromneft), टैटनेफ़्ट (Tatneft) और रोज़जिओलॉजिया (Rosgeologia) ये सभी अफ़्रीका के तमाम देशों में, ख़ासतौर से उत्तरी और पश्चिमी अफ़्रीका में कारोबार कर रही हैं. अभी रूस का अफ़्रीका की ऊर्जा मार्केट में छह फ़ीसद हिस्सेदारी है, जिसे वह 2025 तक 15 प्रतिशत तक करना चाहता है. मोज़ाम्बिक, तंज़ानिया, मिस्र और इक्वेटोरियल गिनी जैसे देशों के अगले पांच वर्षों के भीतर पूरी तरह काम शुरू कर देने की उम्मीद है. इसके अलावा, ऊर्जा कंपनी रूसी सरकारी परमाणु ऊर्जा निगम (रोज़ाटॉम) ज़ाम्बिया और रवांडा सहित 14 अफ़्रीकी देशों में काम कर रही है. यह मेडिकल, कृषि और पनबिजली क्षेत्र जैसे नागरिक उद्देश्यों के लिए परमाणु और ग़ैर-परमाणु ऊर्जा प्रदान करने में पूरी तरह सक्षम है. यह 2026 में पूरा होने वाली मिस्र की अल दबाबा परमाणु ऊर्जा परियोजना का निर्माण शुरू करने वाला है. यह मिस्र का पहला परमाणु ऊर्जा प्लांट होगा. रसेल नाम की एक और रूसी कंपनी गिनी में, जो दुनिया के सबसे बड़े बॉक्साइट भंडार का मालिक है, बॉक्साइट निकाल रही है. जब गिनी के राष्ट्रपति अल्फा कोंडे ने राष्ट्रपति पद के दो कार्यकालों की रोक को ख़त्म करने की कोशिश की और तीसरा कार्यकाल लेने के लिए नया संविधान पेश किया तो रूस ने उन्हें ज़रूरी समर्थन दिया, हालांकि, पूर्व औपनिवेशिक शासक फ़्रांस ने उन्हें संभावित नागरिक अशांति के बारे में चेतावनी दी थी. इसके अलावा रूसी भूगर्भ वैज्ञानिक मेडागास्कर, अल्जीरिया, लीबिया और घाना जैसे देशों में खोजी अभियानों में जुटे हैं.
जब गिनी के राष्ट्रपति अल्फा कोंडे ने राष्ट्रपति पद के दो कार्यकालों की रोक को ख़त्म करने की कोशिश की और तीसरा कार्यकाल लेने के लिए नया संविधान पेश किया तो रूस ने उन्हें ज़रूरी समर्थन दिया, हालांकि, पूर्व औपनिवेशिक शासक फ़्रांस ने उन्हें संभावित नागरिक अशांति के बारे में चेतावनी दी थी.
चीन, भारत, यूएसए और यूरोपीय यूनियन के देशों की तुलना में अफ़्रीका के साथ रूस का कारोबार बहुत मामूली है. अगस्त 2019 तक इसमें 17 फ़ीसद की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है और अभी तक अफ़्रीका के साथ कुल व्यापार 20 अरब डॉलर के आंकड़े पर पहुंचा है. अल्जीरिया रूस का प्रमुख और पारंपरिक व्यापारिक साझीदार बना हुआ है. उप-सहारा अफ़्रीका में अभी तक व्यापारिक संबंधों का रूसी नेटवर्क मज़बूत नहीं हुआ है.
संक्षेप में, दुनिया के तमाम बड़े क्षेत्रों में रूस की प्रभावशाली भूमिका के अनुरूप, रुस-अफ़्रीकी संबंध कई क्षेत्रों में ख़ामोशी से बढ़ रहे हैं. रूस के जारी रक्षा सौदे, निवेश और साथ ही ऊर्जा क्षेत्र में शामिल देश और निजी कंपनियों द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका, बढ़ते व्यापार, विकास सहयोग की परियोजनाएं और भूमिका के साथ-साथ सबसे महत्वपूर्ण बात अफ़्रीकी देशों लीबिया, द कार और गिनी के घरेलू मामलों में भाड़े के सैनिकों और वैगनर की मदद से दख़लअंदाजी की भूमिका वास्तव में अफ़्रीका में एक प्रमुख शक्ति के रूप में रूस की बढ़ती भूमिका की मजबूत संभावनाओं का संकेत देते हैं.
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