Author : Shoba Suri

Published on Nov 16, 2020 Updated 0 Hours ago

प्रोटीन को लेकर समझ, जानकारी और खपत के बारे में भारत के 16 शहरों में हाल के एक सर्वे से पता चला कि रोज़ के खान-पान में प्रोटीन के बारे में जानकारी की कमी है.

भारतीयों के खानपान पर शोध; हर व्यक्ति की थाली में होती है प्रोटीनयुक्त भोजन की कमी

शरीर के लिए बेहद ज़रूरी प्रोटीन न सिर्फ़ भारतीयों के खान-पान में कम है बल्कि अक्सर उसकी अनदेखी भी की जाती है. भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के मुताबिक हर व्यक्ति के खाने में रोज़ 48 ग्राम प्रोटीन होना चाहिए लेकिन भारतीय उससे काफ़ी कम प्रोटीन लेते हैं.

एक औसत भारतीय वयस्क के लिए शरीर के वज़न के मुताबिक़ 0.8 से 1 ग्राम प्रति किलो प्रोटीन खाने में लेने की सिफ़ारिश की गई है लेकिन औसत खपत सिर्फ़ 0.6 ग्राम प्रति किलो है. 2017 के एक सर्वे के मुताबिक़ 73 प्रतिशत भारतीयों में प्रोटीन की कमी है जबकि 90 प्रतिशत लोग शरीर के लिए प्रोटीन की रोज़ाना ज़रूरत के बारे में नहीं जानते. प्रोटीन को लेकर समझ, जानकारी और खपत के बारे में भारत के 16 शहरों में हाल के एक सर्वे से पता चला कि रोज़ के खान-पान में प्रोटीन के बारे में जानकारी की कमी है. प्रोटीन की खपत को लेकर अलग-अलग कहानियां हैं. 85 प्रतिशत लोग मानते हैं कि प्रोटीन की खपत से वज़न में बढ़ोतरी होती है.

एक औसत भारतीय वयस्क के लिए शरीर के वज़न के मुताबिक़ 0.8 से 1 ग्राम प्रति किलो प्रोटीन खाने में लेने की सिफ़ारिश की गई है लेकिन औसत खपत सिर्फ़ 0.6 ग्राम प्रति किलो है. 

वैश्विक स्तर पर प्रोटीन की खपत बढ़ रही है, औसतन 68 ग्राम प्रोटीन प्रति व्यक्ति प्रतिदिन लोग ले रहे हैं (आंकड़ा 1). एशिया के दूसरे देशों के साथ-साथ विकसित देशों के मुक़ाबले में भारत में औसतन सबसे कम प्रोटीन लोग लेते हैं (47 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिदिन). नेशनल सैंपल सर्वे 2011-12 संकेत देता है कि शहरी (4 प्रतिशत) और ग्रामीण (11 प्रतिशत) दोनों इलाक़ों में प्रति व्यक्ति प्रोटीन की खपत कम हो रही है. भारतीय खाने में अनाज की अधिकता है और 60 प्रतिशत प्रोटीन अनाज से आता है जो पाचनशक्ति के हिसाब से ठीक नहीं है. आठ शहरों में हुए एक अध्ययन से पता चला कि 30 से 55 साल के बीच के 71 प्रतिशत व्यक्ति खराब मांसपेशी की समस्या से जूझ रहे हैं. आंकड़े शहरों के साथ-साथ राज्यों के बीच परिवर्तन का संकेत देते हैं. उदाहरण के लिए, लखनऊ में सबसे ज़्यादा 81 प्रतिशत लोग खराब मांसपेशी की समस्या से प्रभावित हैं जबकि दिल्ली में ये 64 प्रतिशत है.

क्या खाना चाहिए, कितना खाना चाहिए, पोषक तत्वों की ज़रूरत और आसानी से उपलब्ध प्रोटीन के स्रोतों की जानकारी के बारे में जागरुकता फैलाने की सख़्त ज़रूरत है. सार्वजनिक वितरण प्रणाली के ज़रिए प्रोटीन से भरपूर खाद्य कम दर पर मुहैया कराया जाना चाहिए.

EAT लैंसेट-कमीशन की रिपोर्ट बताती है कि भारतीय ज़्यादातर सामान्य कार्बोहाइड्रेट का सेवन करते हैं जबकि मिश्रित कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फल और सब्ज़ी कम खाते हैं. इंडियन कंज़्यूमर मार्केट 2020 बताता है कि भारत के लोग अनाज, प्रसंस्कृत खाने पर ज़्यादा खर्च करते हैं जबकि प्रोटीन से भरपूर खाने पर खाने-पीने के बजट का सिर्फ़ एक तिहाई खर्च करते हैं. भारत कुपोषण का बोझ भी बर्दाश्त कर रहा है. पांच साल से कम उम्र के 38 प्रतिशत (4 करोड़ 66 लाख) बच्चे कुपोषण के शिकार हैं और क़रीब 15 प्रतिशत (1 करोड़ 44 लाख) मोटापे और ज़्यादा वज़न से जूझ रहे हैं. उम्र, लिंग, सामाजिक-आर्थिक स्थिति के मुताबिक़ मोटापे की मौजूदगी में भिन्नता है. ICMR-INDIAB का अध्ययन बताता है कि भारत में 11.8 से लेकर 31.3 प्रतिशत लोगों में मोटापा है. असंक्रामक रोगों में बढ़ोतरी के साथ ये महत्वपूर्ण है कि पोषक तत्वों की मात्रा और गुणवत्ता में संतुलन बनाया जाए. दाल और दूध जैसे खाने-पीने की चीज़ों की खपत में कमी देखी गई है. खाने में ज़्यादा प्रोटीन वाली चीज़ इंसुलिन के काम करने और डायबिटीज़ दूर करने से जुड़ी है.

भारतीय ज़्यादातर सामान्य कार्बोहाइड्रेट का सेवन करते हैं जबकि मिश्रित कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फल और सब्ज़ी कम खाते हैं. इंडियन कंज़्यूमर मार्केट 2020 बताता है कि भारत के लोग अनाज, प्रसंस्कृत खाने पर ज़्यादा खर्च करते हैं जबकि प्रोटीन से भरपूर खाने पर खाने-पीने के बजट का सिर्फ़ एक तिहाई खर्च करते हैं. 

खाद्य और कृषि संगठन खाद्य सप्लाई चेन के सही ढंग से काम करने और महामारी के दौरान ज़रूरतमंदों को पोषक खाना मुहैया कराने के लिए आर्थिक प्रोत्साहन पर ज़ोर देने की बात करता है. नीति आयोग प्रोटीन से भरपूर खाद्य को सार्वजनिक वितरण प्रणाली में शामिल करने को बढ़ावा देता रहा है- वनस्पति और पशु प्रोटीन दोनों. ये महामारी के दौरान ग़रीब और कमज़ोर परिवारों के लिए सरकार के राहत पैकेज में दिखा भी है.

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के ज़रिए भारत के पोषण कार्यक्रमों ने ग़रीबों को लक्ष्य करके राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत लाभार्थियों को कम दाम पर अनाज मुहैया कराया है जिनमें चावल, गेहूं और बाजरा शामिल हैं. PDS के ज़रिए ग्रामीण इलाक़ों में औसतन 7.2 ग्राम प्रतिदिन और शहरों में औसतन 3.8 ग्राम प्रतिदिन प्रोटीन मुहैया कराने का इंतज़ाम किया गया है. लेकिन इसके बावजूद जितना प्रोटीन ज़रूरी है, वो पूरा नहीं हो पाया है. ज़्यादातर पोषण कार्यक्रमों के तहत प्रोटीन से भरपूर खाद्य मुहैया नहीं कराया जा रहा है. शायद इसकी वजह उपलब्धता और पैसे की कमी ह

करने के लिए भारत सरकार की कई योजनाएं हैं जैसे समन्वित बाल विकास योजना (ICDS) और मध्याह्न भोजन योजना (MDM). ICDS के तहत बच्चों को 500 किलो कैलोरी, जिसमें 12-15 ग्राम प्रोटीन शामिल है, बच्चों को प्रतिदिन मुहैया कराया जाता है जबकि किशोरियों को 25 ग्राम तक प्रोटीन. स्कूल में भोजन योजना के तहत 300 किलो कैलोरी और 8-12 ग्राम प्रोटीन प्रतिदिन मुहैया कराया जाता है. इन सबके बावजूद भारत दुनिया में अल्पपोषित आबादी के मामले में दुनिया में दूसरे स्थान पर है और यहां कुपोषण की दर काफ़ी ज़्यादा है. साल 2020 में लोगों को महामारी के असर से बचाने के लिए सरकार ने ग़रीब कल्याण योजना के तहत अतिरिक्त 22.6 अरब रुपये के राहत पैकेज का एलान किया. इस रक़म से अतिरिक्त 5 किलोग्राम चावल/गेहूं और 1 किलोग्राम दाल प्रति महीने की आपूर्ति का इंतज़ाम किया गया है. लेकिन जब बात लाभार्थियों तक इसकी पहुंच की होती है तो इसे असरदार ढंग से लागू नहीं किया जा सका है.

PDS के ज़रिए ग्रामीण इलाक़ों में औसतन 7.2 ग्राम प्रतिदिन और शहरों में औसतन 3.8 ग्राम प्रतिदिन प्रोटीन मुहैया कराने का इंतज़ाम किया गया है. लेकिन इसके बावजूद जितना प्रोटीन ज़रूरी है, वो पूरा नहीं हो पाया है. 

क्या खाना चाहिए, कितना खाना चाहिए, पोषक तत्वों की ज़रूरत और आसानी से उपलब्ध प्रोटीन के स्रोतों की जानकारी के बारे में जागरुकता फैलाने की सख़्त ज़रूरत है. सार्वजनिक वितरण प्रणाली के ज़रिए प्रोटीन से भरपूर खाद्य कम दर पर मुहैया कराया जाना चाहिए. जो राज्य सार्वजनिक वितरण प्रणाली के ज़रिए (जैसे कि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना) दाल मुहैया करा रहे हैं, वहां लोगों के बीच प्रोटीन की खपत ज़्यादा है. अलग-अलग क्षेत्रों के ज़रिए पहुंच इस समस्या का समाधान हो सकता है. महामारी के दौरान जागरुकता अभियान के ज़रिए इम्युनिटी बढ़ाने वाले सेहतमंद भोजन और प्रोटीन की सही मात्रा के महत्व के बारे में लोगों को बताया जा सकता है. सामुदायिक स्वास्थ्य कर्मियों के ज़रिए ये सामुदायिक स्तर पर किया जा सकता है. स्वास्थ्य कर्मी महिलाओं को खाने-पीने की चीज़ों को पोषक तत्वों से भरपूर बनाने के बारे में बताते हैं.

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