Published on Jan 14, 2019 Updated 0 Hours ago

अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के मौजूदा नियम और संस्थान अब भी एक छोटे से समूह को विशेषाधिकार मुहैया करवाते हैं और आज भी पुरानी परिस्थितियों को ही प्रदर्शित करते हैं। इसमें सुधार नहीं किया गया तो यह नई उभरती चुनौतियों से जूझने की अंतरराष्ट्रीय समुदाय की क्षमता को सीमित ही करेगा।

रायसीना संवाद | नियम निर्माता बन उभरे भारत: विदेश सचिव गोखले

भारत के विदेश सचिव श्री विजय गोखले ने रायसीना डायलॉग में इस बात पर जोर दिया कि भारत को 21वीं सदी में नियम निर्माता के तौर पर उभरना होगा, खास कर साइबरस्पेस जैसे वैश्विक प्रशासन के उभरते क्षेत्रों में।

विदेश सचिव गोखले रायसिना डायलॉग के समापन सत्र की चर्चा में बोल रहे थे। इस सत्र का शीर्षक था — ‘2030 का मार्ग: चुनौतियां, साझेदारी और संभावनाएं।’ अगले दशक की चुनौतियों और बड़े मुद्दों के बारे में चर्चा करते हुए विदेश सचिव गोखले ने तीन दीर्घकालिक प्रवृत्तियों की पहचान की।

पहला, अंतरराष्ट्रीय मामलों में एकतरफा रवैये और बहुपक्षीय रवैये के बीच जारी तनाव। दूसरा है, ‘इंडस्ट्री 4.0’ के नवाचार और उत्पादक लाभ के बीच जारी आपसी विरोधाभास और रोजगार व सामाजिक स्थायित्व पर पड़ने वाले इसके प्रभाव। अंतिम है, जैव प्रौद्योगिकी जैसी उभरती तकनीक और सामाजिक व व्यक्तिगत मूल्यों के बीच बढ़ता भेद।

विदेश सचिव गोखले ने चेताया कि अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के मौजूदा नियम और संस्थान अब भी एक छोटे से समूह को विशेषाधिकार मुहैया करवाते हैं और आज भी पुरानी परिस्थितियों को ही प्रदर्शित करते हैं। उन्होंने सावधाव करते हुए कहा, अगर इसमें सुधार नहीं किए गए तो यह नई उभरती चुनौतियों से जूझने की अंतरराष्ट्रीय समुदाय की क्षमता को सीमित करेगा।

युनाइटेड किंगडम के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और कैबिनेट सचिव श्री मार्क सिडविल ने कहा कि 21वीं सदी की सबसे प्रभावी प्रवृत्ति है आर्थिक शक्तियों का पूर्व की ओर झुकाव; और ऑफलाइन दुनिया व साइबर संसार के बीच आपसी मेल।

साथ ही उन्होंने कहा कि हमें साइबर संसार को एक ऐसी जगह के रूप में देखा जाना चाहिए, “जहां लोग अपना जीवन जीते हैं, कारोबार करते हैं और उभरते खतरों का सामना करते हैं।”

श्री सिडवेल ने कहा कि ‘इंडस्ट्री 4.0’ सभी को समाहित करने वाला शब्द-युग्म है जो उभरती तकनीक की विस्तृत श्रंखला को व्याख्यायित करता है। उन्होंने कहा, “इनका विकास समाजों के स्वरूप को इतिहास में हुए सभी औद्योगिक क्रांतियों से ज्यादा गंभीरता से बदलेगा।” उन्होंने चेताया कि ये घटनाएं घटित हो रही हैं तो इसके साथ ही वैश्वीकरण को ले कर असंतोष भी उभर रहा है।

साथ ही श्री सिडवेल ने कहा कि राष्ट्रों के बीच नियम आधारित व्यवस्था में रुचि के साथ की गई साझेदारी अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इन चुनौतियों से निपटने में ज्यादा सक्षम बनाएंगीं।

फ्रांस के यूरोप और विदेश मामलों के मंत्रालय के महा सचिव श्री मॉरिस गोर्डाल्ट मोंटेग्ने ने भी इसी तरह सावधान करते हुए कहा कि अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में लगातार अनिश्चितता बढ़ रही है।

भविष्य के बारे में उन्होंने तीन बड़ी भविष्यवाणियां कीं: पहली, राष्ट्रों के बीच अपने स्वहित को प्राथमिकता देने का चलन अभी कुछ समय जारी रहेगा। दूसरा, अगर अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था इसी तरह अटकी रही तो मुद्दों पर आधारित गठजोड़ और तेज होंगे। अंतिम में वे इस बात को ले कर आशान्वित हैं कि यूरोपीय संघ बढ़ती असमानता और लोकलुभावन कदमों को दुरुस्त करने के लिहाज से व्यवस्था विकसित कर लेगा।

महा सचिव मोंटेग्ने ने माना कि ‘पश्चिम’ ही अब अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को प्रदर्शित नहीं करता और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में एक खास तरह की पुनर्संरचना जरूरी है।

उन्होंने भारत की संयुक्त राष्ट्र में सुधार और सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता हासिल करने की कोशिश को फ्रांस के लंबे समय से जारी समर्थन का उदाहरण दिया।

महा सचिव मोंटेग्ने ने भारत के साथ संबंधों के बारे में काफी विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि फ्रांस और भारत इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से सहयोग कर रहे हैं और अंतरराष्ट्रीय सोलर अलायंस के जरिए वैश्विक समुदाय के लिए व्यापक हित साध रहे हैं।

उन्होंने विश्वास जताया कि ऐसी साझेदारियां अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को सुधारने के लिहाज से काफी उपयोगी होंगी।


रायसीना डायलॉग विदेश मंत्रालय और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की ओर से संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था। ‘ए वर्ल्ड रिआर्डर: न्यू जियोमेट्री, फ्लुइड पार्टनरशिप, अनसर्टेन आउटकम्स’ शीर्षक से आयोजित इस साल की चर्चा में 600 प्रतिनिधियों और वक्ताओं सहित कुल 1,800 से ज्यादा लोगों ने भाग लिया।

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