Author : Harsh V. Pant

Published on Mar 02, 2020 Updated 0 Hours ago

स्पष्ट होता जा रहा है कि कम्युनिस्ट पार्टी और शी जिनपिंग को सत्ता में बनाए रखने के लिए आम चीनियों को क्या कीमत चुकानी पड़ रही है

विकास के ‘चीनी’ मॉडल पर दबाव

वुहान में जो शुरू हुआ था, वह अब वैश्विक महामारी है. फिर भी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि अभी इसे सर्वव्यापी महामारी करार देना शायद जल्दबाजी होगी, लेकिन देशों को पूरी तैयारी की मुद्रा में रहना चाहिए. चीन में जान गंवाने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है. 77 हजार से ज़्यादा लोग नोवेल कोरोना वायरस से संक्रमित हैं. अन्य करीब 30 देशों में संक्रमण के हजारों मामले सामने आ चुके हैं. हाल के दिनों में ईरान और इटली इस बीमारी के बडे़ केंद्र के रूप में उभरे हैं. यात्रियों से भरे कई जहाज हैं, जो समुद्र में फंसे हुए हैं. उन पर कोरोना वायरस का संक्रमण है या हो सकता है. हर बीतते दिन के साथ वैश्विक परिवहन और अर्थव्यवस्था पर असर बढ़ता जा रहा है. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी पर दबाव साफ तौर पर बढ़ रहा है.

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस महीने की शुरुआत में एक अस्पताल की यात्रा की और घातक कोरोना वायरस के प्रकोप से निपटने के लिए निर्णायक उपाय करने के निर्देश दिए. अस्पताल में चीनी राष्ट्रपति ने भी अपने शरीर की जांच कराई है. शी जिनपिंग महामारी फैलने के बाद ज्यादा सामने नहीं आए थे और प्रधानमंत्री को ज्यादातर काम करने दिया था, लेकिन अब जिस तरह से उनके बयान आ रहे हैं, शी ने भी अब अपने तेवर बदल लिए हैं. यह महामारी आम चीनियों के साथ-साथ कम्युनिस्ट पार्टी और राष्ट्रपति शी के लिए भी सबसे गंभीर संकट के रूप में उभरी है. मरने वालों की संख्या 2002-03 में सार्स के शिकार हुए लोगों की संख्या को पार कर गई है. ध्यान रहे, चीन सार्स के संक्रमण को छिपाने के कारण वैश्विक आलोचना का शिकार हुआ था.

वुहान की नगरपालिका सरकार ने प्रारंभिक रूप से जानकारियों को छिपाया था, सूचना देने में पारदर्शिता का अभाव था. समय पर सूचना और तैयारी न होने की वजह से वायरस को प्रभावी ढंग से काबू करने में नाकामी हाथ लगी. नोवेल कोरोना वायरस के खिलाफ़ शुरू में ही पूरी मुस्तैदी शुरू हो जानी थी, पर ऐसा नहीं हुआ.

आश्चर्य नहीं कि चीनी सरकार को हुबेई प्रांत के शहरों में तालाबंदी करके, देश भर से परिवहन लिंक काटकर, पर्यटन केंद्रों को बंद करने के साथ-साथ लाखों लोगों को घर के अंदर रहने के लिए मजबूर किया है. चीन इस बीमारी से अभूतपूर्व ढंग से निपट रहा है. बीजिंग, कुनमिंग, ग्वांगझू और शेनझेन जैसे प्रमुख शहरों को सुरक्षित करने की कोशिश में कारोबार ख़राब हुआ है. एक तरह से लगभग 5.60 करोड़ लोगों को अलग-थलग या निगरानी में रखा गया है. हालांकि, ये सख्त कदम कुछ देर से उठाए गए हैं और विकास के चीनी मॉडल की कमजोरियां एक बार फिर उजागर हो गई हैं. वुहान की नगरपालिका सरकार ने प्रारंभिक रूप से जानकारियों को छिपाया था, सूचना देने में पारदर्शिता का अभाव था. समय पर सूचना और तैयारी न होने की वजह से वायरस को प्रभावी ढंग से काबू करने में नाकामी हाथ लगी. नोवेल कोरोना वायरस के खिलाफ़ शुरू में ही पूरी मुस्तैदी शुरू हो जानी थी, पर ऐसा नहीं हुआ.

नतीजतन, सोशल मीडिया पर व्यक्त की जा रही प्रतिक्रियाओं से लगता है कि चीनी सरकार के खिलाफ लोगों में व्यापक गुस्सा है. व्हिसल ब्लोअर डॉक्टर ली वेनलियांग की मौत पर भी नाराज़गी है. डॉक्टर ली एक नेत्र विशेषज्ञ थे और कोरोना वायरस के फैलने पर उन्होंने ही सबसे पहले आगाह किया था. तब कम्युनिस्ट पार्टी के पदाधिकारियों ने सूचना दबाने की कोशिश की थी. अंतत: ली वेनलियांग स्वयं इसी वायरस की भेंट चढ़ गए. उनकी मौत के बाद लोगों ने चीन सरकार की जमकर निंदा की, खासकर सोशल मीडिया पर खूब प्रतिरोध जताया गया. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और शी की विश्वसनीयता हिल गई है. दरअसल, सरकारी अधिकारियों का अहंकार अब व्यवस्था को झटके दे रहा है. ये ऐसे अधिकारी हैं, जिन्होंने पार्टी के प्रति अपने स्वार्थ और निष्ठा को आगे रखने की कोशिश की है और इसकी तुलना में लोगों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को पीछे रखा है. शी के पास चिंतित होने के अनेक कारण हैं, क्योंकि महामारी से आर्थिक मंदी बढ़ेगी. यह अनुमान लगाया जा रहा है कि चीन की जीडीपी में इस साल एक से दो प्रतिशत की गिरावट होगी.

कोरोना वायरस के प्रबंधन में शुरू में जिस तरह की कमी रह गई है, उससे कम्युनिस्ट पार्टी को प्रभावी शासन का दिखावा बनाए रखने में मुश्किल आएगी. इस संकट ने दुनिया को यह भी बता दिया है कि कथित चीनी मॉडल वैसा नहीं है, जैसा बताया जाता है

इसके साथ ही कई दूसरे मामले भी हैं, जो चीनी अर्थव्यवस्था पर अपना असर डाल रहे हैं. चीन हांगकांग में विरोध प्रदर्शन, ताईवान में प्रतिकूल चुनावी नतीजे और इसके अलावा अमेरिका की ओर से भी कड़े कदमों का सामना कर रहा है. चीन के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा साल 2019 में घटकर 74 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. चीन के खिलाफ डोनाल्ड ट्रंप की सख्त रणनीति कुछ नतीजे दिखा रही है. चीन की त्वरित व नाटकीय निर्णय लेने और फिर उन्हें कड़ाई से लागू करने की क्षमता को अधिनायकवादी प्रवृत्ति के रूप में देखा जाता है. कोरोना वायरस से लड़ने में भी उसकी यही नीति इस्तेमाल हो रही है. कम्युनिस्ट पार्टी गंभीरता दिखाने में लगी है. स्थानीय स्तर पर दोषारोपण और संसाधन जुटाने के लिए इसी रणनीति का इस्तेमाल कर रही है. चीन में मृत्यु का आंकड़ा 1,000 पार करने के बाद महामारी के केंद्र हुबेई प्रांत के कई वरिष्ठ अधिकारियों को कम्युनिस्ट पार्टी ने हटा दिया है. डॉक्टर ली वेनलियांग की मौत और ऑनलाइन गुस्से के बाद चीन की सबसे बड़ी भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसी जांच में जुट गई है. पता लगाया जा रहा है कि हुबेई की पुलिस ने डॉक्टर ली के साथ कैसा व्यवहार किया था. कम्युनिस्ट पार्टी को अपनी वैधता या अहमियत बनाए रखने के लिए कोरोना वायरस जैसी आपदा से प्रभावी ढंग से निपटना होगा.

सुरक्षा और स्थिरता प्रदान करने के रूप में देखा जाए, तो अधिनायकवादी शासन बने रहने की संभावना अधिक है. यह कहा जाता है कि कम्युनिस्ट पार्टी ने चीन में अपनी वैधता बढ़ाने के लिए अधिनायकवाद का इस्तेमाल किया है. कोरोना वायरस के प्रबंधन में शुरू में जिस तरह की कमी रह गई है, उससे कम्युनिस्ट पार्टी को प्रभावी शासन का दिखावा बनाए रखने में मुश्किल आएगी. इस संकट ने दुनिया को यह भी बता दिया है कि कथित चीनी मॉडल वैसा नहीं है, जैसा बताया जाता है.

यह संक्रमण अंतत: नियंत्रण में आएगा और तब निश्चित रूप से इसे शी और चीनी मॉडल की महान सफलता के रूप में प्रदर्शित किया जाएगा. इस बीच यह भी स्पष्ट होता जा रहा है कि कम्युनिस्ट पार्टी और शी जिनपिंग को सत्ता में बनाए रखने के लिए आम चीनियों को क्या कीमत चुकानी पड़ रही है?


यह लेख मूलरूप से हिंदुस्तान अख़बार में छप चुका है.

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