Expert Speak Raisina Debates
Published on Mar 13, 2023 Updated 0 Hours ago

वैसे तो भारत समुद्री अंतरराष्ट्रीय सीमा (IMBL) और संयुक्त राष्ट्र के समुद्र के क़ानूनों (UNCLOS) के हवाले से ज़मीनी सच्चाईयों को लेकर सचेत है. लेकिन, भारत के लिए ये मामला अपने देश बनाम श्रीलंका के मछुआरों की रोज़ी-रोटी का सवाल भी है. 

भारत और श्रीलंका के मछुआरों का विवाद हल करने के लिए लाइसेंस योजना पर्याप्त क्यों नहीं है?

दक्षिणी तमिलनाडु के मछुआरों के लिए लाइसेंस लेकर श्रीलंका के समुद्री क्षेत्र में मछली पकड़ने का भारत का प्रस्ताव बेकार साबित हुआ है, क्योंकि उत्तरी श्रीलंका के तमिल मछुआरों ने इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया था. श्रीलंका के तमिल मछुआरों को राजनेताओं का भी समर्थन मिला था. सभी दलों के सांसदों ने उनका समर्थन किया था. ये विरोध, दोनों देशों के मछुआरों की कच्चातिवु द्वीप पर हुई बैठक के बाद शुरू हुआ. मछुआरों की ये बैठक 3-4 मार्च को सालाना सेंट एंथनी चर्च मेले के दौरान हुई थी. बैठक का आयोजन श्रीलंका के मत्स्य पालन मंत्री डगलस देवानंदा ने दोनों देशों की सरकारों के समर्थन से किया था.

भारत ने इस बैठक में मछली मारने के लिए लाइसेंस देने का प्रस्ताव रखा था. इस पर फ़ैसला अंदरूनी बातचीत के बाद लिया जाना है.

भारत ने इस बैठक में मछली मारने के लिए लाइसेंस देने का प्रस्ताव रखा था श्रीलंका के विदेश मंत्री अली साबरी ने फ़रवरी में अपने देश की संसद को बताया था कि प्रस्ताव पर सलाह मशविरा आधिकारिक हलकों और इस योजना से प्रभावित होने वाले मछुआरों के बीच आपस में किया जाएगा. श्रीलंका के विदेश मंत्री का ये बयान, एस. जयशंकर के श्रीलंका दौरे के बाद आया था. दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने इस मुद्दे पर बात की थी. बाद में भारत के मत्स्य पालन राज्यमंत्री एल मुरुगन, श्रीलंका के मत्स्य पालन मंत्री डगलस देवानंदा से जाफना क़स्बे में मिले थे. दोनों नेता उस कार्यक्रम में शामिल थे, जब श्रीलंका के राष्ट्रपति रनिल विक्रमसिंघे ने हाल ही में भारत की मदद से बने जाफना कल्चर सेंटर का उद्घाटन किया था.

विदेश मंत्री अली साबरी और मत्स्य पालन मंत्री डगलस देवानंदा ने सफ़ाई दी है कि वो भारतीय मछुआरों को श्रीलंका की समुद्री सीमा में मछली पकड़ने की इजाज़त तभी देंगे, जब भारत, ‘भारी नुक़सान’ पहुंचाने वाले बॉटम ट्रॉलर्स और उससे जुड़े उपकरणों (जैसे कि पर्स सेइन जाल) पर प्रतिबंध लगाएगाऔर इसे सख़्ती से लागू भी करेगा. विदेश मंत्री अली साबरी ने ख़ास तौर से इस बात पर ज़ोर दिया था कि इस मामले पर उन्हें अपने देश के स्थानीय (तमिल) मछुआरों से सलाह मशविरा करना होगा और ये भी तय करना होगा कि भारत की मछली पकड़ने वाली नौकाओं को श्रीलंका की सीमा में कहां तक आने की इजाज़त दी जाए. बात में साबरी ने इसमें ये भी जोड़ा कि उसके बाद उनकी सरकार भारतीय मछुआरों से वसूल की गई लाइसेंस फीस को श्रीलंका के मछुआरों के बीच वितरित करेगी.

स्थानीय भंडार का पूरा दोहन

मछली पकड़ने का मुद्दा, भारत और श्रीलंका के बीच लंबे वक़्त से विवाद का एक बड़ा कारण रहा है और मत्स्य पालन मंत्री डगलस देवानंदा ने कहा कि इस मुद्दे पर तब चर्चा होगी जब राष्ट्रपति रनिल विक्रमसिंघे ‘जल्दी ही भारत के दौरे पर’ जाएंगे. इससे अलग, कोलंबो में श्रीलंका के विदेश मंत्री अली साबरी ने कहा कि भारतीय मछुआरों को लाइसेंस देने पर विचार विमर्श हो रहा है. लेकिन, उनकी सरकार की पहली प्राथमिकता स्थानीय मछुआरों के हितों का ध्यान रखना है.

पिछले कई वर्षों के दौरान, मछली पकड़ने का विवाद हल करने की कोशिश में कई तरीक़ों पर चर्चा की गई है. इस समस्या की जड़ में आज़ादी से पहले इस इलाक़े में मछली पकड़ने का इतिहास है आज़ादी के बाद जब भारत, साठ के दशक में भयंकर आर्थिक संकट का सामना (श्रीलंका की भी यही स्थिति थी) कर रहा था, तो सरकार ने बॉटम ट्रॉलिंग तकनीक अपनाने का फ़ैसला किया. उन दिनों पश्चिमी देशों में मछली पकड़ने की ये तकनीक काफ़ी चलन में थी. भारत समुद्री निर्यात बढ़ाकर अपने विदेशी मुद्रा भंडार में इज़ाफ़ा करना चाहता था. नॉर्वे भारत की मदद के लिए तैयार था और वो तमिलनाडु के दक्षिणी तट के साथ देश के दूसरे हिस्सों के मछुआरों को प्रशिक्षण देने को भी तैयार था.

इस समस्या की जड़ में आज़ादी से पहले इस इलाक़े में मछली पकड़ने का इतिहास है, जब दोनों ही देशों पर ब्रिटिश साम्राज्यवादी सरकार की हुकूमत थी, और फिर भी ये मसला समय समय पर उठता रहा था.

ये वही वक़्त था, जब भारत और श्रीलंका की सरकारों ने संयुक्त राष्ट्र के समुद्री क़ानूनों (UNCLOS-1) के तहत अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा (IMBL) पर बातचीत शुरू की थी, जिसका नतीजा 1974 और 1976 में समुद्री सीमा के समझौतों के रूप में सामने आया था. इश दौरान दक्षिणी रामेश्वरम इलाक़े के भारतीय मछुआरों ने तट के क़रीब मिलने वाले निर्यात लायक़ केकड़ों के भंडार को पूरी तरह निचोड़ लिया था और अब वो श्रीलंका के उत्तरी प्रांत के समुद्री इलाक़े के पास मछली पकड़ने के लिए, जाफना के समुद्री तट तक जाने लगे थे.

हालांकि, इसमें एक अंतर था. वैसे तो दोनों ही देशों के मछुआरे, प्राचीन काल से एक दूसरे के इलाक़ों में मछली पकड़ते रहे थे और दोनों मछुआरा समुदायों के परिवार भी बसे हुए थे. लेकिन, वो इसके लिए पुरानी तकनीक वाली नौकाओं का इस्तेमाल करते थे और बाद में मशीनी नौकाओं से मछली पकड़ने लगे थे. ये समस्या तब उठी जब भारत के मछुआरों ने बड़ी संख्या में बॉटम ट्रॉलर्स का इस्तेमाल करना शुरू किया, जो बड़े जाल इस्तेमाल करके, सारे समुद्री जीवों को समेट लेते थे. इनमें मछलियों के अंडे और छोटी मछलियां भी शामिल होती थीं और इससे मछलियों का ठौर ठिकाना भी नष्ट हो जाता था.

इसके बाद श्रीलंका में जातीय युद्ध शुरू हो गया. तमिल बाग़ी संगठन लिट्टे (LTTE) के पास ताक़तवर ‘सी टाइगर्स’ शाखा थी, जिसको स्थानीय लोगों की मदद भी मिलती थी. इसके चलते श्रीलंका की सरकार ने उत्तरी और पूर्वी तमिल मछुआरों के मछली पकड़ने पर पाबंदी लगा दी थी. हालांकि, समय समय पर तमिलनाडु और पुड्डुचेरी केंद्र शासित प्रदेश के कराइकल के भारतीय मछुआरे दोनों देशों के साझा समुद्री क्षेत्र में खुलकर मछलियां पकड़ते थे. ये हालात तब तक बने रहे जब 2009 में श्रीलंका का गृह युद्ध ख़त्म नहीं हो गया. जिसके बाद हालात सामान्य बनाने के प्रयास किए जाने लगे.

जुड़वां मुद्दे

यहां पर दो मसले हैं. एक तो ये कि श्रीलंका के उत्तरी और पूर्वी इलाक़ों के मछुआरे, दक्षिणी रामेश्वरम और नागापट्टिनम कराइकल क्षेत्र के तमिल मछुआरों पर अपने इलाक़े में घुसपैठ करके मछलियां पकड़ने का इल्ज़ाम लगाते हैं. श्रीलंका के मछुआरे इसका पूरा आरोप बॉटम ट्रॉलर और पर्स सेइने जाल पर मढ़ देते हैं, जिसका असर उनकी रोज़ी-रोटी पर पड़ रहा है. श्रीलंका के मछुआरे पहले तीन दशक चले गृह युद्ध और फिर कोविड महामारी से काफ़ी प्रभावित रहे थे. इससे उनकी परिवार की आमदनी ही नहीं पूरे देश के रहन सहन पर भी गहरा असर पड़ा था, और अब वो अपनी ज़िंदगी को दोबारा पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे हैं.

श्रीलंका की नौसना भी समुद्री सीमा के उल्लंघन के मसले को संयुक्त राष्ट्र के समुद्री क़ानूनों के तहत तय अपनी संप्रभु सीमा के उल्लंघन के तौर पर देखती है और वो इसे रोकने के लिए कटिबद्ध है.

श्रीलंका की नौसना भी समुद्री सीमा के उल्लंघन के मसले को संयुक्त राष्ट्र के समुद्री क़ानूनों के तहत तय अपनी संप्रभु सीमा के उल्लंघन के तौर पर देखती है और वो इसे रोकने के लिए कटिबद्ध है  पिछले एक दशक या इससे भी ज़्यादा वक़्त से ऐसी ख़बरें बार बार आती रही हैं जब श्रीलंका की नौसेना के जहाज़ों ने भारतीय मछुआरों को बीच समुद्र से खदेड़कर भगा दिया है. इससे कई बार मछुआरों की मौत भी हो गई है, जिसके बाद तमिलनाडु में विरोध प्रदर्शन हुए हैं. श्रीलंका के नौसैनिकों ने जब भी सीमा के उल्लंघन के आरोप में भारतीय मछुआरों को गिरफ़्तार किया है, तो उनके मछली पकड़ने के सारे संसाधन भी ज़ब्त कर लिए हैं. हालांकि, तमिलनाडु की सरकार, केंद्र सरकार की मदद से तमिल मछुआरों को रिहा कराने में सफल रही है.

ईलम युद्ध-4 के दौरान क़ैदियों की रिहाई की प्रक्रिया बहुत तेज़ी से पूरी हो जाती थी. हालांकि, अब ये प्रक्रिया काफ़ी दीमी हो गई है. इसकी एक वजह ये भी है कि उत्तरी श्रीलंका के तमिल सांसद एम ए सुमनथिरन के कहने पर श्रीलंका की संसद ने ऐसे उल्लंघन को सख़्त दंडनीय अपराध बना दिया. श्रीलंका के मौजूदा राष्ट्रपति रनिल विक्रमसिंघे जब देश के प्रधानमंत्री थे (2015-2019) तो मछुआरों की रिहाई की प्रक्रिया बहुत लंबी कर दी गई थी.

रोज़ी-रोटी की फिक्र

वैसे सैद्धांतिक तौर पर केंद्र और तमिलनाडु की सरकारें, संयुक्त राष्ट्र के समुद्री क़ानूनों और अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा की संवेदनशीलता को समझती हैं. लेकिन, भारत की सरकारों के लिए ये मामला जितना श्रीलंका के मछुआरों की रोज़ी रोटी का है, उतना ही अपने मछुआरों के रोज़ी रोज़गार का भी मुद्दा है. इसीलिए, पिछले दो दशकों के दौरान इस मसले को बातचीत से हल करने के सभी प्रयास  इसकी वजह ये है कि सरकारों को इस बात का बख़ूबी एहसास है कि मछुआरों के समुदाय, दूसरे क्षेत्र में रोज़गार की तलाश के लिए सुदूर समुद्री इलाक़ी में कभी-कभार ही जाते हैं.

हालांकि, सभी स्तरों पर बातचीत के बाद भी दोनों देशों की सरकारें किसी समझौते पर नहीं पहुंच पाई हैं. जबकि ये मसला हल करने के लिए दोनों देशों के मछुआरा समुदायों से लेकर विदेश और मत्स्य मंत्रालय के अधिकारियों, उनके मंत्रियों और यहां तक कि शासनाध्यक्षों तक के बीच बातचीत हो चुकी है. अपनी ओर से भारत ने तटीय संकट की इस समस्या के स्थायी समाधान के लिए दक्षिणी तमिलनाडु के तट से दूर गहरे समुद्र में मछली मारने का पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया है, जिससे स्थानीय मछुआरों को अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा का उल्लंघन या फिर श्रीलंका के मछुआरा भाइयों से संघर्ष न करना पड़े. क्योंकि इसका दोनों ही समुदायों, देशों और सरकारों पर दूरगामी सामाजिक राजनीतिक असर पड़ता है.

यही वजह है कि ख़बरों के मुताबिक़, भारत सरकार ने लाइसेंसशुदा मछली पकड़ने के प्रस्ताव को दोबारा पेश किया है, जिस पर अब अलग अलग स्तरों और ख़ास तौर से श्रीलंका के भीतर चर्चा हो रही है. उत्तरी जाफना (राजस्व ज़िले के बजाय संसदीय क्षेत्रों) के पांच तमिल सांसदों ने अपने मछुआरा संगठन के नेताओं के साथ 5 मार्च 2023 को इस मुद्दे पर चर्चा के लिए बैठक की थी. उन्होंने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि वो अपनी सरकार को भारत सरकार के दबाव में आने देने से रोकने के लिए मिलकर काम करेंगे.

अधिक स्वीकार्यता

श्रीलंका के तमिल मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक़, इस साझा बैठक के वक्ताओं ने ज़ोर देकर कहा कि, दोनों देशों के तमिलों के बीच ‘गर्भनाल से जुड़े होने’ वाले संबंधों का मतलब उनकी अपनी रोज़ी-रोटी से बड़ा नहीं है. क्योंकि सवाल उनकी अपनी ज़िंदगियों का है. उन्होंने ये बात भी कही कि आगे की वार्ताओं में उन्हें इस बात पर ज़ोर देना होगा कि भारतीय टीम में इस तरह की बातचीत के पुराने तजुर्बेकारों को शामिल किया जाए. इसका इशारा चेन्नई के उपनगरीय इलाक़े के मछुआरों के एक नेता की तरफ़ था, जो भारतीयों के दल के अगुवा के तौर पर कच्चातिवू गया था और जिसका विवादित इलाक़ों में मछली पकड़ने के विवाद की वार्ताओं में शामिल होने का पिछला कोई तजुर्बा नहीं था.

पिछले दो दशकों के दौरान इस मसले को बातचीत से हल करने के सभी प्रयास, भारतीय मछुआरों को अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा का उल्लंघन करने से रोकने के बावजूद, मछली पकड़ने को किसी न किसी रूप में आपस में साझा करने पर केंद्रित रहे हैं.

इन बातों से इतर, अब तमिलनाडु में भी इस बात की समझ बढ़ी है कि 1976 की संधि के हिसाब से श्रीलंका की समुद्री सीमा में पड़ने वाले कच्चातिवु द्वीप को वापस लेने से मछली पकड़ने के बड़े विवाद का समाधान नहीं निकला जा सकता है. इसके बजाय, दोनों पक्षों द्वारा संयुक्त राष्ट्र के समुद्री क़ानूनों (UNCLOS) के नियमों का पालन करने के बजाय, आपसी सहमति से मध्यमान सीमा तय करने का एक फ़ायदा ये हुआ है कि किसी तीसरे देश के मछुआरे अब इस साझा समुद्री इलाक़े में घुसपैठ नहीं कर पाते हैं. रामेश्वरम के मछुआरे भी अब ये बात आसानी से स्वीकार करते हैं कि कच्चातिवु इलाक़े में प्रचुर मात्रा में मछलियां उपलब्ध न होने के कारण उस इलाक़े का बातचीत से समाधान निकालना अब अधिक आसान हो गया है

अब ये एक अलग मसला है कि हाल ही में कच्चातिवु में हुई बातचीत का पूरा ध्यान पाक खाड़ी इलाक़े पर केंद्रित था, जिसका असर रामेश्वरम के मछुआरों पर पड़ना है. इन वार्ताओं में नागापट्टनम के मछुआरों और श्रीलंका के पूर्वी इलाक़े के मछुआरों को शामिल नहीं किया गया था, क्योंकि कच्चातिवु पहुंचे ज़्यादातर श्रद्धालु श्रीलंका के उत्तरी प्रांत और भारत के रामेश्वरम इलाक़े से पहुंचे थे. भविष्य की वार्ताओं में इन पक्षों का ख़याल भी रखना होगा.

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