पिछले कई महीने से ये चर्चा चल रही है कि श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे मछली पकड़ने को लेकर भारत और श्रीलंका के मछुआरों के बीच चल रहे विवाद का हमेशा के लिए समाधान करना चाहते हैं. लेकिन इस चर्चा का संदर्भ समझना भी ज़रूरी है. कुछ लोग ये अंदाज़ा लगा रहे हैं कि विक्रमसिंघे जिस समाधान की बात कह रहे हैं, उसमें कुछ लेन-देन की बात होगी. दोनों देशों के मछुआरों को मछली पकड़ने के साझा अधिकार देने पर विचार होगा, लेकिन इन सब पूर्वानुमानों का कोई आधार नहीं है. पता ये चला है श्रीलंका के राष्ट्रपति भारतीय मछुआरों द्वारा बॉटम ट्रॉलर्स और पर्स सीन नेट (मछली पकड़ने का खास तरह का जाल )से मछली पकड़ने पर पूरी तरह रोक लगाना चाहते हैं. खास बात ये है कि इन दोनों ही चीजों से मछली पकड़ने पर भारत और श्रीलंका दोनों ने ही रोक लगा रखी है.
रिपोर्ट्स के मुताबिक श्रीलंका के राष्ट्रपति को इस बात का एहसास है कि ये मछुआरों में विवाद लगातार बढ़ता जा रहा है. इसकी वजह से कई बार दोनों देशों की सरकारों को शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है.
रिपोर्ट्स के मुताबिक श्रीलंका के राष्ट्रपति को इस बात का एहसास है कि ये मछुआरों में विवाद लगातार बढ़ता जा रहा है. इसकी वजह से कई बार दोनों देशों की सरकारों को शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है. समस्या की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने श्रीलंका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सगला रत्नायके को विशेषज्ञों के उस समूह का मुखिया बनाया है, जो मछुआरों के मुद्दे पर भारत से बात करेगा. हालांकि अभी ये स्पष्ट नहीं है कि इस प्रतिनिधिमंडल में कौन-कौन शामिल हैं और मीटिंग कहां होंगी लेकिन बेहतर होगा कि ये प्रतिनिधिमंडल पहले इस मुद्दे पर चेन्नई में मीटिंग करें और इन मीटिंग्स में जो बात हों, उस पर उच्चस्तरीय वार्ता के लिए उसके बाद दिल्ली आए.
उत्सव का बहिष्कार
श्रीलंका की नौसेना जिस तरह तमिलनाडु के मछुआरों को गिरफ्तार कर रही है, उनके सामान को ज़ब्त कर रही है. स्थानीय कानूनों का हवाला देखकर जिस तरह भारतीय मछुआरों पर भारी ज़ुर्माना और उन्हें जेल भेजने की कार्रवाई कर रही है, उसे लेकर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और पुडुचेरी के मुख्यमंत्री एन रंगास्वामी लगातार प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री को चिट्ठी लिख रहे हैं. लेकिन इसका कोई खास फायदा नहीं हुआ. तमिलनाडु के मछुआरों के मुताबिक उनके लिए हालात लगातार खराब होते जा रहे हैं.
श्रीलंकाई मछुआरों का कहना है कि उन्होंने भारतीय मछुआरों से कहा था कि अगर वो मछली पकड़ने का बॉटम ट्रॉलिंग तरीका छोड़ देते हैं तो उन्हें अपनी समुद्री सीमा में आने की मंजूरी दे देंगे लेकिन भारतीय मछुआरों ने ऐसा नहीं किया.
ये बात सही है कि श्रीलंका की नौसेना भारतीय मछुआरों का उत्पीड़न करती है, लेकिन तमिलनाडु के मछुआरों ने कच्चातिवु द्वीप के सेंट एंटनी चर्च में हर साल होने वाले उत्सव के बहिष्कार का जो फैसला किया, उसे भी सही नहीं ठहराया जा सकता. मछुआरों का कहना था कि श्रीलंका की अदालत ने पुराने केसेज के आधार पर जिस तरह भारतीय मछुआरों को अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा के उल्लंघन के मामलों में सज़ा सुनाई, वो गलत है. इसीलिए उन्होंने उत्सव के बहिष्कार का फैसला किया. लेकिन यहां ये याद रखना ज़रूरी है कि तमिलनाडु सरकार और भारत सरकार ने काफी कोशिशें करके, श्रीलंका पर दबाव डालकर कच्चातिवु द्वीप पर होने वाले उत्सव में भारतीयों को भी शामिल होने की मंजूरी दिलवाई थी. श्रीलंका में लिट्टे के खिलाफ युद्ध खत्म होने के बाद 2009 में इस द्वीप पर दोबारा उत्सव करने की इजाज़त मिली थी. अब ये आशंका जताई जा रही है कि इस साल किए गए बहिष्कार का उदाहरण देकर श्रीलंका सरकार भविष्य में कच्चातिवु द्वीप में होने वाले उत्सव में भारतीय मछुआरों को आने की मंजूरी देने से इनकार कर सकती है. ज़ाहिर सी बात है उत्सव के बहिष्कार के इस फैसले ने दोनों देशों के बीच पहले से ही चल रहे तनाव में एक नया संकट पैदा कर दिया है. यही वजह है कि जो तीर्थयात्री इस उत्सव में शामिल होने के लिए रामेश्वरम आए थे, उन्होंने भी भारतीय मछुआरों द्वारा उत्सव के बहिष्कार के एकतरफा एलान का विरोध किया. भारतीय नौसेना के तटरक्षक बल की नावें इन तीर्थयात्रियों को रामेश्वर से कच्चातिवु द्वीप में होने वाले उत्सव में ले जाती हैं.
बॉटम ट्रॉलिंग क्या है?
भारत और श्रीलंका के बीच मछुआरों के विवाद को सुलझाने से पहले ये ज़रूरी है कि हम इससे जुड़े हर पहलू को अच्छी तरह समझें क्योंकि ये बहुत जटिल मुद्दा है. ये विवाद भारतीय और श्रीलंकाई तमिल मछुआरों के बीच का है. सामान्य परिस्थितियों में दोनों देशों के तमिल खुद को एक-दूसरे का भाई बताते हैं. वो मानते हैं कि सदियों से दोनों देशों के तमिल सांस्कृतिक तौर पर एक ही गर्भनाल से जुड़े हैं लेकिन जब बात रोज़गार की आती है, मछली पकड़ने की आती है तो कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं होता. श्रीलंका के तमिल मछुआरे अक्सर ये आरोप लगाते हैं कि उनके तमिलनाडु और पुडुचेरी के तमिल मछुआरे अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा का उल्लंघन कर मछली मारने के लिए श्रीलंका की समुद्री सीमा में चले आते हैं. श्रीलंका के तमिल मछुआरों के मुताबिक भारतीय मछुआरे उनकी छोटी नावों और मछली पकड़ने के जाल को नुकसान पहुंचाते हैं. इतना ही नहीं उनका ये भी आरोप है कि भारतीय मछुआरे श्रीलंका की सीमा में आकर समुद्री जीवों और समुद्र के नीचे की सतह को नष्ट कर रहे हैं. कोरल लीफ को नुकसान पहुंचा रहे हैं, जिससे श्रीलंकाई समुद्री सीमा पर मछलियां और कम हो रही हैं. जैविक विविधता खत्म हो रही है.
श्रीलंकाई तमिल मछुआरों के मुताबिक भारतीय मछुआरे बॉटम ट्रॉलर्स और पर्स सीन नेट से मछली पकड़ते हैं. इससे भारतीय समुद्री सीमा तो पहले ही बर्बाद हो चुकी है. अब वो पाक जलसंधि (Palk Starit)की दूसरी तरफ श्रीलंकाई समुद्री सीमा में भी ऐसे ही हालात पैदा करना चाहते हैं. श्रीलंकाई मछुआरों का कहना है कि उन्होंने भारतीय मछुआरों से कहा था कि अगर वो मछली पकड़ने का बॉटम ट्रॉलिंग तरीका छोड़ देते हैं तो उन्हें अपनी समुद्री सीमा में आने की मंजूरी दे देंगे लेकिन भारतीय मछुआरों ने ऐसा नहीं किया.
श्रीलंका की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता बनाए रखने के लिए ये ज़रूरी है कि भारतीय तमिल मछुआरों पर नज़र रखी जाए लेकिन भारतीय मछुआरों पर नज़र रखने के बहाने श्रीलंका की नौसेना जिस तरह उन पर हमला करती, उसमें कई भारतीय मछुआरों की जान गई.
दोनों देशों की सरकारों को मछुआरों की समस्याओं और उससे पैदा हो रही परेशानियों की जानकारी है. वो इस समस्या का व्यवहारिक और सौहार्दपूर्ण समाधान खोजने की कोशिश कर रही हैं. भारत सरकार को इस बात का एहसास है कि मछुआरा समाज के रोजी-रोटी से जुड़े इस मुद्दे का हल तलाशना ही होगा क्योंकि ये लोग सदियों से, कई पीढ़ियों से यही काम कर रहे हैं. सरकार ये भी जानती है कि जिस तरह समुद्र की मछलियों को एक-दूसरे देश की अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा में आने-जाने से नहीं रोका जा सकता, उसी तरह मछुआरों को भी राजनीतिक तौर पर बनाई गई समुद्री सीमाओं तक सीमित नहीं रखा जा सकता. भारत सरकार बॉटम ट्रॉलिंग से होने वाली समस्या और इससे पर्यावरण को होने वाले नुकसान को लेकर भी जागरूक है. इसीलिए भारत ने इस पर बैन लगा रखा है लेकिन दिक्कत ये है कि स्थानीय प्रशासन इस पाबंदी को सख्ती से लागू नहीं करता. यही वजह है कि अब श्रीलंकाई तमिल मछुआरे भी अपनी सरकार ये मांग कर रहे हैं कि उन्हें भी अपनी समुद्री सीमा में बॉटम ट्रॉलिंग तकनीकी से मछली पकड़ने की मंजूरी दी जाए. उनकी इस मांग से भविष्य में एक बड़ा संकट खड़ा हो सकता है.
क्षेत्रीय अखंडता
संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के तहत समुद्री सीमा को लेकर बने कानूनों (UNCLOS)के आधार पर भारत और श्रीलंका के बीच 1974 और 1976 में समझौता हुआ. इसी के बाद दोनों देशों ने अपने-अपने मछुआरों के एक-दूसरे की समुद्री सीमा में मछली पकड़ने पर रोक लगा दी. 1966 में रूपये का अवमूल्यन करने के बाद भारत ने जो आर्थिक सुधार कार्यक्रम शुरू किए थे, उसके तहत उसने नॉर्वे की वित्तीय मदद से होने वाली बॉटम ट्रॉलिंग की शुरुआत नहीं की थी. यानी उस समय बॉटम ट्रॉलिंग की समस्या नहीं थी, इसलिए भारत-श्रीलंका के बीच हुए समझौते में इसका जिक्र नहीं है. उस दौर में मछली पकड़ने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा का उल्लंघन नहीं होता था, इसलिए दोनों देश इस समस्या को लेकर गंभीर नहीं थे. हालांकि बॉटम ट्रॉलिंग की समस्या की शुरुआत से पहले भी भारत और श्रीलंका के मछुआरों में बीच समुद्र में संघर्ष होता था लेकिन इन संघर्षों को उसी तरह हल्के में लिया जाता था, जैसे आम तौर पर गांवों में होने वाले झगड़ों को लिया जाता है.
इसके बाद श्रीलंका में तमिल उग्रवाद का दौर शुरू हुआ. लिट्टे की अपनी नौसेना थी. लिट्टे के समुद्री टाइगर्स का इस इलाके में नियंत्रण था लेकिन इस सदी की शुरूआत में धीरे-धीरे श्रीलंका की नौसेना भी मजबूत हुई. उसने लिट्टे की नौसेना को कड़ी टक्कर दी और 2009 में लिट्टे की हार के साथ ही इस जातीय संघर्ष का अंत हुआ. इसी के बाद श्रीलंकाई मछुआरों ने इस समुद्री सीमा में मछली पकड़ना शुरू किया. थोड़े दिन बाद भारतीय मछुआरे भी वहां जाने लगे. लेकिन श्रीलंका की नौसेना इन भारतीय मछुआरों पर हमला करती. उनपर फायरिंग करती..श्रीलंकाई नौसेना का ये तर्क था कि भारत के तमिल नागरिक लिट्टे से सहानुभूति रखते हैं. ऐसे में उनकी मदद से कहीं लिट्टे फिर से ज़िंदा ना हो जाए, इसीलिए श्रीलंका की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता बनाए रखने के लिए ये ज़रूरी है कि भारतीय तमिल मछुआरों पर नज़र रखी जाए लेकिन भारतीय मछुआरों पर नज़र रखने के बहाने श्रीलंका की नौसेना जिस तरह उन पर हमला करती, उसमें कई भारतीय मछुआरों की जान गई. हालांकि मरने वालों का आंकड़ा बहुत ज्यादा नहीं था लेकिन भारतीय मछुआरों की गिरफ्तारी और उन पर भारी ज़ुर्माना लगाए जाने की घटनाओं में काफी बढ़ोतरी हुई.
भारत सरकार और भारतीय मछुआरे तो यही चाहेंगे कि मछली पकड़ने का काम या तो साझा तौर पर किया जाए या भारतीय मछुआरों को इसके लिए लाइसेंस दिया जाए
2018 में जब रानिल विक्रमसिंघे श्रीलंका के प्रधानमंत्री थे, तब संसद में एक प्राइवेट मेंबर बिल पास करवाया गया. इस बिल में श्रीलंकाई समुद्री सीमा में आकर मछली मारने वालों पर भारी जुर्माने का प्रावधान किया गया. हालांकि ये विधायक दो तमिल सांसदों एमए सुमन्तिरन और डगलस देवानंद के बीच की सियासी प्रतिद्वंद्विता का नतीजा था लेकिन इस तथ्य की अनदेखी नहीं की जा सकती कि श्रीलंका के मौजूदा राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे उस वक्त प्रधानमंत्री थे.
कच्चातिवु द्वीप का क्या मुद्दा है?
1974 से 1976 के बीच भारत और श्रीलंका के बीच समुद्री सीमा को लेकर जो चार समझौते हुए, उसके बाद रामेश्वरम से करीब 20 मील दूर 285 एकड़ में फैला कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका के पास चला गया. हालांकि तमिलनाडु सरकार इस द्वीप को श्रीलंका को दिए जाने का हमेशा से विरोध करती आ रही है. तमिलनाडु में चाहे किसी भी पार्टी की सरकार हो, वो हमेशा केंद्र सरकार से ये मांग करती आ रही हैं कि कच्चातिवु द्वीप को श्रीलंका से वापस लिया जाए क्योंकि ये द्वीप भारत और श्रीलंका के मछुआरों में होने वाले विवाद का केंद्र रहा है. हालांकि रामेश्वरम के मछुआरे कहते हैं कि कच्चातिवु द्वीप के आसपास के समुद्र में मछलियां नहीं हैं.
समुद्री सीमा में मछली पकड़ने को लेकर जिस तरह आए दिन विवाद पैदा होते हैं, उसे देखते हुए करीब एक दशक पहले भारत सरकार और तमिलनाडु सरकार ने मछुआरों को कई दिनों तक गहरे समुद्र में रहकर मछली पकड़ने का प्रशिक्षण देना शुरू किया था. मछुआरों को आर्थिक मदद भी दी गई जिससे वो मछली पकड़ने के काम में आने वाला ज़रूरी साजो सामान खरीद सकें लेकिन ये योजना ज्यादा सफल नहीं हो सकी. इसकी सबसे बड़ी वजह ये रही कि रामेश्वरम के मछुआरे आम तौर पर एक रात से ज्यादा वक्त तक समुद्र में रहना पसंद नहीं करते. केंद्र और राज्य में आए सियासी बदलावों ने भी इस पर असर डाला है. 2017 में आए ओखी समुद्री तूफान से कन्याकुमारी और केरल में कई मछुआरों की मौत हुई. इसकी वजह से भी मछुआरे लगातार कई दिन तक समुद्र में नहीं रहना चाहते.
आज ज़रूरत इस बात की है कि मछुआरों की समस्याओं को भारत जल्द सुलझाए. श्रीलंका में ही नहीं बल्कि खाड़ी देशों और मालदीव में भी भारतीय मछुआरे गिरफ्तार किए जा रहे हैं. इसका मालदीव के साथ इन दिनों चल रहे राजनीतिक तनाव से कोई लेना-देना नहीं है. मालदीव में जब भारत के दोस्त माने जाने वाले मोहम्मद सोलिह राष्ट्रपति थे, तब भी उनके कार्यकाल के आखिरी दिनों में मालदीव नेशनल डिफेंस फोर्स (MNDF)ने तमिलनाडु के मछुआरों पर 2.27 करोड़ रुपये का ज़ुर्माना लगाया था. कुछ ही दिन पहले मालदीव ने मछली पकड़ने की एक और नाव को समुद्री सीमा के उल्लंघन के आरोप में ज़ब्त किया है.
भारत सरकार और भारतीय मछुआरे तो यही चाहेंगे कि मछली पकड़ने का काम या तो साझा तौर पर किया जाए या भारतीय मछुआरों को इसके लिए लाइसेंस दिया जाए लेकिन हकीकत ये है कि श्रीलंका सरकार और श्रीलंका के मछुआरे इस बात के लिए तब तक तैयार नहीं होंगे जब तक भारतीय मछुआरे बॉटम ट्रॉलिंग और पर्स सीन नेट तकनीकी को नहीं छोड़ देते. ऐसे में गहरे समुद्र में मछली पकड़ना ही एकमात्र व्यावहारिक विकल्प बचता है. इसलिए सरकार को चाहिए कि वो इस काम के लिए मछुआरों को समझाए. उन्हें आर्थिक मदद दे. मछुआरों को इसके लिए प्रोत्साहित करे. मछुआरों को भी ये समझना होगा कि गहरे समुद्र में मछली पकड़ना ही भविष्य का रोज़गार है. बॉटम ट्रॉलिंग तकनीकी को अब छोड़ना ही होगा.
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