कोविड-19 पाबंदियों में ढील: लगातार तीन दिन—अगस्त महीने के आखिरी दो दिन तथा सिंतबर-2020 का पहला दिन— भारत में समाचार पत्रों ने पहले पन्ने पर व्याकुल करने वाली ख़बर छापीं. तीस अगस्त को मोटे शीर्षकों में केंद्र सरकार द्वारा ‘भारत को अनलॉक’ करने वाले दिशा निर्देश छापे गए. उतने ही महत्व के साथ उनके बगल में यह समाचार छपा कि किसी एक दिन में कोविड-19 से अधिकतम संक्रमणों का भारत ने नया विश्व रिकॉर्ड बना दिया. देश में 24 घंटे के भीतर 78,761 नए संक्रमणों के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका में 17 जुलाई को एक दिन में 77,200 नए संक्रमण सामने आने से बना रिकॉर्ड भारत में टूट गया.
पहले पन्ने के शीर्षकों ने 31 अगस्त को बताया कि उससे पिछले दिन, रविवार को 24 घंटे में 80,000 से अधिक नए लोगों के संक्रमित होने का आंकड़ा दर्ज़ करने वाला भारत पूरी दुनिया में इकलौता देश बन गया.
लगातार तीसरे दिन, 1 सितंबर को पहले पन्ने पर ऐलान था कि भारत की जीडीपी अर्थात सकल घरेलू उत्पाद— जो महामारी फैलने से पहले ही डांवाडोल थी— माली साल 2020-21 की अप्रैल-जून तिमाही में करीब 24 फीसद घट गया.
लगातार तीसरे दिन, 1 सितंबर को पहले पन्ने पर ऐलान था कि भारत की जीडीपी अर्थात सकल घरेलू उत्पाद— जो महामारी फैलने से पहले ही डांवाडोल थी— माली साल 2020-21 की अप्रैल-जून तिमाही में करीब 24 फीसद घट गया. गिरावट का दोषी लंबे घिसटे देशव्यापी लॉकडाउन को ठहराया गया. पहला लॉकडाउन कोविड-19 की रोकथाम के लिए केंद्र सरकार के आरंभिक उपायों के तहत किया गया था. कुल संक्रमण काल का आंकलन करें तो लॉकडाउन से महामारी की रोकथाम में शायद ही कोई लाभ हुआ है जबकि उसका दुष्परिणाम है कि बुनियादी क्षेत्रों में पूंजी निवेश और खपत दोनों ही ठिठके हुए हैं. उससे बेरोज़ग़ारी की दर भी तेज़ी से बढ़ी. अप्रैल महीने से लाखों कामगारों की छंटनी की जा चुकी तथा अनेक लघु उद्योग-धंधे रातोंरात बंद हो गए. इस ख़बर से अगले समाचार में लिखा था कि देश में सबसे अधिक संक्रमण दर्ज़ करने वाले राज्य महाराष्ट्र ने अपने यहां अधिकतर क्षेत्रों पर चौथे दौर में तालाबंदी ख़त्म कर दी. देश में कोविड-19 के कुल संक्रमणों में से एक-चौथाई से अधिक संक्रमण दर्ज़ कर चुके महाराष्ट्र ने महामारी की रोकथाम की सब सावधानियां भी बरत रखी हैं.
अगस्त के बारे में कुछ भी ‘श्रद्धास्पद’ नहीं
देश में एक दिन में 70,000 नए संक्रमण पहली बार 22 अगस्त को दर्ज़ हुए. अगले दो दिन फौरी घटौती के बाद दैनिक नए संक्रमण 25 अगस्त को 66,873 हो गए. अगले चार दिन उससे भी अधिक 76,000 प्रतिदिन नए संक्रमण दर्ज़ हुए और 30 अगस्त को तो भारत ने रोजाना 80,000 नए संक्रमणों का नया रिकॉर्ड बना दिया.
भारत ने जब दैनिक 70,000 नए संक्रमणों तथा दैनिक और 80,000 लोगों के महामारी का शिकार बनने के अशुभ रिकॉर्ड तोड़े तो वो दिन रविवार था. हालांकि, मई में संक्रमणों की दर बढ़ने के बाद से अमूमन सप्ताहांत में नए संक्रमणों की संख्या कम दर्ज़ हो रही थी. उन दिनों में संक्रमणों की संख्या कम दर्ज़ होने की वजह तब तक सप्ताहांत में संक्रमण की कम जांच होना बताई जा रही थी. उससे पहले रविवार को सबसे अधिक संख्या में नए संक्रमण 9 अगस्त को दर्ज़ हुए जब 63,851 लोगों को जांच में संक्रमित पाया गया था.
अगस्त के आखिरी सप्ताह में नए संक्रमणों के रिकॉर्ड तोड़ गति से बढ़ने के कारण दैनिक नए संक्रमणों तथा मृत्यु संबंधी दर के मामले में भारत की कुछ आरंभिक उपलब्धियां भी बराबर हो गईं. नए संक्रमणों की संख्या संबंधी वृद्धि दर बढ़ कर 13.1 प्रतिशत हो गई जो पिछले सप्ताह में दर्ज़ 4.7 प्रतिशत के औसत के मुकाबले करीब तीन गुना हुई. उससे पहले संक्रमणों की सबसे अधिक साप्ताहिक वृद्धि दर 3 से 9 अगस्त के बीच 10.9 प्रतिशत दर्ज़ हुई थी. मृत्यु दर भी बढ़कर लगभग 4 प्रतिशत हो गई जो उससे पिछले सप्ताह में दर्ज़ 1.7 प्रतिशत से दोगुनी से भी ज़्यादा थी.
नए संक्रमणों की संख्या में जबर्दस्त बढ़ोतरी के बावजूद अगस्त में कोविड के काले घने बादलों के बीच आशा की किरण भी दिखी. परीक्षण की दर बढ़ाने में भारत बहुत सफल रहा जिससे पांच दिन के आवर्ती औसत से नए सक्रमणों तथा मृत्यु दर दोनों में बढ़ोतरी की दर दोगुनी होने की गति बहुत तेज़ दर्ज़ हुई. महीने के आरंभ में जहां संक्रमणों की बढ़ोतरी दर 24 दिन में दोगुनी हो रही थी वहीं 31 अगस्त को इसकी अवधि बढ़कर 33 दिन हो गई. इसी तरह, मृत्यु संख्या दोगुनी होने की अवधि दर भी अगस्त के आरंभ में 30 दिन से बढ़कर महीने के अंत तक 50 दिन हो गई. जून के आरंभ में जब पहले अनलॉक की घोषणा हुई तब नए संक्रमणों और मृत्यु की संख्या दोगुनी होने की दर क्रमश: 15 एवं 17 दिन थी।
संक्रमितों की संख्या दोगुनी होने की अवधि बढ़ने की वजह अगस्त के अंत तक रोजाना 10 लाख परीक्षणों के ज़रिए जांच में तेजी लाना है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार परीक्षण क्षमता एवं जांच संख्या में जबर्दस्तबढ़ोतरी से प्रति 10 लाख पर 30,000 से अधिक परीक्षण होने लगे. परीक्षणों की संख्या बढ़ने से संक्रमितों की संख्या भी घटी है( परीक्षणों की कुल संख्या में कोविड-19 संक्रमित पाए जाने वालों का हिस्सा)। परीक्षणों के अनुपात में संक्रमितों की संख्या 25 जुलाई को जहां करीब 12 प्रतिशत थी वहीं 7 दिन के आवर्ती औसत से 31 अगस्त को यह 8 प्रतिशत से भी कम आंकी गई.
जीवन और आजीविका में संतुलन बैठाना: भारत की कड़ी परीक्षा
संक्रमण बढ़ना अवश्यंभावी है यह निष्कर्ष लॉकडाउन में धीरे—धीरे ढील देते समय ही सामने था. लॉकडाउन का जैसा प्रभाव अर्थव्यवस्था पर पड़ा उसके मद्देनज़र उसे खोलने की मजबूरी भी स्पष्ट हो गई थी. उसके बावजूद महामारी जिस वेग के साथ फैली है उसके कारण यह भविष्यवाणी मुश्किल है कि उसकी पराकाष्ठा किस समय होगी. ऐसे में संक्रमण फैलने की दर में उतार होने और उसमें फिर चढ़ाव न आने के अनुमान की तो बात ही फिलहाल जाने दीजिए.
महामारी जिस वेग के साथ फैली है उसके कारण यह भविष्यवाणी मुश्किल है कि उसकी पराकाष्ठा किस समय होगी. ऐसे में संक्रमण फैलने की दर में उतार होने और उसमें फिर चढ़ाव न आने के अनुमान की तो बात ही फिलहाल जाने दीजिए.
भारत के 1.8 प्रतिशत सीएफआर (संक्रमण मृत्यु दर) से जो 3.4 प्रतिशत वैश्विक औसत से कहीं कम है तथा व्यापक अर्थ में देश में संक्रमण की कम दर से ऐसा संदेश चला गया लगता है कि आवाजाही एवं व्यवसाय में ढील का अर्थ देश के महामारी से उबर चुकने से लगाया जा रहा है. करोड़ों लोग जो महीनों घरों के भीतर बंद रहे उन्हें अब यह भरोसा हो गया कि नोवल कोरोना वायरस को पहले जितना खतरनाक माना जा रहा था वैसा बिल्कुल नहीं है और उतना जानलेवा तो कतई नहीं है. मुंह पर बिना मास्क लगाए तथा न्यूनतम दूरी बनाए बगैर लोग जिस प्रकार सार्वजनिक स्थानों पर भीड़ कर रहे हैं और भारत के शहरों की सड़कों पर वाहनों का घनत्व लॉकडाउन पूर्व स्तर पर पहुचने से सिद्ध होता है कि अधिकतर लोगों की दृष्टि में महामारी निपट चुकी. ऐसी ही जटिलता मुंबई के म्युनिसिपल कमिश्नर की जुलाई के मध्य में की गई टिप्पणियों से भी झलकती है. बढ़ी हुई परीक्षण क्षमता एवं ‘आर’ दर (कोविड-19 संक्रमित व्यक्ति से अन्य स्वस्थ लोगों के संक्रमित होने की दर) 1.1 होने के हवाले से उन्होंने कहा था कि ‘तकनीकी’ रूप में इसे महामारी के लगभग निपट जाने का द्योतक मानना चाहिए. मुंबई जैसे नगरों ने संक्रमण को बेकाबू होने से रोकने में बधाई के लायक काम किया है. इसलिए उनको सलाह है कि वे ऑकलैंड एवं दक्षिण कोरिया से सबक लें जहां आबादी के नगण्य घनत्व एवं कड़े नागर अनुशासन तथा महामारी को हरा देने की घोषणा के बावजूद उन्हें हाल में वायरस की छूट दुबारा फैलने की मजबूरी में फिर से लॉकडाउन करना पड़ा.
संयोग से भारत में महामारी का संक्रमण इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ साइंस द्वारा अपने अध्ययन पर आधारित अप्रैल के मध्य में जताए गए अनुमानों के अनुरूप ही फैल रहा है. इंस्टीट्यूट के अनुसार बुरी से बुरी हालत में भी भारत में अगस्त के अंत तक करीब 35 लाख संक्रमण दर्ज़ होंगे. भारत में हालत उससे कुछ ही अधिक खराब है अर्थात 31 अगस्त को भारत में दर्ज़ संक्रमितों की संख्या 37 लाख थी. बुरी से बुरी हालत वाली परिस्थिति वाले अनुमान के अनुसार मार्च 2021 में संक्रमितों की संख्या सबसे अधिक होने के बाद गिरावट आ सकती है. अन्य अध्ययन जिससे बाद में आईसीएमआर ने पल्ला झाड़ लिया था उसके अनुसार भारत में आगामी नवंबर मध्य में संक्रमण विकराल होगा जिससे आइसोलेशन बेड, आईसीयू सुविधा तथा वेंटीलेटरों जैसे नाज़ुक स्थिति में इलाज में सहायक उपकरणों की भारी कमी पड़ेगी.
हालात जैसे बिगड़ रहे हैं उनमें ग्रामीण क्षेत्रों में ख़तरा कहीं अधिक होने की चिंता हो रही है क्योंकि वहां पर इलाज के लिए स्वास्थ्य सेवा पहले से ही नाकाफी है. अगस्त में उभार के दौरान 55 प्रतिशत से अधिक संक्रमित उन 584 ज़िलों में मिले जो ‘अधिकतर ग्रामीण’ अथवा ‘पूर्णत: ग्रामीण’ श्रेणी के हैं.
हालात जैसे बिगड़ रहे हैं उनमें ग्रामीण क्षेत्रों में ख़तरा कहीं अधिक होने की चिंता हो रही है क्योंकि वहां पर इलाज के लिए स्वास्थ्य सेवा पहले से ही नाकाफी है. अगस्त में उभार के दौरान 55 प्रतिशत से अधिक संक्रमित उन 584 ज़िलों में मिले जो ‘अधिकतर ग्रामीण’ अथवा ‘पूर्णत: ग्रामीण’ श्रेणी के हैं. अन्य 16 प्रतिशत संक्रमित अर्धशहरी क्षेत्रों में मिले हैं. इसे संदर्भ में देखें तो, अप्रैल में देश में कुल संक्रमणों में ”समूचे शहरी” क्षेत्रों का योगदान 64 प्रतिशत रहा. वेल्लूर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज में मानद प्रोफेसर डॉ. टी जेकब जॉन का कहना है कि दिल्ली, मुंबई एवं चेन्नई में जंगल की आग की तरह फैले आरंभिक दौर के बावजूद स्थानीय सरकारों ने उपलब्ध स्वास्थ्य संसाधनों के बूते महामारी की छूत को अपेक्षाकृत काबू करने में कामयाबी पायी है. उन्होंने चेताया,”गांवों में हम जो देखने जा रहे हैं वो ऐसा नहीं होगा—वहां संक्रमण फैलने की गति धीमी होगी—लंबी सुलगती आग की तरह…जिसे काबू करना अत्यधिक दुष्कर होगा”. इसके बहाने उन्होंने यह भी जता दिया,”अपनी आधी-अधूरी स्वास्थ्य प्रणालियों के कारण गांवों में कितना वंचत्व है”.
भारत को अनलॉक करना: ऐसी अवश्यंभावी बुराई जिससे सावधानी से निपटना होगा
सितंबर से चूंकि अनलॉक यानी पाबंदी हटाने का चौथा दौर शुरू हो चुका इसलिए कोविड-19 के विरूद्ध ”एक के लिए सब और सबके लिए के लिए एक” की तर्ज़ पर चौतरफा युद्ध लड़ना होगा.
उस पर मुकम्मिल रोक लगाने वाला टीका यानी वैक्सीन अभी बननी बाकी है और उसे 1.3 अरब भारतीयों को उपलब्ध कराने की समयावधि भी अनिश्चित है ऐसे में देश में वायरस दुलकी चाल में निर्बाध बढ़ता ही प्रतीत हो रहा है. लॉकडाउन से हुई आर्थिक बर्बादी को हर जुगत से रोकना आवश्यक है. यह हरेक व्यक्ति की पक्की ज़िम्मेदारी है कि हरेक सावधानी और सुरक्षा उपाय का मन लगा कर पालन करे. सितंबर से चूंकि अनलॉक यानी पाबंदी हटाने का चौथा दौर शुरू हो चुका इसलिए कोविड-19 के विरूद्ध ”एक के लिए सब और सबके लिए के लिए एक” की तर्ज़ पर चौतरफा युद्ध लड़ना होगा. उसके साथ ही ब्लैक होल के मुहाने पर खड़ी अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए सरकार को अनेक अतिरिक्त उपाय करने होंगे. जब तक तत्काल राजकोषीय सहायता नहीं की जाएगी तब तक ‘सुधार के संकेतों’ के ठप होने का ख़तरा मंडराता रहेगा.
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