Author : Vivek Mishra

Expert Speak Raisina Debates
Published on Mar 06, 2023 Updated 0 Hours ago

अमेरिका अभी भी यूक्रेन की सहायता के लिए प्रतिबद्ध है लेकिन साथ ही इस बात के लिए भी सचेत है कि उसे इस संघर्ष का हिस्सा नहीं बनना है.

यूक्रेन-रूस युद्ध की पहली वर्षगांठ के साथ अमेरिकी संलिप्तता और ज्य़ादा गहरी हुई है!

यह लेख निबंध शृंखला "यूक्रेन संघर्ष के एक साल:इसके प्रभाव का मूल्यांकन और संभावित समाधान" का एक भाग है.


इस हफ़्ते रूस-यूक्रेन संघर्ष को एक साल पूरे हो गए हैं, और इस पूरी अवधि के दौरान, पूरा विश्व शांति की गुहार लगा रहा था. दोनों पक्षों में युद्ध की थकान स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है, लेकिन उसके बावजूद दोनों ही युद्ध को अपने पक्ष में करने के लिए अभी भी प्रतिबद्ध हैं. जैसे-जैसे यूरोपीय क्षेत्र में युद्ध का तमाशा बढ़ता गया, वैसे-वैसे इस एक साल में वास्तविक और आभासी समस्याएं बढ़ती गईं. युद्ध की वर्षगांठ से एक दिन पहले दिए गए दो विरोधाभाषी भाषणों से यह समस्या और ज़्यादा बढ़ गई है: पहला, जो रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा राष्ट्र को संबोधित भाषण में कहा गया और दूसरा, जो अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने वारसा के अपने गुप्त दौरे में कहा. युद्ध की पहली वर्षगांठ पर दोनों पक्षों द्वारा जारी भड़काऊ बयानों ने इस बात की संभावना लगभग समाप्त कर दी है कि इस युद्ध का अंत किसी स्पष्ट परिणाम के बिना संभव है.

इस गतिरोध के बीच, यूक्रेन युद्ध में अमेरिका की भूमिका देश के बाहर और भीतर गहरे विवाद का विषय रही हैं. ऐसी व्याख्याओं में मौजूद विसंगतियों को आसानी से देखा जा सकता है. एक तरफ़, अमेरिका यूक्रेन को मिलने वाली पश्चिमी सहायता का केंद्र रहा है, जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ट्रांस-अटलांटिक एकजुटता की स्थिति को फिर से साकार करता हुआ प्रतीत होता है. इस संभावना ने न सिर्फ़ पश्चिमी दुनिया को यूक्रेन की लोकतांत्रिक व्यवस्था को बचाने के लिए रूस के खिलाफ़ एकजुट कर दिया है बल्कि यूक्रेन का सामूहिक बचाव की कोशिश में रूस को खोखला करने के प्रयास भी शुरू किए हैं. दूसरी तरफ़, अमेरिका यूक्रेन की सहायता के प्रति सचेत इस बात को लेकर है कि कहीं वॉशिंगटन एक परमाणु शक्ति के खिलाफ़ युद्ध में शामिल न हो जाए. उदाहरण के लिए, संकट के शुरुआती चरण में, अमेरिका ने रूस से संघर्ष की संभावना से बचते हुए यूक्रेन को उड़ान निषिद्ध क्षेत्र घोषित नहीं किया, ताकि यथास्थिति बरकरार रहे. जहां तक रूस की बात की जाए, पुतिन का मानना है कि रूस यह युद्ध जीत सकता है भले ही यूक्रेन को पश्चिम से समर्थन मिलता रहे.

युद्ध की पहली वर्षगांठ पर दोनों पक्षों द्वारा जारी भड़काऊ बयानों ने इस बात की संभावना लगभग समाप्त कर दी है कि इस युद्ध का अंत किसी स्पष्ट परिणाम के बिना संभव है.

यूक्रेन के प्रति अमेरिका के समर्थन की बात करें, तो यहां कम से कम तीन तरह के रुझान दिखाई पड़ते हैं:

प्रतीक

20 फरवरी को राष्ट्रपति बाइडेन की कीव यात्रा और उसके बाद वारसा में उनके भाषण में वही प्रतीकात्मकता थी, जो घरेलू मतदाताओं को लुभाने के साथ-साथ यूक्रेन के प्रति अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जुटाने की भावना से ओत-प्रोत थी. अगर अमेरिकी की घरेलू राजनीति के संकीर्ण संदर्भ में देखें, तो ऐसे प्रतीक का महत्त्व बहुत ज़्यादा है, ख़ासकर 2024 के राष्ट्रीय चुनावों के लिए प्रचारों की शुरुआत के संदर्भ में ये और ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हो जाता है. रिपब्लिकन पार्टी के नियंत्रण वाले अमेरिकी हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स ने बाइडेन के यूक्रेन के दौरे पर जाने के दुस्साहसी फ़ैसले को और भी ज़्यादा महत्त्वपूर्ण बना दिया है, ख़ासकर सदन के नेता केविन मैकार्थी ने बाइडेन प्रशासन को इस बात की चेतावनी दी है कि कहीं वे यूक्रेन को "ब्लैंक चेक" न पकड़ा दें. इसके अलावा, अमेरिका ने जो बाइडेन की राष्ट्रपति के रूप में दूसरा कार्यकाल हासिल करने से जुड़ी राजनीतिक मुहिम को फूल-मालाएं चढ़ाना शुरू कर दिया है और इसलिए यूक्रेन को मज़बूत सैन्य समर्थन देकर इस धारणा को बदला जा सकता है कि उनका नेतृत्व और उनकी राजनीतिक स्थिति किसी भी तरह से अतिवाद को पोषित करती है. अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा एकजुट होकर यूक्रेन को दी गई मज़बूत सैन्य सहायता, जो रूसी हमले के सामने घुटने नहीं टेकने वाली, बल्कि उसे ध्वस्त करने में सक्षम है, वैश्विक स्तर पर अमेरिकी नेतृत्व को पुनर्जीवित कर सकती है और लोकतंत्र के मज़बूत समर्थक के रूप में उसकी राजनीतिक स्थिति को स्थापित कर सकती है और संभावित रूप से डेमोक्रेटिक पार्टी को अगले साल राष्ट्रीय चुनावों में दूसरा कार्यकाल हासिल करने का मौका दे सकती है.

चीनी पक्ष

अमेरिका के लिए, यूक्रेन युद्ध से जुड़ा चीनी पक्ष उसकी अनुपस्थिति से एकदम स्पष्ट है. भले ही बीजिंग ने आम तौर पर यूक्रेन और रूस युद्ध पर तटस्थ रुख अपनाया हो, लेकिन अब इस बात के स्पष्ट सबूत हैं कि चीन प्रतिबंधों के प्रभाव से जूझने में रूस की मदद कर रहा है. उदाहरण के लिए, हालिया एक रिपोर्ट से स्पष्ट है कि चीनी गणराज्य के स्वामित्व वाली सैन्य कंपनियां रूसी सैन्य कंपनियों के लिए नेविगेशन उपकरण, जैमिंग तकनीक और लड़ाकू विमानों के पुर्जे भिजवा रही हैं. एक तरफ़ 2022 में युद्ध की पहली वर्षगांठ पर रूस और चीन ने अपनी दोस्ती को ‘हर सीमाओं से पार’ बताया, वहीं एक साल बाद दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंध और ज़्यादा मज़बूत ही हुए हैं, जहां इस साल 23 फरवरी को चीनी नेता वांग यी और पुतिन की मुलाकात हुई, और इसी के साथ 2023 में ही चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की रूस यात्रा की बात की जा रही है, और सबसे महत्त्वपूर्ण बात ये है कि दोनों देश अपने संबंधों को "नए आयाम" दे रहे हैं.

रिपब्लिकन पार्टी के नियंत्रण वाले अमेरिकी हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स ने बाइडेन के यूक्रेन के दौरे पर जाने के दुस्साहसी फ़ैसले को और भी ज़्यादा महत्त्वपूर्ण बना दिया है, ख़ासकर सदन के नेता केविन मैकार्थी ने बाइडेन प्रशासन को इस बात की चेतावनी दी है कि कहीं वे यूक्रेन को "ब्लैंक चेक" न पकड़ा दें.

हाल ही में चीन द्वारा रूस के सहयोग से अपने राष्ट्रीय क्षेत्रों की 'मजबूती से रक्षा' करने का संकल्प लिया गया है, जो ताइवान को लेकर एक स्पष्ट रणनीतिक आशंका की ओर इशारा करता है. जिस तरह से बाइडेन प्रशासन ने पिछली सरकारों की तुलना में ताइवान को लेकर "रणनीतिक अस्पष्टता" को कम करके उसके बचाव को लेकर अपने संकल्प का प्रदर्शन किया है, ऐसे में चीन पश्चिमी देशों के साथ संभावित संघर्ष और अंतर्राष्ट्रीय अलगाव की स्थिति में अपनी साझेदारी को और मज़बूत करने की आवश्यकता महसूस कर रहा है. इस दिशा में, रूस उसका स्वाभाविक साझीदार है.

बाइडेन प्रशासन ने जानबूझकर अपनी चीनी नीति में ताइवान के सवाल को प्रमुख बनाने का फ़ैसला किया है, भले ही यूक्रेन युद्ध अभी जारी है. ताइवान को सैन्य सहायता देने का संकल्प; 2022 में CHIPS कानून को पारित करना, जो चीन की उच्च गुणवत्ता वाले सेमी-कंडक्टरों और आधारित उपकरणों तक पहुंच को विनियमित करता है; ताइवान में अमेरिका सैन्य टुकड़ी को चार गुना बढ़ाने का हाल ही में लिया गया फ़ैसला; ताईवान नीति कानून 2022, जिसका पारित होना अभी बाकी है- ये सभी मिलकर बाइडेन के नेतृत्व में अमेरिका की ताइवान नीति को मज़बूत करते हैं. हालांकि, गौर से देखें तो तीव्र गति से कीव को दी जा रही सैन्य सहायता ने अमेरिका में पहले से ही मौजूद रक्षा-उद्योग आधार पर दबाव डाला है. परिणामस्वरूप, इसने ताइवान को दी जा रही सैन्य आपूर्ति पर प्रभाव डाला है. इसलिए, युद्ध का परिणाम ही अमेरिका की ताईवान-चीन नीति को तय करेगा.

अगर युद्ध कोई रणनीतिक मोड़ लेता है तो तात्कालिक ख़तरा इस बात का है कि रूस और अमेरिका दोनों ही देशों द्वारा रणनीतिक परमाणु हथियारों की असीमित मात्रा में तैनाती की जा सकती है, जिसमें पनडुब्बी आधारित मिसाइलें और बमवर्षक शामिल हैं.

चिंताएं

जबकि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका ने सबसे मज़बूत ट्रांस-अटलांटिक समूह का नेतृत्व किया था, लेकिन वह वैश्विक दक्षिण में एक उदाहरण पेश करने या इस तरह के नेतृत्व का समर्थन करने में असफल रहा. वास्तव में, पहले से ही कई ध्रुवों में बंटी वैश्विक शक्ति संरचना और ज़्यादा बिखर रही है, और देशों के एक दूसरे के प्रति अलगाव के कारण और अधिक मज़बूत हुए हैं. जहां यह युद्ध यूरोप के गैर-नाटो देशों के लिए इस सुरक्षा संगठन में शामिल होने का निर्णायक मौका साबित हुआ है, वहीं इसने रूस, चीन और ईरान जैसे देशों को अमेरिकी नेतृत्व वाली वैश्विक व्यवस्था से और ज़्यादा दूरी बरतने को मज़बूर किया है. इसके अलावा, जो देश रूस-यूक्रेन युद्ध को अपनी प्राथमिकता से बाहर का मुद्दा समझने वाले देशों ने स्वतंत्र फ़ैसलों की शुरूआत की है. भारत ने अपनी वृहद जनसंख्या और उसकी ऊर्जा ज़रूरतों को देखते हुए रूसी तेल का आयात करना जारी रखा है. हाल ही में, दक्षिण अफ्रीका ने यह संकेत देने के लिए चीन और रूस के साथ हिंद महासागर में नौसैनिक अभ्यास में हिस्सा लिया कि वैश्विक दक्षिण की एकजुटता या उसके हितों पर रूस-यूक्रेन युद्ध का प्रभाव कितना सीमित है.

आख़िर में, और जो सबसे चिंताजनक मुद्दा है वो ये कि युद्ध की वर्षगांठ ने परमाणु मुद्दे से जुड़े सवाल को दुनिया के लिए अनुत्तरित छोड़ दिया है, जहां राष्ट्रपति पुतिन ने न्यू स्टार्ट संधि से रूस के बाहर निकलने की घोषणा की, जिस पर 2010 में प्राग में हस्ताक्षर किए गए थे. अगर युद्ध कोई रणनीतिक मोड़ लेता है तो तात्कालिक ख़तरा इस बात का है कि रूस और अमेरिका दोनों ही देशों द्वारा रणनीतिक परमाणु हथियारों की असीमित मात्रा में तैनाती की जा सकती है, जिसमें पनडुब्बी आधारित मिसाइलें और बमवर्षक शामिल हैं. वारसा और मॉस्को में दिए गए दोनों भाषणों ने दुनिया की चिंताओं को और बढ़ाया है. जिस तरह से यूक्रेन अमेरिकी नेतृत्व वाले पश्चिमी देशों द्वारा सैन्य आपूर्ति की अगली खेप का इंतज़ार कर रहा है, उससे युद्ध के हालात व्यापक रूप से बदल सकते हैं और रूस यूक्रेन पर हमला करने के लिए एक बार फिर से कमर कस रहा है.

रूस-यूक्रेन युद्ध आधी सदी पहले मुहम्मद अली और जो फ्रैजियर के बीच "सदी के युद्ध" के एक सांख्यिकीय संस्करण में बदल रहा है. जो भी अंत तक अपनी ऊर्जा को बचाए रखेगा और लगातार हमला जारी रखेगा, वह जीत जाएगा.

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