Author : Harsh V. Pant

Expert Speak Raisina Debates
Published on Mar 03, 2023 Updated 0 Hours ago

बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों, उभरती बहुध्रुवीयता और यूरोप के भारत की ओर बढ़ते झुकाव के मद्देनजर भारत-जर्मनी संबंध नई विश्व व्यवस्था को आकार देने में अहम भूमिका निभा सकता है.  

क्या यूक्रेन-रूस युद्ध के चलते करीब आए भारत और जर्मनी

यह कोई छिपी हुई बात नहीं कि जर्मनी के साथ भारत के रिश्ते अन्य यूरोपीय देशों, जैसे- फ्रांस के मुकाबले पीछे रह गए. जर्मनी का चीन को ज्यादा तवज्जो देना भी इसकी एक वजह है. लेकिन यह स्थिति तेजी से बदल रही है. दिलचस्प संयोग कहिए कि चांसलर ओलाफ शोल्ज की पहली भारत यात्रा तभी हुई, जब यूक्रेन युद्ध का एक साल पूरा हो रहा था. यूक्रेन पर रूसी हमला इस लिहाज से भी ऐतिहासिक है कि यह जर्मनी की सुरक्षा नीति में बदलाव का कारण बना. इसी बदलाव की वजह से जर्मनी ने सामरिक मामलों को लेकर दशकों से चली आ रही उदासीनता छोड़ने का फैसला किया. इसकी तस्दीक अपना रक्षा खर्च बढ़ाकर जीडीपी के 2 फीसदी करने के जर्मनी के इरादे से भी होती है.

रूस और चीन के साथ रिश्तों में बढ़ती अनिश्चितता के कारण पूरे यूरोप में समान विचार वाले देशों के साथ मूल्य आधारित साझेदारी कायम करने का आग्रह बढ़ रहा है, जिससे जर्मनी और भारत के करीब आने के मौके भी बने हैं.

बदल गई प्राथमिकता  

यूक्रेन युद्ध और चीन के आक्रामक रुख ने व्यापार के जरिए बदलाव लाने के जर्मनी के नजरिए को सवालों के घेरे में ला दिया, जिससे वहां ऊर्जा और व्यापार के मामले में निर्भरता कम करने पर गंभीर पुनर्विचार शुरू हो गया. रूस और चीन के साथ रिश्तों में बढ़ती अनिश्चितता के कारण पूरे यूरोप में समान विचार वाले देशों के साथ मूल्य आधारित साझेदारी कायम करने का आग्रह बढ़ रहा है, जिससे जर्मनी और भारत के करीब आने के मौके भी बने हैं.

  • शोल्ज के हालिया दौरे की जमीन जर्मन विदेश मंत्री बाएरबॉक की दिसंबर 2022 में हुई यात्रा से और छठे भारत-जर्मनी इंटरगवर्नमेंटल कंसल्टेशंस यानी IGC (द्विवर्षीय वार्ता का एक मंच, जिसकी शुरुआत 2011 में हुई थी) से तैयार हुई. IGC का मकसद रक्षा, व्यापार, क्लीन एनर्जी, माइग्रेशन, डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन और हिंद-प्रशांत के क्षेत्र में सहयोग को विस्तार देना है.
  • शोल्ज की यात्रा की अहमियत इस मायने में और बढ़ जाती है कि यह ऐसे समय हुई, जब भारत जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है और चाहता है कि भू-राजनीति के समीकरण इस मंच की सहयोग भावना को बाधित न करें. चूंकि रूस-यूक्रेन युद्ध दूसरे साल भी जारी है, इसलिए यह युद्ध और पूरी दुनिया पर हो रहे इसका असर बातचीत के केंद्र में रहा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसी भी शांति प्रक्रिया में योगदान करने को लेकर भारत की प्रतिबद्धता दोहराई.
  • जर्मनी की पहले वाली चीन केंद्रित एशिया नीति के विपरीत शोल्ज ने 2021 में पदभार संभालने के बाद सबसे पहले जापान की यात्रा की और उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को छठे IGC के लिए बर्लिन आमंत्रित किया.
  • एशिया की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाने की यह पहल हिंद-प्रशांत क्षेत्र में जर्मनी की व्यापक रणनीति का हिस्सा है, जिसमें भारत को अहम साझेदार माना गया है.
  • ध्यान रहे, यूरोप के इकॉनमिक पावरहाउस के दर्जे और निर्यात पर निर्भरता के मद्देनजर सप्लाई चेन और एशिया को यूरोप से जोड़ने वाले व्यापारिक मार्गों की स्थिरता जर्मनी के लिए विशेष महत्वपूर्ण हो जाती है.
  • अपनी भारत यात्रा से ठीक पहले दिए गए एक इंटरव्यू में शोल्ज ने इस क्षेत्र में ज्यादा सैनिकों को तैनात करके अपनी सामरिक मौजूदगी बढ़ाने का इरादा जताया.
  • 1921 में एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अपना युद्धपोत बेयर्न भेजने का जर्मनी का सांकेतिक कदम भी इसी रणनीति का हिस्सा था. भारत और जर्मनी के बीच हाल में हुए त्रिकोणीय सहयोग का समझौता भी इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो तीसरे देशों में विकास परियोजनाओं से जुड़ा है. 

बैठकों में जिन मुद्दों पर बात हुई, उनमें मिलिट्री हार्डवेयर का मिलजुलकर विकास और तकनीकी हस्तांतरण के अलावा 5.2 अरब डॉलर का वह समझौता शामिल है, जिसके मुताबिक जर्मनी भारत में संयुक्त रूप से छह पारंपरिक पनडुब्बी का निर्माण करने वाला है. यही नहीं, 2024 में फ्रांस, भारत और जर्मनी मिलकर पहला सैन्याभ्यास भी करेंगे

अब चूंकि भारत भी रूस पर सैन्य निर्भरता घटाने की सोच रहा है और जर्मनी भी अपनी हथियार निर्यात नीति पर पुनर्विचार कर रहा है, तो जर्मनी, भारत का अहम डिफेंस पार्टनर बन सकता है. बैठकों में जिन मुद्दों पर बात हुई, उनमें मिलिट्री हार्डवेयर का मिलजुलकर विकास और तकनीकी हस्तांतरण के अलावा 5.2 अरब डॉलर का वह समझौता शामिल है, जिसके मुताबिक जर्मनी भारत में संयुक्त रूप से छह पारंपरिक पनडुब्बी का निर्माण करने वाला है. यही नहीं, 2024 में फ्रांस, भारत और जर्मनी मिलकर पहला सैन्याभ्यास भी करेंगे. फिर भी जरूरी है कि दोनों देश अपनी अपेक्षाओं को जमीनी हकीकतों से जोड़कर रखें.

  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता से जुड़ी साझा चिंताओं के बावजूद यह सचाई है कि जर्मनी, चीन के साथ सरहद साझा नहीं करता, जबकि भारत का उससे सीमा को लेकर झगड़ा है.
  • इतना ही नहीं, जर्मनी का चीन पर से विश्वास भले ही उठ गया हो, 2022 में हुई शोल्ज की चीन यात्रा को याद करें तो उसमें यह स्पष्ट हो गया था कि जर्मन इंडस्ट्री चीन के बाजार से किस हद तक जुड़ी हुई हैं.
  • मगर भले ही शोल्ज चीन से ‘डी-कपलिंग’ को मुश्किल बता रहे हों, अच्छी बात यह है कि जर्मनी व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के तहत चीन पर नई आधिकारिक रणनीति का प्रारूप तैयार कर रहा है. 

मुक्त व्यापार समझौता  

जर्मनी यूरोपियन यूनियन में भारत का सबसे बड़ा पार्टनर है. इस लिहाज से भारत-ईयू मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत की दोबारा शुरुआत से जो अजेंडा उभरा है, उसमें स्वाभाविक ही व्यापार केंद्र में है. पिछले साल ग्रीन एंड सस्टेनेबल डिवेलपमेंट पार्टनरशिप और ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में सहयोग की शुरुआत से क्लीन एनर्जी और ग्रीन टेक्नॉलजी में सहयोग, इस पार्टनरशिप के मुख्य स्तंभ के रूप में सामने आया है. जर्मनी में स्किल्ड मैनपावर की कमी के मद्देनजर मोबिलिटी और माइग्रेशन का मुद्दा भी फोकस में है. इस बिंदु पर टेक्निकली स्किल्ड इंडियंस उसके लिए खासे उपयोगी साबित हो सकते हैं.

जर्मनी में स्किल्ड मैनपावर की कमी के मद्देनजर मोबिलिटी और माइग्रेशन का मुद्दा भी फोकस में है. इस बिंदु पर टेक्निकली स्किल्ड इंडियंस उसके लिए खासे उपयोगी साबित हो सकते हैं.

यह देखना सुखद है कि आर्थिक साझेदारी की उलझनों तक सीमित रहने के बजाय भारत और जर्मनी का रिश्ता धीरे-धीरे व्यापक साझेदारी के रूप में उभरा है. बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों, उभरती बहुध्रुवीयता और यूरोप के भारत की ओर बढ़ते झुकाव के मद्देनजर भारत-जर्मनी संबंध नई विश्व व्यवस्था को आकार देने में अहम भूमिका निभा सकता है.  

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यह लेख नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हो चुका है.

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