‘यूक्रेन में रूस के घुसपैठ’ की निंदा और यूक्रेन की ‘यूरोपियन पसंद’ का समर्थन करते हुए पोलैंड, लिथुआनिया और यूक्रेन के द्वारा ‘लुबलिन त्रिकोण’ के गठन की घोषणा ऐसे वक़्त में हुई है जब मध्य और पूर्वी यूरोप में दुनिया की बड़ी शक्तियों के बीच भू-राजनीतिक मुक़ाबला तेज़ हो रहा है. राजनीतिक, आर्थिक, बुनियादी ढांचा, सुरक्षा, रक्षा और सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देने की चाह रखने वाला त्रिकोण ऐतिहासिक संपर्कों की याद दिलाता है. ये यूरोपियन यूनियन (EU) और नाटो (NATO) के साथ यूक्रेन के और ज़्यादा रिश्ते जबकि रूस के साथ दूरी का एजेंडा रखता है.
त्रिकोण का गठन तीन देशों द्वारा लिथुआनियाई-पोलिश-यूक्रेनियन ब्रिगेड (LitPolUkrBrig)- जिसका मक़सद 2014 के यूक्रेन संकट के ठीक बाद सुरक्षा सहयोग को बेहतर करना था- के बनने के कुछ वर्षों के बाद हुआ है. तब से यूक्रेन- जो कि यूरोपियन यूनियन की पूर्वी साझेदारी संरचना का हिस्सा है- ने पश्चिमी देशों के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करने की कोशिश की है. इस दिशा और ब्रिगेड से एक क़दम आगे बढ़ते हुए नई सहयोग व्यवस्था त्रिकोणीय संबंधों के दायरे को सुरक्षा के क्षेत्र से आगे बढ़कर ज़्यादा व्यापक पहलू तक विस्तार करती है.
नये त्रिकोण की स्थापना को लेकर तीन देशों के विदेश मंत्रियों का साझा घोषणापत्र यूक्रेन के EU और NATO का सदस्य बनने की चाह का समर्थन करता है. हालांकि, ये उन्हें मालूम है कि निकट भविष्य में इसकी संभावना काफ़ी कम है.
नये त्रिकोण की स्थापना को लेकर तीन देशों के विदेश मंत्रियों का साझा घोषणापत्र यूक्रेन के EU और NATO का सदस्य बनने की चाह का समर्थन करता है. हालांकि, ये उन्हें मालूम है कि निकट भविष्य में इसकी संभावना काफ़ी कम है. रूस के साथ मौजूदा संघर्ष को देखते हुए NATO यूक्रेन को आर्टिकल 5 की सुरक्षा गारंटी मुहैया कराने को लेकर चौकन्ना है क्योंकि ऐसा करने पर भविष्य में NATO और रूस सीधे आमने-सामने आ सकते हैं. फिर भी EU और NATO के साथ यूक्रेन के सहयोग में बढ़ोतरी हुई है और दोनों संगठनों के सदस्य के तौर पर पोलैंड और लिथुआनिया ने इस कोशिश में अपना समर्थन ज़ाहिर किया है.
ये क़दम अमेरिका के उस फ़ैसले की पृष्ठभूमि में उठाया गया है जिसके तहत उसने अपने कुछ सैनिकों को जर्मनी से पोलैंड भेज दिया है. ऐसा करने से पोलैंड में अमेरिकी सैनिकों की संख्या एक हज़ार बढ़कर 5,500 हो गई है और पोलैंड में अमेरिकी सेना की पांचवीं कोर का हेडक्वॉर्टर भी हो गया है. 2014 की घटनाओं के बाद पोलैंड की राजधानी वॉरसॉ और लिथुआनिया की राजधानी विलनियस में पहले से NATO की मौजूदगी ज़्यादा है. इस बीच LitPolUkrBrig ने अपनी स्थापना के वक़्त से EU और NATO के कई सदस्य देशों के साथ साझा युद्ध अभ्यास किया है. उसकी स्थापना ने रूस में चिंता बढ़ा दी है. रूस ब्रिगेड के ‘लक्ष्यों’ पर सवाल उठा रहा है. अभी तक स्थापना के समय पर शंका के बावजूद ब्रिगेड ने मौजूदा रूस-यूक्रेन संघर्ष में कोई दख़ल नहीं दिया है.
1569 में यूनियन ऑफ लुबलिन ने ऐसे समुदाय का गठन किया जिसमें किंडगम ऑफ पोलैंड, ग्रैंड ड्यूक ऑफ लिथुआनिया और रूथेनियन्स के बसे इलाक़े जो आधुनिक समय के यूक्रेन और बेलारूस हैं, शामिल थे.
साझा घोषणापत्र में EU और अमेरिका से समर्थन हासिल करने वाली थ्री सीज़ इनिशिएटिव (3SI) का भी ख़ास ज़िक्र है. वर्तमान में एड्रिएटिक सागर, बाल्टिक सागर और काला सागर के बीच स्थित 12 देश ऊर्जा, परिवहन और डिजिटल सेक्टर में कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने के लिए सहयोग करते हैं. इस पहल का एक मुख्य उद्देश्य ‘उत्तर-दक्षिण कॉरिडोर’ के गठन के ज़रिए सोवियत के विघटन के बाद बने देशों के लिए रूस की ऊर्जा पाइपलाइन पर निर्भरता कम करना है. 3SI- जिसमें शामिल होने के लिए यूक्रेन ने भी दिलचस्पी जताई है- के दूसरे उद्देश्य हैं आर्थिक विकास और बुनियादी ढांचे के निर्माण को बढ़ावा. इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ऐसी उप-क्षेत्रीय पहल यूरोप में असामान्य नहीं है. लुबलिन त्रिकोण के ज़रिए यूक्रेन पहली बार औपचारिक तौर पर ऐसी संधि में शामिल हुआ है.
त्रिकोण के भू-राजनीतिक और आर्थिक महत्व के अतिरिक्त ये समूह इतिहास के एक ख़ास समय की भी याद दिलाता है जब पोलिश-लिथुआनियाई राष्ट्रमंडल ने 16वीं और 17वीं शताब्दी के दौरान ‘आधुनिक यूरोप में सबसे बड़े देशों’ में से एक का गठन किया. 1569 में यूनियन ऑफ लुबलिन ने ऐसे समुदाय का गठन किया जिसमें किंडगम ऑफ पोलैंड, ग्रैंड ड्यूक ऑफ लिथुआनिया और रूथेनियन्स के बसे इलाक़े जो आधुनिक समय के यूक्रेन और बेलारूस हैं, शामिल थे. मौजूदा पश्चिमी और उत्तरी यूक्रेन 14वीं शताब्दी के मध्य से पोलैंड के हिस्से थे और बाद में पोलिश-लिथुआनियाई राष्ट्रमंडल के हिस्से बन गए और क़रीब तीन शताब्दी तक ऐसे ही रहे. वास्तव में एक अलग यूक्रेनियन राष्ट्रीय चेतना की वजह इसी दौर को बताया गया है जब भाषा और धर्म के मुद्दों की वजह से 1648 में कोसाक विद्रोह हुआ और फिर वो रूस के नज़दीक चला गया.
इतिहासकार मानते हैं कि 18वीं शताब्दी में यूनियन के अंत के बावजूद अपने लोगों के लिए ये कामयाब थी और चार शताब्दी तक ये टिकी रही. आधुनिक समय के पोलैंड, लिथुआनिया और यूक्रेन के लिए यूनियन मौजूदा समय के सहयोग को अतीत से जोड़ने की कड़ी है. ख़ासतौर पर यूक्रेन के लिए इतिहास का ये दौर उसे उस यूरोप से जोड़ता है जिसके साथ वो गठजोड़ चाहता है. भले ही EU और NATO के पूर्णकालिक सदस्य के तौर पर शामिल होना फिलहाल मुमकिन नहीं लगता.
रूस ने अभी तक लुबलिन त्रिकोण के एलान पर आधिकारिक रूप से प्रतिक्रिया नहीं दी है और वो इस समूह के गठन को रोक भी नहीं सकता लेकिन रूस के साथ संबंधों से दूर रहने का लुबलिन त्रिकोण का लक्ष्य साफ़ तौर पर ज़ाहिर कर दिया गया है. इसे यूक्रेन में रूस की कार्रवाई की निंदा के साथ-साथ EU और NATO की सदस्यता के लिए यूक्रेन की दावेदारी के समर्थन में देखा जा सकता है.
फिलहाल साझा बयान सहयोग के संभावित क्षेत्रों को लेकर व्यापक रूपरेखा मुहैया कराता है जिनमें सैन्य सहयोग, कोविड-19 महामारी के ख़िलाफ़ लड़ाई, व्यापार और निवेश, क्षेत्रीय बुनियादी ढांचा और नागरिकों के स्तर पर सहयोग शामिल हैं. लेकिन त्रिकोण की महत्वाकांक्षा की सफलता कई चीज़ों पर निर्भर करती है जिनमें से सभी चीज़ें इसके सदस्य देशों के नियंत्रण में नहीं हैं.
अगर दोनों संगठन तय करते हैं कि साझेदारी का स्तर इतना ही होगा कि रूस नाराज़ नहीं हो तो सदस्य देश के तौर पर पोलैंड और लिथुआनिया के लिए इसे मानने के सिवा कोई दूसरा विकल्प नहीं होगा.
पहली बात, यूक्रेन और EU/NATO के बीच सहयोग के स्तर का असर त्रिकोण के भविष्य पर होगा. अगर यूक्रेन बगैर पूर्ण सदस्यता के भी ज़्यादा सहयोग से संतुष्ट होता है तो ये लुबलिन त्रिकोण और उसकी गतिविधियों का एजेंडा तय करने में भी मदद करेगा. दूसरी बात, रूस की प्रतिक्रिया इस बात पर निर्भर करेगी कि लुबलिन त्रिकोण ज़मीनी स्तर पर किन परियोजनाओं को लागू करने का फ़ैसला करता है और EU और NATO के साथ उसकी साझेदारी किस स्तर तक होती है. अगर दोनों संगठन तय करते हैं कि साझेदारी का स्तर इतना ही होगा कि रूस नाराज़ नहीं हो तो सदस्य देश के तौर पर पोलैंड और लिथुआनिया के लिए इसे मानने के सिवा कोई दूसरा विकल्प नहीं होगा. ऐसी सावधानी यूक्रेन को लेकर और ज़्यादा संघर्ष की आशंका को रोकने के लिए भी अपनानी होगी. इस समय सुरक्षा के बदले राजनीतिक और आर्थिक मामलों पर सहयोग ज़्यादा सही है.
तीसरी बात, तीनों देशों के आपसी द्विपक्षीय मतभेदों को संभालना भी उनके बीच सहयोग पर असर डालेगा. हाल के दिनों में पोलैंड और लिथुआनिया के बीच पोलैंड के अल्पसंख्यकों और उनके द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली भाषा को लेकर संघर्ष हो चुका है. हालांकि, दोनों देशों ने आपसी विवाद को सुलझाने के लिए क़दम उठाए हैं. ऐतिहासिक घटनाओं ने पोलैंड और यूक्रेन के संबंधों के लिए भी चुनौती पेश की है. हालांकि, इसके बावजूद दोनों देशों के बीच आर्थिक, रक्षा और परस्पर हितों के सामरिक क्षेत्रों में सहयोग जारी है. इन मुद्दों को संभालना महत्वपूर्ण बन गया है क्योंकि इस इलाक़े के दूसरे बहुपक्षीय समूहों में द्विपक्षीय मुद्दों और ‘बदलती राजनीतिक प्राथमिकताओं’ की वजह से उनके कामकाज पर असर पड़ा है.
चौथी बात, भविष्य की बैठकों के नतीजे पर नज़दीकी तौर पर नज़र रखनी होगी जिससे कि त्रिकोण द्वारा बढ़ावा दी जाने वाले ठोस ज़मीनी परियोजनाओं या सामूहिक लड़ाई के लिए योजना बनाई जा सके. ऊपर बताए गए लक्ष्यों का ख़ास परियोजनाओं में बदलाव त्रिकोण के लिए अपने सदस्य देशों के राष्ट्रीय हितों को पूरा करने पर असर होगा.
रूस-यूक्रेन मोर्चे पर नाज़ुक हालात को नये समूह के पक्ष में EU या NATO का कोई जोख़िम वाला क़दम बिगाड़ेगा. लेकिन लुबलिन त्रिकोण से जुड़कर यूक्रेन ने अपने जैसी सोच वाले देशों के समर्थन से विदेश नीति को पश्चिमी देशों की तरफ़ मोड़ने का इरादा साफ़ कर दिया है.
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