Author : Hari Bansh Jha

Published on Apr 14, 2018 Updated 0 Hours ago

नेपाल और भारत के बीच रक्सौल एवं काठमांडू के बीच रेल संपर्क को लेकर हुआ समझौता नेपाल-भारत संबंधों में क्यों सबसे अहम घटनाक्रम है?

ओली की दिल्ली यात्रा: नेपाल-भारत संबंधों में मील का पत्थर

नेपाल और भारत में सरकारें बदलती रहती हैं, लेकिन दोनों देशों के बीच लोगों के रिश्ते हमेशा ताजा बने रहते हैं। कई बार खुली सीमा प्रणाली वाले इन दोनों बेहद घनिष्ठ देशों के बीच सरकार के स्तर पर संबंधों में खटास आ जाती है, लेकिन सुधार के कुछ अंतर्निहित तंत्र के कारण इनके रिश्ते फिर से बेहतर भी हो जाते हैं। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की 6 एवं 8 अप्रैल की हाल की भारत यात्रा से यह बात पूरी तरह प्रदर्शित हुई।

प्रधानमंत्री ओली ने भारत में रहते हुए भारत के प्रधानमंत्री मोदी के साथ मिल कर 69किमी लंबी अमलेखगानु-मोतिहारी तेल पाइपलाइन के अतिरिक्त, बीरगंज में एकीकृत चेकपोस्ट (आईसीपी) का उद्घाटन किया। दोनों देशों ने लंबे समय से लटकी हुई पंचेश्वर, तराई मार्ग एवं अन्य बुनियादी ढांचे से संबंधित परियोजनाओं में तेजी लाने पर भी सहमति जताई।

प्रधानमंत्री ओली, जो अभी तक अपने भारत विरोधी रुख के लिए जाने जाते थे, ने इसे पूरी तरह स्पष्ट कर दिया कि नेपाल ऐसा कुछ भी नहीं करेगा, जो भारत के हितों के खिलाफ जाता हो। उन्होंने भारत के साथ नेपाल के संबंधों में सुधार लाने के प्रति भी तीव्र इच्छा जताई क्योंकि उनकी भारत को लेकर कोई भी गलतफहमी नहीं थी।

आईसीपी के संचालन से सीमा पार व्यापार की मात्रा में बढोतरी होने की उम्मीद है। इससे एक देश से दूसरे देश में लोगों की आवाजाही बढ़ने में भी मदद मिलेगी। इसी प्रकार, तेल पाइपलाइन से नेपाल को सालाना दो मिलियन टन तेल प्राप्त होगा जिससे भारत से नेपाल में तेल की ढुलाई में बड़ी बाधाएं समाप्त हो सकती हैं।

देश न केवल खाद्यान्न के उत्पादन में आत्म निर्भर है बल्कि खाद्यान्नों के निर्यातकों में से एक है। यह दूध और दुग्ध उत्पादों के भी सबसे बड़े उत्पादकों में से एक के रूप में उभरा है। यह सारा कुछ देश में हरित और श्वेत क्रांति के कारण संभव हुआ है।

इन वास्तविकताओं को देखते हुए, कृषि क्षेत्र में भारत के साथ साझीदारी करने में नेपाल की दिलचस्पी उसे कृषि, पशुधन एवं मछली पालन क्षेत्रों में उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाने के बारे में जानकारी प्राप्त करने में सहायता प्राप्त कर सकती है। देश में ऐसे कृषि उत्पादों के उत्पादन एवं निर्यातों से भारत के साथ व्यापार संतुलन में खाई को पाटने में भी मदद मिलेगी। उपलब्ध आंकड़े प्रदर्शित करते हैं कि भारत के साथ व्यापार संतुलन में नेपाल का घाटा 2016-17 के पहले 10 महीनों में 491 अरब नेपाली रुपया था जो एक बहुत बड़ी राशि है।

कृषि क्षेत्र में साझीदारी विकसित करने के लिए नेपाल एवं भारत के बीच किया गया समझौता भी समान रुप से उत्साहवर्द्धक है। भारत ने कृषि क्षेत्र में असाधारण उपलब्धि हासिल की है।

नेपाल और भारत के बीच एक और ऐतिहासिक समझौता अंतःस्थलीय जलमार्ग के जरिये संपर्क बढ़ाने से संबंधित है। इससे जमीन से घिरे इस देश की समुद्र तक पहुंच संभव हो सकेगी। चूंकि जलमार्ग के जरिये परिवहन लागत अक्सर परिवहन के अन्य तरीकों की तुलना में काफी कम होती है, इससे भारत एवं तीसरे देशों के साथ नेपाल के व्यापार को बढ़ावा मिलेगा। इससे भी बड़ी बात यह है कि इस घटनाक्रम से समुद्र तक इसकी पहुंच सुलभ होने के बाद नेपाल केवल जमीन से घिरा देश नहीं रह जाएगा।

इस अहम परियोजना के पूरी हो जाने के बाद, काठमांडू भारतीय रेल के 115,000 किलोमीटर लंबे तंत्र से जुड़ जाएगा। यह विश्व के सबसे बड़े रेल नेटवर्कों में से एक है। समय और लागत, दोनों के लिहाज से तराई क्षेत्र और भारत से भी काठमांडू की यात्रा करना बेहद आसान हो जाएगा। यहां तक कि तराई क्षेत्र या भारत से वस्तुओं की ढुलाई की परिवहन लागत भी बहुत कम हो जाएगी। इस कदम के बाद, नेपाल के भीतर एवं भारत तथा तीसरे देशों के साथ भी व्यवसाय एवं व्यापार तेज गति से बढ़ेगा।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नेपाल और भारत के बीच रक्सौल एवं काठमांडू के बीच रेल संपर्क को लेकर समझौता हुआ है जो नेपाल-भारत संबंधों में एक अन्य सबसे अहम घटनाक्रम है।

इसके अतिरिक्त, रक्सौल-काठमांडू रेल संपर्क का काफी सामरिक महत्व भी है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस परियोजना में बेल्ट एवं रोड पहल के तहत चीन की 8 अरब डॉलर की रेल परियोजना का मुकाबला करने की क्षमता है जिसका उद्वेश्य तिब्बत रेलवे को रासुवागाधी-केरुंग सीमा से काठमांडू तथा बाद में पोखरा और लुंबिनी से जोड़ना है। कुछ हलकों में ऐसा खौफ है कि चीन की रेल प्रणाली नेपाल को स्थायी रूप से स्थायी ऋण के बोझ तले दबने को मजबूर कर देगी और इसके बाद अपनी स्वायत्तता का एक हिस्सा उसे चीन को सौंपने को मजबूर होना पड़ेगा। नेपाल जैसा गरीब देश इतने विशाल ऋण के ब्याज एवं मूल धन की दोबारा अदायगी करने की स्थिति में नहीं है। इस रेल परियोजना से अगर किसी देश को लाभ पहुंचेगा तो वह केवल चीन ही है। नेपाल के पास चीन को निर्यात करने के लिए नगण्य सामान है। लेकिन उसे चीन से काफी अधिक उत्पादों का आयात करना होगा। इससे चीन के साथ हमारा व्यापार संतुलन और भी खराब हो जाएगा।

यह घोषणा 2.5 अरब डॉलर की बूढ़ी गंडक पनबिजली परियोजना के संबंध में थी। प्रारंभ में इस परियोजना का ठेका चीनी कंपनी गेजहौबा ग्रुप कॉरपोरेशन को दिया गया था। लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने जरुरतों की पूर्ति करने में इसकी विफलता के कारण चीनी कंपनी को दिया गया यह ठेका रद्द कर दिया। इसके तुरंत बाद, ओली ने एक बयान जारी किया कि वह चीनी कंपनी को इस ठेके का नवीकरण कर रहे हैं जिससे 1,200 मेगावाट बिजली उत्पादित होने की उम्मीद है। अगर भारत बिजली खरीदने से इंकार करता है तो इस परियोजना को व्यवहारिक बनाना संभव नहीं होगा।

नई दिल्ली में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, भारत ने इसे स्पष्ट कर दिया कि अगर चीन ने नेपाल में बांधों का निर्माण किया तो वह उससे बिजली नहीं खरीदेगा।

प्रधानमंत्री ओली की यात्रा और अधिक सार्थक रही होती अगर उन्होंने सप्त कोशी हाई डैम के निर्माण, 900 मेगावाट की अरुण III परियोजना एवं 600,000 मेगावाट की पंचेश्वर परियोजना के लिए भारत के साथ समझौता किया होता। वह और भी अधिक लोकप्रिय हुए होते अगर उन्होंने 500 और 1000 रुपये के प्रतिबंधित नोटों के विनिमय को लेकर भारत के साथ कोई समझौता किया होता। ऐसे नोट भारत में नवंबर 2016 में विमुद्रित हो गए थे। नेपाल के नागरिकों को 2014 से ऐसे उच्च मूल्य नोट को रखने की अनुमति दी गई थी, इसलिए उनमें से कई के पास ऐसी करेंसी रखी हुई थी। ऐसे नोटों के विमुद्रीकरण के बाद, नेपाल के कुछ खास वर्गों के लोगों, जिनके भारत में संपर्क थे, ने पुराने नोटों को नए नोटों में तबदील कर लिया, लेकिन और बहुत सारे लोग ऐसा नहीं कर सके। आधिकारिक रूप से, नेपाल में ऐसे 30 करोड़ भारतीय रुपये हैं। लेकिन अनधिकृत आंकड़ों के अनुसार, नेपाल में ऐसे नोट 10 अरब रुपये के बराबर हैं।

फिर भी, नेपाल के लोगों के लिए बहुत संतोष की बात यह है कि ऐसे सभी प्रमुख समझौते जो इस बार भारत में किए गए हैं-चाहे वह रेल के जरिये रक्सौल को काठमांडू से जोड़ने से संबंधित हो, अंतःस्थलीय जलमार्गों के जरिये समुद्र तक पहुंच स्थापित करने की हो, दोनों देशों के बीच तेल पाइपलाइन कनेक्शन होया बीरगंज में आईसीपी हो,ये सभी नेपाल के विकास प्रयासों में मील का पत्थर साबित होंगे। संभवतः अगर ये समझौते इस बार भारत में नहीं होते तो उस वक्त होते जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नेपाल की यात्रा करते। इस प्रकार, कुल मिलाकर, नेपाल के प्रधानमंत्री की नई दिल्ली की यात्रा को काफी सफल माना जा सकता है।

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