Published on Sep 15, 2020 Updated 0 Hours ago

मुंबई के भूगोल की जटिलता के साथ-साथ इसकी बेतहाशा बढ़ती आबादी ने शहर को इस कदर बेढब बना दिया है कि इस पर गैरपारंपरिक तरीकों से पुनर्विचार करने की ज़रूरत है.

मुंबई: सोशल हाउसिंग में बहुत मददगार हो सकता है धारावी री-डेवलपमेंट प्लान

कोविड-19 महामारी के अनपेक्षित नतीजों में से एक है, एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्तियों में से एक धारावी के री-डेवलपमेंट (पुनर्विकास) की प्रक्रिया में तेज़ी लाने के लिए स्थानीय निवासियों का समर्थन एकदम से बढ़ गया है. धारावी की रेज़िडेंट कमेटियों ने उद्धव ठाकरे सरकार से पिछले 15 सालों से घिसट रही 280 अरब रुपये की परियोजना को तेज़ी से पूरा करने के लिए कहा है, जो मुख्य रूप से यहां के निवासियों और सरकार के बीच आम सहमति की कमी के चलते पांच मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में बार-बार बदलता रहा है. और इस बार परियोजना की शुरुआत की मांग, ख़ुद यहां के निवासियों की तरफ़ से आई है, और इलाक़े पर नए सिरे से दुनिया का ध्यान जाने के बाद, महाराष्ट्र के आवास मंत्री जितेंद्र अवध को करीब-करीब पटरी से उतर चुकी परियोजना को वापस पटरी पर लाने के लिए प्रेरित किया, जिन्होंने इस पर तेजी से अमल करने का रास्ता साफ़ करने का वादा किया है.

मुंबई के बीचो-बीच री-डेवलपमेंट परियोजना में 239 हेक्टेयर क्षेत्र का पुनर्विकास होगा, जिसमें करीब दस लाख लोग रहते हैं. इस समय इस क्लस्टर में 20,000 छोटे दर्जे की कामकाजी इकाइयां, हैं, जबकि बाकी झोंपड़ियों के साथ सामुदायिक शौचालय हैं

धारावी 239 हेक्टेयर में फैला है और यहां करीब 10 लाख लोग रहते हैं. यह मई 2020 में कोविड-19 वैश्विक महामारी का केंद्रीय स्थल बन गया था. तीन महीने के लंबे दख़ल के बाद हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएएचओ) के महानिदेशक टेडरॉस एडनॉम गैब्रियेसस ने भारत में जिस स्थान की सबसे संवेदनशील कोविड-19 हॉटस्पॉट के रूप में आशंका जताई जा रही थी, वहां सफलतापूर्वक महामारी पर काबू पाने के लिए मुंबई के स्थानीय निकाय की तारीफ़ की है. उन्होंने धारावी में ‘सामुदायिक जुड़ाव’ वाले हिस्से और शहरी निकाय के ‘टेस्टिंग, ट्रेसिंग, आइसोलेशन और उन सभी का इलाज करने, जो बीमार हैं,’ के फार्मूले की तारीफ़ की, जिसने वायरस के फैलने की रफ़्तार को थामने में मदद की.

मुंबई के बीचो-बीच री-डेवलपमेंट परियोजना में 239 हेक्टेयर क्षेत्र का पुनर्विकास होगा, जिसमें करीब दस लाख लोग रहते हैं. इस समय इस क्लस्टर में 20,000 छोटे दर्जे की कामकाजी इकाइयां, हैं, जबकि बाकी झोंपड़ियों के साथ सामुदायिक शौचालय हैं— लगभग 1,400 लोगों के बीच साझा एक शौचालय परिसर. कामकाजी इकाइयां चमड़े के निर्यात, टेक्सटाइल और ज़री का काम, कांच, मिट्टी के बर्तनों और रीसाइक्लिंग की हैं, जो धारावी की एक अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था में योगदान देती हैं.

पहली बार धारावी का री-डेवलपमेंट प्लान फरवरी 2004 में पेश किया गया था, और फिर यह हर चुनाव से पहले राजनीतिक दलों के घोषणापत्र में सुर्खियों में रहा, लेकिन आगे नहीं बढ़ा. कुछ मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में थोड़ी प्रगति के संकेत दिखाने के बाद, हर बार मुख्य रूप से कुल निवासियों के एक तिहाई का पात्रता मानदंड पूरा न कर पाने और सहज  राजनीतिक उदासीनता के चलते योजना अटक गई. परियोजना पर अंतिम बार प्रगति 2019 की शुरुआत में देखी गई जब देवेंद्र फडणवीस सरकार ने एक नए री-डेवलपमेंट प्लान को मंज़ूरी दी और यहां तक ​​कि निविदा भी मंगाई गई. लेकिन जब परियोजना उड़ान भरने के लिए तैयार लग रही थी, एक बार फिर से एक तकनीकी मुद्दे के कारण धराशायी हो गई— धारावी री-डेवलपमेंट क्षेत्र से सटी रेलवे की 45 एकड़ ज़मीन परियोजना का हिस्सा बन गई और निविदा व काम शुरू करने का औपचारिक आदेश जारी होने के बाद भी काम ठप हो गया. झुग्गीवासी इस बात से भी नाख़ुश थे कि सरकार 500 वर्गफुट के घर की उनकी मांग के उलट उन्हें सिर्फ़ 350 वर्गफुट का मुफ्त फ्लैट देकर उनकी मांग को कटौती कर रही है. नवंबर 2019 में बनी नई सरकार इसे इस बिंदु से आगे ले जाने की योजना बना रही है. ठाकरे को लिखे अपने हालिया पत्र में निवासियों के संगठन धारावी रीडेवलपमेंट कमेटी ने उनसे अनुरोध किया है कि वो फिर से टेंडर जारी करने में समय बर्बाद न करें और पिछली सरकार द्वारा तय किए काम को ही आगे बढ़ाएं.

मुंबई के भूगोल की जटिलता के साथ-साथ इसकी बेतहाशा बढ़ती आबादी ने शहर को इस कदर बेढब बना दिया है कि इस पर गैरपारंपरिक तरीकों से पुनर्विचार करने की ज़रूरत है. 2011 की जनगणना के अनुसार 53 लाख लोग झुग्गियों में रहते हैं, और इसमें मुंबई की ज़मीन का बमुश्किल 8 फ़ीसद हिस्सा शामिल है.

हालांकि, उद्धव ठाकरे सरकार निविदा के तकनीकी पहलुओं पर निश्चित रूप से विचार करेगी,  उसके लिए इस परियोजना को दुनिया के सामने झुग्गी पुनर्विकास में नए प्रतिमान के तौर पर पेश करने का एक बड़ा मौक़ा है. मुंबई के भूगोल की जटिलता के साथ-साथ इसकी बेतहाशा बढ़ती आबादी ने शहर को इस कदर बेढब बना दिया है कि इस पर गैरपारंपरिक तरीकों से पुनर्विचार करने की ज़रूरत है. 2011 की जनगणना के अनुसार 53 लाख लोग झुग्गियों में रहते हैं, और इसमें मुंबई की ज़मीन का बमुश्किल 8 फ़ीसद हिस्सा शामिल है. इस तरह धारावी, जो भारत की वाणिज्यिक राजधानी पर धब्बा है, का सफल पुनर्विकास न केवल दूसरी अनौपचारिक बस्तियों के पुनर्विकास के लिए, बल्कि बेहद-घनी झुग्गी बस्तियों की समस्या से जूझ रहे भारत और दुनिया भर के लिए एक मिसाल बन सकता है

भारत में देश के दूसरे शहरों के साथ मुंबई में स्लम पुनर्वास, लंबे समय से नीतिगत अनिर्णय से ग्रस्त है और इसे सुधारने को लेकर कोई आम सहमति नहीं है. नीति के तहत मुंबई में स्लम रिहैबिलिटेशन अथॉरिटी (एसआरए) झुग्गियों के पुनर्विकास की निगरानी करती है. झुग्गी क्लस्टर वाली ज़मीन का एक हिस्सा प्राइवेट डेवलपर को दिया जाता है. नियम के तहत इस ज़मीन के 30 फ़ीसद हिस्से पर झुग्गीवासियों के लिए मुफ़्त मकान बनाना होता है, और बाकी हिस्से का इस्तेमाल खुले बाज़ार में महंगे दाम पर बेचे जाने वाले लग्ज़री मकान बनाने के लिए किया जाता है. इस मॉडल के तहत, खुले बाजार में लग्ज़री मकानों को बेचने से होने वाली आय झुग्गी निवासियों को दिए जाने वाले ‘मुफ़्त वाले हिस्से’ के लिए सब्सिडी का काम करती है. हक़ीक़त में, ‘मुफ़्त मकान’ के निर्माण घटिया स्तर का होता है और उनमें बुनियादी सुविधाओं का अभाव होता है, जो आमतौर पर किसी भी अन्य बस्ती में यूं ही मिल जाती हैं. वेंटिलेशन की कमी और जगह के मानदंडों का ठीक से पालन नहीं किए जाने के नतीजे में ज़्यादा घनत्व वाली ‘बहुमंज़िला झुग्गियां’ बन जाती हैं. अगर हिसाब लगाएं कि मौजूदा मानक के हिसाब से अनौपचारिक सेक्टर के क़ब्ज़े वाले पूरे 8 फ़ीसद को री-डेवलपमेंट के लिए इस्तेमाल किया जाता है, तो हम मौजूदा ज़मीन में 70 फ़ीसद की कमी कर देंगे. इसका मतलब यह होगा कि मुंबई की केवल तीन फ़ीसद ज़मीन का इस्तेमाल वास्तविक पुनर्वास के लिए होगा.

यह सामुदायिक क्लस्टर नियोजन के लिए एक बड़ा मौक़ा है जहां झुग्गी पुनर्विकास को सिर्फ़ किसी व्यक्ति के एक घर के नज़रिये से नहीं देखा जा रहा है, बल्कि रहने, काम करने और अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार के लिए एक जगह के रूप में देखा जा रहा है.

कोविड-19 महामारी से मिले सबक ने न केवल बेहतर घरों के साथ बेहतर सोशल हाउसिंग (सामाजिक आवास) के महत्व की ओर ध्यान खींचा है, बल्कि रहने की बेहतर स्थितियों और पर्यावरण के साथ खुला स्थान, स्वच्छता, पानी, इमारतों के बीच साझा गलियारों के साथ बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक आवास की मांग उठी है. यह सामुदायिक क्लस्टर नियोजन के लिए एक बड़ा मौक़ा है जहां झुग्गी पुनर्विकास को सिर्फ़ किसी व्यक्ति के एक घर के नज़रिये से नहीं देखा जा रहा है, बल्कि रहने, काम करने और अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार के लिए एक जगह के रूप में देखा जा रहा है. इसे जनता के लिए बाज़ार-बिल्डर संचालित और सरकार-संचालित होने से अलग करना होगा. ये बदलाव  सबसे पहले शहरों के विकास नियंत्रण नियमों (डीसीआर) में दिखने चाहिए, जहां पुनर्विकास परियोजनाओं में न्यूनतम स्थान और वेंटिलेशन मानदंडों का पालन करना होगा, नहीं तो हम दैत्याकार बहुमंज़िला मलिन बस्तियों का निर्माण करेंगे, जैसा कि मुंबई में कई एसआरए परियोजनाओं में हुआ है. इन दिनों जबकि क़िफ़ायती आवास (अफ़ोर्डेबल हाउस) हर सरकार के एजेंडे में ऊंची प्राथमिकता में है, धारावी जैसे क्लस्टर में भी इस पर विचार होना चाहिए जहां मिश्रित आवास के कई स्तर बनाए जा सकते हैं.

मुंबई में पुनर्विकास परियोजनाओं में मुफ्त घर देना एक लोकलुभावन नीतिगत फ़ैसला है जिसे कोई भी सत्तारूढ़ दल कभी वापस नहीं लेना चाहेगा. हालांकि, झुग्गीवासियों को कुछ पैसे खर्च करने पर ज्यादा जगह देने की पेशकश ऐसी चीज़ है जिस पर गंभीरता से विचार करने की ज़रूरत है. इस तरह की अतिरिक्त जगह परिवारों को छोटे पैमाने पर काम करने वाली इकाइयां चलाने में मदद कर सकती है या इसे किराए पर देकर उनकी आय को कुछ बढ़ा सकती है, या बाद में जब परिवार बढ़ता है तो उसका इस्तेमाल भी किया जा सकता है.

क़िफ़ायती घरों के लिए विचार करना होगा, जिसे मुंबई में काम करने वाली 60 लाख की विशाल प्रवासी आबादी को मुहैया कराया जा सकता है. इन घरों की लागत उन लोगों की सामर्थ्य के अनुसार तय की जानी चाहिए जो इनमें रहेंगे, न कि बाज़ार द्वारा तय की जानी चाहिए. ऐसे क्लस्टर में कम-किराये के सरकारी घर बनाए जाने की बहुत बड़ी गुंजाईश है. धारावी के पुनर्विकास के लिए कदम उठाना ज़रूरी है. अगर यह परियोजना ‘जन-केंद्रित’ नज़रिये से और ‘समुदाय-संचालित’ इरादे से लाई जाती है, तो विश्व स्तर पर स्लम पुनर्विकास के लिए एक नया मॉडल पेश करेगी.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.