Author : Anchal Vohra

Published on Jan 20, 2021 Updated 0 Hours ago

जर्मनी ने जर्मनी कोड ऑफ क्राइम्स के तहत यूनिवर्सल ज्यूरिसडिक्शन के सिद्धांत को अमल में लाया जिसके तहत जर्मनी किसी भी अंतर्राष्ट्रीय अपराध को रोकने की शक्ति रखता है, भले इसे किसी ने कहीं भी किया हो, और किसी के भी ख़िलाफ़ यह अपराध किया गया हो.

जर्मनी से सीरियाई मूल के नागरिकों के लिए निकलेगा इंसाफ़ का रास्ता

जर्मनी के कोबलेंज के हायर रिज़नल कोर्ट में दुनियां में पहली बार सीरियाई शासन के अधिकारियों के ख़िलाफ़ युद्ध अपराध के आरोप में एक मुक़दमा चलाया गया था. यह भले ही एक शुरुआत थी लेकिन यह उम्मीद की किरण थी ख़ास कर उन लोगों के लिए जिन्होंने साल 2011 में सीरिया में विद्रोह शुरू होने से पहले वहां की कुख्यात जेल व्यवस्था में अपने लोगों को हमेशा के लिए खो दिया था.

मानवाधिकार आयोग से जुड़े तमाम वकीलों ने लगातार पिछले नौ वर्षों में सीरिया के सिविल वार से जुड़ी तमाम सबूतों को इक़ट्ठा किया जो कई बार काफ़ी ज़ोख़िम भरा काम था. जेल में पीड़ितों के साथ किए गए अत्याचार के सबूत हों या फिर जिन्होंने सत्ताधारी पार्टी के साथ बग़ावत करने का साहत जुटाया, य़हां तक कि पत्रकार और वो लोग जो जेल अधिकारी रहे उनके ख़िलाफ़ किए गए तमाम ज़्यादतियों के सबूत अदालत में एक के बाद एक कर पेश किए गए.

इन्हीं मुक़दमों में से एक इयाद-अल-घरीब और एक मध्य स्तर के अधिकारी अनवर रसलान के ख़िलाफ़ मुक़दमा चल रहा है. दरअसल अनवर, डमैस्कस के अल-ख़तीब नाम के इंटेरोगेशन-कम-डिटेंशन सेंटर का ज़िम्मा संभाले थे और जिसके आदेश पर 4000 बंद लोगों के ख़िलाफ़ दिन रात यातनाओं का दौर चलाया जा रहा था. जिसका नतीज़ा यह हुआ कि इन बंदियों में से 58 की मौत हो गई थी. ईयाद इस सेंटर में अनवर का कनिष्ठ सहयोगी था जिसके ख़िलाफ़ 30 केस में अत्याचार और ज़्यादती करने के आरोप लगे.

कोबलेंज में जो मुक़दमा जारी है वो कई मायनों में बेहद अहम है ख़ास कर उन लोगों के लिए जो सीरियाई सरकार के बड़े अधिकारियों के इशारे पर समय-समय पर या तो ग़ायब कर दिए गए या फिर उन्हें यातनाओं का अंतहीन दौर सहना पड़ा या फिर सत्ता के ख़िलाफ़ बग़ावती तेवर रखने की वज़ह से उनकी हत्या कर दी गई. 

कोबलेंज में जो मुक़दमा जारी है वो कई मायनों में बेहद अहम है ख़ास कर उन लोगों के लिए जो सीरियाई सरकार के बड़े अधिकारियों के इशारे पर समय-समय पर या तो ग़ायब कर दिए गए या फिर उन्हें यातनाओं का अंतहीन दौर सहना पड़ा या फिर सत्ता के ख़िलाफ़ बग़ावती तेवर रखने की वज़ह से उनकी हत्या कर दी गई. अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन के मुताबिक़ पीड़ितों की तादाद हज़ारों में है, जबकि आज भी सीरिया की जेलों में करीब 1 लाख 27 हज़ार से ज़्यादा क़ैदी अपनी ज़िंदगी में आज़ादी की सुबह होने का इंतज़ार कर रहे हैं.

मानवाधिकार से जुड़े वकीलों की दलील

ये मुक़दमे भले ही दो अधिकारियों के ख़िलाफ़ चल रहे हों लेकिन इसके द्वारा इस बात को साबित करने की कोशिश की जा रही है कि ये तमाम अपराध एक व्यवस्थित अंदाज़ में किए गए हैं. मानवाधिकार से जुड़े वकीलों का कहना है कि इन मुक़दमों के ज़रिए एक ऐसी क़ानूनी ज़मीन तैयार करने की कोशिश की है जिसके द्वारा भविष्य के तमाम मुक़दमों को आसानी से निपटाया जा सके. उन्हें उम्मीद है कि जिन सत्ता के बड़े अधिकारियों के तहत ग़िरफ़्तारी के अंतर्राष्ट्रीय वारंट जारी किए जा चुके हैं वो अगर विदेश दौरे पर कभी भी अपने देश से बाहर निकलते हैं तो वो दिन दूर नहीं जब उनके ख़िलाफ़ भी मुक़दमा चलाया जा सकेगा. ये आज भले दूर की कौड़ी लगती हो कि सीरिया के शासक असद को कभी रूस सहयोग करना छोड़ देगा और इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट में उन्हें बतौर शासक एक तरह की सुरक्षा मुहैया कराना भी छोड़ देगा, लेकिन ये बात भी असंभव नहीं प्रतीत होती है. इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट में वर्षों से रूस और चीन अपने वीटो का इस्तेमाल कर सीरिया की सत्ता के क़रीब रहे वरिष्ठ अधिकारियों को मुक़दमों से सुरक्षा प्रदान करने का काम किया है.

इस साल जर्मनी ने जर्मन कोड ऑफ़ क्राइम्स के तहत यूनिवर्सल ज्यूरिसडिक्शन के सिद्धांत को अमल में लाने का काम किया है जिसके तहत अब जर्मनी अंतर्राष्ट्रीय अपराध के आरोपी ,भले ही वो कोई भी हो या फिर उसने कहीं भी अपराध को अंजाम दिया हो, उसके ख़िलाफ़ मुक़दमा चला सकता है.

मानवाधिकार से जुड़े वकीलों को उम्मीद है कि अनवर रसलान और इयाद अल घरीब के ख़िलाफ़ जो मुक़दमे दायर किए गए हैं उससे यूरोप के दूसरे अधिकारियों को भी भरोसा पैदा होगा कि सीरिया के वरिष्ठ अधिकारियों के ख़िलाफ़ एक दिन अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में मुक़दमे दायर किए जा सकेंगे और पीड़ितों को यूनिवर्सल ज्यूरिसक्डिक्शन के तहत न्याय मिल सकेगा.

मानवाधिकार से जुड़े वकीलों को उम्मीद है कि अनवर रसलान और इयाद अल घरीब के ख़िलाफ़ जो मुक़दमे दायर किए गए हैं उससे यूरोप के दूसरे अधिकारियों को भी भरोसा पैदा होगा कि सीरिया के वरिष्ठ अधिकारियों के ख़िलाफ़ एक दिन अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में मुक़दमे दायर किए जा सकेंगे और पीड़ितों को यूनिवर्सल ज्यूरिसक्डिक्शन के तहत न्याय मिल सकेगा.

यही नहीं यह व्यवस्था इस बात को भी उम्मीद देगी कि इसी तरह के अपराध दुनियां के किसी दूसरे निरंकुश शासक ने अंजाम देने की कोशिश की और वहां के जेलों में भी पीड़ितों को यातना दी गई तो ऐसे शासकों के ख़िलाफ़ भी जांच की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है.

जहां तक बात अल-ख़तीब के ख़िलाफ़ जारी मुक़दमे की है तो उसके ख़िलाफ़ सभी सबूत इस निष्कर्ष की ओर इशारा कर रहे थे कि सरकार के अलग-अलग सुरक्षा विभाग के अधिकारी जिसमें ख़ुफ़िया सेवा और सेना के जवान भी शामिल थे, पीड़ितों की अवैध ग़िरफ़्तारी करने से लेकर उन्हें यातनाएं देने और उनके शवों को ठिकाने लगाने जैसे तमाम आपराधिक गतिविधियों में शामिल थे.

एक ख़ास मुक़दमे के दौरान एक शख़्स जिसका काम सरकार नियंत्रित श्मशान में मारे गए लोगों को वाहनों में भर कर वहां लाना था और जिन लोगों को वहां गाड़ा जाता था वो किस सुरक्षा ब्रांच में बंद थे, उनकी संख्या को नोट करना था, उसने अपने ट्रायल के दौरान बताया कि इस तरह की हत्या साल 2017 तक बहुत तादाद में हुई.

जिस शख़्स के ख़िलाफ़ यह मुक़दमा चलाया जा रहा था उसे अदालत में सिर्फ़ गवाह जेड कह कर पुकारा गया क्योंकि उसके वकीलों को यह ख़ौफ़ था कि अगर उसके नाम को सार्वजनिक कर दिया जाएगा तो उसके परिवार के लोग जो अभी भी सीरिया में असद नियंत्रित साम्राज्य में रह रहे हैं उनकी जान को ख़तरा हो सकता है.

उसने अदालत को बताया कि “ख़ून की नदियां बह रही थी और शवों से कीड़े निकल रहे थे,” यही नहीं ज़्यादातर शव सड़ चुके थे और उनके चेहरों को पहचानना बेहद मुश्किल था. गवाह जेड ने ट्रायल के दौरान कहा कि शवों का गंध अभी तक उसका पीछा करती है.

इस तरह के कई नाटकीय उद्धरणों को प्रेस ने ख़बरों में जगह देनी शुरू की और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने इस पर जब ध्यान केंद्रित करना शुरू किया तो पश्चिम के कई देशों के लिए इसे लेकर मुश्किल खड़ी होनी शुरू हो गई जो सीरिया के शासक असद के साथ संबंधों के सामान्य होने की उम्मीद लगा रहे थे.

दरअसल रूस की मदद से सीरिया की ज़मीन पर जारी जंग में असद की जीत ने पश्चिमी देशों को इस बात के लिए राज़ी कर लिया कि वो सीरिया में अब सत्ता में बदलाव नहीं बल्कि नागरिकों के प्रति असद के शासन चलाने के तौर तरीक़ों को लेकर बदलाव चाहते हैं.

हालांकि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को ऐसा लगता है कि यूरोप में जैसे जैसे ये मुक़दमे आगे बढ़ते जाएंगे असद और उनके शासन के दौरान अत्याचार की कई कहानियां बाहर निकलेंगी जो अमेरिका और यूरोप को कभी स्वीकार्य नहीं होगा.

क्या अंतर्राष्ट्रीय अपराध के मामले में न्याय का रास्ता तय करना कठिन

अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन से उम्मीद की जा रही है कि वो इसे लेकर वास्तविक नीतियां अपनाएंगे और सीरियाई सरकार के साथ जो न्यायसंगत होगा उसे ही आगे बढ़ाएगें. उनकी टीम को इस बात की उम्मीद नहीं है कि असद ख़ुद को कभी क़ानून के हवाले करेंगे और सत्ता से राजनीतिक नियंत्रण छोड़ देंगे, लेकिन उनकी टीम राजनीतिक बंदियों को जेल से छोड़ने पर किसी तरह का समझौता नहीं करेगी.

अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन से उम्मीद की जा रही है कि वो इसे लेकर वास्तविक नीतियां अपनाएंगे और सीरियाई सरकार के साथ जो न्यायसंगत होगा उसे ही आगे बढ़ाएगें. 

इसमें दो राय नहीं है कि अंतर्राष्ट्रीय अपराध के मामले में न्याय का रास्ता तय करना कठिन और एक लंबा इंतज़ार है लेकिन जर्मनी आज दुनिया को यह बता रहा है कि यह असंभव भी नहीं है.

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