Authors : Ovee Karwa | Sahil Deo

Published on Jul 30, 2023 Updated 0 Hours ago

सभी के लिए आसानी से पहुंच होने का वादा करने वाले पिछले आविष्कारों के नुक़सान से बचने के लिए, यह निश्चित करना होगा कि मेटावर्स अधिक लोकतांत्रिक और शुरुआत से ही सबके लिए आसान हो.

#Metaverse: वो आभासी नई दुनिया जो हर किसी के लिये समान रूप से उपलब्ध हो!
#Metaverse: वो आभासी नई दुनिया जो हर किसी के लिये समान रूप से उपलब्ध हो!

पिछले दो दशकों में हमारा जीवन पूरी तरह से बदल गया है जिसकी वज़ह है तकनीक, ख़ास तौर पर इंटरनेट, जिसने दुनिया भर में लाखों लोगों को एक साथ जुड़ने का मौका दिया है और जिसने ज्ञान की आसान पहुंच को मुमकिन करते हुए इसे साझा करने में मदद की है. इंटरनेट की व्यापकता कोरोना महामारी के दौरान और ज़्यादा प्रबल हुई और दुनिया भर में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या में 50 से 70 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हो गई, क्योंकि आजीविका, शिक्षा और प्रशासन ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म पर उपलब्ध होने लगे. वेब 2.0 से अब हम मेटावर्स की ओर बढ़ रहे हैं, जो एक वर्चुअल रियलिटी स्पेस है जहां लोग वर्चुअल और ऑगमेंटेड रियलिटी सेट के ज़रिए कंप्यूटर प्रदत्त माहौल में एक-दूसरे के साथ बातचीत करते हैं. यह आभासी और भौतिक स्थानों का एकीकरण या भौतिक दुनिया को प्रतिबिंबित करने के लिए एक दर्पण, या एक पूरी तरह से नई दुनिया भी हो सकती है. यह हमारी पूरी दुनिया और दिनचर्या को ऑनलाइन बदलने की एक मज़बूत अवधारणा भी हो सकती है, “मेटा प्लेटफॉर्म्स के सह-संस्थापक मार्क जुकरबर्ग कहते हैं कि, “आप लगभग कुछ भी करने में सक्षम होंगे जो आप कल्पना कर सकते हैं- दोस्तों और परिवार के साथ मिलें, काम करें, सीखें, खेलें, ख़रीदारी करें- साथ ही साथ पूरी तरह से नए अनुभव भी करें जो आज हम कंप्यूटर या फोन के बारे में कैसे सोचते हैं, उसमें सटीक नहीं बैठता है. इस भविष्य में, आप बिना किसी यात्रा के कार्यालय में, दोस्तों के साथ संगीत कार्यक्रम में, या अपने माता-पिता के रहने वाले कमरे में तुरंत होलोग्राम के रूप में टेलीपोर्ट करने में ख़ुद सक्षम होंगे”. इसमें अवतारों की इंटरऑपरेबिलिटी भी हो सकती है जो इसे इस्तेमाल करने वाला ख़ुद ही बनाता है, जिसमें उसे कई तरह के प्लेटफ़ॉर्म को इस्तेमाल करने की आज़ादी होती है. सेकेंड लाइफ़ और माइनक्राफ्ट जैसे कई वीडियो गेम ऐसे हैं जो मौजूदा वक़्त में मेटावर्स की मिसाल मानी जा सकती है.

वेब 2.0 से अब हम मेटावर्स की ओर बढ़ रहे हैं, जो एक वर्चुअल रियलिटी स्पेस है जहां लोग वर्चुअल और ऑगमेंटेड रियलिटी सेट के ज़रिए कंप्यूटर प्रदत्त माहौल में एक-दूसरे के साथ बातचीत करते हैं. यह आभासी और भौतिक स्थानों का एकीकरण या भौतिक दुनिया को प्रतिबिंबित करने के लिए एक दर्पण, या एक पूरी तरह से नई दुनिया भी हो सकती है.

इसकी चुनौतियां


यह कैसे काम करेगा, इस बारे में कई अटकलों और थोड़ी स्पष्टता के साथ, तकनीकी कंपनियां और सरकारें केवल इसकी अवधारणा में अभी निवेश कर रही हैं. हालाँकि इन निवेशों और नई तकनीकों से वही चिंताएं जुड़ी हैं जो अलग-अलग सामाजिक वैज्ञानिक और दार्शनिक इंटरनेट और सोशल मीडिया द्वारा किए गए वादों के बारे में पूछते रहे हैं.”अच्छे का लोकतांत्रीकरण और बुरे को रोकने” के लिए इंटरनेट ने अंतर्राष्ट्रीय एकाधिकार को पैदा करने में सक्रिय भूमिका निभाई है और मुल्क की सरकारों के मुक़ाबले अधिक ताक़त अपने में समाहित की है.


इसमें कोईदो राय नहीं कि इसने हमारी उंगलियों पर कई  जानकारी ला दी है लेकिन ज्ञान को रोकने वाले अभी भी प्रतिरोध को बढ़ावा देकर इस बात का फायदा उठा रहे हैं, जहां हमारे सामाजिक संबंध पीछे चले गए हैं क्योंकि हम ऑनलाइन अपनी पहचान से तेजी से प्रभावित हो रहे हैं और कई कमज़ोर समूह बुनियादी ढांचे जैसे फोन, लैपटॉप, कंप्यूटर और इंटरनेट तक पहुंच न होने की वजह से पीछे छूटे हुए हैं. जैसा कि दुनिया अगले दशक में मेटावर्स में कदम रखने का अनुमान लगा रही है, यही सवाल एक बार फिर सामने आ रहा है. आख़िर इंटरनेट से जुड़ी समस्याएं जैसे हैकिंग, कैटफ़िशिंग, उत्पीड़न, अभद्र भाषा, ग़लत सूचना और दुष्प्रचार जैसी समस्याओं से निपटने की क्या योजना होगी? मेटावर्स आख़िर कैसे यह भरोसा दिलाएगा कि लोग अपनी वास्तविक दुनिया से और दूर न हों? एआर ग्लास और वीआर हेडसेट, रिस्टबैंड तकनीक, अल्ट्रा-फास्ट ब्रॉडबैंड स्पीड और हमेशा ऑनलाइन रहने वाली दुनिया मेटावर्स के लिए बुनियादी ज़रूरतें होंगी, ऐसे में क्या यह तकनीक उन लोगों को इससे दूर कर देगी जिनके पास ऐसे संसाधन नहीं होंगे?

पत्रों और पुस्तकों की उपलब्धता ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक संभव हो पाई, हालांकि अशिक्षित लोगों तक इसकी पहुंच नहीं थी. इंटरनेट तकनीक का विकास एक ऐसी ही घटना है, जहां इसे एक महान संतुलनकर्ता के रूप में देखा जा रहा है, जिससे यह उम्मीद लगाई जा  रही है कि यह पूरे विश्व में ज्ञान तक आसान पहुंच और दुनिया भर में कनेक्टिविटी को मज़बूत करेगा.

प्रिंट मीडिया के शुरू होने के साथ लोगों को नए विचारों और विचारधाराओं से अवगत होने का मौक़ा मिला, जिसके बारे में उन्होंने पहले कभी नहीं जाना था. इससे वे विचारों को ग़लत साबित करने और सामाजिक बदलाव लाने में सक्षम हुए और यह मुमकिन इसलिए हो पाया क्योंकि समाचार पत्रों और पुस्तकों की उपलब्धता ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक संभव हो पाई, हालांकि अशिक्षित लोगों तक इसकी पहुंच नहीं थी. इंटरनेट तकनीक का विकास एक ऐसी ही घटना है, जहां इसे एक महान संतुलनकर्ता के रूप में देखा जा रहा है, जिससे यह उम्मीद लगाई जा  रही है कि यह पूरे विश्व में ज्ञान तक आसान पहुंच और दुनिया भर में कनेक्टिविटी को मज़बूत करेगा. सूचना तक आसान पहुंच के साथ, इंटरनेट दूरदराज़ और सबसे ग़रीब इलाक़ों में रहने वाले छात्रों को अमीर छात्रों के बराबर ही समान पाठ्यक्रम पढ़ने की आज़ादी देता है और सीखने का एक बेहतर स्रोत है. यह सूचनाओं की विषमता को दूर कर बिचौलियों की ताक़त को कम करने का वादा करता है, जिसे आम तौर पर विघटनकारी भी कहते हैं और यह छोटे व्यापारियों और निर्माताओं को बाज़ार की पहुंच देकर ऐसा कर पाता है जिसे पहले सिर्फ बड़े कॉरपोरेट ही इस्तेमाल कर पाते थे.

वेब 2.0 के युग में रहते हुए हम जानते हैं कि इंटरनेट केवल आंशिक रूप से वही बन पाया है जो उसने दावा किया था. दुनिया इससे पहले कभी इतनी आपस में जुड़ी हुई नहीं थी, जबकि अपेक्षाकृत अनफ़िल्टर्ड जानकारी की आसानी से पहुंच ने असहिष्णुता और दुरुपयोग को भी बढ़ावा दिया है. वास्तव में, इंटरनेट को बहुत ही सावधानी से  अपने निजी पसंद के आधार पर एक इको चैंबर के रूप में विकसित किया जा सकता है. इस पर एक अभिजात वर्ग ने एकाधिकार स्थापित कर लिया है जहां गूगल, एपल, फेसबुक और अमेजॉन यह नियंत्रित करता है कि हम क्या पढ़ते हैं, क्या करते हैं, क्या ख़रीदते हैं और क्या काम करते हैं. हमें प्रिंट मीडिया, इंटरनेट, वेब 2.0 और अन्य आविष्कारों की कमियों से सीखने की ज़रूरत है, जिसने भरोसा दिया था कि ज्ञान का लोकतांत्रिकीकरण होगा, पहुंच बढ़ेगी और मेटावर्स अधिक मुक्त और लोकतांत्रिक हो सकता है.

 मेटावर्स में लोग कैसे ऑपरेट कर सकते हैं इसमें अवतार और डिज़िटल वस्तु अहम भूमिका निभा सकते हैं और इसके लिए स्थानीय दुकानों और ब्रांड के साथ कंटेट निर्माताओं का सशक्तीकरण किया जाना चाहिए जिससे उन्हें दुनिया के साथ मिलने का समान मौका मिल सके.

मेटावर्स अभी भी शुरुआती दौर में है और इसका भविष्य अभी पूरी तरह अनिश्चित है, अगर सरकारें इसकी उपेक्षा करती हैं या मानती हैं कि यह अमल में नहीं आ सकता है तो वे नियामक, आर्थिक और सामाजिक संस्थान नहीं बना सकते जो सभी लोगों को बदलाव और आभासी दुनिया की तरफ आगे बढ़ने में मदद करेगी. इस बदलाव के मूल में इंटरनेट के बुनियादी ढांचे के लिेए सरकारी निवेश और निजी सहयोग, और डिज़िटल विभाजन को ख़त्म करने के लिए कदम उठाना शामिल है. वैसे इलाक़े, जहां इंटरनेट कनेक्टिविटी को लेकर लगातार बाधा पैदा होती रहती है, वो ई-कॉमर्स के मौक़ों का फायदा नहीं उठा सकते हैं.

यूनिवर्सल ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी और आसानी से उपलब्ध और सस्ते वाई-फाई में निवेश करना अहम है. इंटरनेट तक पहुंच के लिए निजी क्षेत्र के साथ सहयोग और ज़रूरी बुनियादी ढांचे में निवेश नवीनतम तकनीकों तक पहुंच, सस्ती लागत और तेजी से वितरण के विकास को सुनिश्चित करेगा. विकासशील देशों की सरकारों को, विशेष रूप से, हार्डवेयर और सॉफ़्टवेयर तकनीक की संप्रभुता के लिए आगे बढ़ना चाहिए.  मज़बूत प्रौद्योगिकी नीति व्यवस्था जो सामाजिक वास्तविकताओं से अलग-थलग नहीं हो, किसी मक़सद से डिज़ाइन किए गए हों और उनके पास व्यापक निगरानी और मूल्यांकन और फ़ीड बैक फ्रेमवर्क हो.

सरकारी नियम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि कंटेंट निर्माताओं, सभी कंपनियों और स्थानीय व्यवसायों को मेटावर्स में हिस्सेदारी रखने का मौका मिल सकता है. मेटावर्स में लोग कैसे ऑपरेट कर सकते हैं इसमें अवतार और डिज़िटल वस्तु अहम भूमिका निभा सकते हैं और इसके लिए स्थानीय दुकानों और ब्रांड के साथ कंटेट निर्माताओं का सशक्तीकरण किया जाना चाहिए जिससे उन्हें दुनिया के साथ मिलने का समान मौका मिल सके. बुनियादी स्तर पर, जिसने मेटावर्स का निर्माण किया है, उसके पास यह निर्धारित करने की शक्ति होगी कि भविष्य में क्रिएटिव कॉमन्स कैसे काम करेंगे. यह दावा करना कि एक मुक्त इकोसिस्टम बनाया जाएगा यह खोखला नज़र आता है, क्योंकि जब तक बुनियादी ढांचे, सामग्री और प्रौद्योगिकी का मेटावर्स बनाने और उसका संचालन करने की शक्ति अमीर लोगों के पास है तब तक यह दावा बेकार है. 

मेटावर्स को बढ़ावा देने के लिए सरकारों को भी चाहिए कि वो लोगों को कुशल बनाएं, इसके लिए पाठ्यक्रम, ट्रेनिंग के साथ कौशल  विकास प्रोग्राम, जैसे आत्मनिर्भर भारत के लिए सेमीकंडक्टर मिशन, को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. 

मेटावर्स के निर्माण के बिज़नेस मॉडल को बदलने की ज़रूरत है जिसमें गूगल और फेसबुक जैसे बड़े तकनीकी दिग्गज़ स्केल स्थापित कर, प्रतिस्पर्द्धियों को बाहर निकालकर और डेटा की निकासी और बिक्री कर, कई हितधारकों और कंपनियों के साथ सकारात्मक प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित कर, सरकारी हस्तक्षेप और डेटा गोपनीयता के जरिए ऑपरेट करते हैं. इस परिदृश्य में यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि मेटावर्स को किसी एक इकाई द्वारा नियंत्रित नहीं किया जाता है और इसका इस्तेमाल करने वालों को कम अधिकार वाले प्लेटफॉर्म से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होती है. इस संबंध में, सरकारों को छोटी फ़र्मों और स्टार्ट-अप्स को मेटावर्स के दायरे में प्रोत्साहित करने की ज़रूरत है. 

भारत में, स्टार्टअप इंडिया जैसे नीतिगत कदम का प्रभावी तरीक़े से फायदा उठाया जा सकता है जिससे प्रौद्योगिकी में और अधिक शोध किया जा सके. इसे बढ़ाने के लिए ज़रूरी सहायता दिए जाने की आवश्यकता है, फ़्रंटियर टेक्नोलॉजीज़ क्लाउड इनोवेशन सेंटर और इसका वर्चुअल रिएलिटी पर फोकस, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (एआई) और इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स (आईओटी) मेटावर्स में प्रयोग और नवाचार के लिए तैयार मौक़ा प्रदान करता है. जैसे-जैसे मेटावर्स का उदय होगा चुनौतियां सामने आएंगी लिहाज़ा निजी क्षेत्र के साथ सहयोग करने वाले आगे की नियमों का नियोजन  महत्वपूर्ण होगा. सिंगापुर ने वर्तमान और भविष्य में उभरती तकनीकों के जोख़िमों और अवसरों पर अनुसंधान, उन्हें ट्रैक करने और उस पर मंथन करने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय के तहत एक ‘सामरिक भविष्य के लिए केंद्र’ की स्थापना की है. ऐसे केंद्र होने से, जिसमें राजनेता, निजी क्षेत्र, शिक्षा के क्षेत्र के विशेषज्ञ शामिल हों तो यह उन पर नज़र रखने और उन बदलावों की भविष्यवाणी करने में मददगार साबित हो सकते हैं जिसके तहत कोई देश उनके बारे में उचित कार्रवाई करने के लिए कदम उठा सकता है. मेटावर्स को बढ़ावा देने के लिए सरकारों को भी चाहिए कि वो लोगों को कुशल बनाएं, इसके लिए पाठ्यक्रम, ट्रेनिंग के साथ कौशल  विकास प्रोग्राम, जैसे आत्मनिर्भर भारत के लिए सेमीकंडक्टर मिशन, को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. अंत में, दुनिया की बड़ी-बड़ी तकनीकी कंपनियों को भी अपनी भागीदारी बढ़ानी चाहिए जिससे डिज़िटल कौशल के लिए लोगों को शिक्षित करने के प्रति प्रोत्साहित किया जा सके.

भारत कहां खड़ा है?


बड़ी भारतीय कंपनियां जैसे टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़ और इन्फ़ोसिस ने मेटावर्स के लिए निवेश और कौशल को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है. नए स्टार्ट-अप जैसे बॉली हीरोज़, इंटर्नलिटी, कोप स्टूडियो ने मेटावर्स पर काम भी करना शुरू कर दिया है. मेटावर्स को सार्वभौमिक बनाने और यह सुनिश्चित करने में कि इसकी पहुंच सभी के लिए बराबर हो और इसका फायदा सभी को मिल सके, इसमें भारत की अहम भूमिका है . यही नहीं भारत को इसके लिए विश्व मंच पर एक ताक़तवर आवाज़ बनने की भी ज़रूरत है. जैसे-जैसे मेटावर्स की अवधारणा विकसित हो रही है, नागरिकों, निजी क्षेत्र, मेटावर्स को विकसित करने वाले शिक्षाविदों और सरकारों के लिए यह बेहद ज़रूरी है कि इससे संबंधित ताज़ा जानकारी से वो ख़ुद को अपडेट रखें.  मेटावर्स कितना समावेशी है, समान मौका और इससे जुड़े सरकारी नियम जो दिखते हैं, यहां तक कि मेटावर्स और इसके नियमन के सामाजिक और आर्थिक परिणाम अहम तो हैं लेकिन ये ऐसे क्षेत्र हैं जो अभी पूरी तरह से खंगाले नहीं गए हैं.

मेटावर्स को सार्वभौमिक बनाने और यह सुनिश्चित करने में कि इसकी पहुंच सभी के लिए बराबर हो और इसका फायदा सभी को मिल सके, इसमें भारत की अहम भूमिका है . यही नहीं भारत को इसके लिए विश्व मंच पर एक ताक़तवर आवाज़ बनने की भी ज़रूरत है.

इंटरनेट की तरह ही मेटावर्स में भी यह क्षमता है कि दुनिया को जिस तरह हम मौजूदा समय में देखते हैं वो इसमें बदलाव ला सकता है. इसकी वास्तविकता की धारणा इतनी नई है कि ज़्यादातर लोग यह समझने की कोशिश में जुटे हैं कि आख़िर वो इसका हिस्सा कैसे बन सकते हैं और यह हमारे जीवन में क्या बदलाव ला सकता है. उम्मीद करते हैं कि हमारा भविष्य उन्हीं चुनौतियों से प्रभावित हो जो इंटरनेट की थीं और हम उन्हें संभाल नहीं सके. ऐसे में निजी क्षेत्र के उद्यम, शिक्षाविद और जो लोग मेटावर्स के निर्माण में जुटे हैं उन्हें इसमें सक्रिय हितधारक बनना चाहिए जिससे कि मेटावर्स को इस तरह डिज़ाइन किया जा सके जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि इसे सभी लोग आसानी से इस्तेमाल में ला सकें.

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Ovee Karwa

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Ovee is a Research Associate at CPC Analytics. She has done her bachelor's in Literary and Cultural Studies and is interested in understanding power oppression ...

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Sahil Deo

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Non-resident fellow at ORF. Sahil Deo is also the co-founder of CPC Analytics, a policy consultancy firm in Pune and Berlin. His key areas of interest ...

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