Published on Mar 04, 2022 Updated 0 Hours ago

मालदीव की सरकार ने ‘इंडिया आउट’ अभियान पर रोक लगाने के लिए कई क़दम उठाए हैं. इस तरह मालदीव भारत के सामरिक महत्व को समझ रहा है. 

मालदीव्स: भारत विरोधी अभियान का शासन स्तर पर दिया जा रहा है मज़बूत जवाब

भारत एवं मालदीव के बीच हवाई यात्रा की 46वीं सालगिरह के मौक़े का जश्न मनाने के लिए एयर इंडिया के विमान को पानी की बौछार से सलामी (वॉटर कैनन सैल्यूट), मालदीव की सरकारी मालदीव नेशनल यूनिवर्सिटी (एमएनयू) एवं भारत की अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर और ‘मालदीव आईएज़ेड समुद्री केबल सिस्टम’ की स्थापना के लिए मालदीव की सरकारी कंपनी ओशन कनेक्ट मालदीव एवं भारत के प्राइवेट सेक्टर की कंपनी रिलायंस जियो इंफोकॉम लिमिटेड (आरजेआईएल) के बीच समझौते के बाद अचानक राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह के नेतृत्व वाली सरकार ने मज़बूती से विपक्ष के ‘इंडिया आउट’ अभियान का जवाब देना शुरू कर दिया है. इसके अलावा, भारत के रक्षा सचिव डॉक्टर अजय कुमार ने द्विपक्षीय कार्यक्रमों को आगे ले जाने के लिए मालदीव का दौरा किया और मालदीव सरकार के मंत्रियों ने संसद की सुरक्षा समिति को बताया कि किस तरह विपक्ष का अभियान प्रायोजित है और इससे मालदीव के हितों का ज़्यादा नुक़सान हो रहा है. 

मालदीव के लोगों से बात करें तो पता चलेगा कि अगर दक्षिण भारत के तुतुकुड़ी बंदरगाह को किसी वजह से एक हफ़्ते के लिए बंद कर दिया जाए तो मालदीव के लोगों को खाने-पीने के सामान, जीवन रक्षक दवाओं, निर्माण सामग्री और यहां तक कि स्कूल जाने वाले बच्चों को और दफ़्तरों में स्टेशनरी के बिना रहना पड़ेगा

मालदीव की संसद के स्पीकर मोहम्मद नशीद के द्वारा चौतरफा मूल्यांकन-सह-जागरुकता कार्यक्रम चलाने के बाद संसद की सुरक्षा समिति, जिसे ‘241 सुरक्षा समिति’ के नाम से भी जाना जाता है, के सामने पेश होते हुए आर्थिक मामलों के मंत्री फैयाज़ इस्माइल ने विस्तार से बताया कि किस तरह पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के नेतृत्व में विपक्ष का अभियान देश के सामने ‘खाद्य सुरक्षा के लिए ख़तरा’ बन गया है. मंत्री ने कहा कि “हमारी खाद्य सुरक्षा काफ़ी हद तक भारत से आयात पर निर्भर है.” उन्होंने बताया कि मालदीव के लोग चीनी, आटा, चिकन, अंडे, आलू, प्याज़ और दाल अच्छी मात्रा में उपभोग करते हैं और इनकी आपूर्ति भारत के द्वारा की जाती है. इसी तरह कंस्ट्रक्शन के काम के लिए निश्चित मात्रा में रेत और रोड़ी, जिनकी आपूर्ति दुनिया भर में कम है, का आयात भी भारत से किया जाता है. 

मंत्री के बयान में सच्चाई है. मालदीव के लोगों से बात करें तो पता चलेगा कि अगर दक्षिण भारत के तुतुकुड़ी बंदरगाह को किसी वजह से एक हफ़्ते के लिए बंद कर दिया जाए तो मालदीव के लोगों को खाने-पीने के सामान, जीवन रक्षक दवाओं, निर्माण सामग्री और यहां तक कि स्कूल जाने वाले बच्चों को और दफ़्तरों में स्टेशनरी के बिना रहना पड़ेगा. आर्थिक मामलों के मंत्री फैयाज़ ने बताया कि तीन साल के एक मज़बूत समझौते, जिसे आगे भी बढ़ाया जा सकता है, से गारंटी मिली हुई है कि भारत की नीतियों में अचानक बदलाव का मालदीव को आपूर्ति पर कोई असर नहीं पड़ेगा, मालदीव में खाने-पीने के सामान की स्थिति अनिश्चित और अप्रत्याशित नहीं होगी. मंत्री ने आगे कहा कि, “कई तरह की सहायता हमने लॉबिंग करके हासिल की है. उदाहरण के लिए, कंस्ट्रक्शन का कोटा अब भारत से बाहर के लिए स्वीकार्य नहीं है. लेकिन भारत के साथ हमारे नज़दीकी संबंधों की वजह से हमें इसे जारी रखने की अनुमति मिली हुई है.” इस तरह “जब उन्होंने (भारत) निर्माण सामग्री के निर्यात पर रोक लगा दी है तब भी द्विपक्षीय संबंधों की वजह से हमारे पास 100 टन पत्थरों के साथ 8 लाख टन रेत का कोटा है.” मंत्री ने संसदीय समिति से कहा कि “ये चीज़ें हमारी खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ अर्थव्यवस्था के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण हैं.” उन्होंने इस बात की तरफ़ ध्यान दिलाया कि किस तरह मालदीव की अर्थव्यवस्था के मुख्य आधार पर्यटन सेक्टर के लिए भी भारत बड़ा स्रोत है. 

आर्थिक मामलों के मंत्री फैयाज़ ने कहा कि, अगर मालदीव भारत की तरफ़ से नामंज़ूर तरीक़े से काम करेगा तो भारत आपूर्ति रोक भी सकता है. पूर्व राष्ट्रपति यामीन की सरकार के दौरान और उससे पहले मोहम्मद वहीद के राष्ट्रपति रहने के दौरान रेत और रोड़ी की आपूर्ति के साथ ऐसा हो चुका है.

आर्थिक मामलों के मंत्री फैयाज़ ने कहा कि, अगर मालदीव भारत की तरफ़ से नामंज़ूर तरीक़े से काम करेगा तो भारत आपूर्ति रोक भी सकता है. पूर्व राष्ट्रपति यामीन की सरकार के दौरान और उससे पहले मोहम्मद वहीद के राष्ट्रपति रहने के दौरान रेत और रोड़ी की आपूर्ति के साथ ऐसा हो चुका है. मंत्री फैयाज़ ने माना कि मालदीव को आपूर्ति करने वाले दूसरे देश भी हो सकते हैं लेकिन मात्रा और क्वॉलिटी के साथ-साथ निरंतरता और क़ीमत में स्थायित्व के मामले में भारत जैसा दूसरा देश नहीं है. उन्होंने ये भी जोड़ा कि ‘इंडिया आउट’ अभियान का असर ‘महसूस’ होने की शुरुआत हो चुकी है लेकिन अभी तक इसका कोई ‘ख़राब असर’ नहीं हुआ है. 

असभ्य और सबसे ख़तरनाक अभियान 

अपनी बारी आने पर रक्षा मंत्री मारिया दीदी ने विपक्ष के अभियान को “असभ्य और सबसे ख़तरनाक अभियान” बताया जिसकी वजह से ‘आंतरिक स्थायित्व बाधित’ हुआ है और राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय सुरक्षा के साथ मालदीव में रहने वाले विदेशी नागरिकों और विदेश में रहने वाले मालदीव के नागरिकों के लिए ख़तरा उत्पन्न हो गया है. गृह मंत्री इमरान अब्दुल्ला ने याद दिलाया कि किस तरह भारत ने मालदीव में बुनियादी ढांचे और विकास की परियोजनाओं के लिए फंड दिया और कैसे भारतीय डॉक्टर्स, नर्स, शिक्षक और सर्विस सेक्टर के दूसरे कर्मचारी विपक्ष के अभियान से ख़तरा महसूस कर रहे हैं और आउट करने की ज़रूरत इस अभियान को है. 

संसदीय समिति के सामने विदेश सचिव अब्दुल ग़फ़ूर मोहम्मद ने बयान दिया कि तीसरे देश के दूतावासों ने भी विपक्ष के अभियान को लेकर चिंता जताई है. उन्होंने कहा, “मालदीव में जिन देशों का दूतावास है, उन्होंने भी चिंता जताई है. उन्होंने भी अपने दूतावासों की सुरक्षा बढ़ाने का अनुरोध किया है.” विदेश मंत्रालय में राज्य मंत्री अहमद ख़लील ने बताया कि मालदीव में राजनयिकों की मौजूदगी को देखते हुए इस तरह के अभियान दूसरे देशों पर भी असर डालेंगे. उन्होंने विपक्ष के अभियान, जिसका मुख्य ध्यान ‘इंडियन मिलिट्री आउट’ है लेकिन अभी तक इसका कारण स्पष्ट नहीं किया गया है, पर कहा कि “इस क्षेत्र में अर्थव्यवस्था, सेना और राजनीतिक स्तर पर भारत सबसे बड़ी शक्ति है.”

रोज़ैने ने कहा, “सच्चाई ये है कि विपक्ष का अभियान ये दिखाता है कि पूर्व राष्ट्रपति यामीन सत्ता में आने के लिए कोई भी कसर नहीं छोड़ेंगे. ये मालदीव और भारत के लोगों के बीच फूट पैदा करने के लिए दुष्प्रचार है

हताशा भरी कोशिश

संसदीय समिति के सदस्यों के ख़ास सवाल का जवाब देते हुए विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने ज़ोर देकर कहा कि सोलिह प्रशासन ने भारत के साथ जिन समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, उनमें से कोई भी नया नहीं है और उनकी शुरुआत पूर्ववर्ती यामीन प्रशासन ने की थी. विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि सरकार में बदलाव के साथ विदेश नीति भी बदलती है और मौजूदा सरकार ने भारत के साथ समुद्री सर्वे के समझौते को बहाल कर दिया है जिसे पिछली सरकार ने रद्द कर दिया था.

एक अलग घटनाक्रम में रक्षा मंत्रालय ने अपने सक्रिय रुख़ को और बढ़ाते हुए भारत के साथ उथुरु थिला फलहू (यूटीएफ) कोस्ट गार्ड अड्डे के विकास के समझौते का ब्यौरा साझा करने से इनकार कर दिया. यामीन समर्थक वेबसाइट द मालदीव जर्नल ने रक्षा मंत्रालय से ये जानकारी मांगी थी. रक्षा मंत्रालय ने ये रुख़ तब दिखाया जब यामीन ने अपनी रैलियों में बार-बार दोहराया है कि यूटीएफ ‘ख़तरे से भरा एक भारतीय सैन्य अड्डा है’ और सरकार का इस द्वीप पर कोई नियंत्रण नहीं है. यामीन अपनी रैलियों में ये भी कहते हैं कि इस समझौते के बिंदुओं पर संसद को विश्वास में नहीं लिया गया था. 

मालदीव के सबसे बड़े पुलिस अधिकारी मोहम्मद हमीद ने बिल्कुल सही बात कही जब उन्होंने संसदीय समिति के एक सवाल का जवाब देते हुए कहा कि भारतीय सेना के जवानों की मौजूदगी से मालदीव की सुरक्षा या आंतरिक स्थिति के लिए कोई ‘ख़तरा नहीं’ खड़ा होता है. उन्होंने इस बात की तरफ़ ध्यान दिलाया कि कैसे अलग-अलग देश भू-रणनीतिक सुरक्षा मामलों में एक-दूसरे की मदद करते हैं और इस काम में विभिन्न देशों के सैन्य कर्मी शामिल होते हैं. उन्होंने ये भी जोड़ा कि मालदीव के सैन्य कर्मी भी दूसरे देशों में सक्रिय हैं. 

लेकिन विपक्षी पीपीएम-पीएनसी गठबंधन के अभियान का सीधे तरीक़े से मुक़ाबला करने का काम रोज़ैना एडम पर छोड़ दिया गया जो सत्ताधारी मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) की वरिष्ठ सांसद हैं. एक टीवी टॉक शो में उन्होंने कहा कि भारत विरोधी अभियान मालदीव के लोगों और सोलिह सरकार के बीच नफ़रत पैदा करने की एक हताशा भरी कोशिश है. रोज़ैना ने कहा कि यामीन ने अपनी सरकार के दौरान ऐसे कई फ़ैसले लिए जिनकी वजह से मालदीव की स्वतंत्रता और ज़मीन खोने का जोख़िम है. रोज़ैने ने कहा, “सच्चाई ये है कि विपक्ष का अभियान ये दिखाता है कि पूर्व राष्ट्रपति यामीन सत्ता में आने के लिए कोई भी कसर नहीं छोड़ेंगे. ये मालदीव और भारत के लोगों के बीच फूट पैदा करने के लिए दुष्प्रचार है.”

एमडीपी की तरफ़ से अंतिम फ़ैसला लेने से पहले यामीन ने ज़ोर देकर कहा कि क़ानून पारित करके ‘इंडिया आउट’ अभियान को रोका नहीं जा सकता है. 

सांसद रोज़ैना ने कहा, “मालदीव की स्वतंत्रता खोने का दावा बिल्कुल ग़लत है.” उन्होंने कहा, “मालदीव में सैन्य मौजूदगी नहीं है. हम इस बात की चर्चा नहीं कर रहे हैं कि हथियारबंद भारतीय सैनिक मालदीव पर कब्ज़ा करने के लिए आ रहे हैं. हमने दूसरे देशों में सैन्य मौजूदगी देखी है, हथियारबंद सैनिकों को सड़कों पर देखा है.” रोज़ैना ने कहा कि विपक्ष का अभियान ईर्ष्या की वजह से शुरू हुआ क्योंकि कोविड-19 महामारी की वजह से पैदा हुई चुनौतियों के बाद भी मालदीव की सरकार ने लोगों तक बिना किसी रुकावट के सेवाएं पहुंचानी जारी रखी. रोज़ैना ने इस बात की तरफ़ भी ध्यान दिलाया कि यामीन के क्रिया-कलाप राष्ट्रपति रहने के दौरान उनके विचारों से उलट हैं. 

‘इंडिया आउट’ अभियान को आपराधिक बनाना 

‘इंडिया आउट’ अभियान को लेकर सत्ताधारी एमडीपी का संतुलित दृष्टिकोण उस वक़्त स्पष्ट दिखा जब पार्टी के संसदीय समूह ने पार्टी अध्यक्ष होने के नाते स्पीकर नशीद के विचार पर फ़ैसला टाल दिया. नशीद एक नया क़ानून लाना चाहते थे जिसके ज़रिए मालदीव के मित्र देशों के ख़िलाफ़ किसी भी तरह के अभियान को अपराध की श्रेणी में डाल दिया जाता. पार्टी के सांसदों ने शुरुआत में इस क़ानून को बनाने के विचार को मंज़ूरी दी थी लेकिन विस्तृत विचार-विमर्श के बाद वो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रदर्शन के अधिकार पर पाबंदी लगाने को लेकर तैयार नहीं हुए. एमडीपी की तरफ़ से अंतिम फ़ैसला लेने से पहले यामीन ने ज़ोर देकर कहा कि क़ानून पारित करके ‘इंडिया आउट’ अभियान को रोका नहीं जा सकता है. विपक्ष के कुछ नेताओं के साथ कुछ स्वतंत्र समीक्षकों ने भी महसूस किया कि भविष्य में एक ग़ैर-एमडीपी सरकार इस तरह के क़ानून को बीत चुके समय से लागू कर स्पीकर नशीद पर कार्रवाई कर सकती है, नशीद की तरफ़ से चीन की लगातार आलोचना को एक ‘मित्र देश’ की आलोचना का रूप दे सकती है. सेना के रिटायर्ड कर्नल मोहम्मद नाज़िम, जो यामीन के राष्ट्रपति रहने के दौरान रक्षा मंत्री थे और अब दोनों के बीच बनती नहीं है, के द्वारा हाल में ही बनाई गई मालदीव नेशनल पार्टी (एमएनपी) ने भी इस क़ानून को ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए अड़चन’ बताते हुए पूर्व राष्ट्रपति नशीद के प्रस्ताव का विरोध किया. 

पूरी तरह भारतीय परिप्रेक्ष्य से देखें तो एमडीपी के द्वारा फ़ैसला टालने का क़दम सोशल मीडिया पर विपक्ष के उस दावे को कमज़ोर कर सकता है कि सत्ताधारी पार्टी के द्वारा क़ानून बनाने की प्रक्रिया के साथ-साथ संसद की सुरक्षा समिति की प्रक्रिया, जिसे संसद में चर्चा और फ़ैसले के लिए पेश किया जाएगा, के पीछे भारत का हाथ था. ‘आपराधिक’ विचार को लेकर एमडीपी वैचारिक तौर पर विभाजित है और पार्टी की चिंताएं लोकतंत्र एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित घरेलू मुद्दों पर केंद्रित है. ये बात भारत के आलोचकों का मुंह बंद करने के अलावा उनके ‘इंडिया आउट’ अभियान के बड़े मुद्दे को भी शांत कर सकता है. 

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